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एडिटोरियल

  • 22 Oct, 2019
  • 15 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रेक्ज़िट के निहितार्थ

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में ब्रेक्ज़िट और उसके कारणों पर चर्चा की गई है। साथ ही विभिन्न पहलुओं पर उसके प्रभावों का भी उल्लेख किया गया है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

लंबे राजनीतिक उठापटक के बाद आखिरकार ब्रेक्ज़िट (Brexit) का समय पास आ ही गया है। इसके लिये निर्धारित तिथि 31 अक्तूबर में अब कुछ ही दिन बाकी हैं, परंतु इसकी राह अभी आसान नहीं दिखाई दे रही है। कुछ दिनों पूर्व ब्रिटिश संसद ने ऐसा संशोधन पारित किया जिसने ब्रेक्ज़िट की नई डील पर मतदान को तब तक रोक दिया जब तक कि हाउस ऑफ कॉमन्स इसे ठीक से निष्पादित करने के लिये आवश्यक कानून पारित नहीं करता। ब्रेक्ज़िट के समक्ष मौजूद तमाम चुनौतियों को मद्देनज़र रखते हुए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि शायद ब्रेक्ज़िट अपनी निश्चित तिथि पर संभव न हो पाए।

क्या है ब्रेक्ज़िट?

  • ब्रेक्ज़िट मुख्यतः दो शब्दों (1) Britain और (2) Exit का संक्षिप्त रूप है, जिसका शाब्दिक अर्थ ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (European Union-EU) से बाहर निकलने से है।
  • दरअसल, ब्रिटेन की सत्ताधारी कंज़र्वेटिव पार्टी यह मानती है कि EU में रहने से ब्रिटेन की संस्कृति, पहचान और राष्ट्रीयता को खतरा है।
  • 1 जनवरी, 1973 को ब्रिटेन ने डेनमार्क और आयरलैंड गणराज्य के साथ यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी को ज्वाइन किया, जो कि कुछ वर्षों बाद यूरोपीय संघ (EU) बन गया।
  • EU ज्वाइन करने के कुछ ही वर्षों में ब्रिटेन के कुछ नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया और यह मांग की कि जनमत संग्रह (Referendum) के माध्यम से तय किया जाए कि ब्रिटेन EU में रहेगा या नहीं।
  • अगले 30 वर्षों तक इस क्षेत्र में कोई महत्त्वपूर्ण विकास नहीं हुआ, परंतु वर्ष 2010 में घटनाक्रम में कुछ ऐसे बदलाव हुए कि जनमत संग्रह की मांग तेज़ होने लगी।
  • ब्रिटेन की कंज़र्वेटिव पार्टी, जो कि वर्ष 2010 से 2015 के बीच सत्ता में रही, ने एक चुनावी वादा किया कि यदि कंज़र्वेटिव पार्टी पुनः सत्ता में आती है तो वह सर्वप्रथम जनमत संग्रह कराएगी कि ब्रिटेन को EU में रहना चाहिये या नहीं।
  • वर्ष 2015 में कंज़र्वेटिव पार्टी सत्ता में फिर से काबिज़ हुई और डेविड कैमरून दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
  • चुनाव जीतने के बाद डेविड कैमरून पर वादा पूरा करने का दबाव पड़ने लगा और जून 2016 में ब्रिटेन में जनमत संग्रह कराया गया जिसमें 52 प्रतिशत लोगों ने ब्रेक्ज़िट के पक्ष में मतदान किया, जबकि 48 प्रतिशत लोगों ने ब्रेक्ज़िट के विपक्ष में मतदान किया और कंज़र्वेटिव पार्टी के लिये ब्रेक्ज़िट का रास्ता साफ हो गया।

ब्रेक्ज़िट के कारण:

