हिंद महासागर क्षेत्र: साझा सामरिक विज़न
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की स्थिति के संबंध में चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
“जिसका हिंद महासागर पर नियंत्रण है, उसी का एशिया पर प्रभुत्व है। 20वीं सदी में यह महासागर सातों समुद्रों का आधारभूत है। विश्व की भवितव्यता का निर्णय इसके जल तल पर होगा।” अल्फ्रेड थेयर महान के शब्दों में हिंद महासागर क्षेत्र के महत्त्व को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। थेयर के इस कथन से न केवल हिंद महासागर के ऐतिहासिक महत्त्व का पता चलता है बल्कि उसके भू-राजनीतिक महत्त्व का भी पता चलता है। शायद इसी कारण से आज हिंद महासागर में अंतर्राष्ट्रीय महाशक्तियों के बीच नौसैन्य अड्डा बनाने की होड़ लगी है।
वर्ष 2008 में हुए मुंबई आतंकवादी हमलों ने भारत की छवि को काफी धक्का पहुँचाया था। इस हमले के बाद भारत की तटीय सुरक्षा व्यवस्था और महासागरीय क्षेत्र की बेहद सीमित जानकारी की चिंताजनक स्थिति हमारे सामने आई। इस आतंकवादी हमले ने भारत को अपनी समुद्री रणनीति को नए सिरे से परिभाषित करने के लिये विवश किया जिसकी वजह से समुद्र में होने वाली घटनाओं के ज़मीनी स्तर पर व्यापक प्रभाव की अहमियत समझने में आसानी हुई। इसी के मद्देनज़र वर्ष 2008 से ही भारत सरकार लगातार समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने की दृष्टि से हिंद महासागरीय क्षेत्र पर विशेष ध्यान दे रही है। हिंद महासागर क्षेत्र में विशेष रणनीतिक बढ़त को हासिल करने के लिये भारत ने वर्ष 2015 में एक रणनीतिक विज़न ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region -SAGAR) प्रस्तुत किया। वर्तमान में सरकार इसी रणनीतिक विज़न पर कार्य कर रही है।
इस आलेख में हिंद महासागर की भौगोलिक स्थिति को समझने के साथ ही इसके भू-राजनीतिक महत्त्व को भी समझने का प्रयास किया जाएगा तथा हिंद महासागर में भारत की रणनीतिक बढ़त के लिये विभिन्न सुझावों पर भी विमर्श किया जाएगा।
हिंद महासागर की भौगोलिक स्थिति
- हिंद महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जल निकाय है और पृथ्वी की सतह पर उपस्थित जल का लगभग 20 प्रतिशत भाग इसमें समाहित है।
- हिंद महासागर उत्तर में भारतीय उपमहाद्वीप से, पश्चिम में पूर्व अफ्रीका, पूर्व में चीन, सुंडा द्वीप समूह और ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण में दक्षिण ध्रुवीय महासागर से घिरा है।
- हिंद महासागर भारत को दक्षिण-एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका, पश्चिम एशिया और ओशिनिया तक पहुँच प्रदान करता है।
- हिंद महासागर मछली पकड़ने और खनिज संसाधनों के लिये एक मूल्यवान स्रोत भी है।
हिंद महासागरीय क्षेत्र एक उभरती हुई शक्ति कैसे?
