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  • 27 Mar, 2020
  • 16 min read
भारतीय समाज

शहरीकरण से उपज़ते संकट

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में शहरीकरण और उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में दुनिया की आधी आबादी शहरों में रह रही है। वर्ष 2050 तक भारत की आधी आबादी महानगरों व शहरों में निवास करने लगेगी। एक दूसरी संस्था ऑक्सफोर्ड इकॉनोमिक के अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2019 से लेकर वर्ष 2035 के बीच सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले सभी शीर्ष दस शहर भारत के ही होंगे। विश्व बैंक की वर्ष 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का शहरीकरण ‘Hidden And Messy’ अर्थात अघोषित एवं अस्त-व्यस्त है। भारत का शहरी विस्तार देश की कुल आबादी का 55.3% है परंतु आधिकारिक जनगणना के आँकड़े इसका विस्तार केवल 31.2% ही बताते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 53 ऐसे शहर हैं जिनकी आबादी 10 लाख से अधिक है। इसके अलावा देश की राजधानी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बंगलूरू और हैदराबाद जैसे महानगर हैं जिनकी आबादी लगातार बढ़ रही है। लोग बेहतर भविष्य की तलाश में यहाँ पहुँचते और बसते रहते हैं।   

शहरीकरण से संबंधित समस्याओं में चाहे बंगलूरू की प्रदूषित झीलें हों या गुरुग्राम का ट्रैफिक जाम और मुंबई की बारिश हो या फिर दिल्ली का वायु प्रदूषण। शहरीकरण का नकारात्मक प्रभाव अलग-अलग तरीके से हर जगह देखने को मिल रहा है।

इस आलेख में शहरीकरण के कारण, उससे संबंधित समस्याएँ तथा इन समस्याओं का समाधान तलाशने का प्रयास किया जाएगा।

क्या है शहरीकरण?

  • शहरी क्षेत्रों के भौतिक विस्तार मसलन क्षेत्रफल, जनसंख्या जैसे कारकों का विस्तार शहरीकरण कहलाता है। शहरीकरण भारत समेत पूरी दुनिया में होने वाला एक वैश्विक परिवर्तन है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक़ ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का शहरों में जाकर रहना और वहाँ काम करना भी 'शहरीकरण' है।
  • ‘नवीन भारत (New India)’ पहल को आगे बढ़ाने की दिशा में शहरी बुनियादी ढाँचों में सुधार के लिये शहरीकरण के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है।

शहरी क्षेत्र के मानक 

  • भारतीय समाज में किसी क्षेत्र को शहरी क्षेत्र माने जाने के लिये आवश्यक है कि किसी मानव बस्ती की आबादी में 5000 या इससे अधिक व्यक्ति निवास करते हों।
  • इस मानव आबादी में कम से कम 75% लोग गैर-कृषि व्यवसाय में संलग्न हों।
  • जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. से कम नहीं होना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विशेषताएँ मसलन उद्योग, बड़ी आवासी बस्तियाँ, बिजली और सार्वजनिक परिवहन जैसी व्यवस्था हो तो इसे शहर की परिभाषा के अंतर्गत माना जाता है।

भारत में शहरीकरण से संबंधित आँकड़े 

  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 तक भारत की आबादी का 27.81% हिस्सा शहरों में रहता था। वर्ष 2011 तक यह 31.16% और वर्ष 2018 में यह आँकड़ा बढ़कर 33.6% हो गया।
  • वर्ष 2001 की जनगणना में शहर-कस्बों की कुल संख्या 5161 थी, जो वर्ष 2011 में बढ़कर 7936 हो गई।
  • भारत की शहरी आबादी का लगभग 17.4% झुग्गी-झोपड़ी में रहता है।
  • संयुक्त राष्ट्र की एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में विश्व की आधी आबादी शहरों में रहने लगी है और वर्ष 2050 तक भारत की आधी आबादी महानगरों और शहरों में रहने लगेगी।
  • भारत में शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है और वैश्विक स्तर पर भी तब तक कुल आबादी का 70% हिस्सा शहरों में निवास करने लगेगा। 

