लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 27 Apr, 2022
  • 15 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की प्रति-व्यापार व्यवस्था

यह एडिटोरियल 26/04/2022 ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “Countertrade can Work in Crisis Situations” लेख पर आधारित है। इसमें अन्य देशों के साथ भारत की ‘काउंटरट्रेड’ व्यवस्थाओं और भारत के लिये एक ‘काउंटरट्रेड नीति’ की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

रूस पर प्रतिबंधों (जिसने भारत के लिये रूस के साथ व्यापार में डॉलर में प्राप्तियों और भुगतान दोनों को बाधित किया है) से बने व्यापक दबाव को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) रूस के केंद्रीय बैंक के साथ मिलकर एक ऐसे फ्रेमवर्क के निर्माण पर कार्य कर रहा है जहाँ अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन के लिये रुपए के संभावित अधिकाधिक उपयोग के साथ दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार एवं बैंकिंग परिचालन को सुचारू किया जा सके।

  • भारत ने अतीत में भी रूस, नेपाल, ईरान, बांग्लादेश और कुछ पूर्वी यूरोपीय देशों सहित कई देशों के साथ अपने व्यापार के लिये रुपए में भुगतान किया है या भुगतान प्राप्त किया है।
  • अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के समक्ष मौजूदा व्यापार एवं वित्तीय निपटान तंत्र की कमज़ोरियों और विदेशी मुद्रा संकट या भुगतान संतुलन की कठिनाइयों का सामना कर रहे देशों के साथ व्यापार करने में कठिनाइयों को देखते हुए ऐसे देशों के साथ लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिये एक वैकल्पिक ढाँचे की रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है। प्रति-व्यापार या ‘काउंटरट्रेडिंग’ (Countertrading) इसका एक प्रभावी तरीका हो सकता है।

काउंटरट्रेडिंग क्या है?

  • काउंटरट्रेड मूल रूप से एक वस्तु विनिमय (barter) या अर्द्ध वस्तु विनिमय (quasi-barter) व्यवस्था है जो स्पष्ट रूप से आयात और निर्यात लेनदेन को संयुक्त करती है। यह मुद्रा या सीमा-पार भुगतान चुनौतियों का सामना कर रहे देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन का एक महत्त्वपूर्ण तरीका बनकर उभरा है।
  • काउंटरट्रेड एक अंतर्राष्ट्रीय बिक्री को संरचित करने का एक वैकल्पिक साधन है जब भुगतान के पारंपरिक साधन जटिल होते हैं या मौजूद नहीं होते हैं। काउंटरट्रेड का सबसे आम रूप वस्तु विनिमय है।

काउंटरट्रेड का महत्त्व 

  • काउंटरट्रेड निम्नलिखित विषयों से एक प्रभावशील तरीका प्रस्तुत करता है:
    • प्रतिबंधों, मुद्रा नियंत्रणों, गैर-टैरिफ बाधाओं जैसी सुरक्षात्मक व्यापार नीतियों से उत्पन्न जोखिमों को कम करना
    • विदेशी मुद्रा के बाह्य प्रेषण से जुड़ी चुनौतियों से निपटना, जहाँ भुगतान के पारंपरिक साधन मौजूद नहीं हैं या कई कारणों से जटिल हैं
    • सामरिक खनिज संसाधनों (जहाँ भारत उल्लेखनीय आयात निर्भरता रखता है) की आपूर्ति सुनिश्चित करने में निहित चुनौतियों से निपटना

