राम मंदिर: रामराज्य का संकल्प
यह एडिटोरियल 23/01/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Ram is not fire, Ram is energy” लेख पर आधारित है। इसमें अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के महत्त्व पर चर्चा की गई है और भारतीय समाज में शांति एवं सद्भाव के प्रतीक के रूप में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
प्रिलिम्स के लिये:राम मंदिर (अयोध्या), सर्वोच्च न्यायालय, CJI, मंदिर अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक कूटनीति। मेन्स के लिये:राम मंदिर विवाद से संबंधित प्रमुख घटनाएँ, राम मंदिर निर्माण के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला, राम मंदिर के निर्माण का महत्त्व। |
राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह (consecration ceremony) एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है जिससे अयोध्या में राम मंदिर स्थापना की 500 वर्ष पुरानी आकांक्षा की पूर्ति की है। प्रधानमंत्री ने इस घटना को एक चिरप्रतीक्षा के अंत के रूप में चिह्नित किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भगवान राम को समर्पित मंदिर का निर्माण—जो न्याय का प्रतीक है, एक उचित एवं निष्पक्ष तरीके से किया गया है। उन्होंने न्याय के सिद्धांतों की रक्षा के लिये भारतीय न्यायपालिका के प्रति आभार व्यक्त किया।
जबकि राम मंदिर अब साकार हो चुका है, सबसे बड़ी चिंता यह है कि भारत में धार्मिक विवादों की पुनरावृत्ति को रोका जाना चाहिये। राम राज्य के सिद्धांतों का पालन करना और ‘धर्म’ को बनाये रखना सभी के लिये अनिवार्य है।
बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद के प्रमुख घटनाक्रम:
- 1529 ई. : मीर बाक़ी द्वारा बाबरी मस्जिद का निर्माण- बाबरी मस्जिद 16वीं शताब्दी की एक मस्जिद थी जो उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित थी। बड़ी संख्या में हिंदू अनुयायियों द्वारा मस्जिद स्थल को भगवान राम का जन्मस्थान (श्री राम जन्मभूमि ) माना जाता था।
- इससे बार-बार यह विवाद होता रहा कि भूमि का स्वामित्व किसके पास है।
- दिसंबर 1949: मस्जिद के अंदर राम की मूर्ति का ‘प्रकट’ होना।
- तीन प्रमुख वाद:
- वर्ष 1959 में निर्मोही अखाड़े ने मालिकाना हक (title suit) का मुक़दमा दायर किया। निर्मोही अखाड़े का दावा था कि वह राम जन्मभूमि का वास्तविक प्रबंधक है।
- वर्ष 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी एक मुकदमा दायर किया। यह बोर्ड मस्जिद पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहा था।
- वर्ष 1989 में वरिष्ठ अधिवक्ता देवकी एन. अग्रवाल ने भगवान राम की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया। इसके बाद पूर्व के सभी मुकदमे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिये गए।
- 25 सितंबर 1990: रथ यात्रा - लालकृष्ण आडवाणी ने राम जन्मभूमि आंदोलन के लिये समर्थन जुटाने के उद्देश्य से सोमनाथ (गुजरात) से अयोध्या (उत्तर प्रदेश) तक की रथ यात्रा शुरू की।
- 6 दिसंबर 1992: बाबरी विध्वंस - कारसेवकों की एक हिंसक भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया और उसके स्थान पर एक अस्थायी मंदिर (makeshift temple) की स्थापना कर दी।
- 7 जनवरी 1993: राज्य द्वारा अयोध्या भूमि का अधिग्रहण - सरकार ने 67.7 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने के लिये एक अध्यादेश जारी किया।
- अप्रैल 2002: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अयोध्या स्वामित्व विवाद पर सुनवाई शुरू की।
- 8 जनवरी 2019: भारत के मुख्य न्यायाधीश ने मामले को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिये अपनी प्रशासनिक शक्तियों का उपयोग किया।
- 8 मार्च 2019: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मध्यस्थता का आदेश - संविधान पीठ ने न्यायालय की निगरानी में मध्यस्थता का आदेश दिया।
- 9 नवंबर 2019- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मामले पर अंतिम निर्णय-
