नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 22 Mar, 2022
  • 15 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

दक्षिण एशिया में वस्त्र उद्योग क्षेत्र

यह एडिटोरियल 21/03/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Get these wrinkles out of the South Asian textile story” लेख पर आधारित है। इसमें दक्षिण एशिया में वस्त्र क्षेत्र की संभावनाओं और भारतीय वस्त्र क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियों और समस्याओं के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

20वीं सदी के अंतिम दशक की शुरुआत के साथ दक्षिण एशिया वैश्विक वस्त्र और परिधान बाज़ार में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में उभरा। श्रीलंका में गृह युद्ध के प्रसार के साथ-साथ 1980 के दशक में बांग्लादेश भी इस क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ा। कच्चे माल और पूंजीगत मशीनरी पर शून्य शुल्क के साथ 1990 के दशक में अपनाई गई समर्थनकारी औद्योगिक नीति ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जहाँ वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच से इस उद्योग को तेज़ी से आगे बढ़ने का अवसर मिला। बांग्लादेश ने पिछले एक दशक में निर्यात में भारत को पीछे छोड़ दिया है क्योंकि भारतीय श्रम लागत के परिणामस्वरूप उत्पाद 20% तक अधिक महँगे हो गए हैं। इस संदर्भ में भारतीय वस्त्र उद्योग की संभावनाओं और उसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों पर विचार करना आवश्यक है।

दक्षिण एशिया में वस्त्र उद्योग का विकास 

  • कम उत्पादन लागत और पश्चिमी खरीदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) बांग्लादेश के पक्ष में कार्य करते हैं, जिससे वह विश्व के तीसरे बड़े वस्त्र निर्यातक की स्थिति रखता है।
  • वस्त्र क्षेत्र में लंबे समय से उपस्थिति के बावजूद रेडीमेड परिधानों के मामले में भारत और पाकिस्तान की प्रगति अभी हाल ही में हुई है। भारत 840 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक वस्त्र एवं परिधान बाज़ार में 4% हिस्सेदारी रखता है और पाँचवें स्थान पर है।
  • वर्ष 2019 में 0.8% की गिरावट के बाद भारत के निर्यात में बाद में एक बड़ी वृद्धि नज़र आई। पाकिस्तान के वस्त्र निर्यात में 24.73% की वृद्धि (वर्ष 2021-22) देखी गई और उसने 10.933 बिलियन डॉलर का व्यापार किया है।
  • सूती और तकनीकी वस्त्र उद्योग में ‘संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना’ की सहायता से भारत ‘बैकवर्ड लिंक्स’ विकसित करने में सफल रहा है। हालाँकि भारत को अभी भी मानव-निर्मित फाइबर (Man-Made Fibres- MMF) क्षेत्र में विकास करने की आवश्यकता है, जहाँ कारखाने अभी भी मौसमी तरीके से संचालित हैं।
  • यद्यपि पाकिस्तान सूती उत्पादों पर अत्यधिक केंद्रित रहा है, यह कौशल और नीति कार्यान्वयन की समस्याओं के कारण पिछड़ जाता है। प्रौद्योगिकी को अपनाने में बांग्लादेश समय से आगे रहा है। इसके अतिरिक्त बांग्लादेश कम मूल्य और मिड-मार्केट मूल्य खंड में विशेषज्ञता के साथ सूती उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करता है। देश को उच्च कार्यमुक्ति एवं कौशल संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च लागत की स्थिति बनती है।
  • श्रीलंका ने मूल्य शृंखला में आगे बढ़ने में सबसे अधिक प्रगति की है। प्रशिक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण, उत्पाद विकास और व्यापार में प्रगति जैसे कारक अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों को श्रीलंका की ओर आकर्षित कर रहे हैं।

संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना

  • वस्त्र उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने और वस्त्र उद्योग के लिये पूंजीगत लागत को कम करने के लिये नई एवं उपयुक्त प्रौद्योगिकी की सुविधा के लिये सरकार द्वारा वर्ष 1999 में प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (Technology Upgradation Fund Scheme- TUFS) शुरू की गई थी।
  • वर्ष 2015 में सरकार ने वस्त्र उद्योग के प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये ‘संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना’ (Amended Technology Upgradation Fund Scheme- ATUFS) को मंज़ूरी दी है।

