एडिटोरियल (30 Jul, 2024)



प्लास्टिक अपशिष्ट और भारत

यह एडिटोरियल 29/07/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Plastic mess: On India’s waste problem” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट की गंभीर समस्या की चर्चा की गई है जहाँ वार्षिक रूप से उत्पादित चार मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट के केवल चौथाई भाग को ही पुनर्चक्रित किया जाता है। लेख में प्रभावी पुनर्चक्रण सुनिश्चित करने और प्लास्टिक उत्पादन को कम करने के लिये विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) प्रणाली से जुड़ी चुनौतियों और आवश्यक सुधारों पर भी चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, सुपोषण, जैव-संचयन। 

मेन्स के लिये:

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित वर्तमान रूपरेखा, भारत में कुप्रबंधित प्लास्टिक अपशिष्ट से उत्पन्न होने वाले प्रमुख मुद्दे।

भारत में हर वर्ष लगभग 4 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादित होता है, जिसमें से केवल एक चौथाई को ही पुनर्चक्रित या उपचारित किया जाता है। इस समस्या से निपटने के लिये सरकार ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) नियम लागू किये हैं, जहाँ निर्दिष्ट किया गया है कि प्लास्टिक उपयोगकर्त्ता अपने अपशिष्ट के संग्रहण एवं पुनर्चक्रण के लिये उत्तरदायी हैं। यह प्रणाली एक ऑनलाइन EPR ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से संचालित होती है, जहाँ पुनर्चक्रण करने वालों को पुनर्चक्रित प्लास्टिक के लिये प्रमाणपत्र प्राप्त होते हैं, जिन्हें वे कंपनियाँ खरीद सकती हैं जो अपने पुनर्चक्रण लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाती हैं।

हालाँकि, EPR प्रणाली को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2022-23 में लगभग 3.7 मिलियन टन पुनर्चक्रित प्लास्टिक प्रमाणपत्र सृजित हुए, लेकिन उनकी एक बड़ी संख्या जाली पाई गई। जबकि बाज़ार-संचालित दृष्टिकोण आशाजनक है, इसकी अपनी सीमाएँ हैं। भारत की प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या का समाधान करने के लिये न केवल पुनर्चक्रण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, बल्कि प्लास्टिक उत्पादन को कम करने और संवहनीय विकल्पों को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट के कुप्रबंधन से जुड़े प्रमुख मुद्दे:

