एडिटोरियल (24 Mar, 2021)



अवैतनिक कार्य हेतु वेतन

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में महिलाओं को अवैतनिक कार्य हेतु वेतन दिये जाने की आवश्यकता और उससे संबंधित विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

भारत में प्रायः महिलाओं को अवैतनिक कार्य जैसे- घरेलू सेवाओं और देखभाल संबंधी सेवाओं का बोझ उठाना पड़ता है। यह ज़रूरी नहीं है कि महिलाएँ इस प्रकार के अवैतनिक कार्य को पसंद करती हैं अथवा वे इसमें कुशल हैं इसलिये इसमें संलग्न हैं, बल्कि पितृसत्तात्मक धारणा, जो कि लिंग असमानता का मूल कारण है, के चलते महिलाओं पर इस प्रकार के अवैतनिक कार्य थोपे जाते हैं। 

यद्यपि ये कार्य घरेलू स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर समग्र कल्याण में योगदान देते हैं, किंतु राष्ट्रीय डेटाबेस एवं विशेष रूप से राष्ट्रीय नीतियों में इस प्रकार के अवैतनिक कार्यों का कोई ज़िक्र नहीं मिलता है।

अतः लैंगिक समानता और न्याय के सिद्धांत का पालन करने हेतु इस प्रकार के अवैतनिक कार्य की पहचान करना और इस समस्या को सुधारने के लिये यथासंभव प्रावधान करना काफी महत्त्वपूर्ण है।

अवैतनिक कार्य को पहचान देने की आवश्यकता

  • अवसरों को सीमित करना: महिलाएँ प्रायः पारिश्रमिक, पदोन्नति या सेवानिवृत्ति आदि लाभों के बिना अदृश्य और अवैतनिक कार्य में संलग्न रहती हैं, जिससे अर्थव्यवस्था और जीवन में महिलाओं के लिये अवसर काफी सीमित हो जाते हैं। 
    • यही वजह है कि भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी दर लगभग 25 प्रतिशत है।
  • अर्थव्यवस्था में समावेशन: प्रायः महिलाओं द्वारा अपने परिवार के सदस्यों के लिये अवैतनिक आधार पर वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है और यदि जीडीपी को अर्थव्यवस्था के कुल उत्पादन एवं खपत को मापने का एक उपाय माना जाए, तो इसमें घर में किये जाने वाले अवैतनिक कार्यों को भी शामिल किया जाना आवश्यक है। 
    • निजी स्तर पर किये गए अवैतनिक कार्य को ‘लोकहित’ के रूप में देखा जा सकता है, जो कि समग्र अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • निजी क्षेत्र की सहायता: वृहद स्तर पर अवैतनिक कार्य में संलग्न महिलाएँ निजी क्षेत्र को श्रमिकों (मानव पूंजी) की आपूर्ति करके और परिवार के सदस्य के रूप में श्रमिकों की देखभाल करके निजी क्षेत्र की काफी सहायता करती हैं।
  • सरकार की सहायता: इसी तरह अवैतनिक कार्य में संलग्न महिलाएँ वृद्ध, बीमार और दिव्यांग लोगों की देखभाल कर सरकार की भी सहायता करती हैं जिसके अभाव में ऐसे कार्यों को कराने के लिये सरकार को बड़ी मात्रा में धन खर्च करना पड़ सकता है। 

