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एडिटोरियल

  • 22 Apr, 2019
  • 15 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

चुनौतियों/संकटों से घिरा भारतीय विमानन क्षेत्र

संदर्भ

25 साल से अपनी सेवाएँ दे रही नरेश गोयल की जेट एयरवेज़ कुछ समय पहले तक देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन हुआ करती थी, लेकिन अब इसकी घरेलू और इंटरनेशनल सभी उड़ानें बंद हैं। कभी एक दिन में 600 से अधिक फ्लाइट्स उड़ाने वाली जेट को बैंक कर्ज़दाताओं के फंड्स देने से मना करने के बाद अपना ऑपरेशन अस्थायी तौर पर बंद करना पड़ा। एयरलाइन के पास ईंधन और अन्य सर्विस और रोज़ाना के खर्चों के भुगतान के लिये पैसा नहीं था। जेट एयरवेज़ को रोज़ाना 21 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा था। उसका कर्ज़ और देनदारी 15000 करोड़ रुपए तक पहुँच गई थी तथा अस्थायी तौर पर बंद होने के कारण लगभग 20 हज़ार कर्मचारियों की नौकरी जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। पिछले एक दशक में किंगफिशर एयरलाइन के बाद कामकाज बंद करने वाली जेट एयरवेज़ दूसरी बड़ी कंपनी बन गई है। विजय माल्या की किंगफिशर ने 2012 में कामकाज बंद कर दिया था। इनके अलावा एयर सहारा, NEPC, स्काइलाइन, मोदीलुफ्त, ईस्टवेस्ट एअरलाइन आदि कई छोटी-बड़ी विमानन कंपनियाँ पहले ही बंद हो चुकी हैं।

दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते विमानन बाज़ार के सामने चुनौतियों का अंबार

  • भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता विमानन बाज़ार है। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विमानन उद्योग का योगदान लगभग 5% है। लगभग 40 लाख लोगों को इस उद्योग में रोज़गार मिला हुआ है। यात्रियों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हुई है। लेकिन कड़ी प्रतिस्पर्द्धा, कम किराया, महँगा रखरखाव और महँगे र्इंधन की वज़ह से भारतीय विमानन कंपनियों की हालत खस्ता है।
  • आज के समय में तकनीकी इतनी जल्दी-जल्दी बदल रही है कि प्रतिस्पर्द्धी कंपनियाँ नई तकनीकी के सहारे पुरानी तकनीकी अपनाने वाली कंपनियों को व्यवसाय में पछाड़ देती हैं। लेकिन नई तकनीक अपनाने के लिये भारी राशि निवेश करनी पड़ती है। इसके लिये उस कंपनी को बैंक से कर्ज़ लेना पड़ता है और कंपनी पर कर्ज़ और ब्याज का भार बढ़ जाता है।
  • विमानन कंपनियों के कुप्रबंधन या अक्षम प्रबंधन के कारण भी विमानन कंपनियाँ घाटे में चली गई हैं। कुछ विमानन कंपनियाँ गैर-आर्थिक कीमतों पर अधिक क्षमताओं का सृजन कर लेती हैं, जैसे वे आवश्यकता से अधिक विमान खरीद लेती हैं और इसके लिये बैंकों से ऋण सुविधाओं की मांग करके अधिक ब्याज दरों पर विभिन्न प्रकार की ऋण सुविधाएँ लेती रहती हैं और आखिर में ऐसे चक्र में फँस जाती हैं जिससे निकलना नामुमकिन होता है। आज ज़्यादातर भारतीय विमानन कंपनियों को इसी तरह के हालात का सामना करना पड़ रहा है।
  • हर स्तर पर प्रभावी संवाद की कमी, कंपनी प्रबंधन का अदूरदर्शितापूर्ण दृष्टिकोण, कुशल नेतृत्व का अभाव, कमज़ोर प्रबंधन, अपर्याप्त जोखिम प्रबंधन, प्रबंधकों में अनुभव व प्रशिक्षण की कमी, गलत भागीदार, पूंजी की कमी, लचर वित्तीय प्रबंधन, कर्मचारियों की उपेक्षा, यात्रियों की आवश्यकताओं की अनदेखी इत्यादि से भी विमानन कंपनी को सफलता नहीं मिल पाती है।
  • कंपनी के प्रमोटरों में आपस में तनातनी से कंपनी का कामकाज, साख और मुनाफा प्रभावित होता है। इस कलह के दूरगामी परिणाम होते हैं। आपसी लड़ाई-झगड़े से कंपनी का ब्रांड खराब होने लगता है और इस दौरान प्रतिस्पर्द्धी कंपनियाँ आगे बढ़ने लगती हैं। कंपनी के प्रमोटर्स, प्रबंधन में आपसी मतभेदों के कारण कंपनी को असफलता मिलती है और भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है जिससे ऐसी विमानन कंपनियों के ऋण खाते खराब हो जाते हैं।

