मेक इट द इंडियन वे (Make it the Indian way)
संदर्भ
हम सब एक ऐसे ऐतिहासिक युग में रह रहे हैं जहाँ विनिर्माण क्षेत्र में विघटनकारी प्रौद्योगिकियों द्वारा आमूलचूल परिवर्तन किया जा रहा है। ऐसी ही एक प्रौद्योगिकी "3D प्रिंटिंग" है जिसका उपयोग पश्चिमी देशों द्वारा पहले से ही किया जा रहा है। यदि भारत को भी अपने 'मेक इन इंडिया' के सपने को साकार करना है तो "3D प्रिंटिंग" का उपयोग 'मेक इट द इंडियन वे' के रूप में करना होगा।
3D प्रिंटिंग क्या है?
- 3D प्रिंटिंग एक ऐसी तकनीक है जिसका प्रयोग करके थ्री डायमेंशनल वस्तुओं को बनाया जाता है।
- इसमें एक ही प्रोडक्ट के कई लेयर्स और डिजिटल फाइल का उपयोग किया जाता है।
- इसमें सामग्री को तब तक लगातार एक के ऊपर एक क्रम में लगाया जाता है जब तक फाइनल प्रोडक्ट थ्री डाइमेंशनल आकृति में न बदल जाए।
एडिटिव मेन्युफैक्चरिंग (Additive Menufacturing)
- AM उन तकनीकों का वर्णन करने के लिये एक उपयुक्त नाम है जो सामग्री को परत-पर-परत जोड़कर 3D ऑब्जेक्ट्स बनाते हैं, चाहे सामग्री प्लास्टिक, धातु, कंक्रीट हो या एक मानव शरीर का ऊतक ही क्यों न हो। इस तरह एडिटिव मेन्युफैक्चरिंग (AM) 3D प्रिंटिंग का एक औद्योगिक संस्करण है।
- AM शब्द में 3D प्रिंटिंग, रैपिड प्रोटोटाइपिंग (RP), डायरेक्ट डिजिटल मेन्युफैक्चरिंग (DDM), स्तरित विनिर्माण और एडिटिव फैब्रिकेशन जैसे सबसेट शामिल हैं।
- दरअसल, सभी पारंपरिक विनिर्माण तकनीकों को पूरी तरह से बदलने की बजाय, विनिर्माण के दौरान एडिटिव का उपयोग उन परियोजनाओं में चुनिंदा रूप से किया जा रहा है जहाँ यह वास्तविक लाभ प्रदान कर सकती है।
3D प्रिंटिंग की कार्यविधि
- हमें जिस भी वस्तु का 3D मॉडल कंप्यूटर में बनाना होता है उसके लिये एक सॉफ्टवेयर (ब्लेंडर सॉफ्टवेयर) का उपयोग किया जाता है।
- कंप्यूटर के ब्लेंडर सॉफ्टवेयर में बनी 3D फाइल को 3D प्रिंटर में डाला जाता है और इसके बाद 3D प्रिंटर इच्छित मैटेरियल का उपयोग करके उस ऑब्जेक्ट/प्रोडक्ट के समान ही प्रतिकृति को तैयार कर देता है।
3D प्रिंटिंग के लाभ
- 3D प्रिंटिंग के ज़रिये न केवल मकान, कार का ढाँचा, जूते बनाए जा रहे हैं बल्कि इससे इंसानी शरीर के कई अंग बनाना भी संभव हो गया है जैसे- कान और हड्डी के विभिन्न भाग आदि।
- 3D प्रिंटिंग से समय और प्रोटोटाइप उत्पादन की लागत कम हो जाती है। यह डिज़ाइन या फैब्रिकेशन में गलती के दोहराव से बचाता है तथा अधिक जटिल उत्पादों को बनाने की क्षमता में वृद्धि करता है।
- इस तकनीक द्वारा बदलती सुविधाओं के आधार पर वस्तुओं के आकार को मिनटों में एक सरल सॉफ्टवेयर द्वारा परिवर्तित करना संभव है।
- साथ ही इसके लिये मशीनों की रीटूलिंग की आवश्यकता भी नहीं होती है तथा प्रत्येक इकाई को मनोनुकूल तैयार किया जा सकता है।
- इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि इसके उपयोग से विनिर्माण पूंजी की लागत में कमी और अंतरिक्ष आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही कार्बन पदचिह्न (carbon footprint) को भी कम किया जा सकता है।
