सिंधु जल संधि: भारत के हिस्से का पानी पाकिस्तान को अब और नहीं
संदर्भ
14 फरवरी को पुलवामा में हुए फिदायीन (आत्मघाती) हमले में CRPF के 42 जवानों की शहादत के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करते हुए जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने सिंधु जल संधि के तहत भारत के हिस्से में आने वाली नदियों का पानी पाकिस्तान को नहीं देने की बात कही है। भारत का यह कदम उन छोटी-बड़ी पहलों का एक हिस्सा है, जो वह पाकिस्तान के खिलाफ उठा रहा है। इसे पानी की सर्जिकल स्ट्राइक कहा जा रहा है।
दीर्घकालिक योजना का हिस्सा
आधिकारिक तौर पर कहा गया है कि यह एक दीर्घकालिक योजना है और इसका सिंधु नदी संधि से कोई लेना-देना नहीं है। इस योजना के तहत भारत के हिस्से में आई नदियों का पानी पाकिस्तान जाने से रोकने के लिये रावी, सतलज और ब्यास नदियों का पानी डैम बनाकर रोका जाएगा। इन तीनों नदियों पर डैम बनाने के बाद पानी पंजाब और जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिये इस्तेमाल किया जाएगा।
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु प्रणाली में मुख्यतः सिंधु, झेलम, चिनाब,रावी, ब्यास और सतलज नदियाँ शामिल हैं। इन नदियों के बहाव वाले क्षेत्र (Basin) को प्रमुखतः भारत और पाकिस्तान साझा करते हैं। इसका एक बहुत छोटा हिस्सा चीन और अफगानिस्तान को भी मिला हुआ है।
- 1947 में आज़ादी मिलने और देश विभाजन के बाद अन्य कई मुद्दों की तरह भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के मुद्दे को लेकर भी विवाद शुरू हो गया।
- जब इस मुद्दे का कोई हल नज़र नहीं आया तो 1949 में एक अमेरिकी विशेषज्ञ डेविड लिलियेन्थल ने इस समस्या को राजनीतिक के बजाय तकनीकी तथा व्यापारिक स्तर पर सुलझाने की सलाह दी।
- उन्होंने दोनों देशों को राय दी कि वे इस मामले में विश्व बैंक से मदद भी ले सकते हैं। सितंबर 1951 में विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करना स्वीकार कर लिया।
- इसके बाद सालों चली बातचीत के बाद 19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ। इसे ही 1960 की सिंधु जल संधि कहते हैं।
- इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने रावलिपिंडी में दस्तखत किये थे।
- 12 जनवरी, 1961 से संधि की शर्तें लागू कर दी गई थीं। संधि के तहत 6 नदियों के पानी का बँटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं।
- 3 पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलज) के पानी पर भारत को पूरा हक दिया गया।
- शेष 3 पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के पानी के बहाव को बाधारहित पाकिस्तान को देना तय हुआ।
संधि में तय मानकों के मुताबिक भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है और इनका करीब 20 प्रतिशत हिस्सा भारत के लिये है। समझौते के तहत भारत को पश्चिमी नदियों से 36 लाख एकड़ फीट पानी स्टोर करने का अधिकार है। भारत इन पश्चिमी नदियों के पानी से 7 लाख एकड़ क्षेत्र में लगी फसलों की सिंचाई कर सकता है। भारत इन नदियों पर जलविद्युत परियोजनाएँ बना सकता है, लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे, जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता।
वैसे भारत चाहे तो पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिये अफगानिस्तान की भी मदद ले सकता है। अफगानिस्तान से काबली नदी के पानी को रोकने के लिये बहाव पर बांध निर्माण की बात कही जा सकती है। यह नदी सिंधु बेसिन के रास्ते पाकिस्तान में जाती है।
सिंधु जल आयोग और जल आयुक्त
भारत तथा पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के अंतर्गत दोनों पक्षकार एक-एक आयुक्त नियुक्त करते हैं और वे दोनों साथ मिलकर एक स्थायी जल आयोग गठित करते हैं जो इस संधि के कार्यान्वयन के लिये सहयोगी व्यवस्था स्थापित करने तथा उसे बनाए रखने के लिये उत्तरदायी है। सिंधु जल संधि, 1960 के अनुच्छेद 8 (5) के अंतर्गत स्थायी सिंधु आयोग की बैठक एक वर्ष भारत में और एक वर्ष पाकिस्तान में आयोजित की जाती है। गौरतलब है कि संधि पर अमल के लिये ही सिंधु आयोग बनाया गया, जिसमें दोनों देशों के जल आयुक्त हर साल मिलते हैं और विवाद निपटाने का प्रयास करते हैं।
भारत में वर्तमान स्थिति
सिंधु जल संधि के तहत जिन पूर्वी नदियों के पानी के इस्तेमाल का अधिकार भारत को मिला था, उसका उपयोग करते हुए भारत ने सतलज पर भाखड़ा बांध, ब्यास नदी पर पोंग और पंडोह बांध तथा रावी नदी पर रणजीत सागर (थीन) बांध का निर्माण किया। इसके अलावा, भारत ने इन नदियों के पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिये ब्यास-सतलुज लिंक, इंदिरा गांधी नहर और माधोपुर-ब्यास लिंक जैसी अन्य परियोजनाएँ भी बनाईं। इससे भारत को पूर्वी नदियों का करीब 95 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल करने में मदद मिली। हालाँकि इसके बावजूद रावी नदी का करीब 2 मिलियन एकड़ फीट पानी हर साल बिना इस्तेमाल के पाकिस्तान की ओर चला जाता है। भारत ने अब तक पानी के स्टोरेज की सुविधा विकसित नहीं की है।
कैसे करेगा भारत इस पानी पर नियंत्रण?
