आपदा प्रबंधन
आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line, Livemint आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण शामिल है। इस आलेख में आपदा प्रबंधन में उपयोगी आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये संगठन की स्थापना एवं इसके लिये भारतीय प्रयास की चर्चा की गई है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2017 की G20 बैठक में आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) प्रस्ताव रखा था। अब अगले माह फ्राँस में G7 की बैठक प्रस्तावित है, इस बैठक में भारत के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, चिली तथा दक्षिण अफ्रीका को भी आमंत्रित किया गया है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत CDRI के प्रस्ताव को इस बैठक में आगे बढ़ा सकता है।
आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI)
- जब कभी भी विश्व में प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं तो प्रायः तत्काल राहत प्रदान कराने के प्रयास किये जाते हैं लेकिन कभी भी आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है।
- इसी संदर्भ में भारतीय प्रधानमंत्री ने CDRI का प्रस्ताव किया है, यह एक ऐसे निकाय के रूप में कार्य करेगा जो इस क्षेत्र से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों एवं संसाधनों का उपयोग करके निर्माण क्षेत्र, परिवहन, ऊर्जा, दूरसंचार एवं जल से संबंधित बुनियादी ढाँचे के इस प्रकार निर्माण को प्रोत्साहित करेगा जिससे प्राकृतिक आपदाओं को रोका जा सके।
- सेंनदाई फ्रेमवर्क के अनुसार, आपदा के जोखिम को कम करने के लिये यदि एक डॉलर खर्च किया जाए तो यह सात डॉलर का लाभ उत्पन्न करता है। किंतु विकासशील देश सीमित आर्थिक क्षमता के कारण दुविधा की स्थिति का सामना कर रहे हैं। ऐसे देशों में आर्थिक निवेश की क्षमता सीमित होती है जिससे विकास एवं आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण के मध्य संतुलन स्थापित करना कठिन हो रहा है। CDRI विकासशील देशों में इस अंतराल को कोष एवं तकनीक के माध्यम से भरने में सहायक हो सकता है, साथ ही आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण में भी मदद कर सकता है।
- उदाहरण के लिये भारत विश्व में आपदा के कारण होने वाली मौतों को रोकने हेतु वैश्विक नेतृत्व कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNISDR) ने भारत के शून्य दुर्घटना दृष्टिकोण तथा राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर आपदा के कारण होने वाली हानि और जोखिम को कम करने की नीति बनाकर वैश्विक समुदाय के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करने के लिये उसकी सराहना की है।
- किंतु भारत संसाधनों एवं अवसंरचना को चरम मानसून से होने वाली तबाही से बचाने में पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं रहा है। भारत के संदर्भ में विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि 90 के दशक के अंत में तथा बीसवीं सदी के आरंभ में आपदा के कारण होने वाली आर्थिक हानि GDP के 2 प्रतिशत के बराबर रही है। ऐसे में भारत के लिये भी CDRI का गठन महत्त्वपूर्ण रूप से उपयोगी है।
- आपदा प्रबंधन, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण के मामले में जापान को महारत हासिल है, प्राकृतिक रूप से आपदा के प्रति सुभेद्य होने के बावजूद यह विशेषता जापान को विश्व का सबसे सुरक्षित एवं सबसे अधिक आपदा प्रतिरोधी देश बनाती है।
- भारत सौर ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि के लिये पहले ही वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों के गठबंधन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन (ISA) का निर्माण कर चुका है। CDRI की स्थापना भारत के उपर्युक्त प्रयास में अनुपूरक की भूमिका निभाएगा।
- भारत ने ISA के माध्यम से विश्व की सबसे बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहयोग करने की बजाय समस्या का हल दूँढने वाले देश के रूप में अपने सॉफ्टपॉवर में वृद्धि की है।
- भारतीय विदेश नीति में ISA के बाद CDRI एक ऐसे नवाचार के रूप में स्थापित हो सकता है, जिसकी विश्व को आवश्यकता है।
शून्य दुर्घटना दृष्टिकोण
- यह मौसम विज्ञान विभाग द्वारा दी जाने वाली आपदा की सटीक पूर्व चेतावनी को संदर्भित करता है जिसके द्वारा एजेंसियों को फणि (Fani) जैसे गंभीर चक्रवात आदि से प्रभावित क्षेत्र को खाली कराने तथा समय पर बचाव कार्य आरंभ करने में सहायता मिलती है।
- चरम मौसमी घटनाओं एवं आपदाओं से निपटने में तथा आपदाओं से होने वाली जान एवं माल की हानि को रोकने में भारत का शून्य दुर्घटना दृष्टिकोण सेंनदाई फ्रेमवर्क को काफी सहयोग प्रदान करता है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण
- जोखिम का तात्पर्य अचानक होने वाली अनर्थकारी घटना से है जो समुदाय या समाज के कार्यों को गंभीर रूप से बाधित कर देती है तथा मानव, वस्तुओं आदि के साथ-साथ आर्थिक या पर्यावरणीय हानि पहुँचाती है जिसकी भरपाई समाज व समुदाय अपने सीमित संसाधनों के उपयोग से नहीं कर सकता। हालाँकि ये आपदाएँ बहुधा प्राकृतिक कारणों से होती हैं लेकिन इसका कारण मानवीय गतिविधियाँ भी हो सकती हैं। अक्सर एक आपदा के चलते दूसरी आपदा की स्थिति उत्पन्न होती है जो कि अधिक प्रभाव डालती है। इसका एक उदाहरण भूकंप है जिससे सुनामी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण का अर्थ है प्राकृतिक एवं मानवजनित खतरे एवं सुभेद्यता की पहचान कर आपदा पूर्व उचित कार्रवाई के ज़रिये खतरों के प्रभाव को कम करने का प्रयास करना।
- आपदाएँ विकास कार्यों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं, इस परिप्रेक्ष्य में आपदा जोखिम न्यूनीकरण की उपयोगिता अत्यधिक है।
- आपदाएँ वर्षों एवं दशकों से निर्मित तथा विकसित व्यवस्थाओं को बर्बाद कर देती हैं।
- विकास की कमी हाशिये पर स्थित समुदायों को आपदा के प्रति अधिक सुभेद्य बना देती हैं।
- अनियंत्रित एवं अवैज्ञानिक विकास नई आपदाओं को जन्म दे सकता है, साथ ही इससे प्रकृति के असंतुलन का भी खतरा बढ़ सकता है और यह भी अंततः आपदा के रूप में ही घटित होता है। उदाहरण के लिये जीवाश्म ईंधन का अधिक उपयोग जलवायु संबंधी आपदा को जन्म दे सकता है।
निष्कर्ष
भारत द्वारा आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये संगठन (CDRI) की स्थापना हेतु पहल की जा रही है। इससे विकसित एवं विकासशील देशों को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिये उचित बुनियादी ढाँचे के निर्माण में सहायता मिलेगी। साथ ही इसके ज़रिये भारत अपनी सॉफ्टपॉवर में इज़ाफा कर सकेगा। CDRI की स्थापना सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह आपदा जोखिम न्यूनीकरण, सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने तथा धारणीय एवं समावेशी विकास की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न: रोकथाम इलाज से बेहतर उपाय है। आपदा जोखिम एवं न्यूनीकरण के प्रकाश में कथन पर चर्चा कीजिये, साथ ही जोखिम न्यूनीकरण में आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये संगठन की भूमिका भी स्पष्ट कीजिये।