1991 के आर्थिक सुधार एवं 2021 का संकट
यह एडिटोरियल दिनांक 19/06/2021 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' में प्रकाशित लेख “From 1991, the lessons for the India of 2021” पर आधारित है। इसमें कोविड-19 महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था के सामने आ रही संकट के समाधान हेतु 30 वर्ष पूर्व वर्ष 1991 में लागू किये गए आर्थिक सुधारों से सीख लेने के विचार पर चर्चा की गई है।
संदर्भ
तीस वर्ष पूर्व वर्ष 1991 में शुरू किये गए उदारीकरण की नीति का वर्ष 2021 में 30 साल पूरे हो गए। वर्ष 1991 के सुधार भारत के स्वतंत्रता के बाद के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने अर्थव्यवस्था की प्रकृति को मौलिक तरीकों से बदल दिया। भुगतान संतुलन की गंभीर समस्या ने वर्ष 1991 में आर्थिक संकट को जन्म दिया। इससे निपटने के लिये भारत के आर्थिक प्रतिष्ठान ने भारत की व्यापक आर्थिक बैलेंस शीट को सुधारने के लिये एवं विकास की गति को बढ़ाने के लिये एक बहुआयामी सुधार एजेंडा शुरू किया।
तीन दशक बाद कोविड-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था के सामने एक और बड़ी परीक्षा सामने खड़ी है। हालांकि दोनों संकट अपने आप में काफी भिन्न हैं, किंतु दोनों की गंभीरता तुलनीय हैं।
वर्ष 1991 के सुधारों का महत्त्व
1990 के बाद की भारत की आर्थिक रणनीति
- इसके तहत आर्थिक व्यवस्था पर हावी होने वाले एवं विकास की गति को बाधित करने वाले गैर-ज़रूरी नियंत्रणकारी और परमिट के विशाल तंत्र को समाप्त कर दिया।
- इसके तहत राज्य की भूमिका को आर्थिक लेन-देन के सूत्रधार के रूप में और वस्तुओं और सेवाओं के प्राथमिक प्रदाता के बजाय एक तटस्थ नियामक के रूप में परिभाषित किया।
- इसने आयात प्रतिस्थापन के बदले और वैश्विक व्यापार प्रणाली के साथ पूरी तरह से एकीकृत होने का नेतृत्व किया।
सुधारों का प्रभाव
- 21वीं सदी के पहले दशक तक भारत को सबसे तेज़ी से उभरते बाज़ारों में से एक के रूप में देखा जाने लगा।
- वर्ष 1991 के सुधारों ने भारतीय उद्यमियों की ऊर्जा को एक उपयुक्त मंच प्रदान किया।
- उपभोक्ताओं को विकल्प दिया और भारतीय अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल दिया। पहली बार देश में गरीबी की दर में काफी कमी आई।
वर्ष 1991 के संकट की वर्ष 2021 से तुलना
उच्च राजकोषीय घाटा
- वर्ष 1991 संकट: वर्ष 1991 का संकट अधिक घरेलू मांग के कारण आयात में कमी और चालू खाता घाटे (CAD) के बढ़ने के कारण हुआ।
- विश्वास की कमी के कारण धन का आउटफ्लो शुरू हो गया जिस कारण CAD के वित्तपोषण हेतु भंडार में तेज़ी से गिरावट हुई।
- 2021 संकट: महामारी से प्रेरित लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों को एक हद तक रोक दिया है। इसके परिणामस्वरूप उत्पादन में गिरावट आई है साथ ही, मांग में भी गिरावट आई है।
- मांग में गिरावट का सामना करते हुए, राजकोषीय घाटे को बढ़ाना उचित है। सरकार ने पिछले साल राजकोषीय घाटे को बढ़ाकर 9.6% करने की अनुमति दी थी।
समष्टि आर्थिक स्थिति
- वर्ष 1991 का संकट: भारत को राजकीय कर्ज (Default on Sovereign Debt) में चूक से बचने के लिये टनों सोना गिरवी रखना पड़ा। तब भारत के पास महत्त्वपूर्ण आयातों का भुगतान करने के लिये विदेशी मुद्रा लगभग समाप्त हो गई थी।
- वर्ष 2021 का संकट: वर्तमान मे अर्थव्यवस्था तीव्र गति से सिकुड़ रही है, केंद्र सरकार राज्यों के प्रति अपनी राजस्व प्रतिबद्धताओं में चूक कर रही है।
- आज भारत में बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है एवं नौकरियाँ दिन-ब-दिन खत्म हो रही है; दशकों से गरीबी की दर में गिरावट के बाद अब यह बढ़ती हुई नज़र आ रही है।
सुधारों की आलोचना
