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एडिटोरियल

  • 30 Mar, 2022
  • 14 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बिम्सटेक के संदर्भ में पारिस्थितिक दृष्टिकोण

यह एडिटोरियल 29/03/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A Subregional Grouping That Must Get Back On Course” लेख पर आधारित है। इसमें बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में उत्पन्न हो रही पारिस्थितिक चिंताओं के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल/बिम्सटेक (The Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation- BIMSTEC) सात देशों का एक समूह है जो दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग हेतु एक पसंदीदा मंच के रूप में उभरा है। उल्लेखनीय है कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (South Asian Association of Regional Cooperation- SAARC) द्वारा अपने सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग सुनिश्चित कर सकने में विफलता के बाद इस नए मंच की आवश्यकता महसूस की गई थी।

बिम्सटेक वृहत हिमालय और बंगाल की खाड़ी के पारितंत्रों को आपस में संबद्ध करता है। हालाँकि पिछले कई वर्षों से बिम्सटेक देश विभिन्न जलवायु और पारिस्थितिकी संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो सदस्य देशों के बीच समन्वय की कमी के कारण अभी तक संबोधित नहीं किये जा सके हैं। बिम्सटेक का आगामी शिखर सम्मेलन एक अवसर हो सकता है जहाँ क्षेत्र के नेता अपने सामान्यीकृत वक्तव्यों से आगे बढ़ते हुए भू-भाग के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने के लिये ठोस कदम उठाने पर विचार कर सकते हैं।

बिम्सटेक के बारे में 

  • बिम्सटेक एक उप-क्षेत्रीय संगठन है जो वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा के माध्यम से अस्तित्व में आया।
  • इसमें भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांँमार एवं थाईलैंड जैसे समुद्रतटवर्ती देश और नेपाल एवं भूटान जैसे स्थल-रुद्ध देश शामिल हैं।
    • आरंभ में इस संगठन में बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल थे और इसका नाम BIST-EC अर्थात् बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड इकॉनोमिक को-ऑपरेशन था। दिसंबर 1997 में म्याँमार भी इस समूह में शामिल हो गया और इसका नाम BIMST-EC हो गया। फरवरी 2004 में भूटान और नेपाल को सदस्यों के रूप में शामिल किया गया।
  • बिम्सटेक ने विशेष फोकस के लिये 14 स्तंभों की पहचान की है: व्यापार एवं निवेश, परिवहन एवं संचार, ऊर्जा, पर्यटन, प्रौद्योगिकी, मात्स्यिकी, कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, निर्धनता उन्मूलन, आतंकवाद एवं अंतर्राष्ट्रीय अपराध, पर्यावरण एवं आपदा प्रबंधन, लोगों के आपसी संपर्क, सांस्कृतिक सहयोग और जलवायु परिवर्तन।

BOBMD के बारे में: 

  • बंगाल की खाड़ी समुद्री संवाद (Bay of Bengal Maritime Dialogue- BOBMD) का आयोजन ‘सेंटर फॉर ह्यूमनिटेरियन डायलॉग’ और ‘पैथफाइंडर फाउंडेशन’ द्वारा किया गया था जिसमें श्रीलंका, भारत, बांग्लादेश, म्यांँमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया के सरकारी अधिकारियों, समुद्र विशेषज्ञों और प्रमुख थिंक टैंकों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
  • इस वार्ता में प्रतिभागियों ने निम्नलिखित विषयों में प्रयास तेज़ करने का आह्वान किया गया:
    • पर्यावरण संरक्षण।
    • वैज्ञानिक अनुसंधान।
    • अवैध, असूचित और अनियमित (Illegal, Unreported, and Unregulated- IUU) मछली पकड़ने पर अंकुश।
    • SOPs का विकास जो एक देश के फिशिंग जहाज़ों की दूसरे देश की समुद्री कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ संवाद को प्रबंधित कर सके।

