जलवायु परिवर्तन: आर्थिक विकास की राह में रुकावट
यह एडिटोरियल 27/08/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Inclusion of climate change in policy is crucial for a strong economy” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
इस बात पर वैश्विक सहमति बढ़ती जा रही है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया भर के देशों के विकास प्रक्षेपवक्र पर दबाव उत्पन्न कर रहा है, जिसके प्रकट आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव नज़र आ रहे हैं।
- विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट (Global Risks Report, 2020) के अनुसार अगले दशक में शीर्ष 5 जोखिमों में से सभी जलवायु से संबंधित हो सकते हैं। इन जोखिमों में मानवजनित पर्यावरणीय आपदाएँ, जलवायु कार्रवाई विफलता, प्राकृतिक आपदाएँ, जैव विविधता हानि और चरम मौसमी घटनाएँ शामिल हैं।
- वर्ष 2018 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार विलियम डी. नॉर्डहॉस और पॉल रोमर को जलवायु परिवर्तन को दीर्घकालिक व्यापक आर्थिक विश्लेषण में एकीकृत करने के लिये प्रदान किया गया था।
- जबकि पूरा विश्व ही जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से जूझ रहा है, भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ इसके प्रति विशेष रूप से भेद्य/संवेदनशील हैं। इस प्रकार, एक भौतिक पहलू के रूप में जलवायु जोखिम भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय स्तर की नीतियों, व्यावसायिक रणनीतियों और वित्त के पुनर्विन्यास को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन क्या है?
- जलवायु परिवर्तन तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तन को संदर्भित करता है। ये परिवर्तन प्राकृतिक हो सकते हैं, जैसे सौर चक्र में बदलाव के माध्यम से।
- लेकिन 1800 के दशक से मानव गतिविधियाँ जलवायु परिवर्तन का प्रमुख चालक रही हैं, जिनमें मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों के दहन का योगदान रहा है।
- जीवाश्म ईंधन के दहन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है जो पृथ्वी के चारों ओर लिपटे एक आवरण की तरह काम करता है। यह सूर्य की ऊष्मा को जब्त करता है और तापमान बढ़ाता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता तापमान हिम गलन में तेज़ी ला रहा है, जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और बाढ़ एवं कटाव की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये जलवायु परिवर्तन कैसे प्रासंगिक है?
- भारत की जलवायु अत्यंत विविधतापूर्ण है। हिमालय से लेकर समतल समुद्र तटों तक जलवायु में एक उल्लेखनीय परिवर्तन दिखाई देता है।
- हिमालय पर्वत के ठंडे तापमान से लेकर दक्षिणी भारत की उष्णकटिबंधीय जलवायु तक व्यापक रूप से भिन्न जलवायु पाई जाती है।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों में सर्वाधिक वर्षा होती है, जबकि उत्तर-पश्चिमी राज्य जल की कमी के कारण थार और विशाल भारतीय मरुस्थल का निर्माण करते हैं।
- जलवायु दशाओं की इस विविधता ने हमेशा भारत को लाभान्वित किया है। भारत में आर्थिक गतिविधियों के उच्चतम घनत्वों में से एक पाया जाता है और आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिये प्राकृतिक संसाधन आधार (Natural Resource Base) पर आश्रित है जहाँ वर्षा पर उच्च निर्भरता देखी जाती है।
- जलवायु परिवर्तन मौसम के पैटर्न को कम अनुमान-योग्य बना सकता है। ये अप्रत्याशित मौसम पैटर्न फसलों की खेती को कठिन बना सकते हैं। भारत जैसी कृषि अर्थव्यवस्था में, जहाँ वर्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका रखती है, जलवायु परिवर्तन का अर्थव्यवस्था पर तत्काल असर पड़ता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
- उपज में कमी: जलवायु परिवर्तन मौसम पैटर्न को समझना दुरूह बना देंगे। मानसूनी परिवर्तनों के बारे में अनिश्चितता किसानों के निर्णय को प्रभावित करती है कि कब कौन-सी फसल उगाई जाए और इसके परिणामस्वरूप उत्पादकता कम हो जाती है।
- इसके अलावा, समय पूर्व मौसमी हिम गलन और घटते ग्लेशियर सिंचाई के लिये आवश्यक नदी के प्रवाह को कम कर देंगे।
- पशुधन पर प्रभाव: भारत में दुनिया की सबसे बड़ी पशुधन आबादी मौजूद है, जहाँ पशुओं का उपयोग विशेष रूप से भूमिहीन परिवारों में दूध उत्पादन, खाद एवं बीजारोपण और घरेलू पूंजी के रूप में किया जाता है।
- हीट स्ट्रेस (Heat Stress) पशुओं के लिये आहार और चारे को कम करते हैं तथा रोग प्रसार की अनुकूल दशाओं को बढ़ाते हैं।
- श्रम कार्यबल में कमी: चरम ताप/गर्मी के दिनों में श्रमिकों की उत्पादकता कम हो जाती है जिससे औद्योगिक उत्पादन कम हो जाता है। इससे निर्यात में कमी आती है और राष्ट्रीय आय घटती है। इससे अप्रत्यक्ष रूप से विश्व व्यापार प्रभावित होता है।
- जलवायु परिवर्तन संज्ञानात्मक प्रदर्शन को कम करता है और उन क्षेत्रों में कार्य घंटों में कमी लाता है जहाँ निर्माण जैसी भारी बाह्य गतिविधि की आवश्यकता होती है।
- ऊर्जा संकट: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, भारत की प्राथमिक ऊर्जा मांग वर्ष 2030 तक दोगुनी हो जाएगी।
- ऊर्जा और जलवायु के बीच एक विशिष्ट संबंध पाया जाता है जहाँ बढ़ते तापमान के साथ ऊष्मा प्रभावों के शमन की प्रक्रिया में सहयोग के लिये ऊर्जा उपयोग में वृद्धि की मांग बढ़ती जाती है।
- इसके अलावा, ऊर्जा की बढ़ती मांग प्रायः जलवायु-परिवर्तन नीतियों के साथ टकराव रखती है।
- अवसंरचना पर प्रभाव: एक बेहतर और सुदृढ़ अवसंरचना किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में व्यापक योगदान करती है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं की चरम घटनाओं ने आधारभूत संरचना को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने पिछले एक दशक में बाढ़ से लगभग 3 बिलियन डॉलर की आर्थिक क्षति उठाई है जो वैश्विक आर्थिक क्षति का 10% है।
- वर्ष 2020 में चक्रवात अम्फान (Amphan) ने भारत में लगभग 13 मिलियन लोगों को प्रभावित किया।
- अपवाह प्रणाली पर प्रभाव: भारत अपने उपलब्ध जल का 34 प्रतिशत प्रतिवर्ष इस्तेमाल करता है जहाँ सिंधु-गंगा मैदान इसका ‘ब्रेडबास्केट’ है। बढ़ते तापमान और बढ़ती मौसमी परिवर्तनशीलता के कारण हिमालय के ग्लेशियर अधिक और तेज़ी से पिघल रहे हैं।
- यदि दर में वृद्धि होती है तो हिमनद झीलें फट पड़ती हैं और अपनी प्राकृतिक सीमा से बाहर निकल जाती हैं। इससे इन ग्लेशियरों द्वारा पोषित नदी घाटियों में बाढ़ आने की संभावना बनती है और फिर बाद में नदी का प्रवाह घट जाता है जिसके परिणामस्वरूप जल की कमी उत्पन्न होती है।
- असमानता में वृद्धि: भारत में अनुकूली क्षमता राज्य, भौगोलिक क्षेत्र और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अनुरूप पर्याप्त भिन्न-भिन्न है। निम्न आय वाले परिवार जलवायु परिवर्तन संबंधी आर्थिक क्षति के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि वे अनाज की बढ़ती कीमतों और कृषि मज़दूरी में गिरावट से सीधे प्रभावित होते हैं।
- इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल होने के सीमित साधन रखने वाले लोगों के कल्याण के लिये किये जाने वाले प्रयासों के परिणामस्वरूप सीमित बजट और निम्न आर्थिक विकास जैसे परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
आगे की राह
- शमन: प्रकृति-आधारित-समाधानों की ओर: स्वच्छ और हरित ऊर्जा का विकास जीवाश्म ईंधन के बोझ को दूर करने और वायु प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है।
- नई पारगमन प्रणालियों का विकास और मौजूदा प्रणालियों के विस्तार से भी रोज़गार में तेज़ी आ सकती है।
