एडिटोरियल (25 Mar, 2021)



बैड बैंक: पक्ष और विपक्ष

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में बैड बैंक की अवधारणा और उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

बैंकिंग क्षेत्र पर निर्भर भारत जैसी अर्थव्यवस्था के बेहतर ढंग से संचालन के लिये सुलभ वित्तीय सेवाओं और ऋण प्रवाह को सुनिश्चित करने हेतु बैंकों की अच्छी स्थिति होना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि कई वर्षों से भारतीय बैंक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) संकट से जूझ रहे हैं जिसके कारण पूरी अर्थव्यवस्था में आर्थिक समस्याएँ व्याप्त हैं।

इसके अलावा कोरोना वायरस संकट के कारण आर्थिक विकास में गिरावट ने बैंकिंग क्षेत्र के तनाव को और बढ़ा दिया है। इसलिये बैंकों की स्थिति को पुनः बहाल करने के लिये बजट 2021 में समस्या समाधान के एक उपाय यानी राष्ट्रीय बैड बैंक स्थापित करने का विचार प्रस्तावित किया गया है । हालाँकि बैड बैंक का विचार अपने आप में बहस का विषय है।

बैड बैंक क्या है

  • बैड बैंक एक ऐसी इकाई है जो बैड लोन या गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) के एग्रीगेटर के रूप में कार्य करता है और उन्हें बैंकिंग क्षेत्र से रियायती मूल्य पर खरीदता है, फिर उनके पुनर्भरण/रिकवरी और समाधान/रिज़ॉल्यूशन की दिशा में काम करता है।
  • इन ऋणों को गैर-निष्पादित के रूप में वर्गीकृत किया गया है और वे पहले से ही डिफ़ॉल्ट रूप में हैं। ये बैड लोन बैंक की बैलेंसशीट पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
  • बैड बैंक एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (Asset Reconstruction Company- ARC) के समान है, जहाँ वह बैंकों से इन ऋणों को स्थानांतरित करते हुए अधिकतम संभव राशि वसूलने का प्रबंधन करता है।

बैड बैंक के लिये प्रस्तावित मॉडल

बजट 2021 में एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी और परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (Asset Management Company- AMC) की संरचना का प्रस्ताव किया गया था, जिसमें ARC ऋण एकत्र करेगा, जबकि AMC एक संकल्प प्रबंधक के रूप में कार्य करेगा।

  • प्रस्तावित संरचना उधारदाताओं से कुल संपत्ति अर्जित करने के लिये एक राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (NARC) की स्थापना की परिकल्पना करती है, जिसे राष्ट्रीय परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (NAMC) द्वारा प्रबंधित किया जाएगा।
  • तनावग्रस्त परिसंपत्ति समाधान (Stressed Asset Resolution) के लिये समर्पित एक कुशल और पेशेवर सेट-अप को रणनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी के लिये रणनीतिक निवेशकों, AIF, विशेष स्थिति फंड (Special Situation Fund), तनावग्रस्त परिसंपत्ति फंड आदि के माध्यम से तनावग्रस्त परिसंपत्ति में संस्थागत फंडिंग को आकर्षित करने के लिये प्रयोग में लाया जाएगा।
  • इसके अलावा इन तनावग्रस्त परिसंपत्तियों को बैड बैंकों में स्थानांतरित करने से नकदी में 15% और संप्रभु गारंटीशुदा सुरक्षा प्राप्तियों (Sovereign Guarantee Security Receipts) में 85% की वसूली होगी। इसमें सरकार द्वारा निश्चित समय के लिये शून्य-जोखिम भार की गारंटी दी जाती है।
  • इस दृष्टिकोण का शुद्ध प्रभाव एक खुली प्रक्रिया और तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिये एक जीवंत बाज़ार का निर्माण करना होगा।

बैड बैंकों के पक्ष में तर्क

  • बैंकों को उधार देने का प्रावधान: बैड बैंक के तहत वसूल किये गए मूल्य और महत्त्वपूर्ण उधार लाभ शामिल हैं:
    • पूंजी को पूरी तरह से प्रावधानित खराब परिसंपत्तियों (Provisioned Bad Assets) से कम मूल्य पर मुक्त किया जाता है।
    • संप्रभु गारंटी (Sovereign Guarantee) के कारण पूंजी सुरक्षा प्राप्तियों से मुक्त हो गई।
    • नकद प्राप्तियाँ जो बैंकों में वापस आती हैं और उधार के लिये लीवरेज की जा सकती हैं, को बैलेंसशीट के सामान्य प्रावधानों से मुक्त किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मिसाल: एक बैड बैंक की कई अंतर्राष्ट्रीय सफलता की कहानियाँ उसके मिशन को सकारात्मकता प्रदान करती है और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि भारत में इन उद्देश्यों को पूरा नहीं किया जा सकता है।
    • वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिका ने संकटग्रस्त परिसंपत्ति राहत कार्यक्रम (TARP) लागू किया, जिसने इस संकट से निकलने में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सहायता प्रदान की।
    • इस प्रकार की अवधारणा एक बैड बैंक के विचार के समरूप ही बनाई गई थी।
  • क्रेडिट फ्लो पोस्ट-कोविड का पुनरुद्धार: कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि एक बैड बैंक 5 लाख करोड़ से अधिक की NPA पूंजी मुक्त करने में मदद कर सकता है, ये बैड लोन के कारण आर्थिक रूप से संकटग्रस्त होते हैं।

बैड बैंक के विपक्ष में तर्क

  • स्थायी समाधान नहीं: यह तर्क दिया जाता है कि एक बैड बैंक बनाने से समस्या का केवल स्थानांतरण हो रहा है।
    • NPA समस्या को हल करने के लिये बुनियादी सुधारों के बगैर बैड बैंक बिना किसी वसूली के बैड लोन का एक गोदाम बनने की संभावना है।
  • कठिन राजकोषीय स्थिति: इसके अलावा एक महत्त्वपूर्ण चिंता बैड बैंक के लिये पूंजी के संग्रहण की है। महामारी की मार झेल रही अर्थव्यवस्था में संकटग्रस्त संपत्तियों के लिये खरीदार ढूँढना मुश्किल है और सरकार भी एक कठिन वित्तीय स्थिति से गुज़र रही है।
  • स्पष्ट प्रक्रिया का अभाव : इसके अलावा यह निर्धारित करने के लिये कोई स्पष्ट प्रक्रिँया नहीं है कि किस मूल्य और किन ऋणों को बैड बैंक में स्थानांतरित किया जाना चाहिये। यह सरकार के लिये राजनीतिक चुनौतियाँ पैदा कर सकता है।
  • नैतिक जोखिम: रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना ​​है कि बैड बैंक स्थापित करने से बैंकों के बीच नैतिक जोखिम की समस्या भी पैदा हो सकती है, इससे वे अपने लापरवाहपूर्ण ऋण देने के तरीकों को जारी रखेंगे, जिससे NPA समस्या और भी बढ़ जाएगी।

निष्कर्ष

जब तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रबंधन राजनेताओं और नौकरशाहों के प्रति निष्ठावान रहेंगे, तब तक उनकी व्यावसायिकता में कमी बनी रहेगी और बाद में इस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

इसलिये बैड बैंक एक अच्छा विचार है, लेकिन बैंकिंग प्रणाली में अंतर्निहित संरचनात्मक समस्याओं जैसी मुख्य चुनौती से निपटने और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बेहतर बनाने के लिये सुधार किया जाना ज़रूरी है।

प्रश्न: बैड बैंक की स्थापना NPA संकट से निपटने के लिये उचित कदम है लेकिन यह एक स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। चर्चा कीजिये।