  • पर्यावरणीय क्षरण: भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट गंभीर पर्यावरणीय क्षरण का कारण बनते हैं।
    • इससे जल निकासी मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं, जिससे मानसून के दौरान शहरी क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है।
      • उदाहरण के लिये, मुंबई में वर्ष 2005 में आई बाढ़ प्लास्टिक से भरे नालों के कारण और भी भयावह हो गई थी।
    • समुद्री प्रदूषण एक अन्य गंभीर मुद्दा है। अनुमान है कि भारत के महासागरों में प्रतिवर्ष 0.6 मिलियन टन प्लास्टिक प्रवेश करता है, जिससे सुपोषण (Eutrophication) और जैव-संचयन (Bioaccumulation) जैसी समस्याएँ पैदा होती हैं।
      • अध्ययन में शामिल 88% समुद्री प्रजातियों पर प्लास्टिक प्रदूषण का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और अनुमान है कि 90% समुद्री पक्षी तथा 52% समुद्री कछुए प्लास्टिक निगल लेते हैं।
      • प्लास्टिक अपशिष्ट को जलाने से (जो इसके निपटान का एक सामान्य तरीका है) हानिकारक डाइऑक्सिन और फ्यूरान निकलते हैं, जो वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: प्लास्टिक अपशिष्ट भारतीय आबादी के लिये गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।
    • पेयजल स्रोतों और खाद्य उत्पादों में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं, जिनके संभावित दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट के संचय से नाले आदि जाम हो जाते हैं और मच्छरों जैसे रोगवाहकों के लिये प्रजनन स्थल बन जाते हैं, जिससे डेंगू एवं मलेरिया जैसे रोगों का खतरा बढ़ता है।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट को जलाने से कैंसरकारी और अन्य विषैले पदार्थ निकलते हैं, जिससे आस-पास के समुदायों में श्वसन संबंधी समस्याएँ तथा अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • आर्थिक चुनौतियाँ: प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या भारत के लिये गंभीर आर्थिक प्रभाव भी उत्पन्न करती है।
    • फिक्की (FICCI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक प्लास्टिक पैकेजिंग में प्रयुक्त सामग्री मूल्य में 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की हानि हो सकती है।
      • इस हानि में असंग्रहित प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट का योगदान 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर का होगा।
  • ई-कॉमर्स और पैकेजिंग अपशिष्ट: कोविड-19 महामारी के बाद भारत में ई-कॉमर्स की तीव्र वृद्धि के कारण पैकेजिंग अपशिष्ट में वृद्धि हुई है।
    • भारत का ई-कॉमर्स बाज़ार वर्ष 2026 तक 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जो वर्ष 2017 में 38.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
    • यह वृद्धि बबल रैप, एयर पिलो और पॉलीबैग सहित प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्रियों के बढ़ते उपयोग से प्रेरित है।
      • इनमें से कई सामग्रियों को पुनर्चक्रित करना कठिन होता है और वे प्रायः लैंडफिल या कूड़े के रूप में जमा होती जाती हैं।
  • विनियामक और प्रवर्तन संबंधी चुनौतियाँ: यद्यपि भारत ने प्लास्टिक अपशिष्ट से निपटने के लिये विभिन्न विनियमों को लागू किया है, फिर भी उनका प्रवर्तन एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 (2022 में संशोधित) कुछ एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाता है, लेकिन विभिन्न राज्यों में इसका कार्यान्वयन असंगत है।
    • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व प्रणाली को धोखाधड़ीपूर्ण प्रमाणपत्रों और अपर्याप्त निगरानी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
    • पुनर्चक्रण क्षेत्र की अनौपचारिक प्रकृति के कारण इसके कार्यकलापों को विनियमित करना और उनमें सुधार करना कठिन हो जाता है।
      • भारत उन 12 देशों में शामिल है जो पृथ्वी के 60% कुप्रबंधित प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • प्रौद्योगिकीय और अवसंरचनात्मक कमी: भारत को प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकीय और अवसंरचनात्मक कमी का सामना करना पड़ रहा है।
    • कई नगर निकायों में आधुनिक अपशिष्ट पृथक्करण एवं प्रसंस्करण सुविधाओं का अभाव पाया जाता है।
      • भारत में कुल संग्रहित प्लास्टिक अपशिष्ट के केवल 60% भाग का ही पुनर्चक्रण किया जाता है।
    • बहु-स्तरीय प्लास्टिक और अन्य कठिन पुनर्चक्रणीय सामग्रियों के प्रबंधन के लिये उन्नत पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियाँ व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
    • व्यापक अपशिष्ट ट्रैकिंग प्रणाली के अभाव के कारण प्लास्टिक अपशिष्ट के उत्पादन से लेकर निपटान या पुनर्चक्रण तक के प्रवाह की निगरानी करना कठिन हो जाता है।
  • कृषि में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण: प्लास्टिक मल्च का उपयोग और कृषि में माइक्रोप्लास्टिक युक्त सीवेज कीचड़ का अनुप्रयोग एक उभरती हुई चिंता का विषय है।
    • अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स कृषि मृदा में जमा हो सकते हैं, जिससे मृदा स्वास्थ्य, फसल की पैदावार और खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।
    • यद्यपि भारत के लिये व्यापक आँकडों का अभाव है, वैश्विक रुझान कृषि में प्लास्टिक के व्यापक उपयोग और अपशिष्ट जल के अपर्याप्त उपचार की ओर संकेत करते हैं।
  • ‘बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक’ से जुड़ा विवाद: प्लास्टिक अपशिष्ट के समाधान के रूप में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को बढ़ावा देने से नई चुनौतियाँ पैदा हो गई हैं।
    • कई तथाकथित बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को विघटित होने के लिये विशिष्ट परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, जो प्राकृतिक वातावरण या मानक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में उपलब्ध नहीं होती हैं।
    • इसके अलावा, पारंपरिक प्लास्टिक के साथ बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का मिश्रण पुनर्चक्रण प्रक्रिया को जटिल बना सकता है।
    • भारत में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के लिये स्पष्ट मानकों एवं प्रमाणन प्रक्रियाओं का अभाव है, जिससे यह समस्या और बढ़ जाती है।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित वर्तमान ढाँचा:

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
    • यह प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन को न्यूनतम करने, इधर-उधर कूड़ा फेंकने पर रोक लगाने और अपशिष्ट का पृथक भंडारण एवं हस्तांतरण सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने का निर्देश देता है।
    • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व के अंतर्गत प्री-कंज्यूमर एवं पोस्ट-कंज्यूमर प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट के लिये उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों पर ज़िम्मेदारी का विस्तार किया गया है।
    • प्लास्टिक कैरी बैग और शीट की न्यूनतम मोटाई 50 माइक्रोन तक बढ़ाई गई है।
    • इसका क्षेत्राधिकार नगरपालिका क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया है, जहाँ कार्यान्वयन के लिये ग्राम पंचायतें ज़िम्मेदार होंगी।
    • व्यक्तिगत और थोक उत्पादकों के लिये स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण की व्यवस्था लागू की गई है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018
    • बहु-स्तरीय प्लास्टिक (MLP) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का प्रावधान उन प्लास्टिकों पर लागू होता है जो पुनर्चक्रण योग्य नहीं हैं, ऊर्जा पुनःप्राप्ति योग्य नहीं हैं या जिनका अन्य कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं किया जा सकता।
    • उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा एक केंद्रीय पंजीकरण प्रणाली स्थापित की गई है।
    • इसमें वर्ष 2016 के नियम में उल्लिखित कैरी बैग के स्पष्ट मूल्य निर्धारण के नियम को हटा दिया गया।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021
    • कम उपयोगिता और अधिक कूड़ा फैलाने की संभावना के कारण वर्ष 2022 तक विशिष्ट एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया गया।
    • 1 जुलाई 2022 से पॉलीस्टाइनिन सहित कुछ एकल-उपयोग प्लास्टिक के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया।
    • EPR के माध्यम से प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट के संग्रहण और पर्यावरणीय प्रबंधन को क्रियान्वित किया गया।
    • सितंबर 2021 तक प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और दिसंबर 2022 तक 120 माइक्रोन करने का निर्देश दिया गया।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022
    • पुनर्चक्रण, कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग के पुनः उपयोग और पुनर्चक्रित प्लास्टिक सामग्री के उपयोग के लिये अनिवार्य लक्ष्यों के साथ EPR दिशानिर्देश प्रस्तुत किये गए।
    • यह प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के आधार पर EPR लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहने वालों पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की शर्त लागू करता है।
    • प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट की चक्रीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024:
    • संशोधित नियम में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन और EPR दायित्वों से संबंधित पंजीकरण, रिपोर्टिंग एवं प्रमाणन के लिये विशिष्ट प्रपत्रों और प्रक्रियाओं की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।
    • विस्तारित परिभाषाएँ:
      • आयातक: इसमें अब प्लास्टिक पैकेजिंग और इसी तरह की अन्य वस्तुओं के अलावा वाणिज्यिक उपयोग के लिये प्लास्टिक से संबंधित विभिन्न सामग्रियों का आयात भी शामिल किया गया है।
      • निर्माता: इसमें अब प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये मध्यवर्ती सामग्री के उत्पादन और ब्रांड मालिकों के लिये अनुबंध निर्माण को भी शामिल किया गया है।
    • कंपोस्टेबल या बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से बने कैरी बैग और वस्तुओं के निर्माताओं को विपणन या बिक्री से पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से प्रमाणन प्राप्त करना होगा।
      • इन वस्तुओं को अनिवार्य लेबलिंग आवश्यकताओं का पालन करना होगा और खाद्य संपर्क अनुप्रयोगों के लियेभारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के विनियमों का अनुपालन करना होगा।
      • निर्माताओं को उत्पादन के दौरान उत्पन्न प्री-कंज्यूमर प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रसंस्करण करना होगा और इसकी रिपोर्ट राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या प्रदूषण नियंत्रण समिति को देनी होगी।
    • कंपोस्टेबल प्लास्टिक पर यह लेबल लगा होना चाहिये कि वे केवल औद्योगिक परिस्थितियों में ही कंपोस्ट होने योग्य हैं।
    • जैवनिम्नीकरणीय या बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिकों के लिये यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि उन्हें विघटित होने में कितने दिन लगेंगे और किस तरह के वातावरण में वे विघटित होंगे। 
  • अनिवार्य जूट पैकेजिंग अधिनियम, 2010: जूट पैकेजिंग के अनिवार्य उपयोग को सुनिश्चित करने तथा कुछ उत्पादों की आपूर्ति एवं वितरण में प्लास्टिक जैसी कृत्रिम पैकेजिंग के उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम के लिये प्रावधान करने हेतु यह अधिनियम बनाया गया।

