लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 25 Nov, 2019
  • 14 min read
सामाजिक न्याय

उच्चतर शिक्षा और सब्सिडी

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारतीय उच्चतर शिक्षा में सब्सिडी और चुनौतियों पर चर्चा की गई है। साथ ही देश में उच्चतर शिक्षा की स्थिति का भी उल्लेख किया गया है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय (JNU) में आवासीय छात्रावास की प्रस्तावित फीस वृद्धि को लेकर चल रहे व्यापक छात्र आंदोलन ने देश में एक बार पुनः उच्चतर शिक्षा और उसकी सब्सिडी जैसे मुद्दों को आम चर्चा का विषय बना दिया है। इस विषय पर काफी विवाद उत्पन्न हो चुका है कि देश में उच्चतर शिक्षा पर सब्सिडी दी जानी चाहिये या नहीं। विदित हो कि वर्ष 2011-12 की जनगणना के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली कुल आबादी में से 25.7 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आँकड़ा 13.7 प्रतिशत के आस-पास है। हालाँकि विगत कुछ वर्षों में इस संख्या में कमी देखने को मिली है, परंतु फिर भी इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी भारतीय समाज में गरीबी और आर्थिक असमानता की जड़ें काफी मज़बूत और गहरी हैं। इस संदर्भ में कई विश्लेषकों का मानना है कि यदि हम देश में आर्थिक असमानता को दूर कर सभी नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं तो शिक्षा पर सब्सिडी को एक अच्छे विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। जबकि इसके विपरीत कुछ लोगों का मानना है कि शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं पर दी जाने वाली सब्सिडी अर्थव्यवस्था पर एक प्रकार का दबाव होती है।

क्यों ज़रूरी है उच्चतर शिक्षा में सब्सिडी?

  • देश के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि देश के विकास और उसकी आर्थिक प्रगति में शिक्षा का काफी योगदान होता है। शिक्षा हमें जीने का एक नया नज़रिया देती है और जीवन जीने के स्तर में भी सुधार करती है।
  • आर्थिक विकास और शिक्षा के मध्य संबंध पर बांग्लादेश के एक शोधकर्त्ता ने अपने अध्ययन में पाया कि शिक्षा में सार्वजनिक खर्च का दीर्घावधि में आर्थिक विकास पर सकारात्मक और महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अध्ययन के अनुसार, यदि किसी देश की सरकार शिक्षा पर 1 प्रतिशत अधिक खर्च करती है तो उस देश की प्रति व्यक्ति GDP में तकरीबन 0.34 प्रतिशत की वृद्धि देखी जा सकती है।
  • उच्चतर शिक्षा में सब्सिडी समाज के हाशिये पर मौजूद तमाम आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।
  • सब्सिडी युक्त शिक्षा देश के आर्थिक विकास को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उच्चतर शिक्षा में संलग्न विद्यार्थी विभिन्न शोधों और अनुसंधानों में हिस्सा लेते हैं और अपने-अपने स्तर पर अर्थव्यवस्था में योगदान देने का प्रयास करते हैं।
    • उल्लेखनीय है कि उच्चतर शिक्षा नवाचार और रचनात्मक सोच को बढ़ावा देती है।
  • कई जानकार सब्सिडी युक्त शिक्षा को अर्थव्यवस्था में भविष्य के निवेश के रूप में देखते हैं और उनका मानना है कि यदि हम शिक्षा पर सब्सिडी प्रदान नहीं कर रहे हैं तो हम स्पष्ट रूप से देश के भविष्य की उपेक्षा कर रहे हैं।
  • गौरतलब है कि समग्रता और न्यायसंगता किसी भी अच्छे सार्वजनिक संस्थान की प्रमुख विशेषताएँ होती हैं और उच्चतर शिक्षा में सार्वजनिक वित्तपोषण के बिना समग्रता और न्यायसंगता सुनिश्चित नहीं की जा सकती।
  • भारत के पास एक विशाल युवा जनसंख्या मौजूद है, परंतु कई अध्ययन बताते हैं कि अधिकांश भारतीय युवाओं में शैक्षणिक और कौशल दक्षता बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं है। अतः यह कहा जा सकता है कि सब्सिडी युक्त शिक्षा देश में जनसांख्यिकीय लाभ प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • पहले यह माना जाता था कि उच्चतर शिक्षा पर मात्र कुलीन वर्ग का ही अधिकार है, जिसके कारण अधिकांश सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े गरीब उच्चतर शिक्षा से वंचित रह जाते थे। परंतु अब उच्चतर शिक्षा में सब्सिडी और अन्य लाभों के रूप में सरकार द्वारा जो प्रयास किये गए हैं उसकी वजह से तमाम ऐसे लोग भी आज उच्च शिक्षण संस्थानों में पहुँच रहे हैं, जो अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिये भी अनवरत संघर्ष करते रहे हैं।
    • हालाँकि विगत कुछ वर्षों में इस प्रकार के प्रयासों में कमी देखने को मिली है।

