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  • 23 Nov, 2020
  • 16 min read
शासन व्यवस्था

बाँध सुरक्षा और सरकार के प्रयास

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में बाँध सुरक्षा की चुनौतियों और इस संदर्भ में सरकार के प्रयासों के साथ इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

बाँध दशकों से हमारी अर्थव्यवस्था और आधुनिक जीवनशैली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। पिछले कुछ दशकों के दौरान बाँधों ने विश्व में उभरती नई अर्थव्यवस्थाओं को गति प्रदान करने के साथ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार, चीन की यांग्त्ज़ी नदी पर बने ‘थ्री गॉर्जेस डैम’ के पूर्ण रूप से सक्रिय होने के बाद इसने पृथ्वी की घूर्णन गति को 0.6  माइक्रोसेकंड धीमा कर दिया था। बाँधों की यही शक्ति लोगों को प्रभावित करने के साथ भयभीत भी करती है। बाँध देश की प्रगति और समृद्धि की कुंजी तो होते हैं परंतु यदि समय-समय पर इनकी सही देख-रेख न की जाए तो यह मानव जीवन और संपत्ति के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था में बाँधों की भूमिका:   

  • बाँधों की संख्या के मामले अमेरिका और चीन के बाद भारत (लगभग 5,745) का विश्व में तीसरा स्थान है।
  • ऊर्जा उत्पादन के साथ ही भारत में दशकों से बाँधों ने कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के तीव्र तथा स्थायी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • वर्तमान में देश में उत्पादित कुल विद्युत ऊर्जा का लगभग 12.2% (लगभग 45,699 मेगावाट) जलविद्युत संयंत्रों से प्राप्त होता है।   
  • साथ ही देश में कृषि सिंचाईं तंत्र को मज़बूत बनाने में भी बाँध महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • गौरतलब है कि बाँधों के निर्माण का एक उद्देश्य बाढ़ को रोकना होता है परंतु ये बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि के प्रमुख कारक भी हैं।
  • वर्ष 1979 में गुजरात के मोर्बी ज़िले के मच्छू बाँध आपदा में हज़ारों लोगों की मृत्यु देश में बाँधों के रखरखाव और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिये जाने के लिये सबसे बड़ी चेतावनी थी। 
  • भारत में बड़ी संख्या में बाँधों की अधिक आयु को देखते हुए एक मज़बूत ‘बाँध सुरक्षा नीति’ को अपनाया जाना आवश्यक हो गया है। 

भारत में जलविद्युत ऊर्जा का भविष्य:  

  • एक अनुमान के अनुसार, भारत में उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से 1,45,320 मेगावाट (छोटी पनबिजली परियोजनाओं को छोड़कर) तक विद्युत उत्पादन किया जा सकता है।
  • गौरतलब है कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2030 तक देश में उत्पादित कुल विद्युत ऊर्जा में से 40% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • हालाँकि पिछले 10 वर्षों में देश में विद्युत उत्पादन प्रणाली में शामिल  पनबिजली संयंत्रों की क्षमता में मात्र 10,000 मेगावाट की वृद्धि की जा सकी है।
  • साथ ही देश में सर्वाधिक बाँध वाले कई राज्यों में सिंचित क्षेत्र में भी अपेक्षित वृद्धि नहीं देखी गई है।    

बाँध सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियाँ:  

  • देश में एक बड़ी संख्या ऐसे बाँधों की है जिनका निर्माण बहुत पहले किया गया था, नवीन तकनीकी के अभाव में इन बाँधों में गाद जमा होने के साथ कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • गौरतलब है कि वर्तमान में देश के कुल बाँधों में से लगभग 18% (973) बाँधों का निर्माण 50 से 100 वर्ष पूर्व किया गया था।
  • साथ ही लगभग 56% बाँधों का निर्माण  25 से 50 वर्ष पूर्व किया गया था।
  • बाँधों में अत्यधिक गाद के जमा होने से बाँधों में जल संग्रह करने की क्षमता कम हो जाती है और इससे अपेक्षित मात्रा में जल एकत्र करने के दौरान दीवारों पर दबाव भी बढ़ता है।  
  • देश में 92% बाँधों का निर्माण अंतर्राज्यीय प्रवाह वाली नदियों पर किया गया है, ऐसे में बहुत से बाँधों पर उनकी भौगोलिक अवस्थिति के विपरीत किसी दूसरे राज्य का स्वामित्व है। 
  • भारतीय संविधान के तहत जल और इससे जुड़े संसाधनों को राज्य सूची में रखा गया है, ऐसे में जल से संबंधित मामलों में केंद्र सरकार का स्वतंत्र हस्तक्षेप सीमित ही रहता है।