काउंटरट्रेड के मामले में भारत की स्थिति 

  • इराक के साथ वस्तु विनिमय व्यापार समझौता: भारत ने अतीत में कई प्रकार की काउंटरट्रेड व्यवस्था में प्रवेश किया है, जिसमें ‘ऑइल फॉर फूड’ कार्यक्रम के तहत इराक के साथ एक वस्तु विनिमय व्यापार समझौता शामिल है। इस व्यवस्था के तहत इराक भारत से चावल और गेंहूँ की प्राप्ति के बदले एक निश्चित मूल्य पर एक निश्चित मात्रा में तेल की दैनिक आपूर्ति करता है।
  • मलेशिया के साथ ‘काउंटर-परचेज’ समझौता: भारत ने मलेशिया के साथ एक काउंटर-परचेज समझौता (Counter Purchase Agreement) संपन्न किया था, जिसके तहत मलेशिया में IRCON (Indian Railway Construction) इंटरनेशनल लिमिटेड द्वारा एक रेल निर्माण परियोजना शुरू की गई थी और मलेशिया सरकार ने भारत को समतुल्य मूल्य के पाम ऑइल की आपूर्ति के साथ IRCON को भुगतान किया था। 
  • सोवियत संघ के साथ ‘बाय-बैक’ व्यवस्था: काउंटरट्रेड की ऐसी ही एक व्यवस्था पूर्ववर्ती सोवियत संघ के साथ ‘बाय-बैक’ व्यवस्था (Buyback Arrangement) के रूप में कायम की गई थी, जहाँ भारत के राष्ट्रीय कपड़ा निगम लिमिटेड (National Textiles Corporation Ltd.- NTC) ने सोवियत संघ से 200 परिष्कृत करघे खरीदे थे और बदले में सोवियत संघ को बायबैक प्रतिबद्धता के तहत उत्पादित कपड़ा का 75% खरीदना था।
  • ईरान के साथ समाशोधन व्यवस्था: भारत ने ईरान के साथ एक समाशोधन व्यवस्था का निर्माण किया था जिसके तहत वर्ष 2012 में भारत और ईरान के बीच एक रुपया भुगतान तंत्र स्थापित किया गया था। इसके अंतर्गत भारत द्वारा आयात के लिये भुगतान से संचित रुपये का उपयोग ईरान को उत्पादों, परियोजनाओं और सेवाओं के निर्यात के भुगतान के लिये किया गया था। 
  • वियतनाम के साथ ऋण के बदले माल व्यवस्था: भारत ने वियतनाम के साथ ऋण के बदले माल मॉडल (Debt-for-Goods Arrangement) का निर्माण किया था, जहाँ इंडिया एक्ज़िम बैंक ने वियतनाम को वाणिज्यिक ऋण सुविधा प्रदान की थी और बदले में भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने वियतनाम से चावल का आयात किया और IDBI/इंडिया एक्ज़िम बैंक को इस आयात के लिये भुगतान किया। 

ऋण के बदले माल मॉडल (Debt-for-Goods Arrangement) क्या है?

  • ‘ऋण के बदले माल’ मॉडल एक काउंटरट्रेड लेनदेन है जहाँ कोई देश विकास परियोजना के लिये ऋण प्राप्त करता है और ऋणदाता देश को ऋण का पूर्ण या आंशिक पुनर्भुगतान माल या सेवाओं के आदान-प्रदान के माध्यम से किया जाता है।
  • ऋणदाता देश के लिये ऐसा मॉडल विकास वित्तपोषण से संबद्ध उच्च मूल्य-वर्द्धित वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात के लिये अवसर प्रदान कर सकता है, जबकि उधारकर्त्ता देश से आयात के माध्यम से महत्त्वपूर्ण कच्चे माल की आपूर्ति को सुरक्षित करने में भी मदद कर सकता है।
  • उधारकर्त्ता देश के लिये ऐसा मॉडल दुर्लभ विदेशी मुद्रा संसाधनों की कमी के बिना उल्लेखनीय अवसंरचना विकास के वित्तपोषण में मदद करता है।

काउंटरट्रेड नीति 

  • वर्षों से विभिन्न काउंटरट्रेड लेनदेन के बावजूद भारत में काउंटरट्रेड के लिये कोई निश्चित नीति मौजूद नहीं है।
  • फिलीपींस, इंडोनेशिया और चीन जैसे कई देशों में व्यापक काउंटरट्रेड नीतियाँ मौजूद हैं, जिन्होंने बढ़ती अनिश्चितताओं के परिदृश्य में भी महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के आयात को सुरक्षित रखने में उनकी मदद की है।
  • चीन महत्त्वपूर्ण कच्चे माल की आपूर्ति को सुरक्षित करने और मूल्य-वर्द्धित निर्यात को बढ़ावा देने के लिये काउंटरट्रेड के एक प्रकार ‘ऋण के बदले माल’ का विशेष रूप से उपयोग करता रहा है।

