विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
डिजिटल डिवाइड: कारण और समाधान
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में डिजिटल डिवाइड व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
डिजिटलीकरण के दौर में इंटरनेट संचार और सूचना प्राप्ति का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ज़रिया बन गया है। दशकों पूर्व इंटरनेट तक पहुँच को विलासिता का सूचक माना जाता था, परंतु वर्तमान में इंटरनेट सभी की ज़रूरत बन गया है। इसकी उपयोगिता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि COVID-19 जैसी वैश्विक महामारी के दौरान प्रभावित लोगों तक प्रशासनिक मदद व खाद्य सामग्री पहुँचाने का कार्य प्रभावी रूप से डिजिटल माध्यम के द्वारा किया जा रहा है।
इस वैश्विक संकट में डिजिटल माध्यम लाखों नागरिकों के लिये एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरा है। डिजिटल माध्यम से सहायता का यह रूप चाहे हेल्पलाइन नंबर के रूप में हो या आरोग्य सेतु एप के रूप में हो, जन सरोकार व स्वास्थ्य की दिशा में उपयोगी साबित हो रहे हैं। डिजिटल साक्षरता के महत्त्व को देखते हुए ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया है।
इस आलेख में डिजिटल डिवाइड (Digital Divide), भारत के डिजिटलीकरण के समक्ष चुनौतियाँ और संभावित समाधानों पर विमर्श करने के साथ ही इंटरनेट के महत्त्व और डिजिटल साक्षरता की उपयोगिता पर भी चर्चा की जाएगी।
क्या है डिजिटल डिवाइड?
- डिजिटल डिवाइड इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग और प्रभाव के संबंध में एक आर्थिक और सामाजिक असमानता है।
- यह आम तौर पर इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग को लेकर विभिन्न सामाजिक, आर्थिक स्तरों या अन्य जनसांख्यिकीय श्रेणियों में व्यक्तियों, घरों, व्यवसायों या भौगोलिक क्षेत्रों के बीच असमानता का उल्लेख करता है।
- दुनिया के विभिन्न देशों या क्षेत्रों के बीच विभाजन को वैश्विक डिजिटल विभाजन के रूप में जाना जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकासशील और विकसित देशों के बीच तकनीकी विभेद का उल्लेख करता है।
डिजिटलीकरण में इंटरनेट का महत्त्व
- इंटरनेट संचार हेतु एक अमूल्य उपकरण है और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट की उपलब्धता ने वर्तमान युग में संचार को काफी आसान और सुविधाजनक बना दिया है।
- इंटरनेट ने दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले उन विद्यार्थियों के लिये भी बेहतर शिक्षा का विकल्प खोल दिया है, जिनके पास अब तक इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
- इंटरनेट के माध्यम से सूचना के क्षेत्र में भी एक मज़बूत क्रांति देखी गई है। अब हम इंटरनेट के माध्यम से किसी भी प्रकार की सूचना को कुछ ही मिनटों में प्राप्त कर सकते हैं।
- सूचना तक आसान पहुँच के कारण आम लोग अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक हुए हैं।
- सभी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराने से सरकार की लागत में कमी को भी सुनिश्चित किया जा सकता है।
- यह राजनीति एवं लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ाने में भी मदद करता है।
- यह बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसर प्रदान करने के सरकार के प्रयासों को भी बढ़ावा देता है।
- सभी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराने से सरकार की लागत में कमी को भी सुनिश्चित किया गया है। यह सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाता है। साथ ही सरकारी योजनाओं के सफल कार्यान्वयन में सहायक हो सकता है।
भारत में डिजिटलीकरण के समक्ष चुनौतियाँ
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Offic-NSSO) द्वारा शिक्षा पर किये गए सर्वे से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, भारत में केवल 27 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जहाँ किसी एक सदस्य के पास इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है। इंटरनेट की सीमित उपलब्धता डिजिटलीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी समस्या है।
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भारत में केवल 12.5 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जिनके पास इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है।
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विगत कुछ वर्षों में कई निजी और सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप प्रदान किया गया है और जिनमें से कुछ तो सिर्फ ऑनलाइन ही उपलब्ध हैं जिसके कारण उन लोगों को असमानता का सामना करना पड़ता है जो डिजिटली निरक्षर हैं।
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किसी व्यक्ति के पास मोबाइल फोन का होना ‘डिजिटल’ होने का प्रमाण नहीं है। यहाँ तक कि यदि कोई व्यक्ति स्मार्टफोन का उपयोगकर्त्ता है, तो भी वह स्वयं को ‘डिजिटल सेवी’ नहीं कह सकता है, जब तक कि उसके पास इंटरनेट कनेक्टिविटी न हो और वह इंटरनेट पर प्रासंगिक और समय पर जानकारी प्राप्त करना न जानता हो।
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विश्वसनीय सूचना, बुनियादी ढाँचे और डिजिटल साक्षरता की कमी से उत्पन्न होने वाला डिजिटल डिवाइड सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है।
