नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 26 Jul, 2022
  • 11 min read
शासन व्यवस्था

भारत में शासन का डिजिटलीकरण

यह एडिटोरियल 25/07/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Adding digital layers of indignity” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में शासन के डिजिटलीकरण और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

लोकतांत्रिक शासन तंत्र सूचना संचार प्रौद्योगिकी (Information Communication Technologies (ICTs) में निहित संभावनाओं और सुशासन की प्राप्ति हेतु इसके प्रवर्तन के प्रति अधिक ग्रहणशील होते जा रहे हैं। शासन के लिये ICTs के इस अनुप्रयोग को ‘ई-गवर्नेंस’ (E-governance) छत्र शब्दावली के अंतर्गत कवर किया जाता है।

लोकतांत्रिक, जनसांख्यिकीय और भौगोलिक रूप से विश्व के सबसे बड़े देशों में से एक के रूप में भारत अपने नागरिकों को सशक्त बनाने के लिये और समग्र आर्थिक विकास के लिये (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) ई-गवर्नेंस के अनुप्रयोग में एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है।

भारत में ई-गवर्नेंस के लाभ

  • डेटा-संचालित शासन: प्रौद्योगिकी संचार को सुविधाजनक बनाती है। इंटरनेट और स्मार्टफोन ने उच्च मात्रा में डेटा के त्वरित प्रसारण को सक्षम किया है जो प्रभावी शासन (Effective governance) के लिये चारे के रूप में कार्य करता है।
  • लागत बचत: सरकारी व्यय का एक बड़ा भाग आधिकारिक उद्देश्यों के लिये स्टेशनरी खरीद की लागत की ओर जाता है।
    • पत्र और लिखित रिकॉर्ड में बहुत अधिक स्टेशनरी की खपत होती है। उन्हें स्मार्टफोन और इंटरनेट से प्रतिस्थापित करने से हर वर्ष व्यय में करोड़ों रुपये की बचत हो सकती है।
  • पारदर्शिता: ई-गवर्नेंस का उपयोग व्यवसाय के सभी कार्यकरण को पारदर्शी बनाने में मदद करता है। सभी आधिकारिक जानकारी इंटरनेट पर अपलोड की जा सकती है।
    • नागरिक जो सूचनाएँ भी चाहें, जब भी चाहें, अपनी सुविधानुसार उस तक पहुँच प्राप्त करते हैं।
  • जवाबदेही: पारदर्शिता प्रत्यक्षतः जवाबदेही से जुड़ती है। एक बार जब शासन के कार्य और सूचना नागरिकों को उपलब्ध हो जाते हैं तो सरकार अपने कार्यों के प्रति अधिक जवाबदेह हो जाती है।
  • भूमि अभिलेख निगरानी: विविध भूमि कार्यकाल प्रणाली वाले भारत जैसे विशाल विकासशील देश में प्रभावी भूमि निगरानी (land monitoring) की आवश्यकता है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि संपत्तियों से संबंधित लेनदेन (भौतिक लेनदेन सहित) धोखापूर्ण नहीं है, ऑनलाइन रिकॉर्ड रखरखाव भारत में ई-गवर्नेंस की एक प्रमुख विशेषता है।