- जनसांख्यिकी दृष्टि से- हिंद महासागर क्षेत्र में लगभग 2.5 बिलियन लोग निवास करते हैं, जो दुनिया की आबादी का एक तिहाई है।
- आर्थिक दृष्टि से- विश्व के कच्चे तेल के व्यापार का लगभग 90 प्रतिशत परिवहन हिंद महासागर के चोक पॉइंट के रूप में जाने जाने वाले जल के तीन संकरे मार्गों से होकर जाता है। इसमें फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच स्थित होर्मुज का जलडमरूमध्य शामिल है, जो फारस की खाड़ी से हिंद महासागर तक एकमात्र समुद्री मार्ग प्रदान करता है। भारत दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है। यह आने वाले दशकों में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी व सबसे अधिक क्षमता वाला देश भी होगा।
- राजनीतिक दृष्टि से- हिंद महासागर सामरिक प्रतिस्पर्द्धा का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बनता जा रहा है। चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में पूरे क्षेत्र में बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। इस निवेश के माध्यम से चीन हिंद महासागर के सीमावर्ती देशों में अपनी सामरिक बढ़त को बनाना चाहता है।
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की भूमिका:
- रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन लगातार इस क्षेत्र में अपनी नौसैन्य शक्ति को बढ़ा रहा है। चीन, पाकिस्तान और श्रीलंका की भाँति जिबूती में भी एक नौसैन्य चौकी स्थापित कर रहा है, जो बीजिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
- रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी गैर-शांति अभियानों के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में स्थापित अपने सभी नौसैन्य बेस में रसद आपूर्ति के विस्तार की योजना बना रही है, जिससे भारतीय नौसेना के हितों के साथ टकराव होने की संभावना है।
- जिबूती में स्थापित नौसैन्य बेस के माध्यम से चीन हिंद महासागर में स्थित परिवहन मार्गों को नियंत्रित कर सकता है, जिससे भारत की कच्चे तेल और ऊर्जा संबंधी सप्लाई लाइन को काटा जा सकता है।
- चीन अपनी ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ नीति के अनुसार, भारत को घेरते हुए हिंद महासागर में स्थित देशों में अपने नौसैन्य अड्डे स्थापित कर भारत पर सामरिक बढ़त हासिल करना चाहता है।
हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की स्थिति
- पिछले कुछ वर्षों में भारत की नीति में इस क्षेत्र के संबंध में बदलाव आया है। पहले भारत की नीति में इस क्षेत्र के लिये अलगाव की स्थिति थी। लेकिन अब हिंद महासागर क्षेत्र के लिये भारत की नीति भारतीय सामुद्रिक हितों से परिचालित हो रही है।
- सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) द्वारा भारत इस क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा पर ज़ोर दे रहा है। साथ ही इस रणनीति को मूर्तरूप देने के लिये सागरमाला परियोजना पर कार्य कर रहा है, ताकि भारत अपनी तटीय अवसंरचना को सुदृढ़ करके अपनी क्षमता में वृद्धि कर सके।
- इस तरह भारत न सिर्फ हिंद महासागर क्षेत्र में अपने हितों को साध सकेगा बल्कि ब्लू इकॉनमी के लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकेगा। ब्लू इकॉनमी पर बल देने तथा हिंद महासागर क्षेत्र के महत्त्व को देखते हुए ही नई सरकार ने अपने शपथ ग्रहण में बिम्सटेक (BIMSTEC) देशों को आमंत्रित किया, इतना ही नहीं भारतीय प्रधानमंत्री नें अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये मालदीव और श्रीलंका चुना।
- कुछ वर्षों में भारत द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र को लेकर किये गए प्रयास इस क्षेत्र के संबंध में भारत की बदलती नीति को प्रदर्शित करते हैं तथा इस क्षेत्र के महत्त्व को भी इंगित करते हैं।
क्या है सागर पहल?
- सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री मोदी की मॉरीशस यात्रा के दौरान नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने के लिये गढ़ा गया एक सिद्धांत है।
- यह एक समुद्री पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की शांति, स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिये हिंद महासागर क्षेत्र को प्राथमिकता देती है।
- यह विश्व के सभी देशों की नौ सेनाओं और समुद्री सुरक्षा एजेंसियों के बीच सहयोग को तेज़ करने के लिये सहयोग प्राप्त करने का एक मंच है।
