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  • 27 Nov, 2020
  • 13 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विद्युत चालित वाहनों का विकास

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से निपटने में विद्युत चालित वाहनों की भूमिका और देश में उनके विकास के साथ इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (UK) की सरकार ने वर्ष 2030 से अपने देश में नए पेट्रोल और डीज़ल चालित वाहनों की बिक्री को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है। साथ ही इस ग्रीन एजेंडे के तहत यूके सरकार द्वारा देश में इलेक्ट्रिक वाहनों या ईवी (Electric Vehicle- EV) के लिये एक सक्षम बुनियादी ढाँचे की स्थापना का प्रयास किया जा रहा है। यूके सरकार का यह बड़ा कदम विश्व में उर्जा को लेकर चलाए जा रहे हरित आंदोलन की लहर पर एक व्यापक प्रभाव डाल सकता है। भारत में भी सरकार जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों को बदलने के लिये उत्सुक है। इसकी शुरुआत वर्ष 2017 में सरकार द्वारा वर्ष 2030 तक पूर्णरूप से 100% इलेक्ट्रिक कारों के  एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के निर्धारण के साथ की गई। हालाँकि, ऑटोमोबाइल उद्योग के प्रतिरोध और भारी संख्या में नौकरियों की क्षति की आशंका के कारण सरकार को अपने लक्ष्य कम करने के लिये विवश होना पड़ा। परंतु अभी भी ईवी अवसंरचना तंत्र की स्थापना में सरकार के प्रत्यक्ष समर्थन और उद्योग तथा ग्राहकों को आर्थिक सहायता प्रदान किये बगैर ऑटोमोबाइल क्षेत्र में कोई बड़ा बदलाव लाना बहुत ही कठिन होगा।

इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता क्यों?  

  • प्रदूषण नियंत्रण:  ‘अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छ परिवहन परिषद’ (International Council for Clean Transportation- ICCT) के अनुसार, वाहनों के धुएँ से होने वाला प्रदूषण वर्ष 2015 में भारत में लगभग 74,000 असामयिक मौतों का कारण बना।
    • इसके साथ ही विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के कई शहरों के नाम शामिल हैं। उदाहरण के लिये, दिल्ली, कानपुर आदि।
  • जलवायु परिवर्तन: दिसंबर 2019 में, पर्यावरण थिंक टैंक ‘जर्मनवाच’ द्वारा जारी ‘वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2020’ (Global Climate Risk Index 2020) के अनुसार, भारत में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों में वृद्धि देखने को मिली है। इस सूचकांक में वैश्विक सुभेद्यता के मामले में वर्ष 2017 (14वाँ स्थान) की तुलना में भारत के रैंक में गिरावट हुई है (वर्ष 2018 में 5 वाँ स्थान)।   
    • देश में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के कारण होने वाली जान-माल की क्षति भारत को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने हेतु इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देने के लिये और अधिक कारण प्रदान करती है।  
  • संधारणीय ऊर्जा विकल्प:  परिवहन के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देकर भारत को ऊर्जा कमी की चुनौती को हल करते हुए अन्य देशों से आयात किये जाने वाले खनिज तेल पर अपनी निर्भरता को कम करने और ऊर्जा के नवीकरणीय तथा स्वच्छ स्रोतों की ओर बढ़ने में सहायता प्राप्त होगी।    

चुनौतियाँ: 

  • बैटरी सेल विनिर्माण का अभाव:  भारत में प्राथमिक बैटरी सेल विनिर्माण के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रगति नहीं (पूर्ण अनुपस्थिति) हुई है, जो बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाए जाने और बैटरी के लिये विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहने की स्थिति में एक बड़े व्यापार घाटे का कारण बन सकता है।  
  • वर्तमान में भारत के अधिकांश निर्माता जापान, चीन, कोरिया और यूरोप से आयातित बैटरी पर निर्भर हैं।
  • चार्जिंग अवसंरचना का निर्माण:  गौरतलब है कि वर्तमान में पेट्रोल पंप की संख्या के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत का विश्व में तीसरा स्थान (लगभग 69,000 पेट्रोल पंप) है,  जबकि देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बहुत ही कम है। ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु चार्जिंग अवसंरचना का विकास एक बड़ी चुनौती होगा। इसके लिये मौजूदा पेट्रोल पंपों के अलावा लोगों के घरों के नजदीक वैकल्पिक स्थानों पर चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना की आवश्यकता होगी।
  • सीमित ग्रिड क्षमता: नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय ईवी बाज़ार को वर्ष 2022 तक न्यूनतम 10 GW ऊर्जा की आवश्यकता होगी, जिसे वर्ष 2025 तक लगभग 50 GW तक विस्तारित करना होगा। 
    • हालाँकि वर्तमान में भारत अपनी अन्य सभी बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों के लिये प्रतिवर्ष मात्र 20 GW अतिरिक्त ऊर्जा अपने ग्रिड में जोड़ने में सक्षम रहा है। ऐसे में केवल ईवी के लिये ही 10GW अतिरिक्त क्षमता की आवश्यकता को पूरा कर पाना एक बड़ी चुनौती होगी। 
  • स्थानीय मुद्दे: परिवहन से जुड़े निर्णयों को लोगों के करीब लाना आवश्यक है। हालाँकि वहनीयता, बुनियादी ढाँचे और पारगमन प्रणालियों की उपलब्धता जैसी परिवहन चुनौतियाँ स्थानीयकृत मुद्दे हैं, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के मानकीकरण को बाधित करते हैं।   
    • इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि भारत के पास चीन की तरह इस क्षेत्र में मज़बूत बुनियादी ढाँचा या आवश्यक वित्तीय संसाधन नहीं है,  ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ या उनके लिये एक बाज़ार खड़ा करना भी एक बड़ी चुनौती होगी।  

भारत सरकार की वर्तमान नीतियाँ : 

  • फेम इंडिया योजना: सरकार द्वारा फेम इंडिया योजना [Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid and) Electric Vehicles- FAME] के माध्यम से वर्ष 2030 तक भारतीय परिवहन क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों की भागीदारी को बढ़ाकर 30% करने का लक्ष्य रखा गया है।  
    • यदि वर्ष 2030 तक इस योजना के तहत निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जाता है, तो इन इलेक्ट्रिक वाहनों के जीवनकाल के दौरान 846 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन की अनुमानित बचत हो सकेगी।  
  • आर्थिक प्रोत्साहन: सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन, खरीद और चार्जिंग अवसंरचना को मज़बूत बनाने के लिये आयकर छूट, सीमा शुल्क से छूट, आदि के रूप में कई प्रकार से आर्थिक प्रोत्साहन देने का प्रयास किया गया है।  

आगे की राह:   

  • ईवी के क्षेत्र में शोध और विकास को बढ़ावा: भारतीय बाज़ार में इलेक्ट्रिक वाहनों से जुडी ऐसी स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जो सामरिक तथा आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से भारत के लिये अनुकूल हैं।
    • गौरतलब है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतों को नीचे लाने के लिये स्थानीय अनुसंधान और विकास में निवेश करना बहुत ही आवश्यक है, ऐसे में स्थानीय तकनीकों संस्थानों/विश्वविद्यालयों और मौजूदा औद्योगिक हब को इस दिशा में बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में नवीनतम तकनीकों को अपनाने के लिये यूके जैसे देशों के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
  • जन जागरूकता: किसी भी समाज में एक पुरानी प्रथा को तोड़ते हुए नए उपभोक्ता व्यवहार की स्थापना हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रहा है, भारतीय बाज़ार में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिये लोगों को इससे जुड़े सभी पहलुओं (प्रदूषण, ईवी से जुड़े दुष्प्रचार आदि) के बारे में बताने के लिये व्यापक जागरूकता अभियानों की आवश्यकता होगी।
  • व्यावहारिक विद्युत मूल्य निर्धारण: वर्तमान में बिजली की बड़ी हुई कीमतों को देखते हुए कहा जा सकता है कि यदि भविष्य में भी देश में विद्युत उत्पादन कोल आधारित तापीय विद्युत संयंत्रों पर आधारित रहता है तो घरों पर वाहनों की चार्जिंग एक बड़ी समस्या बन सकती है।
    • ऐसे में देश में इलेक्ट्रिक कारों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये विद्युत् उत्पादन परिदृश्य में भी एक बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी।
    • इस संदर्भ में, वर्ष 2025 तक भारत के सबसे बड़े सौर ऊर्जा बाज़ार के रूप में उभरने को एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा सकता है।     
    • सौर ऊर्जा पर ध्यान देते हुए ग्रिड क्षमता को बढ़ाकर वाहनों की चार्जिंग के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचे के विकास को को सुनिश्चित किया जा सकता है। 

बहुपक्षीय प्रयास:  

  • देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की आपूर्ति शृंखला को मज़बूत बनाने हेतु इसके विनिर्माण के लिये सब्सिडी प्रदान करने से ईवी के विकास को बढ़ावा मिलेगा। 
  • इसके साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास को बढ़ावा देने के साथ इस प्रक्रिया को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिये वाहनों में लगी बैटरी के पुनर्चक्रण या रिसाइकिलिंग (Recycling) पर भी विशेष ज़ोर देना होगा।

निष्कर्ष:    

लगभग 1.3 बिलियन की आबादी वाले देश में पारंपरिक परिवहन से इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर स्थानांतरण एक आसान कार्य नहीं है। ऐसे में देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिये एक मज़बूत दृष्टिकोण के साथ राज्य की नीतियों की तुलना के लिये एक निष्पक्ष रूपरेखा और सार्वजनिक-निजी सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिये एक मंच स्थापित किया जाना बहुत ही आवश्यक होगा।  

Market-size

अभ्यास प्रश्न:  हाल के दशकों में परिवहन से होने वाले प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं में वृद्धि के बीच विद्युत चालित या इलेक्ट्रिक वाहनों को इसके समाधान के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। इस संदर्भ में भारतीय बाज़ार में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने से जुडी चुनौतियों और इसके समाधान के संभावित प्रयासों पर चर्चा कीजिये।


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