सभी विमानन कंपनियों की हालत खराब

चिंतनीय स्थिति यह है कि अभी चाहे इंडिगो, स्पाइसजेट और गोएयर जैसी प्राइवेट कंपनियाँ हों या एयर इंडिया जैसी सरकारी कंपनी, लगभग सभी एयरलाइंस वित्तीय मोर्चे पर लगातार संघर्ष कर रही हैं। बोइंग 737 मैक्स विमानों को परिचालन से हटा दिये जाने के कारण स्थिति और भी खराब हो गई है। भारतीय विमानन बाज़ार में कुछ महीनों से विमान किराए तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इस कारण मध्यम वर्ग के यात्री जो इकोनॉमी क्लास में यात्रा करते थे, वे अब ट्रेन से यात्रा को तरज़ीह दे रहे हैं।

सरकारी नीतियों में दूरदर्शिता का अभाव

  • दरअसल, विमानन क्षेत्र में सरकार की नीतियों में दूरदर्शिता का अभाव रहा है। पिछले कुछ वर्षों से देश में नियामक तंत्र की अस्थिरता ने कुछ उद्योगों में तनाव व दबाव का वातावरण निर्मित किया है। विमानन उद्योग भी इन्हीं में से एक है।
  • मानन कंपनियों की शिकायत है कि बड़े हवाई अड्डों पर देरी की सबसे बड़ी वज़ह बुनियादी ढाँचे से जुड़ी समस्याएँ हैं, इसके लिये उन्हें ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
  • विमानन क्षेत्र में विमान ईंधन (ATF) की कीमतों में वृद्धि, अतिरिक्त क्षमता की रफ्तार का घटना, आपसी प्रतिस्पर्द्धा, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा अधिक प्रभार व्यय (एयरपोर्ट चार्जेज़) लगाने, सरकार की विमानन नीति में खामियों और आय में लगातार कमी होने के कारण विमानन कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ा है। इस कारण इस क्षेत्र की कंपनियों को बैंकों द्वारा दिये गए कर्ज़ फँस गए हैं।
  • किसी विमानन कंपनी की परिचालन लागत में ATF का हिस्सा 40%से अधिक होता है। रुपए में गिरावट एक बड़ी समस्या है, क्योंकि विमान उद्योग की लागत का अधिकांश हिस्सा डॉलर पर आधारित है। ATF की कीमत कम होने के बजाय लगातार बढती ही जा रही है।
  • कई उद्योगों में भारत को इसलिये बढ़त हासिल है कि उनके लिये यहाँ सस्ता श्रम सुगमता से उपलब्ध है, लेकिन विमानन उद्योग में ऐसा नहीं है। देश में पायलट का वेतन अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है, जबकि भुगतान क्षमता वैसी नहीं है।

इस उद्योग को दस बैंकों ने अपने कुल अग्रिम का लगभग 86% कर्ज़ दिया हुआ है। किंगफिशर एअरलाइंस को 17 बैंकों ने 6000 करोड़ रुपए का कर्ज़ दिया जो अब ब्याज सहित बढ़ता हुआ 9000 करोड़ रुपए से ज़्यादा हो चुका है। जेट एअरवेज़ पर बैंकों का 8400 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज़ बकाया है। एअर इंडिया पर कुल 55 हज़ार करोड़ रुपए के कर्ज़ का बोझ है। यह बकाया कर्ज़ गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में वर्गीकृत हो चुका हैं।

भारत की विमानन नीति

जून 2016 में केंद्र सरकार ने नागर विमानन नीति को मंज़ूरी दी थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब नागर विमानन मंत्रालय द्वारा एक संपूर्ण नागर विमानन नीति लाई गई।

नागर विमानन नीति के मुख्य अंश

  • भारत को वर्ष 2022 तक नौवें से तीसरा सबसे बड़ा नागर विमानन बाज़ार बनाना। 
  • घरेलू टिकटिंग को वर्ष 2015 में 8 करोड़ से बढ़ाकर वर्ष 2022 तक 30 करोड़ करना। 
  • वाणिज्यिक उड़ानों के लिये हवाई अड्डों की संख्या को वर्ष 2019 तक 127 करना जो वर्ष 2016 में 77 थी। 
  • कार्गो की मात्रा को वर्ष 2027 तक 4 गुना बढ़ाकर 10 मिलियन टन करना। 
  • आम आदमी तक विमान सेवाओं को सुलभ बनाना- सेवारहित हवाई अड्डों पर क्षेत्रीय संपर्क योजना के अंतर्गत एक घंटे के सफर के लिये अधिकतम किराया 2500 रुपए।
  • अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवा शुरू करने के लिये 5 साल घरेलू विमान सेवा देने की शर्त खत्म।
  • रखरखाव और मरम्मत संचालन को प्रोत्साहन देकर दक्षिण एशिया में प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करना। 
  • वर्ष 2025 तक गुणवत्ता प्रमाणित 3.3 लाख कुशल कार्मिकों की आसान उपलब्धता सुनिश्चित करना। 
  • ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों और हेली पोर्ट्स का विकास करना।