चुनौतियाँ

  • शिक्षा पर सब्सिडी प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य समाज के हाशिये पर मौजूद लोगों को आर्थिक लाभ देकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ना है। हालाँकि कभी-कभी यह देखा जाता है कि वे लोग भी इस प्रकार की सब्सिडी का लाभ उठा लेते हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत नहीं होती, जिसके कारण ज़रूरत मंद लोगों तक लाभ नहीं पहुँच पाता।
  • कई विश्लेषकों का तर्क है कि मात्र सब्सिडी के माध्यम से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।
  • शिक्षा में सब्सिडी का असमान वितरण भी एक बड़ी समस्या है। आँकड़े बताते हैं कि देश में अधिकांश शिक्षा सब्सिडी कुछ ही बड़े संस्थानों को जाती है, जबकि लिबरल आर्ट (Liberal Arts) संबंधी संस्थानों को इसका काफी कम हिस्सा मिलता है।
    • मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा बीते वर्ष उच्चतर शिक्षा की सब्सिडी के संबंध में जो आँकड़े जारी किये गए थे उनसे पता चलता है कि वर्ष 2016 से 2018 के मध्य उच्चतर शिक्षा के लिये दिया गया केंद्र सरकार का 50 प्रतिशत से अधिक धन IITs, IIMs और NITs में पढ़ने वाले मात्र 3 प्रतिशत छात्रों को मिला।
    • जबकि 865 उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले 97 प्रतिशत छात्रों को आधे से भी कम धन मिला।
  • उच्चतर शिक्षा का निजीकरण भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि निजी संस्थान आम लोगों तक सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुँच प्रदान करने के लिये उत्तरदायी नहीं होते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य इसके माध्यम से लाभ कमाना होता है।

अन्य देशों की स्थिति

  • डेनमार्क अपनी कुल GDP का तकरीबन 0.6 प्रतिशत हिस्सा उच्चतर शिक्षा के छात्रों की सब्सिडी पर खर्च करता है। गौरतलब है कि वहाँ कुल 55 प्रतिशत युवा विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करते हैं।
  • फिनलैंड भी अपने छात्रों को उनकी शिक्षा और अन्य खर्चों के लिये तमाम छात्रवृत्तियाँ और अनुदान देता है। वहाँ तकरीबन 69 प्रतिशत युवा विश्वविद्यालयों में पंजीकृत हैं।
  • आयरलैंड वर्ष 1995 से ही अपने अधिकांश पूर्णकालिक स्नातक छात्रों की ट्यूशन फीस का भुगतान करता है।
  • आइसलैंड की सरकार अपने छात्रों पर सालाना औसतन 10,429 डॉलर खर्च करती है और वहाँ तकरीबन 77 प्रतिशत युवा उच्चतर शिक्षा के लिये पंजीकृत हैं।
  • ध्यातव्य है कि नार्वे उच्चतर शिक्षा पर सब्सिडी के लिये अपनी GDP का 1.3 प्रतिशत हिस्सा खर्च करता है जो कि विश्व में शिक्षा पर किया जाने वाला सबसे अधिक खर्च है। यहाँ भी तकरीबन 77 प्रतिशत छात्र उच्चतर शिक्षा में पंजीकृत हैं।