- विवादित भूमि रामलला को समर्पित: सर्वोच्च न्यायालय ने एक सर्वसम्मत निर्णय के माध्यम से मामले के तीन दावेदारों में से एक ‘रामलला’ को समर्पित मंदिर के निर्माण के लिये संपूर्ण 2.77 एकड़ विवादित भूमि सौंपकर विवाद का निपटारा कर दिया।
- मस्जिद निर्माण के लिये भूमि: मंदिर के लिये विवादित भूमि सौपने के अलावा न्यायालय ने मस्जिद के निर्माण के लिये अयोध्या में ही एक प्रमुख स्थान पर पाँच एकड़ ज़मीन आवंटित करने का निर्णय दिया।
राम मंदिर निर्माण के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का आधार:
- विवादित स्थल पर प्रतिस्पर्द्धी अधिकार: विवादित स्थल पर हिंदू और मुस्लिम दोनों का प्रतिस्पर्द्धी अधिकार था। हालाँकि हिंदुओं ने विवादित ढाँचे पर अपनी निरंतर उपासना के बेहतर साक्ष्य प्रस्तुत किये जो न्यायालय के निर्णय में एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा।
- अनन्य मुस्लिम कब्जे का अभाव: मुस्लिम पक्षों द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया जो यह दर्शाता हो कि विवादित ढाँचे पर उनका अनन्य कब्जा रहा हो और वहाँ नमाज़ पढ़ी जाती हो।
- बाहरी परिसर पर कब्ज़ा: न्यायालय ने कहा कि विवादित स्थल के बाहरी परिसर पर मुसलमानों का कभी भी कब्ज़ा नहीं रहा। जबकि आंतरिक प्रांगण परस्पर विरोधी दावों के साथ एक विवादित स्थल था, दिसंबर 1949 तक मुसलमानों द्वारा मस्जिद का परित्याग नहीं किया गया था क्योंकि वहाँ नमाज़ की जाती थी।
- सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा स्वामित्व स्थापित करने में विफलता: सुन्नी वक्फ बोर्ड प्रतिकूल कब्जे या वक्फ (dedication by user) के माध्यम से स्वामित्व स्थापित करने में सफल नहीं हुआ, जो न्यायालय द्वारा विचारित एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक था।
- मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को, जिसने विवादित भूमि और आस-पास के क्षेत्रों का अधिग्रहण किया था, मंदिर के निर्माण के लिये एक ट्रस्ट स्थापित करने का निर्देश दिया। यह विवाद को सुलझाने और स्थल पर राम मंदिर के निर्माण को सुविधाजनक बनाने के निर्णय का एक भाग था।
- ASI रिपोर्ट: अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद, जो वर्ष 1992 में विध्वंस से पहले विवादित स्थल पर खड़ी थी, खाली ज़मीन पर नहीं बनाई गई थी और प्रमाण मिले है कि वहाँ एक मंदिर जैसी संरचना पहले से मौजूद थी।
- अनिवार्यता का सिद्धांत: निर्णय सुनाते समय सर्वोच्च न्यायालय ने अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं के सिद्धांत (doctrine of essential religious practices) का अनुप्रयोग किया। न्यायालय ने एम. इस्माइल फारूकी बनाम भारत संघ मामले (1994) का हवाला दिया जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि “मस्जिद इस्लाम धर्म के आचरण का एक अनिवार्य अंग नहीं है और मुसलमानों द्वारा नमाज़ (प्रार्थना) कहीं भी, यहाँ तक कि खुले में भी की जा सकती है।”
राम मंदिर का निर्माण क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- उल्लास का क्षण: अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण एक महत्त्वपूर्ण घटना है जो लंबे समय से जारी विवाद के अंत और भारत के इतिहास में एक नए अध्याय के आरंभ का प्रतीक है।
- धार्मिक महत्त्व: यह मंदिर हिंदू देवताओं में सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक राम का पवित्र निवास स्थान है, जिनके बारे में हिंदू मानते हैं कि उनका जन्म अयोध्या में ठीक इसी स्थान पर हुआ था।
- आस्था का प्रतीक: राम मंदिर उस स्थान पर बनाया जा रहा है जिसे हिंदू राम जन्मभूमि मानते हैं। लाखों हिंदू इस गहन विश्वास के साथ भगवान राम की पूजा करते हैं कि विपत्ति के समय में उनके नाम जाप से शांति एवं समृद्धि प्राप्त होती है और हिंदू धर्म का पालन करने वाले अधिकांश लोग अपने घरों में राम की मूर्तियाँ रखते हैं।