भारत के लिये वस्त्र क्षेत्र का महत्त्व 

  • वस्त्र एवं परिधान उद्योग एक श्रम-प्रधान क्षेत्र है, जो भारत में 45 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और रोज़गार के मामले में कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा प्रमुख क्षेत्र है।
  • वस्त्र क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है और पारंपरिक कौशल, विरासत एवं संस्कृति का निधान और वाहक है।
  • यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन में 7% तथा भारत की निर्यात आय में 12% का योगदान देता है और कुल रोज़गार के 21% से अधिक की पूर्ति करता है।
  • भारत 6% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ तकनीकी वस्त्रों का छठा सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि विश्व में कपास और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत विश्व में रेशम (Silk) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक भी है और विश्व में हाथ से बुने हुए कपड़े (Hand Woven Fabric) का 95% भारत से प्राप्त होता है।

भारत और दक्षिण एशिया में वस्त्र क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ 

  • अत्यधिक बिखरा: भारतीय वस्त्र उद्योग अत्यधिक खंडित है और यहाँ असंगठित क्षेत्र तथा छोटे एवं मध्यम उद्योगों का प्रभुत्व है।
  • पुरानी प्रौद्योगिकी: भारतीय वस्त्र उद्योग की नवीनतम प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच है (विशेषकर लघु उद्योगों में) और वह अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में वैश्विक मानकों को पूरा कर सकने में विफल रहता है।
  • कर संरचना संबंधी समस्याएँ: वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में वस्त्र उत्पादों को महंगा और अप्रतिस्पर्द्धी बनाता है। एक और चुनौती कामगारों की बढ़ती मज़दूरी और वेतन से उत्पन्न होती है।
  • स्थिर/मंद निर्यात: इस क्षेत्र का निर्यात स्थिर या मंद रहा है और पिछले छह वर्षों से 40 बिलियन डॉलर के ही स्तर पर बना हुआ है।
  • ‘स्केल’ की कमी: भारत में परिधान इकाइयों का औसत आकार 100 मशीनों का है, जो बांग्लादेश की तुलना में बहुत कम है, जहाँ प्रति कारखाना औसतन कम-से-कम 500 मशीनें होती हैं।
  • विदेशी निवेश की कमी: उपर्युक्त चुनौतियों के कारण विदेशी निवेशक वस्त्र क्षेत्र में निवेश करने के लिये अधिक उत्साहित नहीं हैं जो कि चिंता का एक अन्य विषय है।
    • हालाँकि इस क्षेत्र में पिछले पाँच वर्षों के दौरान निवेश में तेज़ी देखी गई है, उद्योग ने अप्रैल 2000 से दिसंबर 2019 तक मात्र 3.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) ही आकर्षित किया।
  • भू-भाग के अंदर प्रतिस्पर्द्धा: सदृश परंपरा, प्रौद्योगिकी और श्रम शक्ति के कारण भू-भाग के अंदर ही पूरकता के बजाय प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति पाई जाती है।

आगे की राह

  • ‘स्केल’ की आवश्यकता: उत्पादन लागत को कम करने, वैश्विक बेंचमार्क के अनुरूप उत्पादकता स्तर में सुधार लाने और इस प्रकार अमेरिका जैसे बाज़ारों से बड़े ऑर्डर को पूरा कर सकने के लिये ‘स्केल’ (Scale) या आकारिक वृहतता की आवश्यकता है।
    • उपयुक्त स्केल और प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के साथ भारत प्रतिस्पर्द्धी देशों की विनिर्माण लागत की बराबरी कर सकता है।
  • पर्यावरण अनुकूल विनिर्माण प्रक्रिया की आवश्यकता: सामाजिक एवं पर्यावरणीय मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता के साथ वैश्विक खरीदार थोक ऑर्डर देने के लिये अधिक अनुपालक, संवहनीय और बड़े कारखानों की तलाश रखते हैं जो चीन और वियतनाम में उपलब्ध हैं। भारत में भी ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध कराने की ज़रूरत है।
    • वृद्धिशील बिक्री वृद्धि की स्थिति के साथ नई शुरू हुई PLI योजना निरंतर रूप से क्षमता वृद्धि के लिये उद्यम से निवेश सुनिश्चित करती है। भारत निश्चित रूप से अगले कुछ वर्षों में 1 बिलियन डॉलर मूल्य की दस कंपनियों का निर्माण कर सकता है।
  • विशेषज्ञता: भारत ने सूती परिधानों में एक सुदृढ़ पारितंत्र का निर्माण किया है, लेकिन मानव-निर्मित फाइबर (MMF) परिधान निर्माण में पीछे है। वैश्विक फैशन ‘ब्लेंड्स’ या मिश्रित फाइबर की ओर आगे बढ़ रहा है और भारत को इस दृष्टिकोण से भी तैयारी करनी होगी।
    • अमेरिका प्रति वर्ष 3 लाख करोड़ रुपए मूल्य के MMF परिधान का आयात करता है। इस वृहत बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी महज 2.5% है।
    • इसलिये एक केंद्रित दृष्टिकोण के साथ वस्त्र क्षेत्र को वैश्विक फैशन मांगों के साथ संलग्न किया जाना लाभप्रद होगा।
    • PLI योजना MMF परिधान एवं फैब्रिक विनिर्माण को प्रोत्साहित करती है। बहुत सारे उत्पादों को बिखरे हुए रूप में प्रोत्साहन प्रदान करने के बजाय कुछ ऐसे उत्पादों में विशेषज्ञता हासिल करना उपयुक्त होगा जिनके पास वृहत् बाज़ार अवसर मौजूद हैं।
    • एकीकृत कंपनियाँ MMF परिधान निर्माण के लिये ‘ग्रीनफील्ड’ परियोजनाओं में निवेश कर सकती हैं और लागत के मामले में चीन और वियतनाम जैसे मज़बूत पक्षों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मकता: कम लागत वाले प्रतिस्पर्द्धियों से मुकाबले के लिये भारत को मूल्य निर्धारण में अत्यधिक कुशल होने की आवश्यकता है। PLI योजना में सुनिश्चित उत्पादन प्रोत्साहन के साथ विकास की आकांक्षा रखने वाले उद्यमी एकीकृत कुशल कारखानों में साहसपूर्वक निवेश करेंगे। यह विश्वस्तरीय उत्पादकता और विनिर्माण दक्षता हासिल करने में मदद कर सकता है।
  • पूंजी आकर्षित करना: भारतीय वस्त्र क्षेत्र का केवल 10% ही स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है। वस्त्र क्षेत्र (कच्चे माल निर्माताओं को छोड़कर) का लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का ‘मार्केट कैप’ या बाज़ार पूंजीकरण BSE के 250 लाख करोड़ रुपए के बाज़ार पूंजीकरण का मात्र 1% है। 
  • प्रौद्योगिकी, उत्पाद समूह और ग्राहक आधार के संबंध में विविधीकरण पर ध्यान दिया जाना चाहिये। मानव-निर्मित वस्त्रों, अन्य जटिल उत्पादों और सेवाओं की मांगों को पूरा करने में अनुकूलन क्षमता का होना भी महत्त्वपूर्ण है।
    • अनुपालन, पारदर्शिता, व्यावसायिक सुरक्षा, संवहनीय उत्पादन आदि क्षेत्रों में नए दृष्टिकोण दक्षिण एशियाई भू-भाग में व्यवसाय की सतत्ता और विकास के लिये अपरिहार्य होंगे।
    • बाज़ार में इस भू-भाग की सफलता के लिये श्रम बल की ‘रीस्किलिंग’ और ‘अपस्किलिंग’ भी एक प्राथमिकता होनी चाहिये। इसके साथ ही आधारभूत संरचना, पूंजी, तरलता और प्रोत्साहन के मामले में सरकारों के सक्रिय समर्थन की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: बांग्लादेश ने पिछले एक दशक में वस्त्र निर्यात में भारत को पीछे छोड़ दिया है क्योंकि भारतीय श्रम लागत के परिणामस्वरूप भारत के उत्पाद 20% अधिक महंगे हो गए हैं। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकने के लिये भारतीय परिधान क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियों और आगे की राह के संबंध में चर्चा कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow