जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में भीषण गर्मी
यह एडिटोरियल 22/03/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “India Needs an Emergency Plan for Heat Extremes” लेख पर आधारित है। इसमें ग्रीष्म लहरों के प्रभाव के संबंध में चर्चा की गई है और इससे निपटने के उपायों पर विचार किया गया है।
संदर्भ
हाल ही में अंटार्कटिक के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान दर्ज किया गया जो औसत से 40 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है और आर्कटिक के क्षेत्र औसत से 30 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म पाए गए हैं। भारत के भी कई हिस्सों में शीत ऋतु के बाद सीधे ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो गया और बीच में वसंत का एक क्षणिक दौर भी नहीं आया। ग्रीष्म लहरें (Heat Waves) कुछ क्षेत्रों में असाधारण रूप से उच्च तापमान से संबद्ध हैं जो मनुष्यों और जंतुओं के लिये घातक भी हो सकती हैं। देश भर में ग्रीष्म लहरों के मामले बढ़ रहे हैं जबकि शीत लहरों (Cold Waves) की घटना में गिरावट की प्रवृत्ति नज़र आ रही है।
ग्रीष्म लहरें
- ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान (यानी सामान्य अधिकतम तापमान से भी अधिक तापमान) की अवधि है जो ग्रीष्मकाल के दौरान भारत के उत्तर-पश्चिमी और दक्षिण-मध्य भागों में उत्पन्न होती है।
- यह हवा के तापमान की ऐसी स्थिति है जो इसके संपर्क में आने पर मानव शरीर के लिये घातक हो जाती है।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की परिभाषा के अनुसार ऐसी स्थित जहाँ मैदानी इलाकों में कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तक तापमान हो, जबकि सामान्य तापमान से कम से कम 5-6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखने को मिलती हो, ग्रीष्म लहर के रूप में वर्गीकृत की जाती है।
- भारत के पहले से ही गर्म शहरों में ग्लोबल वार्मिंग और जनसंख्या वृद्धि का संयोजन ग्रीष्म जोखिम या ‘हीट एक्सपोज़र’ में वृद्धि का प्राथमिक चालक है।
- ‘अर्बन हीट आइलैंड’ (UHIs) भी शहरों के भीतर तापमान को बढ़ाता है जो ग्रीष्म लहर के दौरान और बढ़ जाता है।
- UHIs की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शहर प्राकृतिक भूमि आवरण को फुटपाथ, इमारतों एवं अन्य सतहों के घने सांद्रण से प्रतिस्थापित कर देते हैं जो ऊष्मा को अवशोषित करते हैं और इसे बनाए रखते हैं।
भारत में ग्रीष्म लहरों का परिदृश्य
- वर्ष 2021 में जारी ‘'द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज' (The Lancet Countdown on Health and Climate Change) के अनुसार वर्ष 2020 में भारत में बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ ‘हीट एक्सपोज़र’ के कारण कार्य घंटों में सर्वाधिक नुकसान (295 बिलियन घंटे) दर्ज किया गया है।
- भारत में आज वर्ष 1990 की तुलना में भीषण गर्मी की मात्रा में और अधिक 15% की बढ़ोत्तरी हो गई है।
- ग्रीष्म लहर संपर्क के कारण भारतीय के वृद्ध व्यक्ति सबसे अधिक प्रभावित होने वाले समूह में शामिल थे।
- अभी हाल ही में पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश हिस्से, महाराष्ट्र और गुजरात एवं ओडिशा के कुछ हिस्सों गंभीर ग्रीष्म लहर जैसी स्थिति से जूझते नज़र आए जहाँ अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया।
- पश्चिमी हिमालय के गिरिपाद में दिन और रात के तापमान में सामान्य से 7 से 10 डिग्री अधिक तापमान दर्ज किया गया।
- दिल्ली में हाल ही में 36.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया जो सामान्य से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
- IMD के दीर्घकालिक तापमान के रुझान संकेत देते हैं कि भारत में ग्रीष्म लहरों की आवृत्ति एवं चरमता को बढ़ाने में जलवायु संकट का स्पष्ट प्रभाव पड़ रहा है।
- वर्ष 1991 के बाद से ही देश में सभी ऋतुओं के औसत तापमान में तीव्र वृद्धि देखी गई है।
- तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति मानसून (जून से सितंबर) और मानसून बाद (अक्टूबर से दिसंबर) के मौसम में और स्पष्ट रूप से नज़र आती है।
ग्रीष्म लहरों के प्रभाव
- मृत्यु और रुग्णता: जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) ने AR6 रिपोर्ट के दूसरे भाग में रेखांकित किया है कि भीषण गर्मी मानव मृत्यु और रुग्णता का कारण बन रही है।
- बढ़ी हुई गर्मी से मधुमेह और परिसंचरण एवं श्वसन संबंधी बीमारियों के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों में भी वृद्धि होगी।
- फसल को नुकसान: ग्रीष्म लहरों के परिणाम कहीं अधिक जटिल हैं। गर्मी और सूखे की घटनाओं के साथ-साथ होने से फसल उत्पादन को नुकसान पहुँच रहा है और वृक्ष सूख रहे हैं।
- कम खाद्य उत्पादन और उच्च कीमतें: ग्रीष्म-प्रेरित श्रम उत्पादकता के नुकसान से अचानक खाद्य उत्पादन में आने वाली कमी से स्वास्थ्य एवं खाद्य उत्पादन के लिये जोखिम और अधिक गंभीर हो जाएँगे।
- ये परस्पर प्रभाव विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खाद्य कीमतों में वृद्धि करेंगे, घरेलू आय को कम करेंगे और कुपोषण एवं जलवायु से संबंधित होने वाली मौतों को बढ़ावा देंगे।
- श्रम उत्पादकता की हानि: एक उच्च शहरी आबादी का अर्थ ग्रीष्म-प्रेरित श्रम उत्पादकता की हानि भी है जिसके आर्थिक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।
- भीषण गर्मी के कारण कुछ दिनों काम करना संभव नहीं होता जिससे लाखों किसानों और निर्माण श्रमिकों की आय पर असर पड़ता है।
- वनाग्नि और सूखा: लैंसेट रिपोर्ट, 2021 के अनुसार 134 देशों की आबादी ने वनाग्नि में वृद्धि का अनुभव किया है, जबकि सूखे की स्थिति पहले से कहीं अधिक व्यापक होने लगी है।
आगे की राह
- अधिक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना: इस तरह की चरम गर्मी के प्रभाव को आम लोगों—दिहाड़ी मज़दूरों, किसान, व्यापारी, मछुआरे आदि के दृष्टिकोण से समझने की ज़रूरत है।
- जलवायु संकट के प्रभाव को दर्ज करने वाले आँकड़ों और ग्राफ से आगे बढ़ते हुए भीषण गर्मी में रहने के मानवीय अनुभव को नीति निर्माताओं द्वारा समझे जाने की आवश्यकता है और फिर उसके अनुरूप उपाय किये जाने चाहिये।
- शीतल आश्रय: सरकार को देश के विभिन्न हिस्सों में अत्यधिक गर्मी के कारण होने वाली पीड़ा और अक्षमता से निपटने हेतु एक नीति का निर्माण करना चाहिये।
- पियाऊ, बाहर काम करने के तय घंटे, इमारतों व घरों के लिये ठंडी छतें कुछ ऐसे उपाय हैं जिन्हें तुरंत कार्यान्वित किया जाना चाहिये।
- कई आपातकालीन शीतल आश्रय या कूलिंग शेल्टर खोले जा सकते हैं ताकि घरेलू एयर कंडीशनिंग सुविधा से वंचित लोग चरम गर्मी से बचने के लिये इसका लाभ ले सकें।
- पंखे और यहाँ तक कि बर्फ के साथ पोर्टेबल एयर कंडीशनिंग इकाइयाँ भी उपयोगी होंगी।
- अर्बन हीट आइलैंड्स को कम करने हेतु ‘पैसिव कूलिंग’: ‘पैसिव कूलिंग टेक्नोलॉजी’, जो प्राकृतिक रूप से हवादार इमारतों के निर्माण में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है, आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिये अर्बन हीट आइलैंड को संबोधित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती है।
- IPCC रिपोर्ट में प्राचीन भारतीय भवन डिज़ाइनों का हवाला दिया गया है जहाँ इस तकनीक का उपयोग किया गया है। ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में आधुनिक भवनों के लिये इसे अनुकूलित कर उपयोग किया जा सकता है।
- अहमदाबाद जैसी कार्ययोजनाएँ: IPCC रिपोर्ट में अहमदाबाद का उदाहरण दिया गया है जिसने ऊष्मा प्रतिरोधी भवनों द्वारा अत्यधिक गर्मी से निपटने का रास्ता दिखाया है।
- वर्ष 2013 में अहमदाबाद में ‘हीट एक्शन प्लान’ लागू होने के बाद पिछले कुछ वर्षों में गर्मी से होने वाली मृत्यु दर में 30-40% की कमी आई है। अहमदाबाद जैसी योजनाएँ अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में भी कार्यान्वित की जा सकती हैं।
- गहरे रंग की छतों को प्रतिस्थापित करना: ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों के अत्यधिक गर्म होने का एक बड़ा कारण है कि वे गहरे रंग की छतों, सड़कों और पार्किंग स्थल से ढके हुए हैं जो ऊष्मा को अवशोषित करते उसे रोक लेते हैं।
- दीर्घकालिक समाधानों में से एक यह हो सकता है कि गहरे रंग की सतहों को हल्के रंग और अधिक परावर्तन करने वाली सामग्री के साथ प्रतिस्थापित किया जाए इससे अपेक्षाकृत शीतल वातावरण का निर्माण होगा।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘भीषण गर्मी के स्वास्थ्य प्रभावों को कम करना एक तात्कालिक प्राथमिकता है और गर्मी-संबंधी मौतों को रोकने के लिये इसमें आधारभूत संरचना, शहरी पर्यावरण और व्यक्तिगत व्यवहार में तत्काल परिवर्तन लाना शामिल होना चाहिये।’’ चर्चा कीजिये।