- भारत की राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) रिपोर्ट वर्ष 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा से 40% ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखती है।
- पर्यावरण के अनुकूल नीतियाँ: अर्थव्यवस्था और पर्यावरण परस्पर संबद्ध हैं। विकास के लिये एक सुनियोजित दृष्टिकोण, जो विशेष रूप से भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये असंबद्ध विकास संभावनाओं को सुनिश्चित करे, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये आवश्यक है।
- जलवायु परिवर्तन विकास के लिये एक सतर्क लेकिन संवहनीय दृष्टिकोण अपनाने का भी अवसर प्रस्तुत करता है।
- वन और आर्द्रभूमि संरक्षण: वन वर्षा और तापमान को नियंत्रित करने के लिये जाने जाते हैं। वनों एवं आर्द्रभूमि के संरक्षण एवं संवर्द्धन से कृषि उत्पादकता बढ़ेगी, CO2 उत्सर्जन के जब्ती में मदद मिलेगी और पर्यावरणीय आघातों के प्रति लचीलेपन की वृद्धि होगी।
- उचित अपशिष्ट प्रबंधन: अपशिष्ट का कुप्रबंधन वातावरण में विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों को जोड़कर जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है।
- अपशिष्ट गैसीकरण जैसे अपशिष्ट-चयनात्मक प्रबंधन संयंत्रों का विकास इस समस्या का समाधान कर सकेगा।
- इन संयंत्रों की अवसंरचना का निर्माण और उनका भविष्य का रखरखाव कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिये रोज़गार के नए अवसर प्रदान करेगा।
- अनुकूलन: अनुकूली क्षमता के निर्माण में योजनाबद्ध अनुकूलन का व्यापक महत्त्व है।
- ‘पैसिव कूलिंग’ प्रौद्योगिकी: आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिये पैसिव कूलिंग प्रौद्योगिकी (passive cooling technology) ‘अर्बन हीट आइलैंड’ (urban heat islands) की समस्या को कम करने हेतु एक व्यवहार्य विकल्प प्रदान करती है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की एक रिपोर्ट में इस प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाले प्राचीन भारतीय भवन डिज़ाइनों का हवाला दिया गया है, जिनका उपयोग आधुनिक भवनों में भी किया जा सकता है।
- बेहतर कृषि पद्धतियाँ: फसल विविधीकरण, सिंचाई आधारित खेती (जो वर्षा पर निर्भरता को कम करती है) और ऐसे अन्य अभ्यास जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में कारगर हो सकते हैं।
- आपदा प्रत्यास्थी अवसंरचना (Disaster Resilient Infrastructure): इसके अंतर्गत आश्रय गृहों, तटीय तटबंधों और बाढ़ प्रतिरोधी इमारतों एवं सड़कों के निर्माण के माध्यम से आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना का विकास करना शामिल है।
- इसके साथ ही, उपयुक्त और कुशल मौसम पूर्वानुमान एवं पूर्व चेतावनी प्रणाली का विकास करना भी आवश्यक है।
अभ्यास प्रश्न: अर्थव्यवस्था, विकास और जलवायु परिवर्तन प्रायः एक-दूसरे से टकराते हैं जिसके परिणामस्वरूप जोखिम और भेद्यता बढ़ जाती है। चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रारंभिक परीक्षा Q.1 जलवायु-स्मार्ट कृषि के लिए भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही हैं? (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (D) Q.2 निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन/वर्णन करता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (A) केवल 1 उत्तर: (C) Q.3 'ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एलायंस' के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (वर्ष 2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (A) मुख्य परीक्षा Q.1 जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन करें। इस सम्मेलन में भारत ने क्या प्रतिबद्धताएँ की हैं? (वर्ष 2021) Q.2 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (वर्ष 2017) |