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एडिटोरियल

  • 21 Nov, 2018
  • 9 min read
भारतीय राजनीति

रिक्त पद बनाम लंबित मामले (A Crippling Shortage)

संदर्भ

हाल ही के नवीनतम आँकड़ों के मुताबिक, देश में लगभग 3.3 करोड़ लंबित मामलों का बैकलॉग है जिसमें से लगभग 2.84 करोड़ मामले अधीनस्थ अदालतों में लंबित हैं। न्यायपालिका में मानव संसाधन की कमी लंबित मामलों की लापरवाही के लिये उत्तरदायी है। इन मामलों का स्वतः संज्ञान लेते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने देश की निचली अदालतों में रिक्तियों को भरने में की जाने वाली देरी के संबंध में राज्य सरकारों और विभिन्न उच्च न्यायालयों के प्रशासन की आलोचना की है।

संबंधित तथ्य और आँकड़े

  • कानूनी नीति के लिये विधि सेंटर द्वारा जारी पिछले वर्ष के एक अध्ययन के मुताबिक, ज्यादातर राज्यों में भर्ती प्रक्रिया की अवधि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समय-सीमा से अधिक है।
  • गौरतलब है कि द्वि-स्तरीय भर्ती प्रक्रिया के लिये 153 दिन और त्रि -स्तरीय प्रक्रिया के लिये  273 दिन की समय सीमा का निर्धारण किया गया था। अधिकांश राज्यों ने सीधी भर्ती द्वारा जूनियर सिविल न्यायाधीशों के साथ-साथ ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति करने में अधिक समय लगाया।
  • पाँच पृष्ठों के आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में ज़िला न्यायाधीशों से लेकर जूनियर सिविल न्यायाधीशों के पदों हेतु राज्यों में कुल 22,036 रिक्तियाँ थीं

  • वर्ष 2006 और 2017 के बीच अधीनस्थ अदालतों में रिक्तियाँ 19% से बढ़कर 26% हो गई हैं। वर्ष 2017 तक अधीनस्थ अदालतों में 22,474 न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों में 26% (5,746) रिक्त हैं।
  • उल्लेखनीय है कि अधीनस्थ अदालतों में रिक्त पदों का सर्वाधिक हिस्सा (जहाँ स्वीकृत शक्ति 100 से अधिक न्यायाधीशों की है) बिहार राज्य का है जहाँ 46% (835) रिक्तियाँ है, इसके बाद उत्तर प्रदेश राज्य में 42% (1281) रिक्तियाँ हैं।
  • पश्चिम बंगाल में सबसे कम 4% (40 पद) तथा इसके बाद आंध्र प्रदेश में 7% (66 पद) रिक्तियाँ हैं।

भर्ती प्रक्रिया

  • संविधान के अनुसार, उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्यपाल द्वारा ज़िला न्यायाधीशों को नियुक्त किया जाता है।
  • अन्य अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों को उच्च न्यायालय और राज्य लोक सेवा आयोग के परामर्श से राज्यपाल द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार नियुक्त किया जाता है।

अधीनस्थ न्यायालय का ढाँचा

अधीनस्थ न्यायालय में व्यापक रूप से तीन कैडर के न्यायाधीश शामिल हैं, जो इस प्रकार है :

  • ज़िला न्यायाधीश
  • वरिष्ठ सिविल जज
  • सिविल जज (जूनियर डिवीज़न)

उल्लेखनीय है कि ज़िला स्तर पर, ज़िला न्यायालय शीर्ष पर स्थित है और सभी नागरिक तथा आपराधिक मामलों के लिये यह अपीलीय अदालत है। यह सिविल जज (सीनियर डिवीज़न) और सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की अध्यक्षता वाली अन्य अदालतों के लिये पर्यवेक्षक की भूमिका निभाता है।