भारत में ई-गवर्नेंस से संबद्ध चुनौतियाँ

  • ‘इंटरऑपरेबिलिटी’ की चुनौतियाँ: यह ई-गवर्नेंस की प्रमुख चुनौतियों में से एक है। मंत्रालयों और विभागों के बीच यह अंतःसंक्रियता या इंटरऑपरेबिलिटी (Interoperability) दुरूह है और यह डेटा को संसाधित करने तथा साझा करने के मामले में एक बाधा बन जाता है।
    • राज्य या केंद्र सरकारों द्वारा पेश की जा रही अधिकांश ई-गवर्नेंस सेवाएँ एकीकृत नहीं हैं।
  • भाषाई बाधाएँ: देश की विविधता के कारण यह चुनौती सामने आती है। भारत में लोगों द्वारा बोली जाने वाली अधिकांश भाषाएँ उनकी मूल भाषाएँ हैं।
    • अधिकांश ग्रामीण आबादी सरकारी नेतृत्व वाली परियोजना का उपयोग नहीं कर सकती क्योंकि वे प्राथमिक भाषा के रूप में अंग्रेजी या हिंदी का उपयोग करते हैं। यह परिदृश्य स्थानीय भाषा में शासन लागू करने की आवश्यकता को प्रकट करता है।
  • डिजिटल निरक्षरता: ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर लगभग 67% है, जिसमें ग्रामीण पुरुष साक्षरता दर 77% और ग्रामीण महिला साक्षरता दर 60% है।
    • भारत में सरकार द्वारा शुरू की गई नरेगा (NREGA) जैसी कई योजनाओं में ग्रामीण लोगों को अंतिम उपयोगकर्त्ता के रूप में शामिल किया गया है।
      • प्रौद्योगिकीय जागरूकता और संबंधित ज्ञान की कमी के कारण उनमें से अधिकांश सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं का उपयोग करने में असमर्थ हैं।
  • डिजिटल अवसंरचना की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट के माध्यम से कनेक्टिविटी का अभाव और बिजली की निरंतर आपूर्ति बनाए रखना प्रभावी ई-गवर्नेंस के लिये एक बड़ी चुनौती है।
    • प्रमाणीकरण: सेवाओं के सही उपयोगकर्त्ता को जानना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, अन्यथा निजी प्रतिस्पर्द्धियों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
      • ‘डिजिटल हस्ताक्षर’ प्रामाणिकता प्रदान करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, लेकिन यह महंगा है और इसे लगातार रखरखाव की आवश्यकता होती है।
  • निजता संबंधी मुद्दे: ऑनलाइन लेनदेन और निजता संबंधी मुद्दे तेज़ी से प्रमुख होते जा रहे हैं। बीमा, बैंकिंग, उपयोगिता बिल भुगतान—ये सभी सेवाएँ ई-गवर्नमेंट द्वारा प्रदान की जाती हैं।
    • सरकार द्वारा प्रदत्त सुरक्षा के स्तर से नागरिक अभी भी असंतुष्ट हैं।
  • प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र का अभाव: एक समयबद्ध और प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र के अभाव से गंभीर चुनौतियाँ संबद्ध हैं ।
    • विशेष रूप से बायोमीट्रिक पहचान त्रुटियाँ, नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर (जो कार्य स्थलों पर मनरेगा श्रमिकों की उपस्थिति दर्ज करती है) जैसे ऑनलाइन ई-गवर्नेंस अनुप्रयोगों में विद्यमान त्रुटियाँ।
      • अधिकारी प्रायः अधिकार-धारक (Rights-holder) को तकनीकी व्यवधानों के लिये उत्तरदायी महसूस कराते हैं।

भारत में ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने के लिये हाल की सरकारी पहलें

आगे की राह

  • मध्यस्थों की तैनाती: योजनाकारों और लाभार्थियों के बीच रणनीतिक सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिये मध्यस्थों की तैनाती की जानी चाहिये। ई-गवर्नेंस से न केवल सार्वजनिक सेवा वितरण तंत्र की जवाबदेही में सुधार लाकर बल्कि शासन तंत्र में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ाकर नागरिकों की संतुष्टि को अधिकतम करने की उम्मीद की जाती है।
    • उदाहरण के लिये, नीति कार्यान्वयन में स्थानीय लोगों को शामिल करना जो सरकार और लोगों के बीच संचार की खाई को पाट सकेगा।
      • कार्यान्वयन-कर्त्ताओं को स्थानीय पहलों के लिये प्रोत्साहित करना।
  • मांग प्रेरित सेवाएँ: अलग-अलग शहरी-ग्रामीण स्तर के सामाजिक-आर्थिक डेटाबेस के माध्यम से योजना निर्माण के ऊर्ध्वगामी दृष्टिकोण के साथ सरकारी मंत्रालयों में एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जहाँ जनसंख्या की आवश्यकताओं की अविलंब पूर्ति के लिये डेटा संचालित नीतियों की पहचान, मूल्यांकन, निर्माण, कार्यान्वयन और निवारण शामिल है।
  • स्थानीय ई-गवर्नेंस पर ध्यान केंद्रित करना: ई-गवर्नेंस को सरकार के सभी स्तरों को रूपांतरित करने की आवश्यकता है, लेकिन स्थानीय सरकारों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये क्योंकि स्थानीय सरकारें नागरिकों के सबसे निकट होती हैं और कई लोगों के लिये सरकार के साथ मुख्य ‘इंटरफेस’ का गठन करती हैं।
  • बेहतर डिजिटल अवसंरचना और कनेक्टिविटी: डिजिटल अवसंरचना में सुधार (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) के साथ ही बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
    • क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से ई-गवर्नेंस भारत जैसे देशों के लिये उपयुक्त होगा जहाँ विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमि के लोग इसके प्रतिभागी हैं।
  • ‘ई-रेडीनेस’ को समझना: भारत के विभिन्न राज्य ई-रेडीनेस (e-Readiness) के भिन्न स्तरों पर हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में ई-गवर्नेंस सुधारों को लागू करते समय इस पहलू को ध्यान में रखना आवश्यक है।
    • वर्तमान में देश में कई सफल ई-गवर्नेंस परियोजनाओं का कार्यान्वयन हो रहा है, लेकिन इनमें से कुछ ही हैं जो राष्ट्रव्यापी आधार पर कार्यान्वित हैं। इन सफल मॉडलों को पूरे देश में समान रूप से दुहराने और उन्नत करने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में ई-गवर्नेंस के अनुप्रयोग के समक्ष विद्यमान चुनौतियों पर चर्चा करें और समाधान बताएँ।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow