सामाजिक न्याय
महिलाओं के लिये सुरक्षित कार्यस्थल का निर्माण
यह एडिटोरियल 21/02/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Slow progress to creating a safe workplace for women” लेख पर आधारित है। इसमें कार्यस्थल पर महिलाओं के समक्ष विद्यमान समस्याओं और इन्हें दूर करने के लिये आवश्यक कदमों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत में महिला पहलवानों द्वारा झेले गए कथित यौन उत्पीड़न के हाल के मामलों ने आंतरिक शिकायत समितियों के कार्यकरण की कमी और उत्पीड़न की रिपोर्टिंग के संबंध में विशाखा दिशानिर्देशों (Vishaka guidelines) के पालन की आवश्यकता को उजागर किया है।
- इससे पूर्व एक प्रमुख महिला पत्रकार प्रिया रमानी का मामला चर्चित रहा था जहाँ वर्ष 2018 में #metoo आंदोलन में उन्होंने अपने पूर्व नियोक्ता एम.जे. अकबर पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कुछ दशक पुराने मामले का खुलासा किया था। इस मामले में पीड़िता ने पुलिस में मामला दर्ज नहीं कराया था और उस ज़माने में यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण के लिये कोई आंतरिक तंत्र मौजूद नहीं था।
- वर्ष 1997 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तैयार किये गए विशाखा दिशानिर्देश का सरकारी और निजी दोनों संस्थाओं द्वारा पालन किया जाना चाहिये तथा नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर महिलाओं के मूल अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
महिला कार्यबल भागीदारी के साथ संबद्ध चुनौतियाँ
- यौन उत्पीड़न:
- हाल के वर्षों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न दुनिया भर में महिलाओं को प्रभावित करने वाले सबसे अधिक दबावकारी मुद्दों में से एक के रूप में उभरा है।
- वर्ष 2022 में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की लगभग 31,000 शिकायतें मिलीं जो वर्ष 2014 के बाद से उच्चतम संख्या को सूचित करती है।
- इनमें से लगभग 54.5% शिकायतें उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुईं। दिल्ली ने 3,004 शिकायतें दर्ज कराईं, जिसके बाद महाराष्ट्र (1,381), बिहार (1,368) और हरियाणा (1,362) का स्थान रहा।
- हाल के वर्षों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न दुनिया भर में महिलाओं को प्रभावित करने वाले सबसे अधिक दबावकारी मुद्दों में से एक के रूप में उभरा है।
- लैंगिक भेदभाव:
- भर्ती, वेतन, पदोन्नति या अवसर—सभी मामलों में महिलाओं को कार्यस्थल पर प्रायः भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- विविधता का अभाव:
- सीमित विविधता रखने वाले संगठनों में कार्यस्थल पर महिलाओं के अनुभवों के प्रति समझ और समानुभूति की कमी पाई जा सकती है।
- कामकाजी माताओं के लिये अपर्याप्त सहायता:
- बच्चों के पालन-पोषण से संलग्न महिलाओं को प्रायः अपने कार्य और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को संतुलित करने में उल्लेखनीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- व्यावसायिक अलगाव:
- महिलाएँ प्रायः निम्न-वेतन और पारंपरिक रूप से महिला-प्रधान क्षेत्रों में संकेंद्रित होती हैं, जबकि पुरुषों के उच्च-वेतन वाले उद्योगों और व्यवसायों में कार्यशील होने की संभावना अधिक होती है।
महिलाओं के कल्याण के लिये प्रमुख कानूनी ढाँचे कौन-से हैं?
- संवैधानिक सुरक्षा:
- मूल अधिकार:
- संविधान सभी भारतीयों को विधि के समक्ष समता (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा लिंग के आधार पर विभेद न करने (अनुच्छेद 15 (1)) और राज्य द्वारा महिलाओं के पक्ष में विशेष उपबंध कर सकने (अनुच्छेद 15(3)) की गारंटी देता है।
- मूल कर्तव्य:
- यह सुनिश्चित करता है कि अनुच्छेद 51 (A) के तहत महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध अपमानजनक व्यवहार निषिद्ध है।
- मूल अधिकार:
- विधायी ढाँचा:
- महिला सशक्तीकरण योजनाएँ:
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
- ‘वन स्टॉप सेंटर’ योजना
- उज्ज्वला: मानव तस्करी की रोकथाम और तस्करी एवं वाणिज्यिक यौन शोषण के पीड़ितों के बचाव, पुनर्वास एवं पुन:एकीकरण के लिये एक व्यापक योजना
- स्वाधार गृह
- नारी शक्ति पुरस्कार
- महिला पुलिस वालंटियर्स
- महिला शक्ति केंद्र (MSK)
- निर्भया फंड
आगे की राह
- महिला-अनुकूल अवसंरचना प्रदान करना:
- ऐसे भौतिक वातावरण का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है जो महिलाओं के लिये सुरक्षित और उनके अनुकूल हो।
- इसमें अलग शौचालय, स्तनपान कक्ष और उपयुक्त प्रकाश व्यवस्था एवं सुरक्षा उपाय करना शामिल हो सकता है।
- यह सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है कि कार्यस्थल दिव्यांग महिलाओं के लिये अभिगम्य हो।
- आंतरिक शिकायत समितियों का गठन:
- सुगठित आंतरिक शिकायत समितियों (ICCs) का होना महत्त्वपूर्ण है जिसमें सदस्य के रूप में पुरुष एवं महिला दोनों शामिल हों और इसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ महिला कर्मी करे।
- महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 में आंतरिक शिकायत समितियों का होना अनिवार्य बनाया गया है।
- ICC कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों को दूर करने के लिये उत्तरदायी है।
- जागरूकता का प्रसार करना:
- कर्मचारियों के लिये अपने अधिकारों और यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने की प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक होना महत्त्वपूर्ण है।
- नियोक्ता को कानून और उपलब्ध निवारण तंत्र के बारे में जागरूकता का प्रसार करने के लिये नियमित प्रशिक्षण सत्र और कार्यशालाएँ आयोजित करनी चाहिये।
- यह यौन उत्पीड़न के प्रति शून्य सहिष्णुता की संस्कृति का निर्माण करने और सभी कर्मचारियों के लिये एक सुरक्षित एवं सम्मानजनक कार्यस्थल को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
- गहनता से जमी संरचनात्मक और सांस्कृतिक हिंसा को संबोधित करना:
- एक सुरक्षित और न्यायसंगत समाज बनाने के लिये गहरी जड़ें जमा चुकी संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक हिंसा को संबोधित करना आवश्यक है।
- इस समस्या के समाधान के लिये निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते हैं:
- शिक्षा एवं जागरूकता
- वंचित समूहों को सशक्त बनाना
- नीतिगत एवं कानूनी सुधार
- हानिकारक विश्वासों और दृष्टिकोणों को चुनौती देना आदि।
अभ्यास प्रश्न: महिलाओं के लिये एक सुरक्षित कार्यस्थल के निर्माण के लिये सबसे प्रभावी रणनीतियाँ कौन-सी हो सकती हैं और सभी कर्मचारियों के लिये एक सुरक्षित एवं समावेशी कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न संगठन उन उपायों को कैसे लागू कर सकते हैं?
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मुख्य परीक्षाप्र. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिए कुछ अभिनव उपाय सुझाएँ। (वर्ष 2014) |