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एडिटोरियल

  • 25 Jun, 2022
  • 17 min read
कृषि

उर्वरकों की कीमत एवं खपत

यह एडिटोरियल 24/06/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The Fertiliser Pinch” लेख पर आधारित है। इसमें बढ़ती वैश्विक कीमतों के कारण भारत में उर्वरकों की खपत को सीमित करने की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

उर्वरक (Fertilisers) प्राकृतिक या संश्लिष्ट मूल के वे पदार्थ हैं जिन्हें पौधों के लिए पोषक तत्वों की आपूर्ति हेतु मृदा या पादप ऊतकों में प्रयोग किया जाता है।

  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और उर्वरकों की कीमत में वृद्धि के कारण भारत को उर्वरक की अपनी आवश्यकता की पूर्ति में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
  • विश्व में भारत ही कृषि कार्यों के लिए सर्वाधिक भूमि का उपयोग करता है। वर्ष 2019 में3 मिलियन हेक्टेयर (mh) भूमि के साथ फसल कृषि के लिए भारत में प्रयुक्त भूमि अमेरिका (160.4 mh), चीन (135.7 mh), रूस (123.4 mh ) या ब्राज़ील (63.5 mh) की तुलना में अधिक थी। भारत जीवंत कृषि को बनाए रखने के लिए आवश्यक भूमि, जल और धूप की कोई कमी नहीं होने की विरासत रखता है।
  • लेकिन कृषि संबंधी एक संसाधन ऐसा है जिसकी देश में कमी है और वह भारी आयात पर निर्भर है, वह है खनिज उर्वरक (Mineral Fertilisers)।
  • भारत उर्वरकों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में सभी उर्वरकों का आयात77 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर तक पहुँच गया।
  • इस परिप्रेक्ष्य में, वर्तमान में भारत को उर्वरकों की खपत को सीमित एवं कम करने और अपने आयात बिल में कमी लाने की आवश्यकता है।

विभिन्न प्रकार के उर्वरक कौन-से हैं?

  • यूरिया (Urea):
    • यूरिया उर्वरक प्रमुख रूप से प्राकृतिक गैस से प्राप्त किया जाता है।
    • चूँकि प्राकृतिक गैस का मूल घटक मीथेन है, इसलिए प्राकृतिक गैस को भाप पुनःसंभावन (Steam Reforming) प्रक्रम से गुज़ारकर सरलता से हाइड्रोजन प्राप्त किया जा सकता है।
      • प्राप्त हाइड्रोजन की नाइट्रोजन के साथ अभिक्रिया कराकर अमोनिया प्राप्त किया जा सकता है जिसे स्वयं उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, अथवा इसकी अभिक्रिया कार्बन डाइऑक्साइड के साथ करा यूरिया उर्वरक प्राप्त किया जा सकता है।
  • डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP):
    • DAP यूरिया के बाद भारत में इस्तेमाल किया जाने वाला दूसरा प्रमुख उर्वरक है।
    • DAP (46% फॉस्फोरस, 18% नाइट्रोजन) किसानों के लिए फॉस्फोरस का पसंदीदा स्रोत है। यह यूरिया के समान है, जो उनका पसंदीदा नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक है जिसमें 46%N होता है।
  • म्यूरेट ऑफ पोटाश (Muriate of Potash):
    • म्यूरेट ऑफ पोटाश (जिसे पोटैशियम क्लोराइड भी कहा जाता है) में 60% पोटाश होता है। पोटाश पौधों की वृद्धि और गुणवत्ता के लिए आवश्यक है। यह प्रोटीन और शर्करा के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत का उर्वरक आयात

  • प्रत्यक्ष उपयोग के आयात:
    • वर्ष 2021-22 में भारत ने कुल93 मिलियन टन उर्वरक (12.77 बिलियन डॉलर मूल्य) का आयात किया।
  • कच्चे माल का आयात:
    • यूरिया:
      • यूरिया का प्राथमिक फीडस्टॉक प्राकृतिक गैस है।
      • वर्ष 2021-22 में भारत ने42 मिलियन टन तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) (13.47 बिलियन डॉलर मूल्य) का आयात किया।
      • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार पुन:गैसीकृत LNG (re-gasified LNG) की खपत में उर्वरक क्षेत्र की हिस्सेदारी 41% से अधिक थी। इस प्रकार, उद्योग क्षेत्र का LNG आयात5 बिलियन डॉलर से अधिक का रहा होगा।
    • डाइ-अमोनियम फॉस्फेट:
      • घरेलू निर्माता मध्यवर्ती रसायनों, अर्थात् फॉस्फोरिक एसिड और अमोनिया का आयात करते हैं। कुछ निर्माता रॉक फॉस्फेट और सल्फ्यूरिक एसिड का आयात करके भी फॉस्फोरिक एसिड का उत्पादन करते हैं।
      • सल्फर से भी फॉस्फोरिक एसिड बनाया जा सकता है।
    • अन्य:
      • 33 मिलियन टन जटिल उर्वरक (विभिन्न अनुपात में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सल्फर युक्त) का आयात किया गया।

भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • वैश्विक कीमतों में वृद्धि:
    • भारत को उर्वरक आपूर्ति की अपनी आवश्यकता की पूर्ति की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जो यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कारण खरीफ की बुवाई से ठीक पहले अवरुद्ध हो गई।
      • रूस प्राकृतिक गैस का एक प्रमुख निर्यातक है और जो वर्ष 2021 में यूरोपीय संघ (और यूके) में खपत होने वाली गैस के लगभग एक तिहाई भाग या 32% की आपूर्ति कर रहा था।
      • रूस पर लगे प्रतिबंधों ने इसमें से अधिकांश के निर्यात को बाधित कर दिया है।
      • प्राकृतिक गैस से प्राप्त यूरिया की आपूर्ति मुख्यतः रूस के आक्रमण के कारण बाधित हुई है।
  • उर्वरकों की मांग में वृद्धि :
    • भारत के कृषि उत्पादन में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि हुई है और उर्वरकों की इसकी आवश्यकता बढ़ी है।
    • आयात के बावजूद आवश्यकता और उपलब्धता के बीच अंतर बना हुआ है क्योंकि स्वदेशी उत्पादन अपने लक्ष्य की पूर्ति में विफल रहा है।
    • मांग में तो वृद्धि हुई है, लेकिन आपूर्ति निरुद्ध रही है।
  • उर्वरक सब्सिडी:
    • भारत सरकार कृषि के इस महत्वपूर्ण घटक को किसानों के लिए वहनीय बनाए रखने हेतु उर्वरक उत्पादकों को सब्सिडी का भुगतान करती है।
    • इससे किसान खुले बाज़ार मूल्यों से कम कीमत पर उर्वरक की खरीद में सक्षम हो पाते हैं।
      • उर्वरक के उत्पादन/आयात की लागत और किसानों द्वारा भुगतान की गई वास्तविक राशि के बीच का अंतर वह सब्सिडी है जिसका सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
    • यूरिया पर सब्सिडी:
      • केंद्र सरकार प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया सब्सिडी का भुगतान करती है और इन इकाइयों के लिए आवश्यक है कि वे सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRPs) पर उर्वरक की बिक्री करें।
    • गैर-यूरिया उर्वरकों पर सब्सिडी:
      • गैर-यूरिया उर्वरकों के MRPs उत्पादक कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय किये जाते हैं। हालाँकि केंद्र इन पोषक तत्वों पर भी पूर्व-निर्धारित प्रति टन सब्सिडी का भुगतान करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी कीमत ‘उचित स्तर’ पर बनी रहे।
      • गैर-यूरिया उर्वरकों के उदाहरण: डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP), म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP)।
  • महामारी का प्रभाव:
    • महामारी ने पिछले दो वर्षों के दौरान दुनिया भर में उर्वरक उत्पादन, उनके आयात और परिवहन को प्रभावित किया है।
    • चीन, जो प्रमुख उर्वरक निर्यातक है, ने उत्पादन में गिरावट को देखते हुए अपने निर्यात को धीरे-धीरे कम कर दिया है।
      • इसने भारत जैसे देशों को प्रभावित किया है, जो चीन से अपने फॉस्फेटिक आयात के 40-45% भाग की पूर्ति करता है।

समस्या के समाधान के लिए भारत द्वारा की गई प्रमुख पहल

  • नीम कोटेड यूरिया:
    • उर्वरक विभाग (DoF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिए यूरिया का शत प्रतिशत उत्पादन नीम कोटेड यूरिया (Neem Coated Urea- NCU) के रूप में करना अनिवार्य कर दिया है।
    • NCU के लाभ:
      • नाइट्रोजन की धीमी निर्मुक्ति के कारण नीम कोटेड यूरिया की नाइट्रोजन उपयोग क्षमता (Nitrogen Use Efficiency- NUE) बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य यूरिया की तुलना में NCU की खपत कम रहती है।
      • मृदा स्वास्थ्य में सुधार।
      • पौध संरक्षण रसायनों के उपयोग में कमी।
      • कीट और रोग आक्रमण में कमी।
  • नई यूरिया नीति (New Urea Policy- NUP) 2015:
    • नई नीति के उद्देश्य हैं:
      • स्वदेशी यूरिया उत्पादन को अधिकतम करना।
      • यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
      • भारत सरकार पर सब्सिडी के बोझ को युक्तिसंगत बनाना।
  • नई निवेश नीति (New Investment Policy- NIP) 2012:
    • सरकार ने जनवरी, 2013 में नई निवेश नीति 2012 की घोषणा की और वर्ष 2014 में इसमें संशोधन किये। इसका उद्देश्य यूरिया क्षेत्र में नए निवेश को सुविधाजनक बनाना और भारत को यूरिया क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे ले जाना है।
  • उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • उर्वरक विभाग ने  “परावर्तन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग कर चट्टानी फॉस्फेट का संसाधन मानचित्रण” (Resource Mapping of Rock Phosphate using Reflectance Spectroscopy and Earth Observations Data) पर एक तीन-वर्षीय पायलट अध्ययन का कार्यभार इसरो के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र को सौंपा जिसने इसे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI) और परमाणु खनिज निदेशालय (Atomic Mineral Directorate- AMD) के सहयोग से पूरा किया।
  • पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (Nutrient Based Subsidy- NBS) योजना:
    • इसे उर्वरक विभाग द्वारा अप्रैल, 2010 से कार्यान्वित किया गया है।
    • NBS के अंतर्गत वार्षिक आधार पर तय की गई सब्सिडीकी एक निश्चित राशि सब्सिडीयुक्त फॉस्फेटिक और पोटैशिक (Phosphatic & Potassic) उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड पर इसकी पोषक सामग्री के आधार पर प्रदान की जाती है।
    • यह योजना उर्वरकों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करने, कृषि उत्पादकता में सुधार लाने, स्वदेशी उर्वरक उद्योग के विकास को बढ़ावा देने और सब्सिडी बोझ को कम करने पर लक्षित है।

