एडिटोरियल (22 Nov, 2018)



तापमान एक अदृश्य जलवायु जोखिम (invisible climate risk)

संदर्भ

जब हम जलवायु परिवर्तन की बात करते हैं, तो अक्सर इसमें पिघलने वाली बर्फ की चादरों और अत्यधिक सूखे की अवधियों को ही शामिल करते हैं। हालाँकि, इसका एक और पक्ष बढ़ता तापमान भी है। यह एक अदृश्य जलवायु जोखिम है जिससे विभिन्न समुदाय अभी तक अनजान हैं। दरअसल, बढ़ते तापमान की धीमी और क्रमिक प्रवृत्ति लोगों के जीवन, आजीविका और उत्पादकता को सीधे प्रभावित करती है। उल्लेखनीय है कि ज्यादातर संवेदशील लोग खुद को गर्मी से कैसे बचा सकते हैं, इसके बारे में उन्हें या तो सीमित जानकारी है या कोई जानकारी नहीं है। यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्तर पर भारत कूलिंग एक्शन प्लान के माध्यम से राष्ट्रीय शीतलन रणनीति को लागू करने के सरकार के प्रयास को भी अपर्याप्त माना जा रहा है।

बढ़ते तापमान से संबंधित तथ्य

  • मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के नवीनतम शोध के मुताबिक दक्षिण एशिया में गर्म हवाएँ, 35 डिग्री सेल्सियस की जीवितता सीमा से परे गर्मी और आर्द्रता के स्तर को बढ़ा सकती हैं।
  • इसके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन हेतु गठित अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की एक रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग के दो परिदृश्यों यथा - 1.5 डिग्री सेल्सियस और पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस के बीच का अंतर प्रस्तुत करती है।
  • इसके चलते जहाँ 1.5 डिग्री सेल्सियस परिदृश्य के अंतर्गत पाँच वर्षों से कम समय में वैश्विक आबादी का 14% और वहीं 2 डिग्री सेल्सियस परिदृश्य के अंतर्गत 2.6 गुना बढ़ते तापमान के कारण दुनिया की 37% आबादी गंभीर तापमान की चपेट में आ जाएगी।
  • एक नवीनतम शोध से पता चलता है कि पिछले दशक में गर्म लहरों ने ग्रामीण निवासियों की तुलना में शहरी निवासियों की मृत्यु दर पर अधिक असर डाला है।
  • विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि शहरी तप्त द्वीपों/ ऊष्मा द्वीपों के परिणामस्वरूप सदी के अंत तक शहरों के तापमान में 8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
  • इन प्रवृत्तियों की बारंबारता को देखते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में सार्वजनिक टिप्पणी और सुझावों के लिये इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) का मसौदा जारी किया।

इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) क्या है?

  • विश्व ओज़ोन दिवस (16 सितंबर) के अवसर पर सरकार, उद्योग, उद्योग संघ और सभी हितधारकों के बीच सक्रिय सहयोग पर बल देते हुये पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कूलिंग एक्शन प्लान पर दस्तावेज़ जारी किया गया।
  • उल्लेखनीय है कि भारत पहला देश है जिसने शीतलता कार्ययोजना पर दस्तावेज़ तैयार किया है।

प्रमुख लक्ष्य

इस कार्ययोजना के प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार हैं:

  • अगले 20 वर्षों तक सभी क्षेत्रों में शीतलता से संबंधित आवश्यकताओं इससे जुड़ी माँग तथा ऊर्जा की आवश्यकता का आकलन।
  • शीतलता के लिये उपलब्ध तकनीकों की पहचान के साथ ही वैकल्पिक तकनीकों, अप्रत्यक्ष उपायों और अलग प्रकार की तकनीकों की पहचान करना।
  • सभी क्षेत्रों में गर्मी से राहत दिलाने तथा सतत् शीतलता प्रदान करने वाले उपायों के बारे सलाह देना।
  • तकनीशियनों के कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
  • घरेलू वैकल्पिक तकनीकों के विकास हेतु ‘शोध एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्रको विकसित करना।
  • वर्ष 2037-38 तक विभिन्न क्षेत्रों में शीतलक मांग (cooling demand ) को 20% से 25% तक कम करना।
  • वर्ष 2037-38 तक रेफ्रीजरेंट डिमांड (refrigerant demand) को 25% से 30% तक कम करना।
  • वर्ष 2037-38 तक शीतलण हेतु ऊर्जा की आवश्यकताओं को 25% से 40% तक कम करना।
  • वर्ष 2022-23 तक कौशल भारत मिशन के तालमेल से सर्विसिंग सेक्टर के 100,000 तकनीशियनों को प्रशिक्षण और प्रमाण-पत्र उपलब्ध कराना।

