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एडिटोरियल

  • 25 Aug, 2021
  • 12 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

चक्रवात अनुकूल नियोजन

यह एडिटोरियल दिनांक 24/08/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित लेख ‘‘Tauktae, Yaas and planning for the next’’ पर आधारित है। इसमें भारत में चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति से संबंधित चुनौतियों और इस समस्या से निपटने के आवश्यक उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

इस वर्ष के आरंभ में भारत में आए भीषण चक्रवात ताउते (Tauktae) और यास (Yaas) देश के पश्चिमी तट पर गुजरात तथा पूर्वी तट पर ओडिशा में भूस्खलन की घटनाओं के कारण बने।   

दोनों ही तूफानों ने आधारभूत संरचना, कृषि क्षेत्र और इमारतों को भारी नुकसान पहुँचाया। इन दोनों राज्यों में लगभग 25 लाख लोगों को चक्रवात आश्रय-गृहों और राहत शिविरों में पहुँचाया गया। शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पेड़ों के उखड़ने से पहले से ही कम हो रहे हरित आवरण और प्रभावित हुए।

इस प्रकार कोविड-19 महामारी के दौरान इन चक्रवातों का आगमन राज्य सरकारों के लिये अतिरिक्त वित्तीय उत्तरदायित्व का कारण बना। स्वास्थ्य लागत भी एक प्रमुख समस्या है।

भारत में चक्रवात संबंधी चुनौतियाँ

  • प्रत्येक वर्ष बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में 5-6 उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का निर्माण होता है जिनमें से 2-3 भीषण रूप धारण कर लेते हैं।    
  • भारतीय तटरेखा लगभग 7,500 किमी लंबी है। देश के 96 तटीय ज़िले (जो तट पर या इसके निकट बसे हैं) और यहाँ की 262 मिलियन आबादी इन चक्रवातों और सुनामी की चपेट में आते हैं।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वर्ष 2013 के आँकड़े के अनुसार उत्तरी हिंद महासागर में समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि और भारत की भू-जलवायु परिस्थितियों के कारण तटीय राज्यों में विनाशकारी चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है और ये वैश्विक उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के लगभग 7% हैं।     
  • वर्ष 1891 और 2020 के बीच भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों को पार करने वाले 313 चक्रवातों में से 130 को गंभीर चक्रवाती तूफान (severe cyclonic storms) के रूप में वर्गीकृत किया गया था। 
    • पश्चिमी तट ने 31 चक्रवातों का सामना किया जबकि पूर्वी तट 282 चक्रवातों की चपेट में आए।
    • ओडिशा तट पर सर्वाधिक 97 चक्रवात आए, जबकि इसके बाद आंध्र प्रदेश (79), तमिलनाडु (58), पश्चिम बंगाल (48), गुजरात (22), महाराष्ट्र/गोवा (7) और केरल (2) जैसे अन्य राज्यों पर इसका असर पड़ा।
  • विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र के वर्ष 2010 के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत के 200 मिलियन शहरी निवासी तूफान और भूकंप जैसी आपदाओं का सामना कर रहे होंगे।