प्लास्टिक के विकल्प:

  • खोई (Bagasse): यह गन्ने या चुकंदर के गूदे का अपशिष्ट होता है। यह कंपोस्ट होने योग्य और पर्यावरण के अनुकूल है।
  • बायोप्लास्टिक्स: यह पादप-आधारित प्लास्टिक है जिसका उपयोग मुख्यतः खाद्य पैकेजिंग में किया जाता है।
  • प्राकृतिक रेशे: इसमें कपास, ऊन और सन जैसी सामग्रियाँ शामिल हैं।
  • एडिबल सी-वीड कप (Edible Seaweed Cups): समुद्री शैवाल या सी-वीड भूमि आधारित पौधों की तुलना में 60 गुना अधिक तेज़ी से बढ़ते हैं, जो इन्हें एक संवहनीय विकल्प बनाता है।
  • शैवाल-मिश्रित एथिलीन-विनाइल एसीटेट (Algae-Blended Ethylene-Vinyl Acetate): वायु और जल प्रदूषकों (अमोनिया, फॉस्फेट और कार्बन डाइऑक्साइड) को प्रोटीन से भरपूर पादप बायोमास में परिवर्तित करने के लिये शैवाल का उपयोग किया जाता है।
  • कंपोस्टेबल प्लास्टिक: ये पादप-आधारित या जीवाश्म ईंधन-आधारित हो सकते हैं और जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से (बिना कोई विषाक्त अवशेष छोड़े) CO2, जल, अकार्बनिक यौगिकों एवं बायोमास में विघटित हो सकते हैं। उदाहरण के लिये, BASF का इकोफ्लेक्स (Ecoflex)।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट के बेहतर प्रबंधन के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • “Trash to Treasure”: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये एक व्यापक चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण को लागू किया जाए।
    • उत्पाद विकास में पुनर्चक्रणीयता हेतु डिज़ाइन को प्रोत्साहित करें।
    • 4R (Reduce, Reuse, Recycle, and Recover) को बढ़ावा देते हुए प्लास्टिक अपशिष्ट को कुशलतापूर्वक छाँटने और प्रसंस्करित करने के लिये प्रत्येक प्रमुख शहर में सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ स्थापित की जाएँ।
    • कर छूट या सब्सिडी के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र में पुनर्नवीनीकृत प्लास्टिक के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए।
    • कुछ उत्पादों में न्यूनतम पुनर्नवीनीकृत सामग्री को अनिवार्य बनाकर पुनर्चक्रित प्लास्टिक के लिये एक मज़बूत बाज़ार का निर्माण किया जाए। इससे पुनर्चक्रित प्लास्टिक की मांग बढ़ेगी और प्लास्टिक की खपत में कमी आएगी।
  • ‘स्मार्ट वेस्ट, स्मार्ट सीटीज़’ (Smart Waste, Smart Cities): शहरी भारत में अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में स्मार्ट प्रौद्योगिकी को एकीकृत किया जाए।
    • IoT-सक्षम स्मार्ट कूड़ेदानों का उपयोग किया जाए, जिनके भर जाने पर प्राधिकारियों को सूचना मिल जाए और संग्रहण मार्गों को अनुकूलित किया जा सके।
    • बेहतर अपशिष्ट छँटाई और पुनर्चक्रण प्रक्रियाओं के लिये AI और मशीन लर्निंग का उपयोग किया जाए।
    • अवैध डंपिंग की रिपोर्ट करने और निकटतम रीसाइक्लिंग केंद्रों का पता लगाने के लिये मोबाइल ऐप विकसित किये जाएँ।
  • आपूर्ति शृंखला को हरित बनाना: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) प्रणाली को सुदृढ़ और विस्तारित किया जाए।
    • एक श्रेणीबद्ध शुल्क संरचना लागू की जाए, जहाँ पुनर्चक्रण हेतु कठिन प्लास्टिक पर उच्च EPR शुल्क आरोपित किया जाए।
    • पुनर्चक्रण लक्ष्यों की अधिक प्राप्ति को प्रोत्साहित करने के लिये एक प्लास्टिक क्रेडिट ट्रेडिंग प्रणाली शुरू की जा सकती है।
    • EPR का विस्तार कर अनौपचारिक क्षेत्र को भी इसके दायरे में शामिल किया जाना चाहिये, जहाँ कूड़ा बीनने वालों को सामाजिक सुरक्षा एवं बेहतर कार्य दशाएँ प्रदान की जाएँ और उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को औपचारिक बनाया जा सके।
  • राष्ट्रव्यापी जागरूकता और शिक्षा अभियान: प्लास्टिक अपशिष्ट पर एक व्यापक, बहुभाषी राष्ट्रीय जागरूकता अभियान शुरू किया जाए।
    • प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के स्कूली पाठ्यक्रम में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को शामिल किया जाना चाहिये।
    • अपशिष्ट पृथक्करण और पुनर्चक्रण अभ्यासों पर नियमित सामुदायिक कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँ।
    • प्लास्टिक मुक्त जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिये सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और मशहूर हस्तियों की मदद ली जाए।
      • प्लास्टिक प्रदूषण के रचनात्मक समाधान खोजने में युवाओं को शामिल करने के लिये एक राष्ट्रीय प्लास्टिक अपशिष्ट नवाचार चुनौती की स्थापना करें।
  • ‘अपशिष्ट से ऊर्जा 2.0’ (Waste-to-Energy 2.0): उन प्लास्टिकों के लिये उन्नत अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश किया जाए, जिन्हें पुनर्चक्रित नहीं किया जा सकता।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट को ईंधन या ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिये प्रमुख शहरों के बाहरी इलाकों में ताप-विघटन (pyrolysis) और गैसीकरण संयंत्र स्थापित किये जाएँ।
    • वायु प्रदूषण को रोकने के लिये इन संयंत्रों हेतु सख्त उत्सर्जन नियंत्रण एवं निगरानी सुनिश्चित की जाए।
    • उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं के संचालन के लिये किया जाए, जिससे एक आत्मनिर्भर प्रणाली का निर्माण होगा। पुनर्चक्रण हेतु कठिन प्लास्टिक से निपटने के लिये निरंतर अनुसंधान किये जाएँ और नई तकनीकों को अपनाया जाए।
  • प्लास्टिक फुटप्रिंट: बड़ी और मध्यम आकार की कंपनियों के लिये अनिवार्य वार्षिक प्लास्टिक फुटप्रिंट ऑडिट लागू किया जाए।
    • वार्षिक रिपोर्ट में प्लास्टिक के उपयोग, अपशिष्ट उत्पादन और पुनर्चक्रण दरों का सार्वजनिक प्रकटीकरण आवश्यक बनाया जाए।
    • प्लास्टिक फुटप्रिंट की गणना और रिपोर्टिंग के लिये एक मानकीकृत पद्धति विकसित की जाए।
    • इस आँकड़े का उपयोग नीतिगत निर्णय लेने और प्लास्टिक अपशिष्ट में कमी की प्रगति को ट्रैक करने के लिये किया जाए। प्लास्टिक फूटप्रिंट प्रबंधन के आधार पर कंपनियों के लिये रेटिंग प्रणाली लागू की जाए।
  • हरित खरीद: सभी सरकारी खरीद नीतियों में प्लास्टिक अपशिष्ट न्यूनीकरण के सख्त मानदंड लागू किये जाएँ।
    • जहाँ भी संभव हो, सरकारी खरीद उत्पादों में पुनर्नवीनीकृत प्लास्टिक सामग्री के उपयोग को अनिवार्य बनाया जाए।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट में कमी और पुनर्चक्रण संबंधी सुदृढ़ अभ्यासों का पालन करने वाले विक्रेताओं को प्राथमिकता दी जाए।
    • सरकारी इमारतों को प्लास्टिक मुक्त इमारतों के लिये आदर्श मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जाए। इन खरीद नीतियों को राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों तक विस्तारित करें और निजी क्षेत्र द्वारा इसके अंगीकरण को प्रोत्साहित करें।
  • अपशिष्ट-उद्यमी (Waste-preneurs): विशेष रूप से अपशिष्ट प्रबंधन स्टार्टअप के लिये एक राष्ट्रीय इनक्यूबेटर कार्यक्रम शुरू किया जाए।
