भारत-नेपाल संबंध: वर्तमान परिदृश्य
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत-नेपाल संबंध व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
हाल ही में भारत के लिये स्थिति उस समय असहज हो गई जब कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये भारत द्वारा लिपुलेख-धाराचूला मार्ग के उद्घाटन करने के बाद नेपाल ने इसे एकतरफा गतिविधि बताते हुए आपत्ति जताई। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने यह दावा किया कि महाकाली नदी के पूर्व का क्षेत्र नेपाल की सीमा में आता है। विदित है कि नेपाल ने आधिकारिक रूप से नवीन मानचित्र जारी किया गया, जो उत्तराखंड के कालापानी (Kalapani) लिंपियाधुरा (Limpiyadhura) और लिपुलेख (Lipulekh) को अपने संप्रभु क्षेत्र का हिस्सा मानता है। निश्चित रूप से नेपाल की इस प्रकार की प्रतिक्रिया ने भारत को अचंभित कर दिया है। इतना ही नहीं नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी शर्मा ओली (K.P. Sharma Oli) ने नेपाल में कोरोना वायरस के प्रसार में भारत को दोष देकर दोनों देशों के बीच संबंधों को तनावपूर्ण कर दिया है।
वस्तुतः इसे ‘चीनी जादू’ कहा जाए या नेपाल की कूटनीतिक चाल कि पिछले कुछ वर्षों से लगातार भारत को परेशान करने की कोशिश हो रही है। भारत इन सभी कोशिशों को नेपाल की चीन से बढ़ती नजदीकी के रूप में देख रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराने रिश्ते पर ‘चीनी चाल’ भारी पड़ रही है? या फिर यह मान लिया जाए कि हालिया दिनों में नेपाल ज़रूरत से ज्यादा महत्त्वाकांक्षी बन गया है और भारत उसकी आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर रहा।
इस आलेख में भारत-नेपाल के ऐतिहासिक संबंधों की पृष्ठभूमि, दोनों देशों के मध्य सहयोग के क्षेत्र, दोनों देशों के मध्य विवाद के बिंदु तथा इसमें चीन की भूमिका और भारत के लिये नेपाल के महत्त्व पर विमर्श किया जाएगा।
भारत-नेपाल संबंधों की पृष्ठभूमि
- नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण वह हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है।
- भारत और नेपाल हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं, उल्लेखनीय है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है।
- वर्ष 1950 की ‘भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि’ दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है।
भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि
- यह भारत और नेपाल के मध्य द्विपक्षीय संधि है जिसका उद्देश्य दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के बीच घनिष्ठ रणनीतिक संबंध स्थापित करना है।
- यह संधि दोनों देशों के बीच लोगों और वस्तुओं की मुक्त आवाजाही और रक्षा एवं विदेशी मामलों के बीच घनिष्ठ संबंध तथा सहयोग की अनुमति देती है।
- साथ ही यह संधि नेपाल को भारत से हथियार खरीदने की सुविधा भी देती है।
- इस संधि के द्वारा नेपाल को एक भू-आबद्ध (Land-lock) देश होने के कारण कई विशेषाधिकारों को प्राप्त करने में सक्षम बनाया है।
- भारत-नेपाल की खुली सीमा दोनों देशों के संबंधों की विशिष्टता है, जिससे दोनों देशों के लोगों को आवागमन में सुगमता रहती है।
- दोनों देशों के बीच 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी साझा सीमा है, जिससे भारत के पाँच राज्य--सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड जुड़े हैं।
- भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं है। लगभग 98% प्रतिशत सीमा की पहचान व उसके नक्शे पर सहमति बन चुकी है, कुछ क्षेत्रों को लेकर विवाद है जिसे बातचीत के माध्यम से सुलझाने की प्रक्रिया चल रही है।
सहयोग के विभिन्न क्षेत्र
- सांस्कृतिक व धार्मिक क्षेत्र
- नेपाल और भारत दुनिया के दो प्रमुख धर्मों-हिंदू और बौद्ध धर्म के विकास के आसपास एक सांस्कृतिक इतिहास साझा करते हैं।
- बुद्ध का जन्म वर्तमान नेपाल में स्थित लुम्बिनी में हुआ था। बाद में बुद्ध ज्ञान की खोज में वर्तमान भारतीय क्षेत्र बोधगया आए, जहाँ उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। बोधगया से महात्मा बुद्ध और उनके अनुयायियों ने विश्व के कोने-कोने तक बौद्ध धर्म का प्रसार किया।
- भारत व नेपाल दोनों ही देशों में हिंदू व बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग हैं।
- रामायण सर्किट की योजना दोनों देशों के मज़बूत सांस्कृतिक व धार्मिक संबंधों का प्रतीक है।
- सामाजिक क्षेत्र
- भारत-नेपाल की खुली सीमा दोनों देशों के संबंधों की विशिष्टता है, जिससे दोनों देशों के लोगों को आवागमन में सुगमता रहती है।
- दोनों देशों के नागरिकों के बीच आजीविका के साथ-साथ विवाह और पारिवारिक संबंधों की मज़बूत नींव है। इस नींव को ही ‘रोटी-बेटी का रिश्ता’ नाम दिया गया है।
- आर्थिक क्षेत्र
- भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार होने के साथ-साथ विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत है।
- भारत, नेपाल को अन्य देशों के साथ व्यापार करने के लिये पारगमन सुविधा भी प्रदान करता है। नेपाल अपने समुद्री व्यापार के लिये कोलकाता बंदरगाह का उपयोग करता है।
- भारतीय कंपनियाँ नेपाल में विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न हैं। इन कंपनियों की नेपाल में विनिर्माण, बिजली, पर्यटन और सेवा क्षेत्र में उपस्थिति है।
- अवसंरचना विकास क्षेत्र
- भारत सरकार नेपाल में ज़मीनी स्तर पर बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए समय-समय पर विकास सहायता प्रदान करती है।
- इसमें बुनियादी ढाँचे में स्वास्थ्य, जल संसाधन, शिक्षा, ग्रामीण और सामुदायिक विकास जैसे मुद्दे शामिल हैं।
- रक्षा सहयोग क्षेत्र
- द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के तहत उपकरण और प्रशिक्षण के माध्यम से नेपाल की सेना का आधुनिकीकरण शामिल है।
- भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट्स में नेपाल के पहाड़ी इलाकों से भी युवाओं की भर्ती की जाती है।
- भारत वर्ष 2011 से नेपाल के साथ प्रति वर्ष ‘सूर्य किरण’ नाम से संयुक्त सैन्य अभ्यास करता आ रहा है।
- आपदा प्रबंधन
- नेपाल में अक्सर भूकंप, भू-स्खलन और हिमस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा रहता है। ऐसा मुख्य रूप से भौगोलिक कारकों के कारण होता है क्योंकि नेपाल एक प्राकृतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है।
- भारत आपदा से संबंधित ऐसे किसी भी मामलें में कर्मियों की सहायता के साथ-साथ तकनीकी और मानवीय सहायता भी प्रदान करता रहा है।
- संचार क्षेत्र
- नेपाल एक भू-आबद्ध देश है जो तीन तरफ से भारत से और एक तरफ तिब्बत से घिरा हुआ है।
- भारत-नेपाल ने अपने नागरिकों के मध्य संपर्क बढ़ाने और आर्थिक वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कनेक्टिविटी कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- हाल ही में भारत के रक्सौल को काठमांडू से जोड़ने के लिये इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक बिछाने हेतु दोनों सरकारों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