चक्रवात जैसी आपदाओं की आर्थिक लागत

  • दूसरी सर्वाधिक क्षति लागत: प्राकृतिक आपदाओं में से चक्रवात दूसरी सर्वाधिक घटित परिघटना है जो वर्ष 1999-2020 की अवधि में भारत में घटित कुल प्राकृतिक आपदाओं के 15% हिस्से के लिये उत्तरदायी थे।    
    • इसी अवधि के दौरान, इन चक्रवातों से 12,388 लोग मारे गए और लगभग 32,615 मिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य की क्षति हुई।
    • क्षति लागत के मामले में चक्रवात बाढ़ (62%) के बाद दूसरे स्थान पर हैं जो आपदा संबंधित क्षति के 29% के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • तीसरी सबसे घातक आपदा: इसके अलावा, वे भूकंप (42%) और बाढ़ (33%) के बाद भारत में तीसरी सबसे घातक आपदा के रूप में वर्गीकृत किये गए हैं।  
    • हालाँकि चक्रवातों के कारण होने वाली मौतों की संख्या में गिरावट आई है और उनकी संख्या वर्ष 1999 के 10,378 से घटकर वर्ष 2020 में 110 रह गई है।
    • बेहतर पूर्व-चेतावनी प्रणाली, चक्रवात का पूर्वानुमान और बेहतर आपदा प्रबंधन गतिविधियों (जैसे समय पर लोगों की निकासी, पुनर्वास और राहत वितरण) के कारण यह उल्लेखनीय गिरावट दर्ज हुई।   
      • लेकिन ये उपाय ‘ज़ीरो फैटैलिटी अप्रोच’ की प्राप्ति और चक्रवातों से होने वाले आर्थिक नुकसान को न्यूनतम करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
  • वर्ष 1999 और 2020 के बीच चक्रवातों ने सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को काफी नुकसान पहुँचाया, जो दीर्घकालिक शमन उपायों के अभाव में 2,990 मिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य से बढ़कर 14,920 मिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया।   
    • इसके अलावा, इसी अवधि के दौरान चक्रवातों के कारण होने वाले नुकसान में नौ गुना वृद्धि हुई।
  • निवारक व्यय: चक्रवातों ने प्रभावी चक्रवात तैयारी उपायों को लागू करने हेतु व्यय में वृद्धि के रूप में सरकारों के वित्तीय बोझ में भी वृद्धि की है।   
  • वर्ष 1999-2020 की अवधि में भारत को उसके सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 2% और कुल राजस्व के 15% का नुकसान हुआ। वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक रिपोर्ट 2021 के अनुसार, चरम मौसम से संबंधित घटनाओं की लगातार आवृत्ति के कारण भारत वैश्विक स्तर पर सातवाँ सर्वाधिक आपदाग्रस्त देश माना गया है।     
    • इसके अलावा रिपोर्ट से पता चला है कि भारत ने लगभग 2,267 मानव जीवन का नुकसान उठाया जबकि 2019 में क्रय शक्ति समानता (ppp) के संदर्भ में उसका नुकसान 68,812 मिलियन अमरीकी डॉलर का रहा।  
    • उसी वर्ष, चरम मौसम संबंधी घटनाओं के कारण मानव मृत्यु और आर्थिक नुकसान के मामले में भारत पहले स्थान पर रहा।
    • एशियाई विकास बैंक (ADB) के वर्ष 2014 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत को जलवायु संबंधी घटनाओं  के कारण वर्ष 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 1.8% प्रतिवर्ष का नुकसान भुगतना होगा।

आगे की राह 

  • निवारक उपाय अपनाना: चक्रवात चेतावनी प्रणाली में सुधार लाना और आपदा तैयारी उपायों को बेहतर करना अनिवार्य है। 
  • संरचनात्मक उपाय: सरकार को शेल्टरबेल्ट (shelterbelt) वृक्षारोपण के तहत दायरे को विस्तृत करना चाहिये और चक्रवातों के प्रभाव को कम करने के लिये तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव को पुनर्जीवित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिये।  
    • इसके अलावा लागत प्रभावी, दीर्घकालिक शमन उपायों को अपनाना—जिसमें चक्रवात-प्रत्यास्थी अवसंरचना (जैसे तूफानी लहर प्रत्यास्थी तटबंधों और नहरों निर्माण, निचले इलाकों में जलभराव को रोकने के लिये नदी संपर्क में सुधार करना आदि) का निर्माण करना शामिल है, महत्त्वपूर्ण होगा।  
    • तटीय ज़िलों में आपदा-रोधी ऊर्जा अवसंरचना स्थापित करना, निर्धन एवं कमज़ोर परिवारों को पक्का घर उपलब्ध कराना और व्यापक सामुदायिक जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है।  
  • सामूहिक प्रयास: आपदा न्यूनीकरण उपायों को सामूहिक रूप से डिजाइन करने के लिये केंद्र और संबंधित राज्यों के बीच स्वस्थ समन्वय का होना आवश्यक है।  
    • केंद्र और राज्यों द्वारा केवल ऐसा सामूहिक शमन प्रयास ही राज्यों के वित्तीय बोझ को कम करने में मदद कर सकता है और आपदा से होने वाली मौतों को कम करने में भी प्रभावी हो सकता है।
  • केस स्टडी - राज्यस्तरीय हस्तक्षेप
    • वर्ष 1999 के ‘सुपर साइक्लोन’ के बाद, ओडिशा सरकार ने विभिन्न चक्रवात शमन उपाय अपनाए थे जिसमें तटीय ज़िलों में आपदा चेतावनी प्रणाली की स्थापना और चक्रवात-प्रवण जिलों में निकासी आश्रयों (evacuation shelters) का निर्माण शामिल था।  
    • इसके अतिरिक्त, ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (OSDMA) की स्थापना, आपदा तैयारियों के लिये नियमित कैबिनेट बैठकें आयोजित करना और ओडिशा आपदा रैपिड एक्शन फोर्स (ODRAF) की स्थापना जैसे कदम भी उठाए गए थे।
    • इन सभी गतिविधियों ने हुदहुद, फानी, एम्फन (Amphan) और यास जैसे चक्रवाती तूफानों के नुकसान को न्यूनतम करने में मदद की थी। हालाँकि, ओडिशा का आपदा प्रबंधन मॉडल अभी भी चक्रवात से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने के लिये अपर्याप्त है।  

अभ्यास प्रश्न: विनाशकारी चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि के साथ भारत को दीर्घकालिक शमन उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। 


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