एडिटोरियल (21 Jul, 2020)



इंटरनेट तटस्थता बनाम हेट स्पीच

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में इंटरनेट तटस्थता बनाम हेट स्पीच व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में 300 से अधिक बहु-राष्ट्रीय कंपनियों ने दुनिया के सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म  फेसबुक पर विज्ञापन देना बंद कर दिया है। ऐसा बताया गया है कि फेसबुक द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद घृणास्पद भाषण, संकेत, लेख आदि के विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही थी। फेसबुक के ही कुछ शीर्ष अधिकारियों ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) के ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सत्य का परीक्षण नहीं करना चाहिये’ (social media platforms should not play arbiters of truth) संबंधी विचार की आलोचना भी की थी। फेसबुक, व्हाट्सएप और इन्स्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह आरोप लगाया गया कि इन पर म्याँमार के रोहिंग्या मुस्लिमों के विरुद्ध अभद्र व भेदभावपूर्ण लेख, पोस्ट और वीडियो डाले गए जिसने लोगों के मन में रोहिंग्या मुस्लिमों के विरुद्ध घृणा को फैलाने में सहायता की। संयुक्त राज्य अमेरिका में रंगभेदब्लैक लाइव्स मैटर (Black Lives Matter) आन्दोलन के विरुद्ध भी फेसबुक में घृणा व भेदभावपूर्ण लेख डाले गए थे।

फेसबुक ने इंटरनेट तटस्थता के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा है कि वह घृणास्पद या नफरत फैलाने वाले भाषणों के विरुद्ध कार्रवाई करने या उन्हें रोकने के लिये अभी तैयार नहीं है। इंटरनेट सेवा प्रदाता और फेसबुक जैसे सामाजिक मीडिया निगम विशिष्ट ऑनलाइन सामग्री को रोकने के लिये इंटरनेट को जानबूझकर ब्लॉक करने, उसकी गति को धीमा करने, या अतिरिक्त शुल्क चार्ज करने के विरुद्ध हैं क्योंकि ऐसा करना इंटरनेट तटस्थता के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। 

हालाँकि फेसबुक ने घृणा व भेदभावपूर्ण लेख, पोस्ट और वीडियो को रोकने हेतु आवश्यक कदम उठाने पर सहमति व्यक्त की है।         

इंटरनेट तटस्थता से तात्पर्य 

  • नेट न्यूट्रैलिटी (इंटरनेट तटस्थता) ऐसा सिद्धांत है जिसके तहत माना जाता है कि इंटरनेट सर्विस प्रदान करने वाली कंपनियाँ इंटरनेट पर हर तरह के डाटा को एक जैसा दर्जा देंगी।
  • इंटरनेट सर्विस प्रदान करने वाली इन कंपनियों में टेलीकॉम ऑपरेटर्स भी शामिल हैं। इन कंपनियों को डाटा के लिये अलग-अलग कीमतें नहीं लेनी चाहिये चाहे वह डाटा भिन्न वेबसाइटों पर विजिट करने के लिये हो या फिर अन्य सेवाओं के लिये। 
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2003 में कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्राध्यापक टिम वू द्वारा नेट न्यूट्रैलिटी शब्द का पहली बार प्रयोग किया गया। 

इंटरनेट तटस्थता का महत्त्व क्यों?

  • सुगम इंटरनेट सुविधा की उपलब्धता वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरक है। इंटरनेट के उपयोग पर प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
  • कोई भी मोबाइल ऑपरेटर, इंटरनेट सेवा प्रदाता या सोशल मीडिया कंपनी ऑनलाइन सामग्री उपलब्ध कराने को लेकर इंटरनेट की स्पीड से संबंधित मामले में किसी भी वेबसाइट के साथ भेदभाव नहीं कर पाएंगी।
  • नेट न्यूट्रैलिटी सिद्धांत के कारण ही कंपनियाँ किसी भी सामग्री को ब्लॉक करने, धीमा या अधिमान्य गति प्रदान करने जैसे कार्य नहीं कर पाते हैं। 
  • उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार परिषद भी इंटरनेट व उसके सुगमतापूर्वक प्रयोग के अधिकार को मौलिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के उपकरण के रूप में मानता है। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के संचालन में सुगम इंटरनेट सुविधा की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। 