आगे की राह

  • यूरियेज़ और नाइट्रिफिकेशन निरोधक यौगिक को शामिल करना:
    • सर्वप्रथम यूरिया, DAP और MOP जैसे उच्च विश्लेषी उर्वरकों (high-analysis fertilisers) के उपभोग को सीमित या कम करने की आवश्यकता है। ऐसा करने का एक तरीका यह है कि यूरियेज़ और नाइट्रिफिकेशन निरोधक यौगिकों (urease and nitrification inhibition compounds) को यूरिया में शामिल किया जाए।
    • ये वस्तुतः ऐसे रसायन हैं जो उस दर को धीमा कर देते हैं जिस पर यूरिया का जल अपघटन (जिसके परिणामस्वरूप अमोनिया गैस का उत्पादन होता है और वातावरण में यह निर्मुक्त होती है) और नाइट्रीकरण (जहाँ लीचिंग के माध्यम से भूमि के अंदर नाइट्रोजन की क्षति होती है) होता है।
    • अमोनिया वाष्पीकरण और नाइट्रेट लीचिंग को कम कर फसल के लिए अधिक नाइट्रोजन उपलब्ध कराया जाता है, जिससे किसान यूरिया का कम उपयोग कर भी पूर्व की तरह या उससे अधिक पैदावार पा सकते हैं।
  • अन्य तरीके:
    • सिंगल सुपर फॉस्फेट- SSP (16% फॉस्फोरस और 11% सल्फर युक्त ) और जटिल उर्वरकों की बिक्री को बढ़ावा देना।
    • भारत प्रत्यक्ष रूप से SSP के निर्माण के लिए पहले से अधिक रॉक फॉस्फेट का आयात कर सकता है या इसे ‘दुर्बल’ फॉस्फोरिक एसिड में परिवर्तित किया जा सकता है, जिसका उपयोग जटिल उर्वरक के निर्माण के लिए किया जा सकता है।
    • DAP के उपयोग को मुख्यतः धान और गेहूँ की फसल तक सीमित किया जा सकता है; अन्य फसलों के 46% फॉस्फोरस कंटेंट वाले उर्वरकों की वैसी आवश्यकता नहीं होती।
    • MOP के संबंध में देखें तो आयातित सामग्री का लगभग तीन-चौथाई प्रत्यक्ष रूप से अनुप्रयोग किया जाता है और शेष भाग को ही कॉम्प्लेक्स में शामिल करने के बाद बेचा जाता है, जबकि आदर्श स्थिति इसके विपरीत होनी चाहिए।
  • नैतिक प्रत्यायन:
    • भारत को अपने किसानों को सभी उच्च विश्लेषी उर्वरकों से दूर करने की आवश्यकता है।
    • इसके लिए उच्च पोषक, उपयोग-कुशल, जल में घुलनशील उर्वरकों (पोटैशियम नाइट्रेट, पोटैशियम सल्फेट , कैल्शियम नाइट्रेट आदि ) को लोकप्रिय बनाने और वैकल्पिक स्वदेशी स्रोतों का दोहन करने (उदाहरण के लिए, गुड़-आधारित आसवनी से प्राप्त पोटाश खर्च-धोना और समुद्री शैवाल निकालने से) के साथ एक ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है।
    • उच्च विश्लेषी उर्वरकों की खपत को सीमित या कम करने की कोई भी योजना तब तक सफल नहीं होगी जब तक किसानों को यह अवगत नहीं कराया जाता कि उनके पास DAP का कौन-सा उपयुक्त विकल्प मौजूद है यह कौन-सा NPK कॉम्प्लेक्स या जैविक खाद उनके यूरिया अनुप्रयोग को5 से 1.5 बैग प्रति एकड़ तक कम कर सकती है। अतः इस दृष्टिकोण से भी प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत का कृषि क्षेत्र उर्वरकों की उच्च मांग और उनके मूल्यों में वैश्विक वृद्धि की दोधारी तलवार का सामना कर रहा है। चर्चा कीजिये।


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