- समग्र रूप से यह तकनीक हमारे जीवन को गुणवत्तापूर्ण और आरामदायक बनाने में मददगार साबित हो सकती है।
इस तकनीक की सीमाएँ
- इस तकनीक से विभिन्न प्रकार के उत्पादों एवं उनके भागों का निर्माण करना एक खर्चीली प्रक्रिया है इस प्रकार निर्मित पहली सौ इकाइयों की लागत अधिक होती है।
- इसके अतिरिक्त प्रति इकाई लागत में केवल तभी कमी आती है जब वे बड़े पैमाने पर उत्पादित की जाती हैं।
- इस तकनीक की कार्यविधि की कुछ सीमाएँ भी हैं जैसे-आमतौर पर इस तकनीक के माध्यम से कई छोटे हिस्सों का निर्माण किया जाता है, जिन्हें बाद में एक पूरी प्रणाली/ढाँचा प्रदान करने हेतु अकुशल श्रम या रोबोट का उपयोग (असेंबल करने के लिये) किया जाता है।
- यह तकनीक डिज़ाइनिंग चरण को जटिल और महँगा बनाती है, क्योंकि शुरुआती गलतियों को सही करने के लिये फिर से डिज़ाइन तैयार करना महँगा होता है।
तकनीक के अनुप्रयोग
- पिछले पाँच वर्षों में प्रौद्योगिकी में तेज़ी से हुई प्रगति ने इस प्रकार की तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा दिया है। वर्तमान समय में एक विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला से लेकर शू-लैस समेत एक जूते के भाग या संपूर्ण जूते को 3D प्रिंटिंग तकनीक की मदद से बनाना संभव है।
- यद्यपि इस प्रोटोटाइप का विकास त्वरित और सस्ती लागत के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन अब एडिटिव मेन्युफैक्चरिंग/3D का प्रयोग विकसित देशों की मुख्यधारा द्वारा बहुतायत में किया जा रहा है और इस तकनीक ने कई अलग-अलग अनुप्रयोगों द्वारा पारंपरिक विनिर्माण में बदलाव का कार्य शुरू कर दिया है।
- अमेरिकी निर्माताओं पर किये गए एक हालिया सर्वेक्षण से पता चलता है कि लगभग 12% इकाइयों ने अपने उत्पादों के लिये एडिटिव मेन्युफैक्चरिंग का उपयोग शुरू कर दिया है और उम्मीद जताई जा रही है कि अगले तीन से पाँच वर्षों में इसकी संख्या लगभग 25% तक हो जाएगी।
- इस तकनीक का उपयोग हेलमेट, दंत प्रत्यारोपण, चिकित्सा उपकरण, जेट इंजन के कुछ हिस्सों और यहाँ तक कि कार के पूरे ढाँचे को बनाने के लिये किया जाता है।
- साथ ही लगभग सभी श्रवण सहायक (hearing aid) उपकरणों के निर्माता अब एडिटिव मेन्युफैक्चरिंग का उपयोग कर रहें हैं।
- हालाँकि, विकासशील देशों के विनिर्माण क्षेत्र पर इस तकनीक का बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
- यह कारखानों की श्रमिकों पर निर्भरता को कम करता है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को दूर छोड़ देता है उल्लेखनीय है कि इस श्रृंखला ने चीन जैसे देशों को बड़े पैमाने पर उत्पादित वस्तुओं के निर्यात के माध्यम से समृद्ध बनाया है।
- यह पश्चिम के देशों में सॉफ्टवेयर आधारित डिज़ाइन प्लेटफॉर्मों के निर्माण हेतु नेतृत्व प्रदान कर सकता है जो छोटे सॉफ्टवेयर विनिर्माण सुविधा प्रदाताओं को कार्य का वितरण कर सकते हैं।