अवैतनिक कार्य की क्षतिपूर्ति संबंधी चुनौतियाँ

  • क्रियान्वयन संबंधी मुद्दे: आर्थिक सर्वेक्षण-2019 में इस प्रकार के अवैतनिक कार्य को मान्यता दिया जाना एक सकारात्मक प्रयास है। हालाँकि इसके क्रियान्वयन में सरकार के समक्ष काफी चुनौतियाँ (जैसे- सरकार की सामर्थ्य और धनराशि की गणना) आदि समस्याँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • ‘महिलाओं के कार्य’ संबंधी धारणा की पुष्टि: कई आलोचक मानते हैं कि महिलाओं को गृह कार्य के लिये भुगतान करने से हम इस धारणा को और मज़बूत कर देंगे कि ‘घरेलू और देखभाल’ संबंधी कार्य केवल महिलाओं के लिये हैं।
  • नियोक्ता-कर्मचारी संबंध: कई विश्लेषक वेतन या मुआवज़ा जैसे शब्दों के प्रयोग को चिंताजनक मानते हैं, क्योंकि यह नियोक्ता-कर्मचारी संबंध को दर्शाता है, जहाँ नियोक्ता अपने अधीनस्थ कर्मचारी पर अनुशासनात्मक नियंत्रण रखता है।
  • पुरुषों की स्थिति मज़बूत होना: घरेलू कार्यों हेतु पत्नी को भुगतान किये जाने से भारतीय पितृसत्तात्मक परिवार की अवधारणा का और अधिक औपचारिक होने का खतरा है क्योंकि इन परिवारों में पुरुष को ‘प्रदाता’ के रूप में देखा जाता है।
  • सरकार पर बोझ: अभी भी इस मुद्दे पर बहस चल रही है कि महिलाओं द्वारा किये गए गृहकार्य का भुगतान कौन करेगा, अगर यह राज्य द्वारा किया जाना है तो इससे सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। 

आगे की राह

अवैतनिक कार्य की क्षतिपूर्ति से संबंधित किसी भी सार्वजनिक नीति का उद्देश्य ‘मान्यता, कटौती और पुनर्वितरण’ के सिद्धांत के माध्यम से अवैतनिक घरेलू एवं देखभाल कार्यों में मौजूद उच्च लैंगिक अंतर को कम करना होना चाहिये।

  • मान्यता देना: महिलाओं को घरेलू कार्य के लिये वेतन का भुगतान, इस तथ्य की एक औपचारिक मान्यता है कि अवैतनिक घरेलू और देखभाल कार्य, प्रायः पुरुषों द्वारा किये जाने वाले वैतनिक कार्य से कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
    • सरकार सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय डेटाबेस में अवैतनिक कार्य को मान्यता दे सकती है और इस डेटाबेस का उपयोग राष्ट्रीय नीतियों में किया जा सकता है।
  • कटौती: महिलाओं के अवैतनिक बोझ को निम्नलिखित तरीकों से कम किया जा सकता है:
    • प्रौद्योगिकी में सुधार (जैसे खाना पकाने के लिये बेहतर ईंधन)।
    • बेहतर अवसंरचना (जैसे सभी घरों में जल की व्यवस्था)।
    • कुछ अवैतनिक कार्यों को मुख्य अर्थव्यवस्था में स्थानांतरित करना (दिव्यांग, बीमार, बच्चों और वृद्धों आदि की देखभाल)।
    • महिलाओं के लिये बुनियादी सेवाओं (जैसे स्वास्थ्य और परिवहन) को सुलभ बनाना।
  • पुनर्वितरण: नीतिगत उपायों में पुरुषों और महिलाओं के बीच कार्य के पुनर्वितरण का प्रयास किया जाना चाहिये, जिसके तहत पुरुषों को गृहकार्य और देखभाल संबंधी कार्यों के लिये प्रशिक्षण और गृहकार्य साझा करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन आदि शामिल हो सकते हैं।
    • ये उपाय महिलाओं को स्वयं के लिये समय निकालने और जीवन में नए अवसर तलाशने में सहायता करेंगे।
    • इसके अलावा वृद्ध महिलाओं (60+ वर्ष) को पेंशन दिया जाना उनके अवैतनिक कार्यों की भरपाई के लिये एक बेहतर विचार हो सकता है।

निष्कर्ष

महिलाओं के अवैतनिक कार्यों के बोझ को कम करना और आर्थिक विकास में उनकी क्षमताओं का यथासंभव प्रयोग करना, न केवल लैंगिक समानता के लिये बल्कि अर्थव्यवस्था के वास्तविक लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु काफी महत्त्वपूर्ण है।

अभ्यास प्रश्न: निजी स्तर पर किये गए अवैतनिक कार्य को ‘लोकहित’ के रूप में देखा जा सकता है, जो कि समग्र अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिये।