विश्व में डेटा प्रवाह पर बहस
टीम दृष्टि द्वारा The Hindu, The Indian Express तथा अन्य स्रोतों से उपलब्ध जानकारियों के आधार पर तैयार किये गए इस Editorial में डेटा प्रवाह से संबंधित विभिन्न पक्षों की चर्चा की गई है।
संदर्भ
मौजूदा बजट सत्र में सरकार डेटा संरक्षण विधेयक को पुरःस्थापित करने जा रही है। यह विधेयक भारत में डेटा प्रवाह को विनियमित करने के उद्देश्य से लाया जा रहा है, साथ ही विश्व के विभिन्न मंचों, जैसे- G20 तथा विश्व व्यापार संगठन में डेटा के प्रवाह को लेकर छिड़ी बहस के संबंध में भी भारत का रुख इस विधेयक के माध्यम से स्पष्ट हो सकेगा। डेटा प्रवाह को लेकर किसी प्रकार के निर्णय पर पहुँचने से पहले आवश्यक है कि इसके विभिन्न पक्षों के बारे में समझ को विकसित कर लिया जाना जाए।
इस बहस के विभिन्न पक्षों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-
डेटा इतना मूल्यवान क्यों है?
सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रायः मेंसेज़, सोशल मीडिया पोस्ट, ऑनलाइन ट्रांसफर और खोज हिस्ट्री आदि के लिये डेटा शब्द का उपयोग किया जाता हैं। डेटा को ऐसी सूचनाओं के संकलन के रूप में जाना जाता है जिन्हें कंप्यूटर में एकत्र करके रखा जाता है और आवश्यकता के समय आसानी से उनका अध्ययन किया जा सकता है। बिग डेटा भी ऐसे डेटा का संग्रह होता है और बड़ी मात्रा में उपलब्ध होता है तथा जिसको प्रसंस्कृत एवं विश्लेषित करके एक पैटर्न प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
वर्तमान समय में बड़ी मात्रा में ऐसी सूचनाएँ जो लोगों की आदतों और ज़रूरतों को इंगित करती हैं, आर्थिक दृष्टि से मूल्यवान हो सकती हैं। ऐसी सूचनाओं के माध्यम से कंपनियाँ लोगों की आदतों को ध्यान में रखकर विज्ञापन जारी कर उन्हें आकर्षित करके लाभ प्राप्त कर सकती हैं। सरकार एवं राजनीतिक दल भी नीति निर्माण एवं चुनावों में लाभ प्राप्त करने के लिये ऐसी सूचनाओं का उपयोग करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में डेटा का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
डेटा कानून एवं संबंधित विभिन्न मुद्दे
डेटा का प्रवाह और परिवहन ऐसी जटिल प्रक्रिया है जिस पर अंकुश लगाना कठिन होता है। इसका एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक देश से दूसरे देश तक प्रवाह अत्यधिक तीव्रता से होता है। ऐसी स्थिति में डेटा का विनियमन करना आवश्यक हो जाता है ताकि विभिन्न देश राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए लोगों की निज़ता की स्वतंत्रता की रक्षा कर सकें। ऐसे विनियम और कानूनों को लेकर विभिन्न देशों के मध्य कई मुद्दों पर गंभीर मतभेद बने हुए हैं। ये मुद्दें हैं- कहाँ डेटा को संकलित किया जाएगा?, किसको भेजा जाएगा?, कौन इसका उपयोग करेगा? साथ ही कर एवं इसके स्वामित्त्व को लेकर भी विवाद बना हुआ है।
उपर्युक्त प्रश्नों के आलोक में विभिन्न देशों की सरकारें नियम, विनियम और कानूनों के माध्यम से इन प्रश्नों को हल करनें का प्रयास कर रहीं हैं। लेकिन वर्तमान वैश्वीकरण के युग में किसी देश का कानून अन्य देशों के कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (WTO) से प्रभावित होता हैं। डेटा संरक्षण कानून भी इस संदर्भ में प्रभावों और प्रतिप्रभावों को उत्पन्न करेगा, इन प्रतिप्रभावों को कम करनें के लिये विभिन्न देश वैश्विक मंचों पर बातचीत के माध्यम से सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। अन्य मुद्दों के अतिरिक्त इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक वृद्धि, और निजता का मामला भी शामिल हैं।
डेटा पर भारतीय नीति
भारत में अभी तक इसके संबंध में कोई कानून नहीं है, लेकिन निकट अतीत में लिये गए निर्णयों और वर्ष 2018 में पेश किये गए डेटा संरक्षण मसौदे से ऐसा आभास होता है कि भारत डेटा स्थानीयकरण के पक्ष में है। डेटा स्थानीयकरण का अर्थ है कि भारतीय नागरिकों से संबंधित जानकारी या सूचनाओं का संकलन भारत में ही प्रसंस्कृत एवं संचित किया जाएगा। कोई भी कंपनी भारत से बाहर डेटा को नहीं ले जा सकती है और न ही देश से बाहर इनका उपयोग कर सकती है। इस तरह के कानून के प्रभाव में आने के बाद भारत में फेसबुक, गूगल और अमेज़न जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ प्रभावित होंगी। ऐसी कंपनियों को भारत के लोगों से संबंधित सूचनाओं का संचय और प्रसंस्करण भारत में ही करना होगा तथा कुछ ऐसी सूचनाएँ जिन्हें सरकार ज़रूरी समझे, उपयोग करने से कंपनियों को रोका जा सकेगा। चीन पहले से ही ऐसे कानून का निर्माण कर चुका है तथा अपनी नीति द्वारा विदेशी कंपनियों को इस क्षेत्र (डेटा प्रसंस्करण और डेटा केंद्र) में रोककर घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित कर रहा है, इसलिये भारतीय कंपनियाँ, जैसे-रिलायंस और पेटीएम भी डेटा के स्थानीयकरण के पक्ष में हैं।
भारत ने अमेरिका के साथ पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (Mutual Legal Assistance Treaties-MLAT) की है। यह संधि अमेरिका को भारतीय लोगों से संबंधित डेटा तक पहुँच प्रदान करती है। इस डेटा पर अमेरिकी कंपनियों का नियंत्रण होता है। नए कानून के माध्यम से भारत ऐसी कंपनियों पर और अधिक नियंत्रण लगा सकेगा साथ ही इस नियंत्रण के माध्यम से भारत इन कंपनियों पर अधिक कर भी आरोपित कर सकेगा। डेटा स्थानीयकरण न सिर्फ भारत के आर्थिक हितों के लिये आवश्यक है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी जरूरी है, जिससे भारत विदेशी निगरानी और आक्रमणों से भी अपना बचाव कर सकेगा।
डेटा स्थानीयकरण के विपक्ष में तर्क
जहाँ एक ओर भारत और चीन डेटा स्थानीयकरण के पक्ष में हैं, तो वहीं दूसरी ओर अमेरिकी सरकार तथा कंपनियाँ निर्बाध डेटा प्रवाह को ज़रूरी समझती हैं। वर्तमान में भारत की डेटा अर्थव्यवस्था का क्षेत्र बहुत बड़ा नहीं है लेकिन भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, जिसमें भविष्य को लेकर अधिक संभावनाएँ व्यक्त की जा रही हैं। अतः निर्बाध डेटा प्रवाह के समर्थक देश भारत की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सभी देश डेटा के संरक्षण पर बल देने लगे तो यह भारत की उन कंपनियों के लिये बेहद हानिकारक हो सकता है, जो वैश्विक विस्तार की आकांक्षी हैं। इसके अतिरिक्त डेटा संरक्षण राज्य प्रायोजित निगरानी को भी बढ़ाएगा। जैसे- भारत में कुछ समय पूर्व व्हाट्सएप को निर्देश दिया गया था कि कंपनी अपने डिज़ाइन में बदलाव करे ताकि मैसेज़ेस को फिल्टर किया जा सके।
वैश्विक मंच और डेटा प्रवाह
वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे व्यापारिक तनावों ने G20 तथा WTO में डेटा प्रवाह को लेकर नई बहस को जन्म दिया है। WTO से जुड़े राष्ट्रों के बीच ई-वाणिज्य (E- Commerce) को लेकर वार्ता जारी हैं। ई-वाणिज्य एक ऐसी प्रणाली है जिसमें ऑनलाइन स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं को खरीदा और बेचा जाता है, मौजूदा समय में विश्व की GDP में डिजिटल व्यापार का योगदान भौतिक वस्तुओं के व्यापार से अधिक हो गया है। भारत भी इस क्षेत्र में तेज़ी से वृद्धि कर रहा है। भारत में वर्ष 2021 तक e-commerce व्यापार बढ़कर 1.2 ट्रिलियन तक पहुँचने की संभावना है। डेटा प्रवाह से जुड़े नए कानून ऐसे उद्योगों के संचालन में कई समस्याओं को जन्म दे सकते हैं जिससे व्यापार करने में कठनाई होगी। दिसंबर 2017 में WTO के 71 सदस्यों जिसमें अमेरिका भी शामिल है, ने पहली बार प्रभावी रूप से E- commerce हेतु वार्ता प्रक्रिया में डेटा प्रवाह को भी शामिल करने का प्रस्ताव दिया था। हालाँकि इन सदस्य देशों में भारत शमिल नहीं है। इस प्रस्ताव में USA तथा यूरोपीय संघ नें ऑनलाइन लेनदेन (Transaction) पर सीमा शुल्कों को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव किया तो वहीं चीन और पाकिस्तान ऐसे शुल्कों को लगाए जाने के पक्ष में थे।
उपर्युक्त प्रयासों से आगे बढ़ते हुए हाल ही में जापान के सुकुबा (Tsukuba) शहर में संपन्न जी 20 की मंत्रिस्तरीय बैठक (जो व्यापार और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर हुई थी) में Data Free Flow with Trust (DFFT) का सिद्धांत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से लाया गया तथा इस पर आगामी G20 (ओसाका-जापान) सम्मेलन में वार्ता होने की संभावना है।
इस मुद्दे पर भारतीय प्रतिक्रिया
इस संबंध में भारत ने नवंबर 2017 में ही भारतीय पक्ष स्पष्ट कर दिया था तथा WTO में हो रही E-commerce से संबंधित बातचीत का विरोध करते हए अपनी चिंताओ को भी सामने रखा था। भारत का मानना है कि विश्व के विभिन्न देशों और उन देशों के भीतर भी डिजिटल विभाजन (डिवाइड) एक बड़ी समस्या है और विकासशील देशों के संबंध में यह समस्या और भी गंभीर है। ऐसी स्थिति में विकासशील देशों के लिये डिजिटल व्यापार से लाभ उठाना एक चुनौती है। लेकिन विभिन्न प्रयासों एवं क्षमता निर्माण द्वारा डिजिटल विभाजन की समस्या को कम किया जा सकता है। सभी देशों की समान (Level playing field) स्थिति तक पहुँचने के पश्चात् ही सभी देश न्यायसंगत रूप से डेटा के निर्बाध प्रवाह का लाभ उठा सकते हैं। जब तक विकासशील देश डिजिटल अर्थव्यवस्था के बारे में एक व्यापक समझ विकसित नहीं कर लेते तथा अपने देश में एक क़ानूनी ढाँचे का निर्माण नहीं कर लेते, तब तक E-commerce तथा डेटा प्रवाह से संबंधित किसी भी प्रकार की बातचीत में शामिल होना सही नहीं होगा।
निष्कर्ष
विभिन्न देश अपने हितों के अनुरूप डेटा प्रवाह की बहस में शामिल हैं। भारत भी विकासशील देशों से संबंधित चिंताओं को व्यक्त कर रहा है जो कि गंभीर हैं। जब तक विश्व में विभिन्न देश डिजिटल अर्थव्यवस्था से संबंधित अवसंरचना का निर्माण नहीं कर लेते, डेटा का निर्बाध प्रवाह न्यायसंगत नहीं हो सकता है।
प्रश्न: डेटा प्रवाह से आप क्या समझते हैं? डेटा प्रवाह से संबंधित ऐसी कौन सी आशंकाएँ है जिनको लेकर विकासशील देश चिंतित हैं?