- सॉफ्टवेयर विनिर्माणकर्त्ता चाहे विकसित या विकासशील देशों में ही क्यों न स्थित हों, लेकिन आखिरकार यह सॉफ्टवेयर निर्माण और डिज़ाइन द्वारा भौतिक विनिर्माण कार्यों प्रतिस्थापित कर देता है।
- अतः स्पष्ट है कि यह तकनीक श्रम गहन विनिर्माण संबंधी निर्यातों के लिये कम लाभदायक हो सकती है।
भारत के लिये एक अवसर
- इस विनिर्माण प्रतिमान की कई विशेषताएँ हैं जो भारतीय पारिस्थितिक तंत्र को मज़बूती प्रदान कर सकती हैं।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस तकनीक से बड़े पूंजीगत व्यय को समाप्त किया जा सकता है क्योंकि इसमें प्रयुक्त मशीनें सस्ती होती है, साथ ही समय और लागत भी कम आती है एवं इसमें किसी बड़े स्थान/जगह की भी आवश्यकता नहीं होती है।
- इस प्रकार, इस क्षेत्र को चुनने वाले किसी विनिर्माणकर्त्ता को बड़ी पूंजी संबंधित बाधा का सामना नहीं करना पड़ता है और पारंपरिक सूक्ष्म एवं मध्यम उद्यमों को आसानी से इसके अनुकूल बनाया जा सकता है तथा उच्च प्रौद्योगिकी निर्माण की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है।
- भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग पहले से ही अच्छी स्थिति में है और 'डिजिटल इंडिया' के हिस्से के रूप में कनेक्टिविटी बढ़ाने की योजना भी प्रगति कर रही है।
- इस तरह यह 3D तकनीक डिजिटलीकरण में एक आवश्यक उपांग है और छोटे शहरों में विनिर्माण सुविधाओं के निर्माण और प्रमुख शहरों के बाहर औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये उपयोगी होगा।
- साथ ही इस तकनीक से भारत उन उत्पादों के निर्माण को संभव बना सकता है जो कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी उपयुक्त हैं इससे भारत के पर्यावरणीय संकल्प को भी वैश्विक प्रोत्साहन मिलता रहेगा।
- इसके अतिरिक्त भारत में जहाँ अभी भी ‘यूज एंड थ्रो’ धारणा व्याप्त है, वहाँ इस तकनीक से पुराने उत्पादों को बनाए रखना बहुत आसान है क्योंकि उत्पादों के विभिन्न भागों को आवश्यकतानुसार निर्मित किया जा सकता है तथा उत्पाद के जीवन चक्र को विस्तार दिया जा सकता है।
- हालाँकि जिन देशों ने पहले से ही भारी विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश किया है, उनके लिये अनुकूली विनिर्माण हेतु यह बदलाव करना कठिन और महंगा साबित होगा।
- ‘मेक इट द इंडियन वे’ के दृष्टिकोण को सार्वजनिक-निजी साझेदारी और बहुपक्षीय प्रयासों की आवश्यकता होगी।
- इसके लिये हमें विनिर्माण हेतु मशीनों और विधियों पर प्रमुख इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों में अनुसंधान में तेज़ी लाने के साथ ही उत्पाद डिज़ाइन केंद्रों के गठन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होगी ताकि उत्पाद को भारतीय पर्यावरण और उपभोक्ताओं के अनुरूप बनाया जा सके।
- हमें छोटे शहरों में वितरित विनिर्माण के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु सरकारी सहायता की भी आवश्यकता होगी और आईटी उद्योग के लिये प्लेटफॉर्म और मार्केटप्लेस बनाने पर काम करना होगा जो उपभोक्ता मांगों, उत्पाद डिज़ाइनरों और निर्माताओं को एक निर्बाध तरीके से जोड़ सके।