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भारत में अधिकांश मोबाइल व इंटरनेट उपयोगकर्त्ता शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि हम जानते हैं कि भारत की कुल आबादी का 67 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है।
- भारत में लिंग अंतराल दुनिया में सबसे अधिक है। जब यह मोबाइल उपयोग के स्वामित्त्व में तब्दील हो जाता है, तो यह लिंग अंतराल और अधिक हो जाता है। भारत में लगभग 16 प्रतिशत महिलाएँ मोबाइल इंटरनेट से जुड़ी हैं। जो डिजिटलीकरण की दिशा में लैंगिक विभेद का स्पष्ट रेखांकन करता है।
- वर्ष 2016 के मध्य में जारी एक रिपोर्ट में सामने आया था कि भारत में डिजिटल साक्षरता की दर 10 प्रतिशत से भी कम है।
- डिजिटलीकरण के प्रसार के समक्ष एक अन्य सबसे बड़ी चुनौती अवसंरचना की कमी भी है।
डिजिटल साक्षरता
(Digital Literacy)
- डिजिटल साक्षरता का आशय उन तमाम तरह के कौशलों के एक समूह से है, जो इंटरनेट का प्रयोग करने और डिजिटल दुनिया के अनुकूल बनने के लिये आवश्यक हैं। चूँकि प्रिंट माध्यम का दायरा धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है और ऑनलाइन उपलब्ध जानकारियों का दायरा व्यापक होता जा रहा है, इसलिये ऑनलाइन उपलब्ध जानकारी को समझने के लिये डिजिटल साक्षरता आवश्यक है।
- उल्लेखनीय है कि भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन बाज़ार है, जहाँ लगभग 460 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्त्ता मौजूद हैं।
- आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 तक भारत में अनुमानतः 700 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्त्ता मौजूद होंगे, जो कि काफी बड़ी संख्या है।
- उपरोक्त आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारत का इंटरनेट आधार (Internet Base) काफी व्यापक है, जिसके कारण यहाँ डिजिटल साक्षरता का विषय काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है।
डिजिटल डिवाइड दूर करने हेतु सरकार के प्रयास
- भारतनेट कार्यक्रम
- इस परियोजना का उद्देश्य राज्यों तथा निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी से ग्रामीण तथा दूर-दराज़ के क्षेत्रों में नागरिकों एवं संस्थानों को सुलभ ब्रॉडबैंड सेवाएँ उपलब्ध कराना है।
- भारतनेट परियोजना के तहत 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर के ज़रिये हाईस्पीड ब्रॉडबैंड, किफायती दरों पर उपलब्ध कराया जाना है। इसके तहत ब्रॉडबैंड की गति 2 से 20 Mbps तक निर्धारित करने का लक्ष्य रखा गया।
- इस परियोजना का वित्तपोषण ‘यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड’ (Universal Service Obligation Fund-USOF) द्वारा किया गया था।
- इसके तहत स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों एवं कौशल विकास केंद्रों में इंटरनेट कनेक्शन नि:शुल्क प्रदान किया गया।
राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन
- राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन की शुरुआत वर्ष 2020 तक भारत के प्रत्येक घर में कम-से-कम एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाने के उद्देश्य से की गई है।
- इस परियोजना का उद्देश्य तकनीकी दृष्टि से निरक्षर वयस्कों की मदद करना है ताकि वे तेज़ी से डिजिटल होती दुनिया में अपना स्थान खोज सकें।
राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति-2018
- प्रत्येक नागरिक को 50 Mbps की गति से सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना।
- सभी ग्राम पंचायतों को वर्ष 2020 तक 1 Gbps तथा वर्ष 2022 तक 10 Gbps की कनेक्टिविटी प्रदान करना।
- राष्ट्रीय फाइबर प्राधिकरण बनाकर राष्ट्रीय डिजिटल ग्रिड की स्थापना करना।
- ऐसे क्षेत्र जिन्हें अभी तक कवर नहीं किया गया है के लिये कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना।
- डिजिटल संचार क्षेत्र के लिये 100 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित करना।
- इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) पारितंत्र का विस्तार आपस में जुड़े 5 बिलियन उपकरणों तक करना।
- व्यक्ति की निजता, स्वायत्तता तथा पसंद को सुरक्षित रखने वाले डिजिटल संचार के लिये व्यापक डाटा संरक्षण व्यवस्था का निर्माण करना।
- वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत की सक्रिय भागीदारी हेतु सहायता देना।
आगे की राह
- डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने व डिजिटल डिवाइड को दूर करने के लिये इंटरनेट का उपयोग और डिजिटल साक्षरता एक-दूसरे पर परस्पर निर्भर है, अतः डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के साथ-साथ डिजिटल कौशल प्रदान करने पर सरकार को ध्यान देना चाहिये।
- भारत सरकार को डिजिटल संचार तकनीकी के क्षेत्र में अनिवार्य प्रमाणिक पेटेंट का विकास करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
- केंद्र व राज्य सरकार को चाहिये कि वह इस क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता दें साथ ही देश में दूरसंचार नियमों को और अधिक मजबूती प्रदान करें ताकि बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित हो सके।
- सरकार को डिजिटल संचार के क्षेत्र में नवोन्मेष आधारित स्टार्टअप्स प्रोत्साहित करने का कार्य करना चाहिये।
प्रश्न- डिजिटल डिवाइड से आप क्या समझते हैं? भारत में डिजिटलीकरण के समक्ष मौज़ूदा चुनौतियों का उल्लेख करते हुए बताएँ कि डिजिटल डिवाइड को दूर करने में सरकार क्या प्रयास कर रही है।