मनरेगा और बजट 2022
यह एडिटोरियल 22/02/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Questions on MGNREGA Budget Estimation” लेख पर आधारित है। इसमें मनरेगा के लिये कम बजटीय आवंटन और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme- MGNREGA) ने ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा एवं स्थायी परिसंपत्तियों के निर्माण की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। यह एक मूल्यवान रोज़गार उपकरण और सुरक्षा जाल रहा है, जिसकी पुष्टि कोविड महामारी के दौरान उभरे प्रवासी संकट के समय भी हुई।
मनरेगा योजना की उच्च मांगों के बावजूद (जैसा आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में भी प्रकट हुआ) वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में मनरेगा के लिये आवंटन निराशाजनक रहा है।
अखिल भारतीय किसान सभा और नरेगा संघर्ष मोर्चा (NSM) जैसे संगठनों ने मनरेगा के लिये आवंटन की अपर्याप्तता को लेकर चिंता जताई है।
मनरेगा और बजटीय आवंटन का मुद्दा
मनरेगा क्या है?
- मनरेगा दुनिया के सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है जिसे वर्ष 2005 में शुरू किया गया था।
- योजना का प्राथमिक उद्देश्य किसी भी ग्रामीण परिवार के सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देना है।
- पहले की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत मनरेगा का उद्देश्य अधिकार-आधारित ढाँचे के माध्यम से चरम निर्धनता के कारणों का समाधान करना है।
- लाभार्थियों में कम-से-कम एक तिहाई महिलाएँ होनी चाहिये।
- मज़दूरी का भुगतान न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य में कृषि मज़दूरों के लिये निर्दिष्ट वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी के अनुरूप किया जाना चाहिये।
मनरेगा के लिये कम बजटीय आवंटन की समस्या
- पिछले दो वित्त वर्षों (2020-21 और 2021-22) में आरंभिक आवंटन ‘पीपल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी’ (PAEG) और NSM जैसे समूहों द्वारा अनुशंसित आवंटन की तुलना में लगभग आधा ही रहा।
- धन की लगातार कमी ने मनरेगा के लिये एक स्थानिक स्थिति पैदा कर दी है, जो राज्य सरकारों के लिये घाटे, मज़दूरी भुगतान में देरी, वित्त वर्षों की अंतिम दो तिमाहियों में प्रदत्त कार्य में गिरावट और वित्तीय वर्ष के अंत में उल्लेखनीय लंबित बकाया राशि के रूप में प्रकट होती है।
- वित्त वर्ष 2022-23 के लिये भी इस प्रमुख ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रम को कम आवंटन प्राप्त हुआ है। यह वर्ष 2021-22 के लिये संशोधित अनुमान 98,000 करोड़ रुपए से लगभग 25,000 करोड़ रुपए कम है (25% की कमी)।
- NSM ने कहा है कि वर्तमान आवंटन सभी सक्रिय जॉब कार्डधारक परिवारों को केवल 16 दिनों के लिये ही रोज़गार प्रदान कर सकता है।
अनुमानित व्यक्ति-दिवस गणना से संबद्ध समस्याएँ
- अनुमानित व्यक्ति-दिवस (Projected Person Days) किसी वर्ष के लिये अनुमानित कुल कार्य दिवस होते हैं। अनुमानित व्यक्ति-दिवस और मज़दूरी दर दो महत्त्वपूर्ण चर हैं जिन पर बजट गणना निर्भर करती है।
- वित्त वर्ष 2019-20 और 2020-21 में तीसरी तिमाही (Q3) की तुलना में चौथी तिमाही (Q4) में सृजित व्यक्ति-दिवस लगभग 18.4% अधिक रहे।
- लेकिन वित्त वर्ष 2021-22 में Q4 के लिये अनुमानित व्यक्ति-दिवस Q3 की तुलना में पर्याप्त कम थे।
- वित्त वर्ष 2021-22 के लिये Q4 का अनुमान वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही का केवल 40% था।
- वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तीन तिमाहियों में सृजित व्यक्ति-दिवस में मामूली अंतर (केवल 7% कम) के बावजूद यह स्थिति रही।
- यह आँकड़ा बताता है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही के लिये अपने अनुमानों को संशोधित नहीं किया है, भले ही उसने हाल ही में मनरेगा के लिये 25,000 करोड़ रुपए के पूरक अनुदान की घोषणा की है।
अव-आकलित व्यक्ति-दिवस अनुमान का परिणाम
- चूँकि बजट आवंटन अनुमानित व्यक्ति-दिवसों पर आधारित होते हैं, अव-आकलित (Underestimated) अनुमान अपर्याप्त आवंटन को अवसर देते हैं।
- वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही के असामान्य रूप से कम अनुमानों के कारण केवल 25,000 करोड़ रुपए का पूरक आवंटन किया गया जबकि इसके लिये कम-से-कम 50,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त आवंटन की मांग की जा रही थी।
- वित्त वर्ष 2022-23 के लिये कम आवंटन अस्वाभाविक रूप से कम व्यक्ति-दिवस अनुमानों का भी परिणाम हो सकता है।
मनरेगा मज़दूरी दरों से संबद्ध समस्याएँ
- नरेगा 'एक नज़र में' (NREGA ‘At a Glance’) रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 में भुगतान की गई औसत मनरेगा मज़दूरी मात्र 209 रुपए प्रतिदिन रही। आधिकारिक मनरेगा मज़दूरी भी बजट को कम रखने में योगदान करती है।
- मनरेगा अधिनियम के इस स्पष्ट निर्देश के बावजूद कि प्रदत्त मज़दूरी प्रत्येक राज्य में न्यूनतम मज़दूरी से कम नहीं होनी चाहिये, विभिन्न राज्यों में मनरेगा मज़दूरी का स्तर न्यूनतम मजदूरी से नीचे रहा है।
- इससे अधिनियम के प्रावधानों के साथ-साथ मनरेगा श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन हुआ है।
आगे की राह
- मनरेगा के लिये पर्याप्त बजट आवंटन: मनरेगा रोज़गार गारंटी को कानूनी अधिकार मानता है, जहाँ कोई भी ग्रामीण परिवार प्रतिवर्ष 100 दिनों तक के कार्य की मांग कर सकता है और सरकार को इसे प्रदान करना होगा। जब भी कार्य की मांग की जाए, सरकार द्वारा उसकी पूर्ति किया जाना अनिवार्य होता है।
- इन उल्लिखित विसंगतियों को दूर करने के लिये PAEG ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिये 2.64 लाख करोड़ रुपए के न्यूनतम बजट की सिफारिश की थी, जहाँ केवल इस वर्ष सक्रिय परिवारों को ध्यान में रखा गया था।
- यद्यपि यह संख्या योजना के तहत पंजीकृत परिवारों की संख्या से काफी कम है, किंतु इस दिशा में एक शुरुआती प्रयास के रूप में सराहनीय है।
- मनरेगा निधि की पुनःपूर्ति: बजट आवंटन को मनरेगा के तहत प्रदान किये जा सकने वाले कार्य के लिये एक 'सीलिंग' के रूप में देखने से योजना का मूल आधार नष्ट हो जाता है।
- जबकि एक प्रारंभिक बजट आवंटन किया जाता है, प्रत्येक राज्य में वास्तविक कार्य मांग के आधार पर प्रदान किये गए पूरक अनुदान द्वारा मनरेगा निधि की नियमित रूप से पुनःपूर्ति की जानी चाहिये।
- अनुमानों का आकलन करने, मज़दूरी को अवैधानिक रूप से कम रखने और बजट को प्रदान किये जा सकने वाले कार्य की ऊपरी सीमा के रूप में देखने के दृष्टिकोण ने मनरेगा के मूल आधार को ही नष्ट कर दिया है।
- न्यूनतम मज़दूरी दरों में संशोधन: औसत मनरेगा मज़दूरी पर कई आकलन उपलब्ध हैं।
- उदाहरण के लिये, डॉ. अनूप सतपथी की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति ने प्रतिदिन 375 रुपए की आवश्यकता-आधारित राष्ट्रीय न्यूनतम मज़दूरी का अनुमान लगाया था (जुलाई 2018 की स्थिति तक)।
- इसकी तुलना में PAEG ने हाल ही में जारी अपने बजट-पूर्व संक्षिप्त विवरण में 269 रुपए प्रति दिन का आकलन किया था।
- चाहे किसी भी सिफारिश पर विचार किया जाए, किंतु योजना के उद्देश्य को पूरा करने के लिये न्यूनतम मज़दूरी दरों में वृद्धि करने की तत्काल आवश्यकता है।
- योजना का सुदृढ़ीकरण: विभिन्न सरकारी विभागों तथा तंत्र के बीच कार्य आवंटन एवं मापन के लिये बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।
- यह हाल के वर्षों में मनरेगा सबसे बेहतर कल्याणकारी योजनाओं में से एक रही है और इसने ग्रामीण गरीबों की काफी मदद की है। सरकारी अधिकारियों को योजना को पूरी भावना से लागू करने के लिये पहल करने की ज़रूरत है और उन्हें काम को अवरुद्ध नहीं करना चाहिये।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि किसी भी समय मांग के आधार पर कार्य प्रदान किया जाए। इसके साथ ही, योजना का विस्तार किया जाना चाहिये और मूल्यवर्द्धन एवं सामुदायिक संपत्ति कार्यों को कई गुना बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित हो।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘बजट आवंटन को मनरेगा के तहत प्रदान किये जा सकने वाले कार्य के लिये एक 'सीलिंग' के रूप में देखने से योजना का मूल आधार नष्ट हो जाता है।’’ टिप्पणी कीजिये।