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एडिटोरियल

  • 26 Mar, 2022
  • 11 min read
शासन व्यवस्था

मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता

यह एडिटोरियल 24/03/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Is the Push For Foundational Numeracy and Literacy Pro-Poor?” लेख पर आधारित है। इसमें केवल खंडों या अंतराल में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता को सीखने की अवधारणा से संबंधित मुद्दों पर बात की गई है।

संदर्भ

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 ‘तत्काल राष्ट्रीय मिशन’ के रूप में सभी बच्चों के लिये मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (Foundational Literacy and Numeracy- FLN) की प्राप्ति को प्राथमिकता देती है। शिक्षा मंत्रालय के ‘बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता हेतु राष्ट्रीय पहल- निपुण’ (National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy- NIPUN) भारत मिशन 2011 में इसी प्रकार के दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं। यद्यपि यह पहल वस्तुनिष्ठ रूप से एक सकारात्मक सुधार है, लेकिन इसकी रूपरेखा और संचालन में कुछ ऐसी कमियाँ विद्यमान हैं जिस पर विचार किये जाने की आवश्यकता है। पढ़ने की प्रवीणता या अंकगणितीय कौशल अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि सीखने या लर्निंग को केवल खंडों या अंतराल में पढ़ना तथा अंकगणितीय कौशल की महारत के रूप में चित्रों के द्वारा देनकर सीखना अन्य समग्र घटकों की अनदेखी और कल्पना शक्ति की कमी को प्रकट करेगा।

मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) 

  • FLN को मोटे तौर पर एक बच्चे की बुनियादी पाठ पढ़ने और आधारभूत गणित के सवालों (जैसे- जोड़ और घटाव) को हल करने की उसकी क्षमता के रूप में संकल्पित किया गया है।
    • मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता NEP- 2020 के प्रमुख विषयों में से एक है।
  • वर्ष 2026-27 तक कक्षा 3 के बच्चों के लिये सार्वभौमिक साक्षरता और संख्यात्मकता सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण के साथ वर्ष 2021 में निपुण-भारत कार्यक्रम शुरू किया गया।
    • इस कार्यक्रम में केंद्र प्रायोजित योजना ‘समग्र शिक्षा’ के तत्वावधान में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में राष्ट्रीय-राज्य-ज़िला-प्रखंड-स्कूल स्तर पर स्थापित एक पाँच-स्तरीय कार्यान्वयन तंत्र की परिकल्पना की गई है। 
  • FLN के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि पढ़ने-लिखने और संख्याओं के साथ बुनियादी क्रियाएँ कर सकने की क्षमता (अर्थात FLN) भविष्य की सभी स्कूली शिक्षा और आजीवन सीखने हेतु एक आवश्यक आधार तथा अनिवार्य शर्त है।
    • ‘ग्रेड 3 स्तर पर बच्चों के लिये फाउंडेशनल लर्निंग स्टडी’ विभिन्न भारतीय भाषाओं में समझ विकसित करने के साथ पढ़ सकने की उनकी क्षमता के लिये मानक स्थापित स्थापित करने में सक्षम होगी।
    • यह एक निश्चित गति, सटीकता और समझ के साथ आयु-उपयुक्त पाठ (ज्ञात और अज्ञात पाठ दोनों) पढ़ सकने की क्षमता के साथ-साथ मूलभूत संख्यात्मक कौशल का आकलन करेगा।

FLN से संबद्ध समस्याएँ

  • रॉट-लर्निंग/रटने की सक्षमता को बढ़ावा: लंबे समय से रॉट-लर्निंग (Rote-Learning) को भारतीय शिक्षा प्रणाली में मूल समस्या के रूप में देखा गया है जहाँ तथ्यों की अप्रासंगिक पुनरावृत्ति, बिना प्रश्न के समीक्षा तथा सोच की सामान्य कमी लर्निंग के समग्र रूपों के प्रति बाधाकारी हैं। 
    • एक निगरानी प्रणाली जो FLN के आधार पर प्रदर्शन की जाँच करती है, राज्यों और स्कूलों को खराब परीक्षा परिणामों से बचने हेतु रॉट-लर्निंग को अधिकाधिक बढ़ावादे सकती है।
    • मानकीकृत आकलन (Standardised Assessments) में विफल होने का यही भय रॉट-लर्निंग को बढ़ावा देता है और ‘टीचिंग टू टेस्ट’ (Teaching To The Test) का मार्ग प्रशस्त करता है- जहाँ शिक्षण, संसाधन और समय सभी को वास्तविक लर्निंग से दूर केवल बेहतर मूल्यांकन की ओर पुनर्निर्देशित कर दिया जाता है।
  • ‘फाल्स फ्रेमिंग’: मूलभूत या ‘फाउंडेशनल’ शब्द यह प्रकट करता है कि बच्चे में किसी भी अन्य लर्निंग से पहले संख्यात्मकता और साक्षरता के कुछ पहलुओं का प्रवेश होना चाहिये। एक अच्छी शिक्षा प्रणाली संख्यात्मकता और साक्षरता सुनिश्चित करती है, लेकिन उन्हें ही अपना एकल या प्राथमिक उद्देश्य नहीं बनाती।
    • केवल इन्हीं बुनियादी बातों पर ध्यान केंद्रित करने से न केवल संदर्भहीन और रॉट-लर्निंग लर्निंग का जोखिम पैदा होता है, बल्कि इसका यह भी अर्थ निकलता है कि समृद्ध शिक्षा और आलोचनात्मक सोच को इसके बाद महत्त्व दिया जाता है।
    • बिना प्रश्न किये रटना और प्रासंगिकता को समझे बिना गणना करना किसी भी संभावित आलोचनात्मक सोच की नींव नहीं हो सकते, बल्कि इससे दूर ही ले जा सकते हैं।
  • विभेद का निर्माण: भले ही यह दावा किया जाता है कि FLN का लक्ष्य सभी बच्चों को दायरे में लेता है, लेकिन इसकी प्राथमिकता विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिये है; इस प्रकार यह भारतीय शिक्षा के भीतर दो अलग-अलग वर्गों का सृजन करता है—
    • पहला वर्ग, जहाँ संभ्रांत एवं उच्च शुल्क वाले निजी स्कूलों के बच्चों को समृद्ध एवं समग्र सामग्री पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है और दूसरा वर्ग जहाँ कम शुल्क या निःशुल्क निजी/सरकारी स्कूलों में वंचित पृष्ठभूमि के बच्चे जो इन मूलभूत कौशल से बहुत आगे नहीं बढ़ पाएँगे।
    • यह कुछ बच्चों के अत्यधिक कुशल और अभिजात व्यवसायों के लिये अधिक उपयुक्त है जबकि अन्य बच्चों के लिये सामान्य साक्षर होने तक सीमित है और इस प्रकार यह निम्न आय वाले व्यवसायों के एक सीमित समूह के सामने उल्लेखनीय दीर्घावधिक प्रभावों को उत्पन्न करेगा।

आगे की राह 

  • समानांतर दृष्टिकोण: वर्तमान शिक्षा प्रणाली के माध्यम से नीति निर्माताओं के साथ-साथ लोगों की ‘बेसिक्स फर्स्ट एंड क्रिटिकल थिंकिंग आफ्टरवार्ड्स’ (Basics first and Critical Thinking Afterwards) की इस भ्रामक अनुक्रमिक समझ को दूर करना चाहिये और एक नया दृष्टिकोण ढूँढना चाहिये जहाँ आधारभूत शिक्षा और आलोचनात्मक सोच समानांतर रूप से आगे बढ़ती हो।
    • बच्चों को परीक्षा पास करने के लिये वर्षों तक FLN में महारत हासिल करने हेतु विवश नहीं किया जाना चाहिये. इसके बजाय उन्हें आलोचनात्मक सोच, जिज्ञासा या सशक्तीकरण जैसे समकालीन शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये तैयार किये जाने की आवश्यकता है।
  • शिक्षक प्रशिक्षण: ज़िला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (DIETs) प्रायः उच्च रिक्तियों, अपर्याप्त धन और गंभीर बाधाओं के शिकार होते हैं, जिससे स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप उत्तरदायी कार्य नहीं कर पाते।
    • शिक्षा प्रणाली के इस मुख्य कार्य के लिये एक मज़बूत सार्वजनिक क्षेत्र, पर्याप्त मानव संसाधन और एक उपयुक्त आधारभूत संरचना की आवश्यकता होती है।
    • नीति निर्माताओं को शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के लिये बजटीय आवंटन बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिये और विवेकाधिकार की वृद्धि एवं अधिकार प्राप्त संकाय की सुनिश्चितता के लिये अपने मिशन व जनादेश में सुधार लाना चाहिये।
  • लर्निंग दृष्टिकोण का पुनरीक्षण: कई देशों की शिक्षा प्रणाली लर्निंग की गुणवत्ता को बढ़ावा देने के प्रयास में वृद्धिशील, कौशल-आधारित तरीकों से रीडिंग व गणित का अध्यापन कराने से दूर हुई है।
    • सांस्कृतिक रूप से उत्तरदायी शिक्षण (जो बच्चों हेतु वास्तविकता संबंधी लर्निंग को प्रासंगिक बनाने का प्रयास करता है) और आलोचनात्मक गणित शिक्षण (जो दुनिया को आलोचनात्मक रूप से पढ़ सकने के एक साधन के रूप में है)दुनिया भर के स्कूलों द्वारा व्यापक रूप से मांग किये जाने वाले कई दृष्टिकोणों में से एक हैं।
    • इन दृष्टिकोणों में समृद्ध, प्रासंगिक लर्निंग के एक अंग के रूप में मूलभूत लर्निंग एवं गणित कौशल में महारत हासिल किया जाना शामिल है, बजाय इसके कि इन्हें ही प्राथमिक महत्त्व दिया जाए।

अभ्यास प्रश्न: राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परिकल्पित मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता की अवधारणा से संबद्ध प्रमुख समस्याओं की चर्चा कीजिये।


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