काउंटरट्रेड से संलग्न चुनौतियाँ 

  • काउंटरट्रेड के साथ संलग्न प्रमुख चुनौतियों में से एक यह है कि संभव है कि भागीदार देशों द्वारा काउंटरट्रेड के लिये चिह्नित किये गए मालों की भारत में पर्याप्त मांग नहीं हो।
  • सौदे का मूल्य (जहाँ माल का आदान-प्रदान हो रहा हो) अनिश्चित हो सकता है, जिससे उल्लेखनीय मूल्य अस्थिरता की स्थिति बन सकती है।
  • किसी भी अपरंपरागत रणनीति की तरह काउंटरट्रेडिंग में भी अधिक समय लेने की प्रकृति होती है। अच्छे ट्रेड के लिये सौदेबाजी होगी, इस प्रकार सभी पक्षों के संतुष्ट होने तक वार्ता की लंबी प्रक्रिया की स्थिति बनेगी।
  • इसमें ब्रोकरेज सहित उच्च लेनदेन लागतें भी आएँगी। खरीदार की तलाश, बिचौलियों को कमीशन एवं अन्य रूपों में लागतों में तेज़ी से वृद्धि हो सकती है।
  • लॉजिस्टिक्स संबंधी समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं, विशेष रूप से यदि पण्य वस्तुएँ संलग्न हों।
  • व्यापार किये जा रहे माल के मूल्य पर वृहत अनिश्चितता और माल की गुणवत्ता पर अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

आगे की राह

  • एक काउंटरट्रेड नीति: बढ़ती हुई अनिश्चितता और व्यापार के लिये एक वैकल्पिक तंत्र की प्रकट आवश्यकता के आलोक में भारत के लिये ‘ऋण के बदले माल’ मॉडल के प्रावधानों के साथ काउंटरट्रेड के लिये एक रूपरेखा विकसित की जा सकती है।
    • इंडिया एक्ज़िम बैंक के हालिया अध्ययन में 30 देशों की पहचान की गई है, जहाँ ऋण के बदले माल मॉडल के तहत एक काउंटरट्रेड तंत्र विकसित करना विवेकपूर्ण होगा।
      • ये संसाधन संपन्न देश हैं जो विदेशी मुद्रा के बाह्य प्रेषण पर प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं अथवा ऋण संकट में हैं या ऋण संकट के उच्च जोखिम का सामना कर रहे हैं।
    • इन देशों में शामिल हैं; नाइजीरिया, लीबिया, वेनेजुएला, ईरान, कांगो गणराज्य, सूडान, यमन, जाम्बिया, तंजानिया, मोजाम्बिक, बेलारूस, फिजी, निकारागुआ, क्यूबा, सीरिया, लेबनान आदि।
  • मुद्रा संबंधी मामलों को संबोधित करना: भारत के लिये काउंटरट्रेड नीति स्थानीय मुद्रा व्यापार (लेकिन यहीं तक सीमित नहीं) के लिये एक तंत्र सहित एक समग्र व्यवस्था हो सकती है।
    • इस नीति में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित मुद्रा संबंधी जोखिमों को कम करने से लेकर ज़रूरतमंद विकासशील देशों को उनके दुर्लभ विदेशी मुद्रा भंडार को कम किये बिना विकास वित्त सहायता प्रदान करने और भारत के साथ व्यापार करने की क्षमता रखने वाले (लेकिन विदेशी मुद्रा चुनौतियों का सामना कर रहे) नए भौगोलिक क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने तक का एक बहुआयामी दृष्टिकोण शामिल हो सकता है।
    • काउंटरट्रेड तंत्र भारत सरकार के विकासात्मक भागीदारी कार्यक्रमों में पुनर्भुगतान प्राप्त करने के दृष्टिकोण से भी विचार करने योग्य होगा (विशेष रूप से संसाधन प्रचुर देशों में)।
  • ‘स्विच ट्रेड’ मॉडल: भारत की काउंटरट्रेड नीति में एक स्विच ट्रेड मॉडल (switch trade model) का भी प्रावधान होना चाहिये।
  • स्विच ट्रेडिंग मॉडल के अंतर्गत किसी अंतर्राष्ट्रीय ट्रेडिंग हाउस को उत्पाद की कुल खरीद के लिये एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करने हेतु संलग्न किया जा सकता है और लेनदेन के निर्यात चरण के निपटान के लिये सहवर्ती भुगतान किया जा सकता है।

निष्कर्ष

डॉलर से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था ने व्यापार समझौतों को अमेरिका की कार्रवाई के लिये अतिसंवेदनशील बना दिया है। कुछ देशों के साथ व्यापार संबंधों को निलंबित करने के बढ़ते दबाव के बीच भी भारत ने अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने के लिये एक मज़बूत रुख अपना रखा है। व्यापार समझौतों को पेश चुनौतियों से बचने के लिये एक व्यापक तंत्र के माध्यम से भारत को अपने रुख को और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘काउंटरट्रेडिंग ऐसे देशों के साथ लेनदेन की सुविधा के लिये एक वैकल्पिक ढाँचा हो सकता है जो राजकोषीय संकट के शिकार हैं या अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा झेल रहे हैं।’’ चर्चा कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2