- भारत के संपूर्ण क्षेत्र के लिये सुरक्षा प्रदाता की भूमिका निभाते हुए सागर पहल हिंद महासागर में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- यह पहल हिंद महासागर क्षेत्रीय सहयोग संघ (Indian Ocean Rim Association- IORA) के सिद्धांतों के अनुरूप है।
हिंद महासागर क्षेत्रीय सहयोग संघ
- वर्ष 1997 में हिंद महासागर क्षेत्रीय सहयोग संघ की स्थापना की गई।
- हिंद महासागर के सीमावर्ती 22 देश इस संघ के सदस्य हैं।
- इसका सचिवालय माॅरीशस के इबेन शहर में स्थापित किया गया है।
- इसके सदस्य देशों की आबादी लगभग 2.7 बिलियन है।
उद्देश्य
- इस क्षेत्र के सदस्य देशों के स्थाई विकास एवं संतुलित प्रगति को बढ़ावा देना तथा क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के लिये साझी ज़मीन सृजित करना।
- आर्थिक सहयोग के ऐसे क्षेत्रों पर बल देना जो साझे हितों के विकास के लिये तथा परस्पर लाभ प्राप्त करने के लिये अधिकतम अवसर प्रदान करते हैं।
- व्यापार के उदारीकरण के लिये सभी संभावनाओं एवं अवसरों का पता लगाना, क्षेत्र के अंदर माल, सेवाओं, निवेश एवं प्रौद्योगिकी के मुक्त एवं अधिक प्रवाह की दिशा में आने वाली अड़चनों को दूर करना तथा बाधाओं को कम करना।
- सदस्य देशों के बीच किसी भेदभाव के बिना तथा अन्य क्षेत्रीय आर्थिक एवं व्यापार सहयोग व्यवस्थाओं के अंतर्गत बाध्यताओं पर प्रतिकूल प्रभाव के बिना सदस्य देशों के व्यापार एवं उद्योग, शैक्षिक संस्थाओं, विद्धानों एवं लोगों के बीच घनिष्ठ अंत:क्रिया को प्रोत्साहित करना।
हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त हेतु सुझाव
- इस क्षेत्र में भारत को और अधिक सक्रिय रूप से समुद्री हितों को लेकर नीति को गति देने की आवश्यकता है, जिससे इस क्षेत्र में विकसित हो रही परिस्थितियों में वह प्रमुख भूमिका निभा सके। अतः भारत को सागर (SAGAR) पहल पर बल देना होगा और इसके लिये एक ऐसे ढाँचे का निर्माण करना होगा जिसे उचित रूप से क्रियान्वित किया जा सके।
- भारत द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारियों के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सकता है और इसके लिये भारत को सागरमाला परियोजना पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। यह परियोजना अवसंरचना को तटीय भागों में सुदृढ़ करेगी जिससे विनिर्माण, व्यापार तथा पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा।
- विश्व के लगभग सभी देश समुद्र में स्वतंत्र नौ-परिवहन को लेकर एक मत हैं लेकिन विभिन्न देशों में नौ-परिवहन की स्वतंत्रता की परिभाषा को लेकर गहरे मतभेद बने हुए हैं। इसका कारण कई देशों के कानूनों का अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून (International Maritime Law-IML) से भिन्न होना है। इस विषय पर भारत अन्य देशों के मध्य मतभेदों को समाप्त करने और एक निश्चित परिभाषा पर सहमत होने के लिये नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है।
- भारत को चाहिये कि वह हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पहुँच में वृद्धि करे। परिचालन द्वारा भारत अपनी उपस्थिति को इस क्षेत्र में मज़बूती से दर्ज करा सकता है। यह इस क्षेत्र में भारत के दीर्घकालीन हितों की पूर्ति करेगा, साथ ही इस क्षेत्र की स्थिरता को भी मज़बूती प्रदान करेगा। इस क्षेत्र में भारत के जापान जैसे सहयोगी पहले से ही मौजूद हैं, जो भारत को आवश्यकता के समय लॉजिस्टिक सपोर्ट उपलब्ध करा सकते हैं।
- सागरमाला परियोजना जैसी अन्य परियोजनाओं को भी आरंभ किया जा सकता है। इन परियोजनाओं के माध्यम से बंदरगाहों के विकास, बेहतर कनेक्टिविटी, बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण, तटों के करीब रहने वाले लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास, निवेश तथा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नई नौकरियों के सृजन पर ध्यान दिया जा सकता है।
- हिंद महासागर क्षेत्र को समर्पित एक अध्ययन केंद्र के निर्माण की संभावना पर भी विचार करना चाहिये। यदि संभव हो तो ऐसे केंद्र की स्थापना अंडमान निकोबार द्वीप में हो सकती है जिसमें इस क्षेत्र से संबंधित विभिन्न पाठ्यक्रमों को शामिल किया जाना चाहिये।
प्रश्न- हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति का विश्लेषण करते हुए बताएँ कि किस प्रकार भारत इस क्षेत्र में अपनी पहुँच में विस्तार कर सकता है?