सोशल मीडिया से तात्पर्य

  • ‘सामाजिक संजाल स्थल’ (social networking sites) आज के इंटरनेट का एक अभिन्न अंग है जो दुनिया में एक अरब से अधिक लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है। यह एक ऑनलाइन मंच है जो उपयोगकर्ता को एक सार्वजनिक प्रोफाइल बनाने एवं वेबसाइट पर अन्य उपयोगकर्ताओं के साथ सहभागिता करने की अनुमति देता है।
  • यह पूरी प्रक्रिया सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित होती है, जहाँ विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर का उपयोग इंटरनेट के माध्यम से किया जाता है। उपयोग के बहु-विविध तरीके और तकनीकी निर्भरता ने ‘सामाजिक संजाल स्थल’ को विभिन्न प्रकार के ख़तरों के प्रति सुभेद्य किया है     

सोशल मीडिया की उपयोगिता

  • सोशल मीडिया दुनिया भर के लोगों से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है और इसने विश्व में संचार तथा वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक नया आयाम दिया है।
  • सोशल मीडिया उन लोगों की आवाज़ बन सकता है जो समाज की मुख्य धारा से अलग हैं और जिनकी आवाज़ को दबाया जाता रहा है।
  • कई शोधों में सामने आया है कि दुनिया भर में अधिकांश लोग रोज़मर्रा की सूचनाएँ सोशल मीडिया के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं।
  • वर्तमान में आम नागरिकों के बीच जागरूकता फैलाने के लिये सोशल मीडिया का प्रयोग काफी व्यापक स्तर पर किया जा रहा है।
  • सोशल मीडिया के साथ ही कई प्रकार के रोज़गार भी पैदा हुए हैं।

सोशल मीडिया का दुरुपयोग 

  • कई शोध बताते हैं कि यदि कोई सोशल मीडिया का आवश्यकता से अधिक प्रयोग किया जाए तो वह हमारे मस्तिष्क को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है और हमे डिप्रेशन की ओर ले जा सकता है।
  • यह फेक न्यूज़ और हेट स्पीच फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हेट स्पीच से तात्पर्य

  • विधि आयोग के अनुसार हेट स्पीच के अंतर्गत नस्ल, जाति, लिंग, यौन-उन्मुखता (Sexual Orientation) आदि के आधार पर किसी समूह के खिलाफ घृणा फैलाने के कृत्य शामिल हैं।
  • भय या घृणा फैलाने वाले अथवा हिंसा को भड़काने वाले भाषण का लिखित रूप में या बोलकर अथवा संकेत द्वारा प्रेषित किया जाना ही हेट स्पीच है।

फेक न्यूज़

  • फेक न्यूज़ से तात्पर्य ऐसी खबर से है जो पाठकों को जानबूझकर गलत जानकारी या धोखा देने के लिये बनाई जाती है।  
  • आमतौर पर ऐसी खबरें लोगों के विचारों को प्रभावित करने के लिये बनाई जाती हैं, जो राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाती हैं या भ्रम पैदा करती हैं।
  • सोशल मीडिया पर गोपनीयता की कमी होती है और कई बार आपका निजी डेटा चोरी होने का खतरा रहता है।
  • सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाहों का तेज़ी से प्रसार होता है, जो हिंसक घटनाओं के रूप में समाज के सामने आता है। उदाहरण के लिये भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बच्चा चोरी की अफवाहों के कारण कई हिंसक घटनाएँ हुई।
  • सोशल मीडिया के माध्यम से सामाजिक ध्रुवीकरण भी किया जाता है।सोशल मीडिया साइटें किसी उत्प्रेरक की भूमिका निभाने के लिये तैयार हैं। उदाहरण के लिये, ट्विटर आपको नियमित रूप से उन लोगों का अनुसरण करने के लिये प्रेरित करेगा जो आपके दृष्टिकोण के समान दृष्टिकोण रखते हैं। 
    • यह चुनावी लाभ हेतु लोगों का ध्रुवीकरण करने के लिये सांप्रदायिक अभिकर्त्ताओं को आवश्यक उपकरण उपलब्ध करा देता है।
    • सोशल मीडिया के द्वारा फैली अफवाहों के कारण ही जनवरी 2020 में सांप्रदायिक तनाव ने हिंसक रूप ले लिया था।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित एल्गोरिदम (Algorithms) जो घृणा फैलाने वाले भाषणों को फ़िल्टर करते हैं, स्थानीय भाषाओं के अनुकूल नहीं हैं। 