विवाद के बिंदु
- भारत व नेपाल के मध्य हालिया विवाद का कारण उत्तराखंड के धारचूला (Dharchula) को लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से जोड़ती एक सड़क है। नेपाल का दावा है कि कालापानी के पास पड़ने वाला यह क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है और भारत ने नेपाल से वार्ता किये बिना इस क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य किया है।
- नेपाल द्वारा आधिकारिक रूप से नेपाल का नवीन मानचित्र जारी किया गया, जो उत्तराखंड के कालापानी (Kalapani) लिंपियाधुरा (Limpiyadhura) और लिपुलेख (Lipulekh) को अपने संप्रभु क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
- नेपाल ने इस संबंध में वर्ष 1816 में हुई सुगौली संधि (Sugauli treaty) का ज़िक्र किया है। नेपाल के विदेश मंत्रालय के अनुसार, सुगौली संधि (वर्ष 1816) के तहत काली (महाकाली) नदी के पूर्व के सभी क्षेत्र, जिनमें लिंपियाधुरा (Limpiyadhura), कालापानी (Kalapani) और लिपुलेख (Lipulekh) शामिल हैं, नेपाल का अभिन्न अंग हैं।
- एंग्लो-नेपाली युद्ध (Anglo-Nepalese War) के पश्चात् वर्ष 1816 में नेपाल और ब्रिटिश भारत द्वारा सुगौली की संधि हस्ताक्षरित की गई थी। उल्लेखनीय है कि सुगौली संधि में महाकाली नदी को नेपाल की पश्चिमी सीमा के रूप में परिभाषित किया गया है।
- नेपाल सरकार के अनुसार, बीते वर्ष जम्मू-कश्मीर के विभाजन के पश्चात् भारत सरकार द्वारा प्रकाशित नए मानचित्रों में भिन्नता से स्पष्ट था कि भारत द्वारा इस मानचित्रों में छेड़खानी की गई है।
क्या बिगड़ते रिश्ते में भारत की भी भूमिका है?
- नवंबर, 2019 को भारत ने एक नवीन मानचित्र प्रकाशित किया था जो जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दर्शाता है। इसी मानचित्र में कालापानी को भी भारतीय क्षेत्र के रूप में दर्शाया गया है। इस मानचित्र ने भारत-नेपाल के बीच पुराने विवादों में नई जान डाल दी।
- भारतीय फिल्मों में नेपाली महिलाओं को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी से भी नेपाल ने नाराज़गी व्यक्त की।
- नेपाल वर्ष 2017 में चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना में शामिल हुआ, परंतु भारत नेपाल पर इस परियोजना में शामिल न होने का दबाव डाल रहा था। भारत द्वारा इस प्रकार दबाव डालना नेपाल को रास नहीं आया और इस घटना ने भारत की ‘बिग ब्रदर’ वाली छवि को स्थापित किया।
- दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट तब आई जब सितंबर, 2015 में नेपाली संविधान अस्तित्व में आया। लेकिन, भारत द्वारा नेपाली संविधान का उस रूप में स्वागत नहीं किया गया जिस रूप में नेपाल को आशा थी।
- इसी तरह नवंबर, 2015 जेनेवा में भारतीय प्रतिनिधित्व द्वारा नेपाल में राजनीतिक फेर-बदल को प्रभावित करने के लिये मानवाधिकार परिषद् के मंच का कठोरतापूर्वक उपयोग किया गया, जबकि इससे पहले तक नेपाल के आंतरिक मुद्दों को लेकर भारत द्वारा कभी भी खुलकर कोई टिप्पणी नहीं गई थी।
- भारत का रुख मधेसियों को नेपाल में नागरिकता का अधिकार दिलाना था। इनमें लाखों मधेसियों ने वर्ष 2015 में नागरिकता को लेकर व्यापक आंदोलन चलाया था। नेपाल सरकार का ऐसा आरोप है कि मधेसियों के समर्थन में भारत सरकार ने उस समय नेपाल की आर्थिक घेराबंदी की थी।
नेपाल पर चीन का प्रभाव