बढ़ते शहरीकरण का कारण 

  • शहरीकरण के बढ़ने का एक प्रमुख कारण बेरोज़गारी है। शहरों में आने वाले लोगों में अधिक संख्या नौकरी की तलाश करने वालों की है, न कि बेहतर नौकरी पाने वालों की तथा बाहर से आने वालों में बेरोज़गारी की दर अपेक्षाकृत कम है।   
  • गाँव से शहरों की ओर पलायन का मुख्य कारण वेतन-दर तो है ही इसके अलावा दो अन्य प्रमुख कारण है- जोत की कम भूमि और परिवार का बड़ा आकार, शहरी प्रवासन के लिये जाति-प्रथा भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों में तीव्र गति से सरकारी सेवाओं में विस्तार हुआ, जो गाँव से शहरों की ओर प्रवासन में एक प्रमुख उत्प्रेरक बना।
  • औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरुप शहरी क्षेत्रों में भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि हुई।
  • शहरी क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी सुविधाएँ जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन की सुगम व्यवस्था  आदि।
  • कृषि में होने वाले नुकसान की वज़ह से लोग कृषि छोड़कर रोज़गार की तलाश में शहर आते हैं। कृषि मंत्रालय के मुताबिक़ खेती पर निर्भर लोगों में से 40 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनको अगर विकल्प मिले तो वे तुरंत खेती छोड़ देंगे। क्योंकि खेती करने में धन की लागत बढ़ती जा रही है।
  • वर्ष 1990 के बाद निज़ी क्षेत्र का विकास हुआ। जिससे बड़े कारखाने व फ़ैक्टरियों का विकास शहरों तथा महानगरों में ही हुआ।
  • ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में भारत के आर्थिक विकास के लिये शहरीकरण को लक्ष्य बनाया गया था।        

शहरीकरण से संबंधित समस्याएँ 

  • अतिशहरीकरण- भारत के अधिकांश शहर अतिशहरीकरण के शिकार हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि जब शहरी आबादी इतना बढ़ जाए की शहर अपने निवासियों को अच्छा जीवनशैली देने में असफल हो जाए तो वह स्थिति अतिशहरीकरण कहलाती हैं।  
  • आवास और गंदी बस्तियों की समस्या- शहरी जनसंख्या में हो रही वृद्धि ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है जिसमें आवास की समस्या प्रमुख है। यह समस्या आवास की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में देखने को मिलती है।  
  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव- ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों में आने वाले लोग अधिकतर गरीब होते हैं, उनके पास किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा का अभाव होता है। 
  • पारिवारिक विघटन- शहरीकरण के परिणामस्वरूप बड़े परिवार छोटे परिवारों में विभक्त हो गए हैं। इसके अतिरिक्त परिवारों में विवाह-विच्छेद, विधवाओं का शोषण, वृद्धों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं में वृद्धि हुई है। 
  • निर्धनता- ग्रामीण भारत गरीबी को छिपाने और उससे निपटने में ज़्यादा सक्षम है। जबकि शहरी भारत में ऐसा संभव नहीं हैं। शहरी गरीबी बढ़ती जा रही है, क्योंकि लोग रोज़गार की तलाश में अपना गाँव छोड़ रहे हैं।
  • पर्यावरण समस्या- शहरी केंद्रों में जनसंख्या के लगातार बढ़ते रहने एवं औद्योगीकरण के फलस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण तथा अवनयन की कई समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। महानगरों और शहरों में प्रदुषण का मुख्य कारण वाहनों एवं औद्योगिक संस्थानों द्वारा निकला विषैला रसायन है।
  • नृजातीय विविधता और सामुदायिक एकीकरण की समस्या- शहर की सामाजिक संरचना ऐसी होती है कि लोगों के एकीकृत होने की समस्या सदैव विद्यमान रहती है। 
  • आर्थिक असमानता- भारतीय शहरों में आर्थिक असमानता विकसित देशों की तुलना में अधिक है। महानगरों पर खर्च की गई आय ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक होती है। इस आर्थिक अंतर के परिणामस्वरूप ग्रामीण शहरों की ओर आकर्षित होते हैं।   
  • जनांकिकीय असंतुलन की समस्या- भारत में पश्चिमी देशों की तुलना में शहर प्रवास की प्रवृत्ति पुरुषों में ज़्यादा है। जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादक पुरुष जनसंख्या में कमी आ रही है। 