सरकार ने MRO यानी मेंटेनेंस, रिपेयर एंड ओवरहॉल के लिये सही नीति बनाई है। इससे कंपनियों के लिये विमानों का रखरखाव आसान और किफायती होगा। इससे बड़े पैमाने पर रोज़गार का भी सृजन होगा। सरकार ने नागर विमानन में शत-प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भी मंज़ूरी देकर कारोबारियों की राह आसान ही की है। उड़ान योजना बनाकर बाज़ार को विस्तार देने का भी काम किया है। इसमें वह अपनी ओर से वित्तीय अंशदान भी कर रही है।

सुरक्षित विमान यात्रा की चुनौती

  • सुरक्षित विमान यात्रा भी विमानन क्षेत्र की एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। बोइंग 737 मैक्स विमानों पर पूरे विश्व में रोक लग चुकी है। दो विमान हादसों में 300 से ज़्यादा यात्रियों की मौत के बाद यह रोक लगाई गई थी। इन विमानों में इस्तेमाल होने वाली सॉफ्टवेयर प्रणाली MCAS में समस्या होने से दुर्घटनाएँ हुई थीं। बोइंग 737 मैक्स विमानों के डिज़ाइन में लगातार बदलाव किये जाते रहे हैं। पायलटों को उड़ान संबंधी नए मानकों का प्रशिक्षण नहीं मिला था जिसकी वज़ह से ये हादसे हुए थे। अब DGCA को सुरक्षा संबंधी मानदडों में कड़े बदलाव करने होंगे।

विमानन क्षेत्र को मज़बूत बनाने के लिये सरकार को विमानन नीति में आमूलचूल बदलाव करने की ज़रूरत है। विमानन क्षेत्र में दीर्घकालीन ढाँचागत सुधार किये बिना कुछ हासिल नहीं हो सकता। इसके लिये सरकार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय, बैंकों और DGCA द्वारा ऐसे कदम उठाना आवश्यक है जिनसे विमानन कंपनियाँ घाटे के दुष्चक्र से बाहर निकल सकें।

  • फिलहाल हालात ऐसे हैं कि क्षेत्रीय एयरपोर्ट विकसित करने को लेकर दो साल पहले लॉन्च की गई स्कीम उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) के तहत निविदा भरने वाली छह एयरलाइंस अपने ऑपरेशंस बंद कर चुकी हैं। इसका नतीजा यात्रियों को फ्लाइट कैंसिलेशन और बढ़ी टिकट दरों के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
  • एविएशन सेक्टर में विशाल ग्राहक वर्ग को लुभाने के लिये टिकट दर कम रखने की मजबूरी और ईंधन, पार्किंग व लीज़ के बढ़ते खर्च के बीच संतुलन बनाना इस सेक्टर के लिये कठिन चुनौती बना हुआ है। मार्च 2019 में समाप्त हुए वित्त वर्ष में भारतीय विमान कंपनियों का कुल घाटा 1.7 अरब डॉलर होने का अनुमान है, जो अगले वित्त वर्ष में घटकर 55 से 70 करोड़ डॉलर के बीच रह सकता है, लेकिन फायदे में जाना अभी इस सेक्टर के लिये दूर की कौड़ी ही है।

यदि विमानन क्षेत्र को प्रतिस्पर्द्धी बनाने व अच्छी सेवाएँ देने के लिये निजी क्षेत्र की कंपनियों को बढ़ावा दिये जाने की नीति है तो फिर विमानन कंपनियाँ घाटे में क्यों चली जाती हैं और क्यों बंद हो जाती हैं? कारोबारी प्रबंधन के जानकारों से लेकर नियामक तक विमानन कंपनियों में संकट की आहट को आखिर समय रहते क्यों नहीं पहचान पा रहे हैं? क्या इस क्षेत्र के लिये सरकार की ओर से कारगर नीतियाँ नहीं बनाई जा रही हैं? क्या इस पर निगरानी के लिये कोई तंत्र नहीं होना चाहिये? स्पष्ट है कि भारत में विमानन उद्योग के लिये हालात अच्छे नहीं हैं। आखिर इसके लिये किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाए?

अभ्यास प्रश्न: एक-के-बाद-एक बंद होती जा रही निजी विमान सेवाएँ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा संकेत नहीं है। उदारीकरण के इस युग में सरकार को इस मुद्दे में हस्तक्षेप करना चाहिये या नहीं...पक्ष-विपक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिये।


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