- गौरतलब है कि चीन का प्रभाव दक्षिण एशिया में लगातार बढ़ रहा है। नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान या बांग्लादेश हर जगह चीन की मौजूदगी बढ़ी है। ये सभी देश चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना में शामिल हो गए हैं। लेकिन भारत इस परियोजना के पक्ष में नहीं है।
- नेपाल में चीन के बढ़ते दखल के बाद पिछले कुछ समय से भारत-नेपाल के बीच संबंधों में पहले जैसी गर्मजोशी देखने को नहीं मिल रही। चीन ने इसका पूरा-पूरा लाभ उठाते हुए नेपाल में अपनी स्थिति को और मज़बूत किया है।
- नेपाल के कई स्कूलों में चीनी भाषा मंदारिन को पढ़ना भी अनिवार्य कर दिया गया है। नेपाल में इस भाषा को पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतन का खर्चा भी चीन की सरकार उठाने के लिये तैयार है।
- चीन, नेपाल में ऐसा बुनियादी ढाँचा तैयार करने की परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जिन पर भारी खर्च आता है।
भारत के लिये नेपाल का महत्त्व
- नेपाल की अहमियत इस वजह से भी ज्यादा है कि पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद ‘पहले पड़ोस की नीति’ के मद्देनजर नेपाल उनके शुरुआती विदेशी दौरों में से एक था। जबकि इससे पहले आखिरी बार वर्ष 1997 में नेपाल के साथ भारत की कोई द्विपक्षीय वार्ता हुई थी।
- मौजूदा सरकार ने नेपाल सरकार के साथ कई महत्त्वपूर्ण समझौते भी किये हैं। कृषि, रेलवे संबंध और अंतर्देशीय जलमार्ग विकास सहित कई द्विपक्षीय समझौतों पर सहमति बनी है।
- इनमें बिहार के रक्सौल और काठमांडू के बीच सामरिक रेलवे लिंक का निर्माण किया जाएगा, ताकि लोगों के बीच संपर्क तथा बड़े पैमाने पर माल के आवागमन को सुविधाजनक बनाया जा सके। इसके अलावा मोतिहारी से नेपाल के अमेलखगंज तक दोनों देशों के बीच ऑयल पाइपलाइन बिछाने पर भी हाल ही में सहमति बनी है।
- नेपाल का दक्षिण क्षेत्र भारत की उत्तरी सीमा से सटा है। भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता माना जाता है। बिहार और पूर्वी-उत्तर प्रदेश के साथ नेपाल के मधेसी समुदाय का सांस्कृतिक एवं नृजातीय संबंध रहा है।
- दोनों देशों की सीमाओं से यातायात पर कभी कोई विशेष प्रतिबंध नहीं रहा। सामाजिक और आर्थिक विनिमय बिना किसी गतिरोध के चलता रहता है। भारत-नेपाल की सीमा खुली हुई है और आवागमन के लिये किसी पासपोर्ट या वीजा की जरूरत नहीं पड़ती है। यह उदाहरण कई मायनों में भारत-नेपाल की नज़दीकी को दर्शाता है।
आगे की राह
- नेपाल सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह दो देशों के मध्य घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंधों की भावना को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक संधि, दस्तावेज़ों, तथ्यों और नक्शों के आधार पर सीमा के मुद्दों का कूटनीतिक हल प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- भारत को भी अपनी विदेश नीति की समीक्षा करने की भी जरूरत है। भारत को नेपाल के प्रति अपनी नीति दूरदर्शी बनानी होगी। जिस तरह से नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, उससे भारत को अपने पड़ोस में आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन करने से पहले रणनीतिक लाभ–हानि पर विचार करना होगा।
- भारत और चीन के साथ नेपाल एक आज़ाद सौदागर की तरह व्यवहार कर रहा है और चीनी निवेश के सामने भारत की चमक फीकी पड़ रही है। लिहाज़ा, भारत को कूटनीतिक सुझबूझ का परिचय देना होगा।
प्रश्न- वर्तमान में बदलते वैश्विक परिदृश्य के आलोक में भारत-नेपाल संबंधों की समीक्षा कीजिये?