शहरीकरण का प्रभाव 

  • शहरीकरण की प्रक्रिया के चलते आज संयुक्त परिवार एकाकी परिवार में बदल रहे हैं। परिवार का आकार सिकुड़ रहा है तथा नातेदारी संबंध कमज़ोर हुए हैं। 
  • शहरीकरण ने जाति व्यवस्था पर भी प्रभाव डाला है। वर्तमान में जातीयता के प्रति कटुता में कमी आई है। 
  • शहरीकरण ने धार्मिक क्षेत्र पर भी प्रहार किया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि शहरों में लोगों की धर्म से आस्था होती है लेकिन वे धर्म के नाम पर आडंबर पर विश्वास नहीं करते हैं। 
  • शहरीकरण की प्रक्रिया ने महिलाओं की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों में व्यापक बदलाव किया है। महिलाओं की परिस्थिति ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक ऊँची है।    

शहरीकरण की समस्या से निपटने के लिये सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास 

  • सरकार द्वारा शहरों के ठीक प्रकार से नियोजन के लिये स्मार्ट सिटी मिशन की अवधारणा को अपनाया गया है।   
  • केंद्र सरकार ने मेट्रो, मोनोरेल और बस रैपिड टांजिट जैसे बड़े सार्वजनिक परिवहन गलियारों के पास बसनेे को बढ़ावा देने के लिये एक नीति तैयार की है, जिसका उद्देश्य शहरीकरण की चुनौतियों का निदान करना है।
  • देश के आधे से अधिक लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है, इसलिये यह कल्पना करना बेमानी होगा कि गाँव के विकास के बिना देश का विकास किया जा सकता है। ग्रामीण विकास के ज़रिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिये सरकार ने इस बात को स्वीकार किया है कि आवास और बुनियादी सुविधाएँ आर्थिक विकास के मुख्य वाहक हैं।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के अंतर्गत अभिनव एवं आधुनिक निर्माण प्रौद्योगिकी के उपयोग की सुविधा प्रदान करने के लिये प्रौद्योगिकी सब-मिशन भी शुरू किया गया है।
  • जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के अंतर्गत शहरों का कायाकल्प करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • कायाकल्प और शहरी रूपान्तरण के लिये अटल मिशन यानी अमृत योजना के अंतर्गत शहरों की अवसंरचना को मज़बूत किया जा रहा है।

शहरीकरण का महत्व

  • विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़, दुनिया की 54% से अधिक आबादी अब शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। ये आबादी वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 80% का योगदान करती है और दो-तिहाई वैश्विक ऊर्जा का उपभोग करती है, साथ ही 70% ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये भी जिम्मेदार है।
  • शहरीकरण के कारण आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
  • शहरीकरण और शिक्षा के विकास के कारण जाति-प्रथा जैसी व्यवस्थाएँ अब ध्वस्त हो रही हैं।
  • प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी के चलते लोगों रहन-सहन का स्तर बेहतर होता है
  • उत्पादकता को बढ़ाता है और विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं में रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करता है।

आगे की राह 

  • शहरी क्षेत्रों का सतत, संतुलित एवं समेकित विकास सरकार की मुख्य प्राथमिकता एवं शहरी विकास का एक केंद्रीय विषय है। जिस तरीके से देश में ‘शहरीकरण’ की प्रक्रिया का प्रबंधन होगा, उसी से यह निर्धारित होगा कि किस सीमा तक शहरी अवस्थांतर का लाभ उठाया जा सकता हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने के साथ-साथ पलायन को कम करने के लिये ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था का विविधीकरण (Diversification) करने की ज़रूरत है। इस मामले में, मनरेगा ने गावों से शहरों की ओर पलायन कम करने में अहम भूमिका निभाई है।
  • PURA और श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन जैसे कार्यक्रमों के ज़रिए ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का विकास पर ज़ोर देना होगा।
  • पर्यावरणीय रूप से धारणीय शहरीकरण का बेहतर प्रबंधन, ग्रीन पैचेज का विकास, आर्द्रभूमि, उचित अपशिष्ट प्रबंधन करने का प्रयास करना चाहिये।

प्रश्न- शहरीकरण से आप क्या समझते हैं? शहरीकरण में वृद्धि के कारणों पर चर्चा करते हुए समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कीजिये।


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