भारत में उच्चतर शिक्षा

  • उल्लेखनीय है कि उच्चतर शिक्षा की वर्तमान प्रणाली वर्ष 1823 के माउंटस्टुअर्ट एल्फिंस्टन (Mountstuart Elphinstone) की रिपोर्ट से शुरू होती है, जिसने अंग्रेज़ी और यूरोपीय विज्ञान को पढ़ाने के लिये स्कूलों की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया।
  • बाद में लॉर्ड मैकाले ने 1835 की अपनी रिपोर्ट में देश के मूल निवासियों को अंग्रेज़ी का अच्छा विद्वान बनाए जाने के प्रयासों की वकालत की।
  • 1854 के सर चार्ल्स वुड का डिस्पैच, जिसे 'भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा का मैग्ना कार्टा' के नाम से जाना जाता है, ने प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा तक की उचित ढंग से योजना बनाने की सिफारिश की।
    • इसने स्वदेशी शिक्षा को प्रोत्साहित करने और शिक्षा की सुसंगत नीति तैयार करने की योजना बनाई। इसके बाद 1857 में कलकत्ता, बॉम्बे (अब मुंबई) और मद्रास विश्वविद्यालय तथा बाद में 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय स्थापित किया गया।
  • वर्तमान समय की बात करें तो MHRD के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में तकरीबन 2 करोड़ से अधिक छात्र पंजीकृत हैं।
  • हालाँकि इस बड़े आँकड़े से देश की उच्चतर शिक्षा की स्थिति का आकलन करना शायद नाइंसाफी होगी, क्योंकि MHRD का ही अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण बताता है कि 18-23 वर्ष के मात्र 25.8 प्रतिशत छात्र ही उच्चतर शिक्षा के लिये पंजीकृत हो पाते हैं।
  • 2019 की सुप्रसिद्ध QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में केवल सात भारतीय विश्वविद्यालयों को शीर्ष 400 विश्वविद्यालयों में स्थान प्राप्त हुआ था।

आगे की राह

  • एक संस्थान द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, उचित विनियमन की अनुपस्थिति में ज़रूरतमंदों तक लाभ पहुँचाने में बाधा उत्पन्न हो सकती है। अतः इस संदर्भ में उचित विनियमन की आवश्यकता है ताकि उन लोगों को सब्सिडी का लाभ प्राप्त करने से रोका जा सके जिन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है।
  • विश्वविद्यालय प्रशासन को अन्य स्रोतों से फंड एकत्रित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा गठित पुन्नय्या समिति (1992-93) की सिफारिशें लागू की जा सकती हैं, जिसके अनुसार उच्चतर शिक्षा में विद्यार्थियों से कुल व्यय का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही वसूला जाना चाहिये।

निष्कर्ष

शिक्षा एक बेहतर भविष्य की कुंजी होती है यह न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास में योगदान देती है बल्कि देश के विकास में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। विदित हो कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना देश के प्रत्येक नागरिक का विशेषाधिकार है। इससे हमें अपने कानूनी अधिकार की समझ होती है और वर्ग विभाजन तथा गैर बराबरी जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में मदद मिलती है। अतः आवश्यक है कि देश में उच्चतर शिक्षा को बढ़ाया जाए ताकि देश के बेहतर भविष्य पर निवेश को सुनिश्चित किया जा सके।

प्रश्न: उच्चतर शिक्षा में सब्सिडी के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2