अन्य मुद्दे: 

  • साथ ही ‘नदी बोर्ड अधिनियम, 1956’ के पारित होने के इतने वर्षों बाद भी आज तक देश में एक भी नदी बोर्ड की स्थापना नहीं की गई, जो इस क्षेत्र में कार्य करने के मामले में सरकारों की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है।     

सरकार के प्रयास:

  • हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा ‘बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना’ (Dam Rehabilitation and Improvement Project- DRIP) के चरण-II और चरण-III को मंज़ूरी दी गई है।
  • विश्व बैंक और ‘एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक’ (Asian Infrastructure Investment Bank- AIIB) द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त इस परियोजना की कुल लागत 10,211 करोड़ रुपए है। 
  • दूसरे और तीसरे चरण के कुल बजट में से 7,000 करोड़ रुपए बाहरी सहायता के रूप में विश्व बैंक और AIIB से प्राप्त होंगे, जबकि शेष 3,211 करोड़ रुपए संबंधित कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा प्रदान किये जाएंगे।   
  • केंद्र सरकार के अनुसार, यह परियोजना देश में जल सुरक्षा, भविष्य के खतरों के प्रति प्रतिक्रिया और देश भर में बाँधों के बुनियादी ढाँचे से संबंधित आपातकालीन कार्ययोजना को मज़बूत करने की दिशा एक सकारात्मक कदम है।
  • गौरतलब है कि DRIP की शुरुआत केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2012 में 6 वर्षों की अवधि के लिये की गई थी।  
  • हालाँकि वर्ष 2018 में इस परियोजना की लागत 3466 करोड़ रुपए करते हुए इसे वर्ष 2020 तक बढ़ा दिया गया था।      
  • इस योजना के तहत अब तक 207 बाँधों की मरम्मत, बाँध टूटने के विश्लेषण, आपातकालीन कार्ययोजना की तैयारी, पेशेवर प्रशिक्षण और संस्थानों को मज़बूत करने की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये गए हैं।
  • वर्तमान में DRIP के ‘बाँध स्वास्थ्य एवं पुनर्वास निगरानी अनुप्रयोग’ (Dam Health and Rehabilitation Monitoring Application-DHARMA) कार्यक्रम के तहत देश के 18 राज्यों में 5000 से अधिक बाँधों से डेटा एकत्र किया जाता है। 

DRIP का विस्तार: 

  • केंद्र सरकार द्वारा इस परियोजना के विस्तार के निर्णय के बाद अब इसे वर्ष 2021-31 के बीच दो चरणों में लागू किया जाएगा, जिसमें प्रत्येक चरण 6 वर्षों का होगा। 
  • इस परियोजना के आगामी चरण में बाँध सुरक्षा से जुड़े परिचालन अधिदेश जैसे- संरचनात्मक सुरक्षा, निगरानी, रखरखाव आदि से जुड़े प्रयासों को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। 
  • जल से संबंधित अधिकार राज्यों के पास होने के बावजूद DRIP बाँधों के प्रबंधन और रखरखाव के संदर्भ में राज्यों की चिंताओं को दूर करने में सफल रहा है। 
  • DRIP के तहत साप्ताहिक पर्यटन, वाटर स्पोर्ट, मत्स्य पालन और सौर ऊर्जा के साथ अन्य संबद्ध गतिविधियों पर ज़ोर देते हुए बाँधों के प्रबंधन में संरचनात्मक तथा आर्थिक लचीलेपन के बीच एक आदर्श संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया है।     

बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019:   

  • बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 को अगस्त 2019 में लोकसभा से पारित किया गया था।
  • यह विधेयक देश के अलग-अलग राज्यों में स्थित बाँधों के परिचालन, रखरखाव, निरीक्षण आदि का प्रावधान करता है।
  • इसके तहत बाँध सुरक्षा से संबंधित नीतियों और मानदंडों के निर्माण, बड़े बाँधों के टूटने के कारणों का विश्लेषण और इसमें आवश्यक सुधार हेतु सुझाव देने के लिये के लिये एक राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति की स्थापना की बात कही गई है।
  • साथ ही बाँधों की निरंतर निगरानी, सभी बाँधों का डेटाबेस तैयार करने और बाँध प्रबंधन से जुड़ी संस्थाओं को सुरक्षा संबंधी सुझाव देने हेतु ‘राज्य बाँध सुरक्षा संगठनों’ (State Dam Safety Organisation- SDSOs) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है।
  • इस विधेयक के तहत दंड का भी प्रावधान किया गया है, जिसके अंतर्गत  किसी व्यक्ति को अपना कार्य करने से रोकने या विधेयक के अंतर्गत जारी निर्देशों के अनुपालन से इनकार करने की स्थिति में दोषी व्यक्ति को  एक वर्ष के कारावास का दंड दिया जा सकता है।

बाँध परियोजनाओं में विलंब का कारण: 

  • बाँधों का निर्माण मात्र एक अभियांत्रिकी उपक्रम ही नहीं है बल्कि इससे बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव भी देखने को मिलते हैं, ऐसे में इन परियोजनाओं के लिये सरकार की अनुमति मिलने में काफी समय लग जाता है।
  • बाँधों से जुड़ी अधिकांश परियोजनाएँ बहुत ही दुर्गम क्षेत्र में स्थित होती हैं ऐसे में क्षेत्र में नवीनतम मशीनरी और अन्य संसाधनों की पहुँच के लिये अवसंरचना विकास पर होने वाला खर्च इसकी लागत को बढ़ा देता है।

समाधान:      

  • केंद्र सरकार द्वारा मार्च 2019 में बड़ी पनबिजली परियोजनाओं को नवीकरणीय ऊर्जा का दर्जा प्रदान किया गया, जिससे इस श्रेणी की नई पनबिजली परियोजनाओं का वित्तीय प्रबंधन आसान हो गया।
  • साथ ही विद्युत अधिनियम में संशोधन के बाद वितरकों द्वारा पनबिजली परियोजनाओं से उत्पादित विद्युत की  अनिवार्य  खरीद  भी सुनिश्चित की जा सकेगी, जिससे बाँधों के बेहतर रखरखाव के लिये वित्तीय निरंतरता सुनिश्चित की जा सकेगी।
  • बाँधों की सुरक्षा कई बाहरी कारकों जैसे-परिदृश्य, भूमि उपयोग के पैटर्न में परिवर्तन, वर्षा का पैटर्न, संरचनात्मक विशेषताएँ आदि पर निर्भर करती है, ऐसे में सरकार को बाँधों के सुरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाने के लिये इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना होगा।
  • हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की अवधि और आवृत्ति में व्यापक बदलाव देखने को मिला है, ऐसे में मौसम पूर्वानुमान प्रणाली में आवश्यक सुधार के माध्यम से बाँधों के प्रबंधन तथा रखरखाव के मामले में निर्णय लेने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • देश में उपलब्ध संसाधनों से सभी के हित जुड़े हुए हैं परंतु स्वतंत्रता के बाद से नए राज्यों के निर्माण के साथ-साथ संसाधनों के वितरण की प्रक्रिया जटिल होती चली गई है, ऐसे में केंद्र व राज्य सरकारों को नागरिकों के हितों को देखते हुए संसाधनों को साझा करने, इनके रखरखाव और इससे जुड़े अंतर्राज्यीय विवादों के समाधान हेतु मिलकर कार्य करना चाहिये।

निष्कर्ष: 

बाँध न सिर्फ देश की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में योगदान देते हैं बल्कि ये देश में जल संकट की चुनौती से निपटने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे दैनिक जीवन के महत्त्वपूर्ण घटकों से जुड़े होने के कारण बाँधों का नियमित रखरखाव देश के सतत् विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा  की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। केंद्र सरकार द्वारा DRIP की शुरुआत इस दिशा में एक सकारात्मक पहल है, हालाँकि सरकार को बाँध सुरक्षा अधिनियम के संदर्भ में राज्यों की चिंताओं पर विचार करते हुए देश में बाँधों के प्रबंधन से जुड़े सभी हितधारकों के साझा सहयोग को सुनिश्चित करने पर भी विशेष ध्यान देना चाहिये।     

अभ्यास प्रश्न: देश की अर्थव्यवस्था में बाँधों की भूमिका की समीक्षा करते हुए देश में बाँधों की सुरक्षा से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों और इसके समाधान के प्रयासों पर चर्चा कीजिये।


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