अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन-ताइवान संबंध व एक चीन नीति
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में चीन-ताइवान संबंध व एक चीन नीति से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
वैश्विक महामारी COVID-19 से जुड़ी जानकारी छिपाने के मुद्दे पर चौतरफा घिरा चीन अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देशों के निशाने पर है। अब चीन के भीतर भी शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं। इससे वैश्विक व्यवस्था तथा जनता का ध्यान भटकाने के लिये चीन का शीर्ष नेतृत्व अब राष्ट्रवाद के बहाने भारत के साथ सीमा पर लगातार तनाव बढ़ा रहा है और साथ ही उसने ताइवान की तरफ दो विमानवाहक पोतों को रवाना कर दिया गया है। चीन के इस कदम से ताइवान पर हमले की आशंका बढ़ गई है।
ताइवान पर दबाव बढ़ाने के लिये चीन ने दक्षिण चीन सागर में एक नौ-सैन्य अभ्यास प्रारम्भ किया है। इस बीच संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी दक्षिण चीन सागर में अपने विमानवाहक पोत तैनात कर दिया है, वैश्विक महामारी COVID-19 के बीच ताइवान दक्षिण चीन सागर में संयुक्त राज्य अमेरिका व चीन के बीच तनाव का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। इसके साथ ही ताइवान के विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) में शामिल होने के प्रयास से भी चीन को झटका लगा था।
इस आलेख में ताइवान की भौगोलिक स्थिति, चीन-ताइवान इतिहास, चीन-ताइवान के बीच विवाद के कारण, तथा ‘एक देश दो प्रणाली’ और ‘एक चीन नीति’ के मुद्दे पर विमर्श करने के प्रयास किया जाएगा।
ताइवान की भौगोलिक स्थिति
- ताइवान पूर्व एशिया का एक द्वीप है। यह द्वीप अपने आस-पास के द्वीपों को मिलाकर चीनी गणराज्य का अंग है, इस गणराज्य का मुख्यालय ताइवान द्वीप है।
- ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से यह मुख्य भूमि (चीनी जन-गणराज्य या पी.आर.सी.) का अंग रहा है, परंतु इसकी स्वायत्तता व स्वतंत्रता को लेकर चीनी जन-गणराज्य (People’s Republic of China-PRC) और चीनी गणराज्य (Republic of China-ROC) जिसे अब ताइवान के नाम से जानते हैं के बीच विवाद है।
- ताइवान की राजधानी ताइपे एक वित्तीय केंद्र भी है, जो ताइवान के उत्तरी भाग में स्थित है।
- ताइवानी लोग अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) भाषाएँ बोलते हैं। मंदारिन (Mandarin) राजकार्यों की भाषा है।
चीन-ताइवान इतिहास
- चीन के प्राचीन इतिहास में ताइवान का उल्लेख बहुत कम मिलता है, परंतु प्राप्त प्रमाणों के अनुसार ज्ञात होता है कि तांग राजवंश (618-907ई.) के समय से चीनी लोग मुख्य भूमि से निकलकर ताइवान में बसने लगे थे।
- वर्ष 1624 से 1661 तक चीन एक डच (वर्तमान में नीदरलैंड) उपनिवेश था।
- 17वीं शताब्दी में चीन में मिंग वंश का पतन हुआ, और मांचू लोगों ने चिंग वंश की स्थापना की।
- वर्ष 1683 से 1895 तक मुख्य भूमि चीन पर ताइवान का शासन था।
- वर्ष 1895 में, जापान ने पहला चीन-जापानी युद्ध जीता और युद्ध के बाद ताइवान जापान के नियंत्रण में आ गया।
- द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद पाट्सडैम (1945), काहिरा (1946) की घोषणाओं के मुताबिक ताइवान पर राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी का अधिकार फिर से मान लिया गया।
- अगले कुछ वर्षों में चीन में हुए गृहयुद्ध से माओत्से तुंग (Mao Tse Tung) के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक (Chiang Kai-shek) के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को पराजित किया था।
- कम्युनिस्टों से हार के बाद राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी ने ताइवान में अपनी सरकार बनाई। वर्ष 1951 में सैन फ्रांसिस्को की संधि के अनुसार, जापान ने ताइवान से अपने स्वधिकारों को समाप्त घोषित कर दिया।
- वर्ष 1952 में ताइपे में चीन-जापान संधि वार्ता हुई। किंतु किसी भी संधि में ताइवान पर चीन के नियंत्रण का कोई संकेत नहीं किया गया।