BOBMD द्वारा रेखांकित किये गए प्रमुख मुद्दे

  • जलवायु संबंधी चिंताएँ: BOBMD के अनुसार बंगाल की खाड़ी लगभग 15,792 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत मैंग्रोव वनों और लगभग 8,471 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत प्रवाल भित्तियों के एक बड़े तंत्र का क्षेत्र है।
    • इन दोनों का ही ह्रास हो रहा है जहाँ मैंग्रोव क्षेत्रों के 0.4% से 1.7% और प्रवाल भित्तियों के 0.7% वार्षिक क्षति का अनुमान है।
    • अनुमान लगाया गया है कि अगले 50 वर्षों में समुद्र का स्तर 0.5 मीटर बढ़ जाएगा।
    • इसके अलावा इस क्षेत्र में पिछले पाँच वर्षों में 13 चक्रवाती तूफान आए हैं।
  • मत्स्य ग्रहण की चुनौतियाँ: बंगाल की खाड़ी लगभग 185 मिलियन तटीय आबादी के लिये प्राकृतिक संसाधनों का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
    • इसमें लगभग 4,15,000 मछली पकड़ने वाली नावों का संचालन होता है और यह अनुमान लगाया जाता है कि 33% मत्स्य ग्रहण असंवहनीय तरीके से किया जाता है।
    • खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार बंगाल की खाड़ी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में IUU मत्स्य ग्रहण के हॉटस्पॉट में से एक है।
  • समुद्री जीवन के लिये खतरा: अन्य प्रमुख चुनौतियों में शामिल हैं:
    • शून्य ऑक्सीजन के साथ एक मृत क्षेत्र का विस्तार जहाँ कोई मछली जीवित नहीं रह सकती।
    • नदियों के साथ-साथ हिंद महासागर से प्लास्टिक की लीचिंग।
    • बाढ़ से रक्षा के लिये मंग्रोव जैसी प्राकृतिक सुरक्षा-पंक्ति का विनाश।
    • समुद्री कटाव।
    • तटीय क्षेत्रों में जनसंख्या का बढ़ता दबाव एवं औद्योगिक विकास और इसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में अनुपचारित अपशिष्ट का खाड़ी में प्रवाह।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आतंकवाद एवं समुद्री डकैती जैसे खतरे और मछुआरों की गिरफ्तारी से देशों के बीच तनाव अतिरिक्त समस्याएँ हैं।
    • मछुआरों द्वारा पड़ोसी देशों के जल क्षेत्र में प्रवेश की समस्या भी है जिससे भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांँमार (और पश्चिमी तट पर पाकिस्तान भी) पीड़ित हैं।
  • देशों के बीच सीमित सहयोग: वर्तमान में समुद्री अनुसंधान के विषय में क्षेत्र के देशों के बीच सीमित सहयोग ही मौजूद है।
    • अधिकांश बिम्सटेक देशों में प्रतिष्ठित संस्थान और उत्कृष्ट वैज्ञानिक मौजूद हैं लेकिन भू-भाग के बजाय पश्चिमी देशों के साथ उनका संवाद अधिक है।
    • आधुनिक तकनीक का उपयोग और मछली पकड़ने के बेहतर तरीके खाड़ी के स्वास्थ्य को बहाल करने में दीर्घकालिक योगदान कर सकते हैं।