- मंदिर अर्थव्यवस्था: इन पहलों से अयोध्या को देश में एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र में बदलने की उम्मीद है, जो बढ़ी हुई कनेक्टिविटी के कारण व्यापक क्षेत्र में व्यापार एवं आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देगा।
- तिरूपति मंदिर, जो एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, प्रति वर्ष लाखों भक्तों को आकर्षित करता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को व्यापक रूप से बढ़ावा मिलता है।
- ‘न्यूक्लियस’ संस्थान: मंदिर एक ‘न्यूक्लियस’ या नाभिक के रूप में कार्य कर सकता है जिसके चारों ओर स्कूल और अस्पताल जैसे धर्मार्थ संस्थान विकसित किये जा सकते हैं।
- सामाजिक एकजुटता: राम मंदिर हिंदू उपासना स्थल होने के प्रतीकवाद से आगे बढ़कर एकजुटता और सांस्कृतिक संश्लेषण के एक बड़े संदेश का संकेत देगा। यह दिव्यता (divinity) के आह्वान के माध्यम से ‘सोशल इंजीनियरिंग’ है। यह राष्ट्र को जोड़ने वाला सूत्र सिद्ध हो सकता है।
- सांस्कृतिक कूटनीति: राम की दिव्यता न केवल भारत में एक प्रमुख धार्मिक प्रभाव के रूप में विद्यमान है, बल्कि थाईलैंड, इंडोनेशिया, म्यांमार और मलेशिया जैसे देशों में भी सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है। इससे भारत की सांस्कृतिक कूटनीति भी सुदृढ़ होगी।
भारत जैसे लोकतंत्र में भगवान राम के मूल्यों को कैसे स्थापित किया जा सकता है?
- ‘धर्म’ (Righteousness) को बढ़ावा देना:
- जीवन के सभी पहलुओं में नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये नेताओं और नागरिकों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- व्यक्तिगत और सार्वजनिक व्यवहार में ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता के महत्त्व पर बल देना चाहिये।
- न्याय और निष्पक्षता:
- एक मज़बूत एवं निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली स्थापित करना आवश्यक है जो सभी नागरिकों के लिये न्याय सुनिश्चित करे, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
- जाति, धर्म या सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विचार किये बिना सभी व्यक्तियों के लिये समान अवसर और उचित व्यवहार को बढ़ावा देना चाहिये।
- समावेशी शासन:
- एक समावेशी राजनीतिक व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाए जो लोगों के विविध दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करती हो।
- ऐसी नीतियों को प्रोत्साहित करना चाहिये जो हाशिये पर स्थित समुदायों की आवश्यकताओं की पूर्ति करे और सुनिश्चित करें कि विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुँचे।
- सेवक दृष्टिकोण का नेतृत्व (Servant Leadership):
- लोगों की भलाई के साथ विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए नेताओं को सेवक होने के विचार से प्रेरित होना चाहिये।
- राजनीतिक लोगों के बीच विनम्रता, करुणा और सार्वजनिक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता जैसे गुणों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- सामुदायिक सद्भाव:
- सांप्रदायिक सद्भाव और एकता पर बल देने के साथ विभाजनकारी तत्त्वों को हतोत्साहित करना आवश्यक है जो संघर्ष का कारण बन सकते हैं।
- विभिन्न समुदायों के बीच संवाद एवं समझ को प्रोत्साहित करने के साथ सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा देना चाहिये।
निष्कर्ष:
जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, राम और राष्ट्र के बीच की दूरी को केवल शब्दों से नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर दूर किया जाएगा। यह अल्पसंख्यक समुदाय तक पहुँच बनाने का आह्वान करेगा, जो मंदिर आंदोलन के अंग नहीं थे। इसके लिये, ध्रुवीकरण के युग में, साझा आधार के कृतसंकल्पित दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
अभ्यास प्रश्न: चर्चा कीजिये कि किस प्रकार ‘रामराज्य’ की प्राप्ति के क्रम में सामाजिक समस्याओं को हल करना तथा सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
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