परिवर्तनशील जलवायु हेतु महत्त्वपूर्ण उपाय

  • हालाँकि, IPCC प्रौद्योगिकी में नवाचारों के माध्यम से भविष्य में शीतलन की मांग को संबोधित करने वाला देश का पहला शीतलता कार्ययोजना पर आधारित दस्तावेज़ है किंतु अपने वर्तमान रूप में यह विफल रहा है। दरअसल, इसे एकीकृत तापमान कार्ययोजना और शीतलन रणनीतियों के लिये सतत, न्यायसंगत और भविष्य के परिवर्तनशील जलवायु हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण उपायों पर विचार करना चाहिये।
  • सबसे पहला यह है कि IPCC विभिन्न भौगोलिक स्थितियों के तहत तापमान से उत्पन्न जोखिम के प्रति भविष्य के जलवायु संबंधी रुझानों को एकीकृत करने में विफल रहता है।
  • उल्लेखनीय है कि आर्द्र तटीय क्षेत्रों के विपरीत शुष्क और शुष्क क्षेत्रों को ठंडा करने की आवश्यकताएँ काफी भिन्न होंगी, तो स्वाभाविक है कि प्रौद्योगिकी और योजना भी अलग-अलग होनी चाहिये।
  • शहरी और क्षेत्रीय योजनाओं में जलवायु अनुमानों को एकीकृत किये जाने से जलवायु संवेदनशील शहरी वातावरण की आवश्यकता पर जोर दिया जा सकता है और संभावित रूप से परिवेश के तापमान को कम किया जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त भूमि उपयोग संबंधी योजनाओं हेतु तामपान सूचक मानचित्रों के निर्माण के लिये रिमोट सेंसिंग डेटा का उपयोग कर सकते हैं जो विभिन्न तापमान परिदृश्यों के तहत कम वृक्षावरण के साथ शहरी ऊष्मा द्वीपों को सह-संयोजित करते हैं।
  • यह शहरों के वृक्षावरण और जलवायु संवेदनशील शहरी विकास की दिशा में निर्माण हेतु नियमों को लक्षित करने में मदद कर सकता है।
  • साथ ही विभिन्न जलवायु परिदृश्यों के तहत तामपान सूचक मानचित्र का उपयोग निर्णय निर्माताओं को निष्क्रियता लागत के स्वास्थ्य प्रभाव, आर्थिक उत्पादकता हानि और प्रवासन के जोखिमों पर डेटा के माध्यम से सूचित करने के लिये किया जा सकता है।
  • दूसरा, दीर्घकालिक अनुकूलन कार्रवाई को प्रभावित करने के लिये तापमान में वृद्धि के विषय में जागरूकता को बढ़ाना होगा।
  • उल्लेखनीय है कि तापमान एक अदृश्य और धीमी गति से चलने वाला जलवायु संबंधी खतरा है जिसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 द्वारा अभी तक 'प्राकृतिक आपदा' के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हुई है।
  • वर्तमान में अधिकांश आपदा तैयारी कार्रवाई बाढ़ के जोखिम और अन्य प्राकृतिक आपदाओं पर केंद्रित है।
  • नागरिक तापमान के प्रभाव से असुविधा तो महसूस करते हैं लेकिन शायद ही कभी पेड़ लगाकर अधिक समय तक गर्मी  से बचने की योजना बनाते हैं।
  • अतः शीतलन हेतु व्यक्तिगत समाधानों पर अधिक निर्भरता की बजाय जागरूकता बढ़ाना और सामूहिक रूप से बढ़ते तापमान के प्रति योजना बनाने हेतु भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • इसके अरितिरिक्त यह सुनिश्चित करना चाहिये कि पूर्व चेतावनी में बढ़ते तापमान की चेतावनी के साथ ही व्यक्तिगत अनुकूल रणनीतियाँ भी शामिल हों जो शुष्क और आर्द्र गर्मी की स्थिति जैसे दो जोखिम कारकों के रूप में प्रतिक्रियाशील हो।
  • तीसरा, खुले स्थानों पर रहकर काम करने वाले संवेदनशील लोगों की ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। उल्लेखनीय है कि बीमारी और थकावट के कारण ये लोग अत्यधिक तापमान के दौरान औसतन 7-8 कार्यदिवस खो देते हैं।

निष्कर्ष :

ICAP शहरों के गरीब समुदायों के लिये मौजूदा अनुकूलन क्षमता का लाभ उठाने का अवसर है। हालाँकि, दीर्घकालिक शीतलन कार्रवाई के लिये अपने आस-पास और पेड़ लगाकर, ‘शीतलन आश्रय' के रूप में डिज़ाइन किये जाने वाले सामान्य संस्थानों की पहचान करना तथा श्रमिक संघों, कंपनियों के माध्यम से बेहतर श्रम और आवास की स्थिति को अनिवार्य बनाना होगा।

सभी के लिये सतत और दीर्घकालिक शीतलन की व्यवस्था हेतु दीर्घकालिक तापमान अनुकूल एवं लचीली रणनीतियों को प्रोत्साहित किया जाना आवश्यक है।

स्रोत : लाइव मिंट