आगे की राह 

  • नीली अर्थव्यवस्था की क्षमता का दोहन: बंगाल की खाड़ी की ‘नीली अर्थव्यवस्था’ (Blue Economy) की क्षमता की अपार संभावनाएँ हैं और यहाँ समुद्री व्यापार, शिपिंग, जलीय कृषि और पर्यटन को विकसित करने के कई अवसर मौजूद हैं लेकिन इसके लिये सरकारों, वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों की ओर से समन्वित तथा ठोस कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
    • आगामी बिम्सटेक शिखर सम्मेलन को सीमापारीय प्रकृति के समुद्री विषयों पर समन्वित गतिविधियों हेतु एक नए क्षेत्रीय तंत्र का निर्माण करना चाहिये।
    • इसे मात्यिसिकी प्रबंधन को मज़बूत करने, संवहनीय मत्स्य ग्रहण के तरीकों को बढ़ावा देने, संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करने और प्रदूषण, कृषि अपशिष्ट के साथ ही तेल रिसाव के रोकथाम व प्रबंधन के लिये एक ढाँचा विकसित करने हेतु तत्काल उपाय शुरू करने चाहिये।
  • समुद्री पर्यावरण का संरक्षण: बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में सहयोग के लिये समुद्री पर्यावरण संरक्षण एक प्राथमिकता क्षेत्र होना चाहिये। प्रवर्तन को सशक्त किया जाना चाहिये और सर्वोत्तम अभ्यासों पर जानकारी साझा की जानी चाहिये।
    • इसके साथ ही क्षेत्रीय प्रोटोकॉल विकसित करने और प्रदूषण नियंत्रण पर दिशा-निर्देश एवं मानक स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • सामान्य तौर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के संबंध में और विशेष रूप से मात्यिसिकी पर इसके प्रभाव के संबंध में व्यापक वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता है।
      • ऐसे विषयों पर कोई भी निर्णयन विज्ञान एवं विश्वसनीय डेटा, सूचना और उपकरणों पर आधारित होना चाहिये।
  • संवहनीय मत्स्य पालन: स्थानीय संस्थानों की क्षमताओं के आधार पर और क्षेत्रीय सफलता के मानदंडों के द्वारा परस्पर सीखने के लिये घरेलू समाधान तैयार करने की आवश्यकता है।
    • डेटा संग्रह के लिये क्षेत्रीय रूपरेखा तैयार करने की भी आवश्यकता है। निकट-वास्तविक समय स्टॉक मूल्यांकन और एक क्षेत्रीय खुले मात्स्यिकी डेटा गठबंधन के निर्माण के लिये सहभागी दृष्टिकोण विकसित किया जाना चाहिये।
    • ‘Bay of Bengal Programme Inter-Governmental Organisation’ (BOBP-IGO)’ एक ऐसी ही पहल है जो संवहनीय मत्स्य ग्रहण को बढ़ावा देने पर कार्य कर रही है।
      • FAO द्वारा ग्लोबल एनवायर्नमेंटल फैसिलिटी (GEF) एवं अन्य से प्राप्त वित्तपोषण के साथ ‘BOBLME’ (Bay Of Bengal Large Marine Ecosystem) परियोजना भी शुरू की जा रही है।
  • IUU फिशिंग पर रोक: आगामी बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में अधिकारियों को IUU फिशिंग के साथ ही असंवहनीय मत्स्य ग्रहण पर अंकुश लगाने हेतु विभिन्न उपाय करने का निर्देश देना चाहिये। IUU मत्स्य ग्रहण को निम्नलिखित तरीकों से प्रतिबंधित किया जा सकता है:
    • एक अंतरराष्ट्रीय पोत ट्रैकिंग प्रणाली की स्थापना और जहाज़ों के लिये स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) ट्रैकर्स से लैस होना अनिवार्य बनाना।
    • अवैध जहाज़ों की पहचान करने में मदद करने के लिये क्षेत्रीय फिशिंग पोत रजिस्ट्री प्रणाली की स्थापना करना और पोत लाइसेंस सूची प्रकाशित करना।
    • IUU फिशिंग हॉटस्पॉट में नियंत्रण और निगरानी बढ़ाना
    • IUU अभ्यासों पर रोक के तरीकों पर क्षेत्रीय दिशानिर्देश स्थापित करना।
    • संयुक्त क्षेत्रीय गश्ती के कार्यान्वयन में सुधार और मछुआरों पर लक्षित क्षेत्रीय फिशिंग मोरेटोरियम एवं आउटरीच कार्यक्रम।
    • इसके अलावा समुद्रतटवर्ती देशों में कानूनों एवं नीतियों में सामंजस्य लाया जाना चाहिये और समुद्री कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ किसी भी मुठभेड़ के दौरान मछुआरों के साथ मानवीय व्यवहार को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के सामने विद्यमान चुनौतियों को संबोधित करने में अब और देरी नहीं करनी चाहिये। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए बिम्सटेक को सक्रिय होने और कार्रवाई करने की ज़रूरत है। आगामी शिखर सम्मेलन को तय किया जाना चाहिये कि अधिकारियों की नियमित रूप से बैठक आयोजित करती चाहिये जो वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों द्वारा समर्थित हो ताकि अवैध एवं असंवहनीय मत्स्य ग्रहण पर नियंत्रण के साथ ही बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षरण की समस्या को संबोधित किया जा सके।

अभ्यास प्रश्न: बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में उत्पन्न हो रही पर्यावरणीय और पारिस्थितिक चिंताओं को देखते हुए आवश्यक है कि बिम्सटेक अपने सदस्य देशों की अधिक गंभीर और नियमित संलग्नता की ओर आगे बढ़े। टिप्पणी कीजिये।


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