रिक्तियों का कारण

  • नियुक्ति प्रक्रिया में प्रणालीगत दोष निश्चित रूप से अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्तियों का कारण हैं, उदाहरण के लिये रिक्तियों को भरने हेतु अक्सर परीक्षाएँ आयोजित नहीं की जाती हैं और जब ये आयोजित की जाती हैं, तो उच्च न्यायालय अक्सर पर्याप्त मेधावी उम्मीदवारों हेतु विज्ञापित रिक्तियों को भरने में असमर्थ होते हैं।
  • समय पर नियुक्ति प्रक्रिया आयोजित करने के लिये एक बेहद सुस्त दृष्टिकोण रिक्तियों को बढ़ाने का एक मुख्य कारण है।
  • इसके अतिरिक्त विभिन्न चरणों में देरी यथा- आवेदन प्रक्रिया, भर्ती हेतु आयोजित होने वाली परीक्षाएँ, परिणामों की घोषणा आदि तथा अधिक महत्त्वपूर्ण रूप से नए नियुक्त न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों को भुगतान और समायोजित करने हेतु धन का प्रबंधन करना भी इन रिक्तियों के कारणों में से एक है।
  • उल्लेखनीय है कि अस्पष्ट भर्ती प्रक्रियाएँ और उच्च न्यायालय तथा राज्य लोक सेवा आयोग के बीच समन्वय में कठिनाई, अक्सर नियुक्ति संबंधी विवादों और मुकदमेबाज़ी को जन्म देती हैं जिससे भर्ती की प्रक्रिया रुक जाती है।
  • हालाँकि, नियुक्ति प्रक्रिया पर बहुत कम मात्रात्मक और गुणात्मक डेटा मौजूद है और इस प्रकार इस क्षेत्र में कोई प्रभावशाली सुधार नहीं हुआ है।
  • इसके अलावा, यह पाया जाता है कि समस्या का स्रोत अक्सर खराब बुनियादी ढाँचा है जिसमें कोर्टरूम से न्यायाधीशों के रहने तक की खराब और अपर्याप्त व्यवस्था शामिल है।

रिक्तियों से उत्पन्न समस्याएँ

  • वर्षों से लंबित मामलों में वृद्धि के परिणामस्वरूप जेलों में अभियुक्तों की संख्या में वृद्धि हुई है (कैदी सुनवाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं)।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 तक जेलों में चार लाख से ज्यादा कैदी थे जिनमें से दो-तिहाई (2.8 लाख) कैदियों के मामले विचाराधीन थे, जबकि शेष एक-तिहाई को दोषी ठहराया गया था।
  • आवश्यक मानव और वित्तीय संसाधनों को आवंटित करने में कोई भी विफलता अधीनस्थ अदालतों में न्यायिक कार्यवाहियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
  • यह उन गरीब विचाराधीन वादियों को भी न्याय के लिये हतोत्साहित करता है जो लंबित मामलों के कारण अधिक पीड़ित होते हैं।
  • रिक्तियों के कारण दायर मुकद्दमों का बोझ बढ़ जाता है जिसका मतलब यह है कि न्यायाधीशों ने व्यक्तिगत मामलों पर विचार करने में कम समय बिताया यानी न्याय की गुणवत्ता संबंधी चिंताओं में भी वृद्धि होती है।
  • सुनवाई और मामलों के निपटान में देरी लंबित मामलों का कारण बनती है जिसका सबसे आम प्रभाव न्यायाधीशों और अदालत के प्रशासकों की रिक्तियों पर पड़ता है।

आगे की राह

  • राज्य लोक सेवा आयोगों को इन न्यायाधीशों की सहायता के लिये आवश्यक कर्मचारियों की भर्ती करनी चाहिये, जबकि राज्य सरकारों को अदालतें बनाना या उनके लिये कार्यस्थल प्रदान करना चाहिये। रिक्तियों को भरने के लिये न्यायाधीशों की भर्ती भी ईमानदारी से की जानी चाहिये।
  • नियुक्तियों की एक आसान और समयबद्ध प्रक्रिया हेतु उच्च न्यायालयों और राज्य लोक सेवा आयोगों के बीच घनिष्ठ समन्वय की आवश्यकता होती है।
  • इस समन्वय से संबंधित राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों द्वारा यथासंभव सर्वोत्तम रूप से सुविधाजनक उपाय किये जाने चाहिये।
  • उल्लेखनीय है कि अधीनस्थ अदालतें सबसे महत्त्वपूर्ण न्यायिक कार्य जैसे - मामलों की सुनवाई करना, नागरिक विवादों को सुलझाना और कानून को लागू करना आदि करती हैं, जो आम आदमी के जीवन को प्रभावित करती हैं।
  • चूँकि यह न्याय का यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और इसके लिये यह उन सभी जनशक्तियों और संसाधनों की व्यापक स्तर पर मांग करता है जिसे किसी भी कीमत पर अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिये।

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