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  • 25 Oct, 2019
  • 13 min read
शासन व्यवस्था

सोशल मीडिया विनियमन

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में सोशल मीडिया और उसके दुरुपयोग पर चर्चा की गई है। साथ ही उससे संबंधित मौजूदा नियमों का भी उल्लेख किया गया है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने हेतु आवश्यक नियम तैयार करने का दिशा-निर्देश दिया था। इसके जवाब में केंद्र सरकार ने संबंधित नियमों को अंतिम रूपरेखा तैयार करने के लिये 3 माह के अतिरिक्त समय की मांग की है। विदित है कि विगत कुछ वर्षों में सोशल मीडिया का उपयोग फेक न्यूज़ के प्रसारण हेतु काफी व्यापक स्तर पर किया गया है और इसके कई नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। ध्यातव्य है कि सोशल मीडिया के दुरुपयोग को देखते हुए कई याचिकाओं में यह मांग की गई थी कि फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया साइट्स को कोई भी खाता खोलने से पूर्व व्यक्ति से पहचान के रूप में कोई भी सरकारी पहचान पत्र मांगना चाहिये ताकि उस खाते की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके।

सोशल मीडिया और भारत

  • अभिव्यक्ति की आज़ादी जीवंत लोकतंत्र की महत्त्वपूर्ण विशेषता है और इस अधिकार के उपयोग हेतु सोशल मीडिया ने हमें जो अवसर दिया है, उसकी कल्पना कुछ दशकों पूर्व शायद संभव नहीं थी।
  • सोशल मीडिया ने समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ने और खुलकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में भारत में तकरीबन 350 मिलियन सोशल मीडिया यूज़र हैं और अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2023 तक यह संख्या लगभग 447 मिलियन तक पहुँच जाएगी।
  • वर्ष 2019 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय उपयोगकर्त्ता औसतन 2.4 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं।
    • इसी रिपोर्ट के मुताबिक फिलीपींस के उपयोगकर्त्ता सोशल मीडिया का सबसे अधिक (औसतन 4 घंटे) प्रयोग करते हैं, जबकि इस आधार पर जापान में सबसे कम (45 मिनट) सोशल मीडिया का प्रयोग होता है।
  • इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया अपनी आलोचनाओं के कारण भी चर्चा में रहता है। दरअसल, सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बाँटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है।
  • भारत में नीति निर्माताओं के समक्ष सोशल मीडिया के दुरुपयोग को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती बन चुकी है एवं लोगों द्वारा इस ओर गंभीरता से विचार भी किया जा रहा है।

सोशल मीडिया का दुरुपयोग

  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017-18 में फेसबुक, ट्विटर समेत कई साइटों पर 2,245 आपत्तिजनक सामग्रियों के मिलने की शिकायत की गई थी जिनमें से जून 2018 तक 1,662 सामग्रियाँ हटा दी गईं थीं।
    • उल्लेखनीय है कि इनमें ज़्यादातर वह सामग्री थी जो धार्मिक भावनाओं और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान का निषेध करने वाले कानूनों का उल्लंघन कर रही थी। इस अल्पावधि में बड़ी संख्या में आपत्तिजनक सामग्री का पाया जाना यह दर्शाता है कि सोशल मीडिया का कितना ज़्यादा दुरुपयोग हो रहा है।
  • दूसरी ओर सोशल मीडिया के ज़रिये ऐतिहासिक तथ्यों को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। न केवल ऐतिहासिक घटनाओं को अलग रूप में पेश करने की कोशिश हो रही है बल्कि आज़ादी के सूत्रधार रहे नेताओं के बारे में भी गलत जानकारी बड़े स्तर पर साझा की जा रही है।
  • विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचनाओं का प्रसार कुछ प्रमुख उभरते जोखिमों में से एक है।
  • यकीनन यह न केवल देश की प्रगति में रुकावट है, बल्कि भविष्य में इसके खतरनाक परिणाम भी सामने आ सकते हैं। अतः आवश्यक है कि देश की सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करते हुए इसे पूरी तरह रोकने का प्रयास करना चाहिये।

सोशल मीडिया के सकरात्मक प्रभाव

  • सोशल मीडिया दुनिया भर के लोगों से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है और इसने विश्व में संचार को नया आयाम दिया है।
  • सोशल मीडिया उन लोगों की आवाज़ बन सकता है जो समाज की मुख्य धारा से अलग हैं और जिनकी आवाज़ को दबाया जाता रहा है।
  • वर्तमान में सोशल मीडिया कई व्यवसायियों के लिये व्यवसाय के एक अच्छे साधन के रूप में कार्य कर रहा है।
  • सोशल मीडिया के साथ ही कई प्रकार के रोज़गार भी पैदा हुए हैं।
  • वर्तमान में आम नागरिकों के बीच जागरूकता फैलने के लिये सोशल मीडिया का प्रयोग काफी व्यापक स्तर पर किया जा रहा है।
  • कई शोधों में सामने आया है कि दुनिया भर में अधिकांश लोग रोज़मर्रा की सूचनाएँ सोशल मीडिया के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं।

सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव

  • कई शोध बताते हैं कि यदि कोई सोशल मीडिया का आवश्यकता से अधिक प्रयोग किया जाए तो वह हमारे मस्तिष्क को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है और हमे डिप्रेशन की ओर ले जा सकता है।
  • सोशल मीडिया साइबर-बुलिंग को बढ़ावा देता है।
  • यह फेक न्यूज़ और हेट स्पीच फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • सोशल मीडिया पर गोपनीयता की कमी होती है और कई बार आपका निजी डेटा चोरी होने का खतरा रहता है।
  • साइबर अपराधों जैसे- हैकिंग और फिशिंग आदि का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • आजकल सोशल मीडिया के माध्यम से धोखाधड़ी का चलन भी काफी बढ़ गया है, ये लोग ऐसा सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ता की तलाश करते हैं जिन्हें आसानी से फँसाया जा सकता है।
  • सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है।

मौजूदा सोशल मीडिया और फेक न्यूज़ संबंधी नियम-कानून

  • उल्लेखनीय है कि भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पहले से ही सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2008 के दायरे में आते हैं।
  • मौजूदा कानूनों के तहत यदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अदालत या कानून प्रवर्तन संस्थाओं द्वारा किसी सामग्री को हटाने का आदेश दिया जाता है तो उन्हें अनिवार्य रूप से ऐसा करना होगा।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिपोर्टिंग तंत्र भी मौजूद हैं, जो यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि क्या कोई सामग्री सामुदायिक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रही है या नहीं और यदि वह ऐसा करते हुए पाई जाती है तो उसे प्लेटफॉर्म से हटा दिया जाता है।
  • विदित हो कि भारत में फेक न्यूज़ को रोकने के लिये कोई विशेष कानून नहीं है। परंतु भारत में अनेक संस्थाएँ हैं जो इस संदर्भ में कार्य करती हैं।
    • प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक ऐसी ही नियामक संस्था है जो समाचार पत्र, समाचार एजेंसी और उनके संपादकों को उस स्थिति में चेतावनी दे सकती है यदि यह पाया जाता है कि उन्होंने पत्रकारिता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।
    • न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) निजी टेलीविजन समाचार और करेंट अफेयर्स के प्रसारकों का प्रतिनिधित्व करता है एवं उनके विरुद्ध शिकायतों की जाँच करता है।
    • ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट काउंसिल (BCCC) टीवी ब्रॉडकास्टरों के खिलाफ आपत्तिजनक टीवी कंटेंट और फर्ज़ी खबरों की शिकायत स्वीकार करती है और उनकी जाँच करती है।

आधार और सोशल मीडिया

  • विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये सोशल मीडिया को आधार से जोड़ने संबंधी मुद्दे समय-समय पर सामने आते रहे हैं।
  • उल्लेखनीय है कि जनवरी 2020 से सर्वोच्च न्यायालय आधार को सोशल मीडिया प्रोफाइल से जोड़ने से संबंधित मामलों की सुनवाई भी प्रारंभ करेगा।
  • वहीं इसके विरोधियों का कहना है कि इन मामलों में निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों से जुड़े सवालों पर विचार किया जाना आवश्यक है। यदि ऐसा किया जाता है तो यह नागरिकों के मौलिक अधिकार को प्रभावित कर सकता है।

निजता का अधिकार बनाम सोशल मीडिया विनियमन

  • सोशल मीडिया विनियमन के कई समर्थकों का मानना है कि देश की अखंडता और गरिमा को बनाए रखने के लिये इस प्रकार के कदम उठाए जाने आवश्यक हैं।
  • साथ ही यह भी सच है कि बीते कुछ वर्षों में सोशल पर हेट स्पीच, फेक न्यूज़ और राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ तेज़ी से बढ़ रही हैं।
  • दूसरी ओर इस कदम के विरोधियों का मानना है कि यदि सोशल मीडिया का विनियमन कर आधार को प्रोफाइल से जोड़ा जाता है तो इससे नागरिकों की निजता का अधिकार प्रभावित होगा, जो कि संविधान के अनुकूल नहीं है।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ निजता का अधिकार भी प्राप्त है।
    • उल्लेखनीय है कि जस्टिस के.एस. पुत्तुस्वामी बनाम भारत संघ के बहुचर्चित मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 के अपने निर्णय में निजता को मौलिक अधिकार माना था, परंतु यह भी कहा कि यह अधिकार निरंकुश और असीमित नहीं है।

निष्कर्ष

सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को नया आयाम दिया है, आज प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी डर के सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचार रख सकता है और उसे हज़ारों लोगों तक पहुँचा सकता है, परंतु सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने इसे एक खतरनाक उपकरण के रूप में भी स्थापित कर दिया है तथा इसके विनियमन की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है। अतः आवश्यक है कि निजता के अधिकार का उल्लंघन किये बिना सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये सभी पक्षों के साथ विचार-विमर्श कर नए विकल्पों की खोज की जाए, ताकि भविष्य में इसके संभावित दुष्प्रभावों से बचा जा सके।

प्रश्न: सोशल मीडिया के विनियमन की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए स्पष्ट कीजिये कि इससे नागरिकों की निजता के अधिकार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?


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