इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष और टू स्टेट सॉल्यूशन
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ की संभावनाओं व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court-ICC) ने इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष से संबंधित मुद्दों पर अपने प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के दायरे के संदर्भ में एक निर्णय जारी किया। इसके तहत ICC ने इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के दौरान होने वाले मानवाधिकार उल्लंघन की जाँच करने पर सहमति व्यक्त की है।
फिलिस्तीनी अधिकारियों ने ICC के इस फैसले का स्वागत किया है। दूसरी ओर, इज़राइल ने ICC की कार्रवाई को एक गैर-कानूनी हस्तक्षेप बताते हुए इसकी आलोचना की है और कहा कि यह कार्रवाई उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करती है। साथ ही इज़राइल ने धमकी दी है कि यह कदम अंततः इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच दो-राज्य समाधान या ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ (Two-State Solution) की संभावनाओं को समाप्त कर सकता है।
वर्तमान में इज़राइल-फिलिस्तीन तनाव अपेक्षाकृत कम तीव्रता वाले संघर्ष के रूप में बना हुआ है, हालाँकि कई बार कुछ अंतराल के बाद इस क्षेत्र की हिंसा में वृद्धि भी देखने को मिलती है। इसके साथ ही इस क्षेत्र में राजनीतिक विचारों का लगातार क्षरण देखने को मिलता है। यह खतरनाक यथास्थिति क्षेत्र की स्थायी शांति को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकती है और इस क्षेत्र को एक बार पुनः अस्थिरता की ओर धकेल सकती है।
क्या है टू स्टेट सॉल्यूशन?
- टू स्टेट सॉल्यूशन दशकों से चल रहे इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में शांति बहाल करने के प्रयासों का प्राथमिक केंद्र रहा है।
- इस समाधान के तहत इज़राइल के साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य (देश) की स्थापना की अवधारणा प्रस्तुत की गई - अर्थात् दो अलग समुदायों के लोगों के लिये दो अलग राज्य।
- सैद्धांतिक रूप से यह इज़राइल की सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के साथ ही उसे एक यहूदी बाहुल्य आबादी बनाए रखने की अनुमति देता है और फिलिस्तीनियों के लिये अलग देश की व्यवस्था का प्रावधान करता है।
- वर्ष 1947 की संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना (Partition Plan) इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच दशकों तक सैन्य कार्रवाई और हिंसा का कारण बनी। वर्ष 1991 में अमेरिका की मध्यस्थता के बाद मैड्रिड शांति सम्मेलन में इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को हल करने के लिये टू स्टेट सॉल्यूशन पर सहमति बनी।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, एक ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’, जहाँ फिलिस्तीन और इज़राइल की वैध राष्ट्रीय आकांक्षाओं को स्वीकार करता है, वहीँ इस क्षेत्र में स्थायी शांति का आधार बन सकता है।
टू स्टेट सॉल्यूशन से जुड़े जोखिम:
- ईरान का पहलू: इज़राइल की उत्तरी सीमा पर अभी भी तनाव और जोखिम की स्थिति बनी हुई है, विशेष रूप से ईरानी और हिजबुल्ला के लक्ष्यों (फिलिस्तीन से जुड़े) के खिलाफ सीरिया में इज़राइल के हमलों तथा हाल ही में यू.एस. द्वारा ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद यह क्षेत्र और भी संवेदनशील हो गया है।
- क्षेत्रीय शीत युद्ध: मध्य-पूर्व क्षेत्र वर्तमान में ईरान और सऊदी अरब के बीच एक क्षेत्रीय शीत युद्ध का सामना कर रहा है। इसके कारण इस क्षेत्र में कई छोटे परंतु घातक सैन्य समूहों का उदय हुआ है।
- उदाहरण के लिये यमन में सक्रिय हूती लड़ाके, ये समूह अधिक क्षमता हासिल कर इस क्षेत्र में गंभीर अस्थिरता की स्थिति पैदा कर सकते हैं।
- ये सभी कारक अस्थिरता और एकल या एक से अधिक मोर्चों पर युद्ध की संभावना को बढ़ाते हैं।
- तीसरा इंतिफादा: अंततः ये स्थितियाँ एक तीसरे इंतिफादा का कारण बन सकती हैं और वर्तमान में सक्रिय शांतिपूर्ण प्रतिरोध चरम हिंसा तथा मानव अधिकारों के उल्लंघन में बदल सकता है।
- फिलिस्तीन में विभाजित राजनीतिक नेतृत्व: वर्तमान में फिलिस्तीनी राजनीतिक नेतृत्त्व में समन्वय का व्यापक अभाव है, गौरतलब है कि जहाँ वेस्ट बैंक (West Bank) में फिलिस्तीनी राष्ट्रवादियों द्वारा ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ का समर्थन किया जाता है, वहीं गाज़ा का राजनीतिक नेतृत्व इज़राइल को मान्यता नहीं देता है।
इंतिफादा (Intifada):
- इंतिफादा वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी में हुए फिलिस्तीनियों के दो प्रसिद्ध विद्रोह हैं जिनका उद्देश्य उन क्षेत्रों पर इज़राइल के कब्जे़ को समाप्त करना और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना करना था।
- पहला इंतिफादा दिसंबर 1987 में शुरू हुआ और सितंबर 1993 में पहले ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ, इस समझौते ने इज़राइल और फिलिस्तीनियों के बीच शांति वार्ता की एक रूपरेखा प्रदान की।
- दूसरा इंतिफादा (जिसे अल-अक्सा इंतिफादा भी कहा जाता है) सितंबर 2000 में शुरू हुआ था।
- इन दोनों विद्रोहों में लगभग 5,000 से अधिक फिलिस्तीनी और लगभग 1,400 इज़राइली मारे गए।
आगे की राह:
- भारत की भूमिका: ऐतिहासिक रूप से भारत ने टू स्टेट सॉल्यूशन के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिये दोनों पक्षों के नेतृत्व से सीधी वार्ताओं में शामिल होने का आग्रह किया है।
- फिलिस्तीन में भारतीय प्रयास फिलिस्तीनी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को कवर करने वाले भारत-फिलिस्तीन विकास साझेदारी के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण और संस्थानों को सुदृढ़ करने पर केंद्रित रहे हैं।
- इज़राइल के साथ भारत रक्षा, विज्ञान और तकनीक आदि के क्षेत्रों में एक विशेष संबंध साझा करता है।
- इस संदर्भ में भारत इन दोनों देशों को स्थायी शांति की दिशा में आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करने हेतु अपनी नरम शक्ति का लाभ उठा सकता है।
- अब्राहम एकार्ड, एक सकारात्मक कदम: इज़राइल और यूएई, बहरीन, सूडान और मोरक्को के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिये हुआ हालिया समझौता, जिसे अब्राहम एकार्ड (Abraham Accord) के रूप में जाना जाता है, भी इस बात का प्रमाण है कि प्रत्यक्ष वार्ता ही इस क्षेत्र में शांति प्राप्त करने का एकमात्र उपयुक्त विकल्प है।
- अतः सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम एकार्ड की तर्ज पर दोनों पक्षों के बीच शांति स्थापना के लिये प्रयास करना चाहिये।
निष्कर्ष:
वर्तमान में इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिये विश्व के सभी देशों को एक साथ आने की आवश्यकता है, परंतु इज़राइल सरकार तथा इस मामले से जुड़े अन्य हितधारकों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक बिगाड़ दिया है। ऐसे में इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण भारत के लिये अरब देशों और इज़राइल के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखने में सहायक होगा।
अभ्यास प्रश्न: इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए इसके प्रभाव की समीक्षा कीजिये।