- वर्ष 1991 के सुधार: वर्ष 1991 के सुधार पैकेज को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक द्वारा निर्धारित किये जाने के कारण भारी आलोचना का सामना करना पड़ा।
- इसके अलावा, सुधार के रूप में कुछ कंपनियों को पूंजीपतियों को बेचने के कारण आलोचना की गई थी।
- 2021 सुधार: सुधारों के लिये ऐसा केंद्रीकृत दृष्टिकोण अब काम नहीं कर सकता है। इसे हाल ही में बनाए गए तीन कृषि कानूनों के प्रति उभरे विरोध में देखा जा सकता है।
आगे की राह
- सार्वजनिक व्यय को बनाए रखना: अल्पावधि में सार्वजनिक व्यय को बनाए रखना विकास को पुनर्जीवित करने की कुंजी है।
- वर्तमान में टीकाकरण के लिये अधिक धन उपलब्ध कराने और मनरेगा की विस्तारित मांग को पूरा करने के लिये सार्वजनिक व्यय अत्यधिक वांछनीय है क्योंकि यह एक सुरक्षा तंत्र साबित हो रहा है।
- साथ ही, अगले तीन वर्षों में घाटे को कम करने एवं राजस्व लक्ष्यों को और अधिक वास्तविक स्तर पर संशोधित करने के लिये एक विश्वसनीय रास्ता अपनाने की आवश्यकता है।
- पारस्परिक रूप से सहायक सुधार: वर्ष 1991 के सुधार सफल हुए क्योंकि वे पारस्परिक रूप से सहायक सुधारों के एक मुख्य समस्या के समाधान के आसपास केंद्रित थे।
- अतः सुधारों की एक लंबी सूची के बदले प्राथमिकता सूची के आधार पर समस्याओं को एक अधिक केंद्रित रणनीतिक दृष्टिकोण से सुलझाने की आवश्यकता है।
- इस संदर्भ में बिजली क्षेत्र, वित्तीय प्रणाली, शासन संरचना और यहाँ तक कि कृषि विपणन में सुधार की आवश्यकता है।
- निवेश के माहौल में सुधार: निवेश समग्र मांग और आर्थिक विकास का एक प्रमुख स्रोत है। निवेश के बेहतर विकल्प के सन्दर्भ में कुछ धारणाएँ प्रमुख हैं, जैसे:
- नीतिगत ढाँचा नए निवेशों का समर्थन करने वाला होना चाहिये ताकि उद्यमियों को जोखिम लेने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
- शांतिपूर्ण वातावरण और सामाजिक एकता जैसे गैर-आर्थिक कारक भी प्रासंगिक हैं। अतः सरकार को इन सभी मोर्चों पर काम करना शुरू कर देना चाहिए।
- विनिवेश का मारुति मॉडल: सरकार को रणनीतिक भागीदारों के लिये बैंकों सहित प्रत्येक उपक्रम में अपना स्वामित्व कम कर 26% तक रखना चाहिये, जैसा कि सरकार ने वर्ष 1991 के सुधारों के बाद मारुति विनिवेश के तहत किया था।
- इस संदर्भ में अगले छह महीनों के भीतर एयर इंडिया, बीपीसीएल और कॉनकॉर जैसे सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार विनिवेश कर सकती है। इस प्रतिबद्धता के साथ कि अगले पाँच वर्षों के लिये हर साल दो दर्जन सार्वजनिक उपक्रमों को 'मारुति मॉडल' में विभाजित किया जाएगा।
- इससे सरकार को अरबों रुपये के निवेश योग्य अधिशेष पैदा करने में मदद मिलेगी।
- बहु-हितधारक दृष्टिकोण: वर्तमान सुधारों के लिये भी आम चर्चा और आम सहमति बनाने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करने और सुधार के निर्णयों से प्रभावित विभिन्न हितधारकों से परामर्श करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
वर्ष 1991 के सुधारों ने अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने और फिर गति पकड़ने में मदद की। वर्तमान समय भी एक विश्वसनीय नए सुधार एजेंडे की रूपरेखा तैयार करने का समय है जो न केवल जीडीपी को महामारी के संकट के पूर्व-स्तर पर वापस लाएगा बल्कि, यह भी सुनिश्चित करेगा कि विकास दर महामारी की शुरुआत के समय की तुलना में अधिक हो।
अभ्यास प्रश्न: वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनः सक्रिय किया एवं लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला। वर्तमान में जहाँ भारत एक महामारी के दौरान आर्थिक संकट से जूझ रहा है, वहीं पूर्व की घटना से यह सबक लेने का समय है कि क्या सुधार किया जाए और कैसे? चर्चा कीजिये।