  • आप्रवासन
    • यह एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि सीरिया में सिविल वार के चलते काफी संख्या में आप्रवासी भागकर यूरोप आ रहे हैं।
    • साथ ही UK की इमीग्रेशन नीति भी EU तय करता है, अगर वह EU से हट जाता है तो उसे अपनी खुद की इमीग्रेशन नीति तय करने का अधिकार
    • होगा।
    • UK के आप्रवासन विरोधी समूहों का कहना है कि यह राष्ट्रीय संसाधनों पर काफी दबाव डालता है और इससे देश के कल्याणकारी व्यय में अनावश्यक राशि जुड़ती है।
  • संप्रभुता
    • ब्रिटेन में कई लोगों का मानना ​​है कि यूरोपीय संघ ब्रिटिश संप्रभुता का अतिक्रमण कर रहा है।
    • सत्ताधारी कंज़र्वेटिव पार्टी के सदस्य मानते हैं कि EU अपनी स्थापना से अब तक काफी बदल गया है और हमारे दैनिक जीवन को काफी प्रभावित कर रहा है।
    • कंज़र्वेटिव पार्टी के कई सहयोगी ब्रेक्ज़िट को ब्रिटिश राष्ट्रीय संप्रभुता को पुन: स्थापित करने के अवसर के रूप में देखते हैं।
  • आर्थिक संसाधन
    • आर्थिक संसाधन भी ब्रेक्ज़िट के पीछे एक प्रमुख कारण है। EU के लिये अधिकांश मुद्रा उसके सदस्य देशों से आती है और UK उसका सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
    • सदस्य देशों द्वारा दिये जाने वाला यह पैसा अन्य सदस्य देशों की सहायता हेतु खर्च किया जाता है।
    • ब्रेक्ज़िट समर्थकों का कहना है कि UK, यूरोपीय संघ को अपने आर्थिक संसाधनों का काफी बड़ा हिस्सा तो दे रहा है, परंतु उसके बदले उसे बहुत कम लाभ मिलता है।
  • कानूनी हस्तक्षेप
    • वर्ष 2010 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, UK के लगभग 17 प्रतिशत कानून यूरोपीय संघ में इसकी सदस्यता का परिणाम हैं और इसका ज़्यादातर हिस्सा कृषि, मछली पकड़ने, पर्यावरण नीतियों, व्यापार आदि से जुड़ा है।
    • ब्रेक्ज़िट समर्थकों का मानना है कि इससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुँचता है।
  • सुरक्षा
    • ब्रेक्ज़िट के पक्ष में खड़े लोगों का कहना है कि आतंकवाद और अपराध के दौर में EU में रहने से ब्रिटेन की सुरक्षा काफी अधिक प्रभावित होती है।

क्या है EU छोड़ने की प्रक्रिया?

  • EU छोड़ने की प्रक्रिया का उल्लेख वर्ष 2009 में अस्तित्व में आई लिस्बन ट्रीटी (Lisbon Treaty) में किया गया है।
  • लिस्बन संधि के तहत यूरोपीय संघ छोड़ने के इच्छुक सदस्य को पहले यूरोपीय परिषद को अपने फैसले के बारे में अधिसूचित करना होगा और इसी के साथ संधि के अनुच्छेद 50 को लागू करना होगा।
  • इसके पश्चात् उस सदस्य देश और EU का नेतृत्व आपस में बात करेंगे और निकासी की शर्तें तय करेंगे।
  • इसका अर्थ है कि यदि कोई सदस्य देश जब अनुच्छेद 50 को लागू करता है, तो वह 2 वर्षों बाद EU को छोड़ पाएगा।

ब्रिटेन पर ब्रेक्ज़िट का प्रभाव

  • ब्रेक्ज़िट अल्पकाल में ब्रिटेन को मंदी की ओर धकेल सकता है, क्योंकि यूरोपीय संघ UK का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और जैसे ही ब्रेक्ज़िट संपन्न होगा उन दोनों के रिश्तों में अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
  • कई अध्ययनों में सामने आया है कि इसके प्रभाव से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को 1 से 3 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि ब्रेक्ज़िट के कारण पाउंड में करीब 20 फीसदी की गिरावट की आशंका है।
  • ब्रिटेन के लिये सिंगल मार्केट सिस्टम खत्म हो जाएगा।
  • ब्रिटेन की सीमा में बिना रोकटोक आवाजाही पर रोक लगेगी और वहाँ संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग संभव हो पाएगा।
  • ब्रेक्ज़िट के पश्चात् फ्री वीज़ा पॉलिसी के कारण ब्रिटेन को जो नुकसान होता है, उसे कम किया जा सकेगा।

भारत पर ब्रेक्ज़िट का प्रभाव

  • भारत में कुल एफडीआई का 8 प्रतिशत हिस्सा UK से आता है। इसका असर भारत के कारोबार पर कम पड़ेगा लेकिन ब्रिटेन के साथ अलग से व्यापारिक समझौते करने पड़ेंगे।
  • भारतीय कंपनियों की ब्रिटेन में रुचि की एक बड़ी वज़ह यह है कि ब्रिटेन के रास्ते भारतीय कंपनियों की यूरोप के 28 देशों के बाज़ार तक सीधी पहुँच है। जाहिर है जब ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलेगा तो इस बड़े बाज़ार तक आसान पहुँच बंद हो जाएगी।
  • यूरोप के देशों से भारत को नए करार करने होंगे। इससे कंपनियों के खर्च में इज़ाफा होगा। साथ ही हर देश के नियम-कानूनों का भी पालन करना होगा।
  • UK ने हमेशा EU में भारत की तरफदारी की है और भारत का साथ दिया है, विशेष रूप से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के मामले में।
  • ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन में काम कर रहीं भारतीय कंपनियों को यूरोपीय बाज़ार तक पहुँचने के नए रास्ते तलाशने होंगे। इतना ही नहीं ब्रिटेन में बने उत्पादों पर भारतीय कंपनियों को यूरोपीय देशों में टैक्स भी देना होगा।
  • जाहिर है जिन भारतीय कंपनियों ने ब्रिटेन में पैसा लगाया है ब्रेक्ज़िट के बाद उनकी बैलेंसशीट पर सीधा असर पड़ेगा।
  • पाउंड की कीमत में गिरावट से ब्रिटेन स्थित भारतीय परियोजनाओं को नुकसान हो सकता है।
  • चूँकि भारत अधिक आयात करने वाला देश है, इसलिये भारत पर ब्रेक्ज़िट के सकारात्मक प्रभाव भी देखे जाएंगे।
  • ब्रेक्ज़िट के कारण भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार संबंधों को एक नई दिशा दी जा सकती है।

