भारतीय राजनीति
जीएसटी और राजकोषीय संघवाद
यह एडिटोरियल 21/05/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The Business of Federalism” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के राजकोषीय संघवाद (Fiscal Federalism) के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) से उत्पन्न चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है।
संदर्भ
वित्तीय संसाधनों के आवंटन से लेकर वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दरों को तय करने तक के विभिन्न मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के बीच चल रहे विवाद ने एक बार फिर हमारी संघीय संरचना से संबद्ध समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया है और देश की प्रगति के लिये इनका समाधान किया जाना आवश्यक है।
- संघवाद के प्रति पारंपरिक दृष्टिकोण—जहाँ प्रतिस्पर्द्धा और सहकारिता के बीच गहरी असहमति देखी जाती है, 1990 के दशक के बाद के परिदृश्य में अब प्रासंगिक नहीं रह गया है। सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी भावना का संयोजन समतापूर्ण और न्यायसंगत तरीके से राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि और कल्याण सुनिश्चित करता है।
- सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा के प्रति एक अनुरूप दृष्टिकोण अपनाकर ही विश्व मंच पर भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ते कद को और सुदृढ़ किया जा सकता है।
संघवाद
- संघवाद (Federalism) मूलतः एक द्वैध शासन प्रणाली है जिसमें एक केंद्र और कई राज्य शामिल होते हैं। संघवाद भारतीय संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) के प्रमुख स्तंभों में से एक है।
- संघीय सिद्धांतकार के.सी. व्हेयर ने भारतीय संविधान को अर्द्ध-संघीय (Quasi-Federal) प्रकृति का माना है।
- सत पाल बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (वर्ष 1969) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी माना कि भारत का संविधान संघीय या एकात्मक की तुलना में अर्द्ध-संघीय अधिक है।
- राज्यों और केंद्र से संबंधित विधायी शक्तियाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245 से 254 तक में उपलब्ध हैं।
संघवाद की भावना को बढ़ावा देने के हाल के प्रयास
- नीति आयोग के कार्यकरण में राज्यों को अधिक स्वतंत्रता प्रदान करना, मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की लगातार बैठकें और राज्यपालों के साथ भारत के राष्ट्रपति की आवधिक बैठकें इस दिशा में किये गए हाल के प्रयास हैं।
- विकास प्रयासों की प्रगति के समीक्षा के लिये ‘प्रगति’ (PRAGATI- Pro-Active Governance and Timely Implementation) के कार्यान्वयन ने केंद्र और राज्यों के बीच अपेक्षित सामंजस्य का भी सृजन किया है।
GST के संबंध में राज्यों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियाँ
- GST ने राज्यों को उपलब्ध अधिकांश स्वायत्तता का अंत कर दिया है और देश की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था को प्रकृति में एकात्मक बना दिया है।
- वर्ष 2017 में GST लागू होने के बाद राज्य सरकारों ने अपनी स्वतंत्र कराधान की शक्तियाँ खो दीं।
- GST व्यवस्था से बाहर केवल शराब और ईंधन दो महत्त्वपूर्ण मद रह गए हैं जहाँ राज्य केंद्र सरकार से अनुमोदन प्राप्त किये बिना स्वयं के राजस्व सृजित कर सकते हैं।
- भारत की GST व्यवस्था ‘मुआवजे की गारंटी’ की एक ढीली व्यवस्था के साथ कार्यान्वित है जहाँ राज्यों ने गारंटीकृत राजस्व के बदले अपनी वित्तीय शक्तियों का समर्पण कर दिया है।
- हालाँकि कोविड-19 महामारी के दौरान GST शासन के तहत राज्यों को प्राप्त मुआवजे की गारंटी का केंद्र सरकार ने बार-बार उल्लंघन किया। राज्यों को उनके बकाया का भुगतान करने में देरी से आर्थिक मंदी का प्रभाव और गहन हो गया।
- GST मुआवजे की अवधि जून 2022 में समाप्त हो रही है और राज्यों द्वारा बार-बार अनुरोधों के बावजूद इसकी समय-सीमा नहीं बढ़ाई गई है।
GST के संबंध में संघवाद पर सर्वोच्च न्यायालय का हाल का निर्णय
- हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में लोकतंत्र के हित के लिये ‘सहकारी संघवाद’ (Cooperative Federalism) की भावना का आह्वान करते हुए यह मत व्यक्त किया कि संघ और राज्य विधानसभाओं के पास वस्तु एवं सेवा कर के मामले में विधि-निर्माण की ‘‘एकसमान, समवर्ती और अद्वितीय शक्तियाँ’’ (Equal, Simultaneous and Unique Powers) हैं, और GST परिषद की अनुशंसाएँ उन पर बाध्यकारी नहीं हैं।