विवाद का कारण
- एक देश दो प्रणाली
- डेंग शियाओपिंग (Deng Xiaoping) द्वारा वर्ष 1970 के आसपास देश के शासन की बागडोर संभालने के बाद एक देश दो प्रणाली (One Country Two Systems) नीति प्रस्तावित की गई थी। डेंग की इस योजना का मुख्य उद्देश्य चीन और ताइवान को एकजुट करना था।
- इस नीति के माध्यम से ताइवान को उच्च स्वायत्तता देने का वादा किया गया था। इस नीति के तहत ताइवान चीनी संप्रभुता के अंतर्गत अपनी पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली का पालन कर सकता है, एक अलग प्रशासन चला सकता है और अपनी सेना रख सकता है। हालाँकि ताइवान ने कम्युनिस्ट पार्टी के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
- एक चीन नीति
- यह चीन के उस पक्ष का कूटनीतिक समर्थन है कि विश्व में सिर्फ एक चीन है और ताइवान चीन का ही एक हिस्सा है।
- एक नीति के तौर पर इसका अर्थ है कि ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (चीनी जन-गणराज्य या पी.आर.सी.,जो चीन का मुख्य भू-भाग है) से कूटनीतिक संबंधों के इच्छुक देशों को ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (चीनी गणराज्य या आरओसी यानी ताइवान) से संबंध तोड़ने होंगे।
- इस नीति के तहत अधिकांश देशों के औपचारिक संबंध ताइवान के बजाय चीन के साथ हैं। ताइवान को चीन अपने से टूटकर अलग प्रदेश मानता है, जो एक दिन मुख्य चीन में मिल जाएगा।
- यद्यपि ताइवान की सरकार का यह मानना है कि यह एक स्वतंत्र देश है, जो औपचारिक रूप से ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ कहा जाता है, लेकिन इस नीति (एक चीन नीति) के कारण ताइवान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पृथक् पड़ गया है।
- दक्षिण चीन सागर विवाद
- सर्वप्रथम वर्ष 1947 में मूल रूप से चीन गणराज्य की कुओमितांग सरकार ने ‘इलेवन डैश लाइन’ (Eleven Dash line) के माध्यम से दक्षिण चीन सागर में अपने दावों को प्रस्तुत किया था।
- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा मुख्य भूमि चीन पर अधिकार करने और वर्ष 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का गठन करने के बाद टोंकिन की खाड़ी को इलेवन डैश लाइन से बाहर कर दिया गया। परिणामस्वरूप इलेवन डैश लाइन को अब ‘नाईन डैश लाइन’ (दक्षिण चीन सागर पर चीन द्वारा खींची गई 9 आभासी रेखाएँ) के नाम से जाना जाने लगा।
- ‘नाईन डैश लाइन’ के कारण दक्षिण चीन सागर में दावेदारी को लेकर चीन व ताइवान के बीच अक्सर विवाद होता रहता है।
एक चीन नीति का उद्भव
- इस नीति की शुरुआत 1949 से होने लगी थी, जब चीनी गृहयुद्ध के पश्चात् हारी हुई सत्ताधारी राष्ट्रवादी पार्टी जिसे ‘कुओमिंतांग’ भी कहा जाता है, ताइवान लौटी और च्यांग काई शेक के नेतृत्व में वहीं ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना की गई। जबकि जीते हुए साम्यवादियों ने ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की घोषणा की। दोनों पक्षों ने यह दावा किया कि वे पूर्ण चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- तब से चीन के सत्ताधारी कम्युनिस्ट दल ने यह धमकी दी है कि अगर ताइवान स्वयं को कभी भी औपचारिक रूप से स्वतंत्र घोषित करता है तो वह उस पर बल प्रयोग करेगा, लेकिन हालिया वर्षों में उसने इस द्वीप के साथ नरम कूटनीतिक तरीके को अपनाया है।
- शुरुआत में अमेरिका समेत कई देश साम्यवादी चीन के बजाय ताइवान को तरजीह देते रहे थे, लेकिन कूटनीतिक रुख तब बदलने लगा जब 1970 के दशक की शुरुआत में चीन और अमेरिका ने रिश्ते बनाने की पारस्परिक आवश्यकताओं को समझा और उसके बाद अन्य देश बीजिंग के पक्ष में ताइपे (ताइवान की राजधानी) से रिश्ते तोड़ने लगे।
- हालाँकि अब भी कई देश ताइवान के साथ व्यापार कार्यालयों या सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा अनौपचारिक संबंध बनाए हुए हैं और अमेरिका ताइवान का सबसे महत्त्वपूर्ण सुरक्षा और व्यापार मित्र देश है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कौन विजेता बना?
- बीजिंग अपने दावे को मज़बूती से आगे बढ़ाने में सक्षम रहा है और इस नीति से उसको सबसे अधिक फायदा हुआ है, जिससे ताइवान कूटनीतिक रूप से कमज़ोर हो गया है।
- पूर्व में ताइवान (रिपब्लिक ऑफ चाइना) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का हिस्सा था। शीतयुद्ध के दौरान ताइवान को अमरीका का पूरा समर्थन मिला हुआ था, परंतु फिर हालात एकदम से बदल गए।
- ताइवान के लिये वर्ष 1971 के बाद से चीजें बदलने लगी। अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने चीन को पहचान दी और यह कहा कि ताइवान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से हटना होगा। वर्ष 1971 से चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का हिस्सा हो गया और वर्ष 1979 में ताइवान की संयुक्त राष्ट्र से आधिकारिक मान्यता खत्म हो गई और तब से ताइवान का पतन शुरू हो गया।
- विश्व के अधिकतर देशों और यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी ताइवान को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
- अब विश्व भर में केवल 16 देश ही ताइवान को एक देश के रूप में मान्यता प्रदान कर रहे हैं, जिसमें से प्रशांत महासागर के पाँच छोटे द्वीपीय देश शामिल हैं। भारत ताइवान को अलग देश के रूप में मान्यता नही प्रदान करता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका
- संयुक्त राज्य अमेरिका को ताइवान का महत्वपूर्ण मित्र और सहयोगी माना जाता है।
- परंतु वर्ष 1970 में आर्थिक प्रगति के बाद अमेरिका नए बाजार तलाश रहा था। उस समय चीन की आबादी 60 करोड़ थी जबकि ताइवान की महज़ एक करोड़ के आसपास। ऐसे में अमेरिकी कॉर्पोरेट चाहते थे कि अमरीका चीन को मान्यता दे, तो इस तरह से ताइवान यहाँ कमजोर पड़ गया।
एक चीन नीति पर भारत का दृष्टिकोण
- चीन के कई पड़ोसियों की तरह भारत ने भी हालिया वर्षों में चीनी विदेश नीति के अधिक स्वीकारात्मक और राष्ट्रवादी विचार को ही अपनाया है।
- इन द्विपक्षीय संबंधों में कई बार घर्षण उत्पन्न हुआ, जैसे–विवादित सीमाओं पर चीन द्वारा भारत में घुसपैठ करना, पाकिस्तान आधारित आतंकवादियों पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आरोपित प्रतिबंधों को रोकने के चीन के प्रयासों के बाद और भारतीय प्रधानमंत्री एवं दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा, जिसके अधिकतर हिस्से को चीन के द्वारा ‘दक्षिणी तिब्बत’ कहा जाता है, आदि।
- हाल ही में ताइवान से तनाव के क्रम में चीन ने भारत से एक चीन नीति का समर्थन करने की अपील की है।
- भारत को इस स्थिति में चीन को कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के ऊपर भारतीय संप्रभुता को स्वीकार करने के लिये विवश करना होगा।
प्रश्न- हालिया घटनाक्रम के आलोक में चीन-ताइवान संबंधों का मूल्यांकन करते हुए भारत की भूमिका की समीक्षा कीजिये।