इस पानी को रोकने के लिये भारत सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं:
शाहपुर कंडी परियोजना का निर्माण कार्य फिर से शुरू करना: इस परियोजना से थीन बांध के पावर हाउस से निकलने वाले पानी का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर और पंजाब में 37 हज़ार हेक्टर भूमि की सिंचाई तथा 206 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिये किया जा सकेगा।
- यह परियोजना सितंबर 2016 में पूरी हो जानी थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर और पंजाब के बीच विवाद हो जाने के कारण 30 अगस्त, 2014 से ही इसका काम रुका पड़ा था।
- दोनों राज्यों के बीच आखिरकार इसे लेकर 8 सितंबर, 2018 को समझौता हो गया।
- परियोजना के निर्माण पर कुल 2715.70 करोड़ रुपए की लागत आएगी।
- भारत सरकार ने परियोजना के लिये 485.38 करोड़ रुपए की केंद्रीय मदद मंज़ूर की है। यह राशि परियोजना के सिंचाई वाले हिस्से के लिये होगी।
- भारत सरकार की देखरेख में पंजाब सरकार ने परियोजना का काम फिर से शुरू कर दिया है।
उझ बहुउद्देश्यीय परियोजना: 5850 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना से उझ नदी पर 781 मिलियन क्यूबिक मीटर जल का भंडारण किया जा सकेगा, जिसका इस्तेमाल सिंचाई और बिजली बनाने में होगा।
- इस पानी से जम्मू-कश्मीर के कठुआ, हीरानगर और सांभा ज़िलों में 31 हजार 380 हेक्टर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी और उन्हें पीने के पानी की आपूर्ति हो सकेगी।
- परियोजना को तकनीकी मंज़ूरी जुलाई 2017 में ही दी जा चुकी है। यह एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिसे केंद्र की ओर से 4892.47 करोड़ रुपए की मदद दी जा रही है।
- यह मदद परियोजना के सिंचाई से जुड़े हिस्से के लिये होगी। इसके अलावा, परियोजना के लिये विशेष मदद पर भी विचार किया जा रहा है।
उझ के नीचे दूसरी रावी ब्यास लिंक परियोजना: इस परियोजना का उद्देश्य थीन बांध के निर्माण के बावजूद रावी से पाकिस्तान की ओर जाने वाले अतिरिक्त पानी को रोकना है।
- इसके लिये रावी नदी पर एक बैराज बनाया जाएगा और ब्यास बेसिन से जुड़े एक टनल के ज़रिये नदी के पानी के बहाव को दूसरी ओर मोड़ा जाएगा।
- उपरोक्त तीनों परियोजनाएँ बनाकर भारत सिंधु जल संधि, 1960 के तहत मिले पानी के हिस्से का पूरा इस्तेमाल कर सकेगा।
पहले से चल रहीं भारतीय परियोजनाएँ
भारत में सिंधु नदी बेसिन से जुड़ी कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इनमें पाकल दुल (1000 मेगावॉट) , रातले (850 मेगावॉट), किशनगंगा (330 मेगावॉट), मियार (120 मेगावॉट) और लोअर कालनई (48 मेगावॉट) आदि शामिल हैं। भारत की इन परियोजनाओं पर पाकिस्तान यह कहकर आपत्ति उठाता रहा है कि ये सभी सिंधु जल संधि का उल्लंघन हैं, लेकिन अब भारत सिंधु जल संधि से जुड़ी सभी नदियों के अधिकतम पानी का इस्तेमाल करना चाहता है।
पाकिस्तान के लिये सिंधु नदी बेसिन का महत्त्व
- पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ बहती हैं, यानी उसका करीब 65 प्रतिशत भूभाग सिंधु रिवर बेसिन पर है।
- पाकिस्तान ने इस पर कई बांध बनाए हैं, जिससे वह बिजली बनाता है और खेती के लिये इस नदी के पानी का इस्तेमाल होता है।
- भारत को सिंधु रिवर बेसिन में यह फायदा मिलता है कि इन नदियों के उद्गम के पास वाले इलाके भारत में पड़ते हैं।
- ये नदियाँ भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु के पानी को रोक सकता है।
क्यों महत्त्वपूर्ण है सिंधु नदी?
यहाँ यह समझना भी ज़रूरी है कि आखिर सिंधु नदी का इतना महत्व क्यों है? सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। इसकी लंबाई लगभग 3180 किलोमीटर से अधिक है। इसका उद्गम स्थल तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा को माना जाता है। इसके अलावा, सतलज का उद्गम स्थल भी तिब्बत में ही है। शेष चार नदियाँ भारत में ही निकलती हैं। सिंधु नदी का अपनी सहायक नदियों- चिनाब, झेलम, सतलज, रावी और ब्यास के साथ संगम पाकिस्तान में होता है। पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ बहती हैं और वहाँ 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है। सिंधु नदी का बेसिन करीब साढ़े ग्यारह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है। सभी नदियों के साथ मिलते हुए सिंधु नदी कराची के पास अरब सागर में गिरती है।
स्रोत: The Hindu Business Line में 23 फरवरी को प्रकाशित समाचार और PIB से मिली जानकारी पर आधारित।