यूरोपीय संघ पर ब्रेक्ज़िट का प्रभाव

  • युद्धरत राष्ट्रों को एक साथ लाना बहुत कठिन काम है और ब्रेक्ज़िट इस मुश्किल काम को और मुश्किल बनाएगा तथा यूरोपीय संघ में उन ताकतों को कमज़ोर करेगा जो एकीकरण के पक्ष में हैं।
  • साथ ही ब्रेक्ज़िट, ग्रीस और स्पेन जैसे देशों के दावे को मज़बूत करेगा जो अपने आंतरिक कामकाज में अधिक स्वायत्तता चाहते हैं।
  • ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होते ही EU पर जर्मनी का प्रभुत्व काफी अधिक बढ़ जाएगा। उल्लेखनीय है कि अब तक ब्रिटेन के EU में रहने से शक्ति संतुलन बना हुआ था।
  • राजनीतिक तौर पर ब्रिटेन भले ही यूरोपीय संघ से अलग हो जाए, लेकिन भौगोलिक तौर पर वह हमेशा यूरोप का ही हिस्सा रहेगा। साथ ही आमतौर पर दुनिया के लिये यूरोप का मतलब है यूरोपीय संघ, जिसमें ब्रिटेन के निकलने के बाद 27 देश शेष रह जाएंगे।

ब्रेक्ज़िट के वैश्विक प्रभाव

  • पाउंड की कीमत गिरने से UK को निर्यात करने वाले देशों को नुकसान का सामना करना पड़ेगा। और यदि UK प्रमुख व्यापारिक भागीदार है, तो प्रभाव अधिक होगा।
  • इस लिहाज़ से अमेरिका को इस ब्रेक्ज़िट के कारण सबसे अधिक नुकसान होगा, क्योंकि वह UK का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
  • कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं जैसे- भारत और जापान का व्यापार काफी हद तक प्रभावित होगा।
  • ब्रेक्ज़िट के कारण वे वैश्विक कंपनियाँ भी प्रभावित होंगी, जिन्होंने UK के सहारे EU के बाज़ार तक पहुँच बनाने हेतु UK में निवेश किया है।

कुछ मुद्दे हैं बरकरार

  • ब्रेक्ज़िट में जिस मुद्दे को लेकर सबसे ज़्यादा विवाद है वह है उत्तरी आयरलैंड के बॉर्डर का मुद्दा।
  • उत्तरी आयरलैंड ब्रिटेन का हिस्सा है जिसकी सीमाएँ यूरोपीय संघ के सदस्य देश आयरलैंड गणराज्य से मिलती हैं। दरअसल, ये दोनों आयरलैंड द्वीप का हिस्सा हैं।
  • ऐसे में ब्रेक्ज़िट के बाद आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच सख्त बॉर्डर कायम करने के हक में न तो ब्रिटेन है और न ही यूरोपीय संघ।
  • लेकिन इसका मतलब है कि उत्तरी आयरलैंड को यूरोपीय संघ के कुछ नियम मानने होंगे। डील के विरोधियों को यह बिल्कुल पसंद नहीं है कि उत्तरी आयरलैंड में नियम-कानून शेष ब्रिटेन से अलग हों।

ब्रेक्ज़िट की नई डील

ध्यातव्य है कि ब्रेक्ज़िट को लेकर ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के मध्य एक नई डील पर सहमति बन गई है, परंतु अभी इसे ब्रिटेन की संसद की मंज़ूरी नहीं मिली है। इस डील के मुख्यतः 4 बिंदु हैं:

  • उत्तरी आयरलैंड ब्रेक्ज़िट के बाद भी यूरोपीय संघ के कुछ निश्चित नियमों का पालन करेगा।
  • उत्तरी आयरलैंड ब्रिटेन की कस्टम सीमा के अंदर होगा, परंतु उसे यूरोपीय संघ के सिंगल मार्केट सिस्टम में प्रवेश की अनुमति होगी।
  • VAT पर ब्रिटेन के हितों का ख्याल रखा जाएगा।
  • उत्तरी आयरलैंड के प्रतिनिधि प्रत्येक चार वर्षों में यह फैसला करेंगे कि वे यूरोपीय संघ के नियमों को लागू करना चाहते हैं या नहीं।

प्रश्न: ब्रेक्ज़िट क्या है? भारत तथा यूरोपीय संघ पर इसके प्रभावों को स्पष्ट कीजिये।


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