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • विधिक सामंजस्य स्थापित करना: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग को रोकने व उपलब्ध ऑनलाइन कंटेंट की जांच करने के लिये विभिन्न नियमों एवं दिशा-निर्देशों में सामंजस्य स्थापित करना अत्यावश्यक है।
  • न्यायिक विनियमन का पालन सुनिश्चित करना: श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनलाइन भाषण और मध्यस्थ सेवा प्रदाताओं के मुद्दे को संबोधित किया। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 66 ‘ए’ को यह कहते हुए निरस्त कर दिया किया कि यह इंटरनेट उपयोगकर्ताओं, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और न्यायालयों के लिये स्पष्ट मानक तय करने में असफल है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि घृणा व भेदभावपूर्ण लेख, पोस्ट और वीडियो आदि को विनियमित करने की दिशा में सरकार को तेज़ी से कार्य करना चाहिये।
    • अधिकांश सोशल नेटवर्किंग साइटों में साइबर दुर्व्यवहार और अन्य दुर्व्यवहारों की रिपोर्ट करने के लिये सुविधा उपलब्ध होती है। हालाँकि इसकी व्यावहारिक उपयोगिता के लिये जन-जागरूकता एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दायित्व सुनिश्चित करना: डिजिटल प्लेटफॉर्म पर किसी लेखन सामग्री, वीडियो कंटेंट को डालने के लिये शुल्क निर्धारित किया जा सकता है, ताकि लेखक द्वारा डाले गए कंटेंट पर उसका उत्तरदायित्व तय किया जा सके।
    • घृणा व भेदभावपूर्ण लेख, पोस्ट और वीडियो आदि को तेजी से प्रसारित होने से रोकने के लिये कानूनी निषेधाज्ञा बनाई जानी चाहिये।
  • नियामक ढाँचा स्थापित करना: सोशल मीडिया प्लेटफार्मों, मीडिया संस्थानों, नागरिक समाज और कानून प्रवर्तन इकाईयों के बीच आपसी परामर्श के साथ उत्तरदायित्वपूर्ण प्रसारण और संस्थागत व्यवस्था का नियामक ढाँचा बनाना चाहिये।
  • आचार संहिता का निर्माण: केंद्र व् राज्य सरकार के द्वारा सामान्य रूप से सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के विनियमन हेतु आचार संहिता का निर्माण किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिये यूरोपीय संघ ने 'डिजिटल सिंगल मार्केट' (Digital Single Market) के ढांचे के अनुरूप अभद्र भाषा व कंटेंट के प्रसार को रोकने के लिये एक आचार संहिता भी स्थापित की है।

निष्कर्ष: 

हमें इंटरनेट तटस्थता के सिद्धांत को बाधित किये बिना सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद अभद्र भाषा, घृणा व भेदभावपूर्ण लेख और वीडियो आदि को विनियमित करने की दिशा में कार्य करना होगा। विदित है कि किसी भी विनियामक ढाँचे का विकास करना जितना दुष्कर हो सकता है, उतना ही दुष्कर कार्य यह सुनिश्चित करना है कि स्थापित विनियामक ढाँचा लोकतंत्र में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की न केवल रक्षा करें बल्कि समान रूप से घृणा व भेदभाव उत्पन्न करने वाले भाषण व कंटेंट पर अंकुश भी लगाए।

प्रश्न- इंटरनेट तटस्थता के नाम पर अभद्र भाषा, घृणा व भेदभावपूर्ण लेख इत्यादि को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिये। आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।