- शीर्ष अदालत का यह निर्णय गुजरात उच्च न्यायालय के उस निर्णय की पुष्टि में आया जहाँ कहा गया था कि केंद्र भारतीय आयातकों के समुद्री माल पर एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (Integrated Goods and Services Tax- IGST) नहीं लगा सकता।
- सरल शब्दों में, संसद और राज्य विधानमंडलों के पास GST के तहत विधि-निर्माण की समवर्ती शक्तियाँ हैं।
आगे की राह
- राज्यों के प्रति संशोधित दृष्टिकोण: केंद्र राज्यों की चिंताओं और राजकोषीय दुविधाओं के प्रति अधिक सुलहपूर्ण होने का प्रयास कर सकता है।
- राजकोषीय संघवाद पर महत्त्वपूर्ण संवाद को सही दिशा में आगे बढ़ाने और भरोसे की कमी को दूर करने के लिये परिषद को अधिकाधिक बैठकें करनी चाहिये।
- कई सुधार लंबित पड़े हैं जिनके लिये केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। भारत की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने के लिये और भूमि, श्रम बाज़ार एवं कृषि जैसे पीछे रह गए क्षेत्रों को आगे ले जाने के लिये यह सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
- क्षैतिज और लंबवत स्तर पर सहयोग: केंद्र और राज्यों के बीच लंबवत (केंद्र और राज्यों के बीच) और क्षैतिज (राज्यों के बीच) दोनों स्तरों पर साथ ही विभिन्न मोर्चों पर सहयोग आवश्यक है।
- इसमें वांछित परिणामों के लिये विकासात्मक उपायों का सुसामंजन, विकास संबंधी नीतिगत निर्णय, कल्याणकारी उपाय, प्रशासनिक सुधार, रणनीतिक निर्णय आदि सभी शामिल हैं।
- GST परिषद में सुधार: यह GST तंत्र में सुधार का उपयुक्त समय है। आवश्यकता यह है कि GST परिषद में कार्यकुशलता आए, भले ही न्यायालय ने कहा हो कि परिषद राजनीतिक होड़ की भी उतनी ही जगह है जितनी सहकारी संघवाद की।
- परिषद को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से परे जाकर कार्य करना चाहिये।
- परिषद में राज्यों के पास असहमति का अधिकार होना चाहिये और निर्णयन की सर्वसम्मति के नाम पर उनकी आवाज़ दबाई नहीं जानी चाहिये।
सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहन: कैसे और क्यों?
- कैसे:
- राज्यों को एक-दूसरे के सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर संघवाद के प्रतिस्पर्द्धात्मक पहलू का सकारात्मक उपयोग किया जा सकता है। यह सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा लंबवत और क्षैतिज रूप से सुनिश्चित की जा सकती है।
- निवेश आकर्षित करने की दिशा में राज्यों के सकारात्मक प्रयास शहरी और पिछड़े क्षेत्रों में समान रूप से आर्थिक गतिविधियों के लिये अनुकूल वातावरण तैयार कर सकते हैं।
- एक पारदर्शी रैंकिंग प्रणाली के साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा संघीय ढाँचे की वृहत लेकिन अब तक अप्रयुक्त क्षमता के पूर्ण भौतिककरण को सुनिश्चित करेगी।
- राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा से उन्हें स्थानीय व्यवसायों के लिये आवश्यक सहक्रियाओं के नवोन्मेष और सृजन में भी मदद मिलेगी।
- क्यों:
- सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाने और ज़मीनी स्तर पर सुधारों को लागू करने से MSMEs के लिये कारोबार सुगमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- यह भारत की विनिर्माण क्षमता को अगले स्तर तक बढ़ाएगा और भारत की विकास कथा को मौलिक रूप से रूपांतरित करेगा।
- आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि के परिणामस्वरूप GST का उच्च संग्रह होगा और इससे सरकार के कल्याणकारी उपायों को बढ़ावा मिलेगा।
- राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के साथ केंद्र का उन्हें सहयोग एवं समर्थन वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को साकार कर सकता है।
- संबंधित पहल:
- राज्यों के बीच सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने में नीति आयोग के क्षेत्र-विशिष्ट सूचकांकों ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। ऐसे सूचकांक हैं:
- स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक
- सतत विकास लक्ष्य सूचकांक
- राज्य स्वास्थ्य सूचकांक
- भारत नवाचार सूचकांक
- समग्र जल प्रबंधन सूचकांक
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक
- राज्यों के बीच सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने में नीति आयोग के क्षेत्र-विशिष्ट सूचकांकों ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। ऐसे सूचकांक हैं:
अभ्यास प्रश्न: ‘‘यह निर्विवाद है कि किसी देश की संघीय संरचना के सुचारू कार्यकरण के लिये सहयोग महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि, यदि इसे राज्यों के बीच सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा के साथ संयुक्त कर दिया जाए तो यह देश भर में बड़े पैमाने पर आर्थिक विकास का समग्र परिणाम देगा।’’ टिप्पणी कीजिये।