    • नवोन्मेषी पुनर्चक्रण व्यवसायों के लिये प्रारंभिक वित्तपोषण, मार्गदर्शन और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान किये जाएँ।
    • अपसाइक्लिंग उद्योगों के लिये कर लाभ के साथ छोटे विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित किये जाएँ।
  • प्लास्टिक मुक्त खेती की ओर: प्लास्टिक मल्च (mulch) एवं ग्रीनहाउस कवर के लिये बायोडिग्रेडेबल विकल्पों का विकास करें और उन पर सब्सिडी प्रदान करें।
    • कीटनाशक कंटेनरों जैसे कृषि क्षेत्र की प्लास्टिक वस्तुओं के लिये ‘टेक-बैक’ या वापसी कार्यक्रम लागू किये जाएँ।
    • जैविक मल्च और अन्य संवहनीय कृषि अभ्यासों के उपयोग को बढ़ावा दें।
    • प्लास्टिक मुक्त खेतों के लिये प्रमाणन की प्रणाली स्थापित करें ताकि उनकी उपज का मूल्य बढ़ सके। कृषि क्षेत्र के प्लास्टिक के पुनर्चक्रण और उचित निपटान के लिये क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किये जाएँ।
  • सड़क निर्माण में प्लास्टिक का उपयोग – ‘Paving the Way with Waste’: देश भर में सड़क निर्माण में प्लास्टिक अपशिष्ट के उपयोग का विस्तार किया जाए।
    • सड़क निर्माण सामग्री में प्लास्टिक अपशिष्ट के इष्टतम मिश्रण के लिये मानकीकृत दिशानिर्देश विकसित किये जाएँ।
    • अपशिष्ट को सड़क निर्माण सामग्री में बदलने के लिये क्षेत्रीय प्लास्टिक प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किये जाएँ। प्लास्टिक सड़क निर्माण तकनीकों में स्थानीय निर्माण श्रमिकों को प्रशिक्षित किया जाए, जिससे नए हरित रोज़गार अवसर उत्पन्न होंगे।
    • त्यागराज इंजीनियरिंग कॉलेज ने अपशिष्ट प्लास्टिक से टिकाऊ टाइलें और ब्लॉक बनाने की एक विधि को पेटेंट कराया है, जो निर्माण सामग्री के रूप में उपयोग के लिये उपयुक्त है और एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती के रूप में उभरा है। प्लास्टिक प्रदूषण के स्रोत और पारिस्थितिकी तंत्र एवं मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव की चर्चा करते हुए भारत में इस मुद्दे के विभिन्न आयामों पर विचार कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्व' आरंभ किया गया था? (2019) 

(a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998
(b) पुनर्चक्रित प्लास्टिक (निर्माण और उपयोग) नियम, 1999
(c) ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 2011
(d) खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011

उत्तर: (c)


Q.2 राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) से भिन्न है ? (2018)

  1. एन.जी.टी. का गठन एक अधिनियम द्वारा किया गया है जबकि सी.पी.सी.बी. का गठन सरकार के कार्यपालक आदेश से किया गया है।
  2.  एन.जी.टी. पर्यावरणीय न्याय उपलब्ध कराता है और उच्चतर न्यायालयों में मुकदमों के भार को कम करने में सहायता करता है जबकि सी.पी.सी.बी. झरनों एवं कुँओं की सफाई को प्रोत्साहित करता है तथा देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने का लक्ष्य रखता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न. पर्यावरण में निर्मुक्त हो जाने वाली 'सूक्ष्ममणिकाओं (माइक्रोबीड्स)' के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019)

(a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर होने का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्रों में फसल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य-पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)