इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 21 May, 2021
  • 7 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत अफ्रीका कूटनीतिक संबंध

यह एडिटोरियल दिनांक 19/05/2021 को 'द हिंदुस्तान टाइम्स' में प्रकाशित लेख “The story of Indian diplomacy in Africa” पर आधारित है। इसमें भारत-अफ्रीका संबंधों में नए अवसरों के बारे में चर्चा की गई है।

वैक्सीन-मैत्री कूटनीति के तहत भारत सरकार ने कई विकासशील और अल्प-विकसित देशों को वैक्सीन देने का वादा किया साथ ही, कोविड-19 टीकों का प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता बनने का लक्ष्य रखा। 

इस प्रतिज्ञा के साथ भारत दक्षिण एशिया में पड़ोसियों की सहायता करने के साथ ही अफ्रीकी महाद्वीप को 10 मिलियन वैक्सीन खुराक प्रदान कर रहा है। 

हालाॅंकि भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर से होने वाली तबाही के कारण सरकार की वैक्सीन-मैत्री कूटनीति की बेहद आलोचना हुई है। इसका भारत-अफ्रीका कूटनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। 

भारत-अफ्रीका संबंध 

  • विदेश नीति: स्वतंत्रता के बाद भारत की विदेश नीति ने अफ्रीकी उपनिवेशवाद आंदोलनों को काफी प्रभावित किया।
    • वर्ष 1955 के बांडुंग सम्मेलन (Bandung Conference) में भारत ने पहली बार एशियाई और अफ्रीकी देशों को साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के खिलाफ साथ आने का आह्वान किया। 
    • इसके बाद ही साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के खिलाफ भारत की भूमिका को चिह्नित किया गया।
    • इसके अलावा गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बाद भारत ने कई अफ्रीकी देशों के साथ संबंध स्थापित किये।
  • पीपल-टू-पीपल (People-to-People) संबंध: ऐतिहासिक रूप से भारतीय व्यापारी पूर्वी-अफ्रीकी तट पर नियमित रूप से यात्रा करते थे एवं बंदरगाहों में स्थानीय निवासियों के साथ संबंध स्थापित करते थे। इस प्रकार अफ्रीका में भारतीय पारिवारिक व्यवसायों की स्थापना हुई जिनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं।
    • एक प्रभावशाली भारतीय डायस्पोरा की उपस्थिति के कारण कई अफ्रीकी देशों के साथ भारत के सकारात्मक संबंध कायम हैं।
  • चीनी प्रभाव से मुकाबला: ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक और पीपल-टू-पीपल (People-to-People) संबंधों के माध्यम से अफ्रीका में भारत की मौजूदा सामाजिक पूंजी (Social Capital) के कारण अफ्रीकी देशों द्वारा चीन के मुकाबले भारत को अधिक महत्त्व दिया जाता है। 

अफ्रीका में चीनी चुनौती

  • अफ्रीकी देशों में भारत की मौजूदा सामाजिक पूंजी के बावजूद भौतिक संसाधनों के मामले में भारत चीन से पीछे है। अफ्रीका के आर्थिक क्षेत्र में चीन के द्वारा किये जा रहे निवेश भारत के मुकाबले कहीं अधिक हैं। 
  • अफ्रीका में लगभग 10,000 से अधिक चीनी कंपनियाॅं कार्य कर रही हैं और चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) परियोजनाओं के ज़रिये चीन अनिवार्य रूप से अफ्रीकी देशों के लिये विकास का एक वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है।

आगे की राह: भारत-अफ्रीका संबंधों में नए अवसर

  • भारत एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में: चीन अफ्रीका में सक्रिय रूप से चेकबुक एवं दान कूटनीति (Chequebook and Donation Diplomacy) का अनुसरण कर रहा है। 
    • हालाॅंकि चीनी निवेश को नव-औपनिवेशिक प्रकृति के रूप में देखा जाता है।
    • दूसरी ओर भारत का लक्ष्य स्थानीय क्षमताओं के निर्माण और अफ्रीकियों के साथ समान भागीदारी के ज़रिये अफ्रीका को प्रगति के पथ पर अग्रसर करना है न कि केवल अफ्रीकी अभिजात वर्ग के साथ आगे बढ़ना।
    • ज्ञातव्य है कि अफ्रीका चीन के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है किंतु, वह चाहता है कि भारत एक संतुलनकारी शक्ति और सुरक्षा प्रदाता के रूप में कार्य करे।
  • रणनीतिक सहयोग: एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर के माध्यम से अफ्रीका के विकास के लिये साझेदारी बनाने में भारत और जापान दोनों के साझा हित निहित हैं।
    • इस संदर्भ में भारत अफ्रीका को वैश्विक राजनीति में रणनीतिक रूप से स्थापित करने के लिये अपनी वैश्विक स्थिति का लाभ उठा सकता है।
  • विकासशील दुनिया को नेतृत्व प्रदान करना: जिस तरह भारत और अफ्रीका ने एक साथ उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी, दोनों अब एक न्यायसंगत लोकतांत्रिक वैश्विक व्यवस्था के लिये भी एक साथ सहयोग कर सकते हैं। इसमें अफ्रीका और भारत में रहने वाली लगभग एक तिहाई जनसंख्या शामिल है।
  • वैश्विक प्रतिद्वंद्विता को रोकना: हाल के वर्षों में कई वैश्विक आर्थिक अग्रणियों ने ऊर्जा, खनन, बुनियादी ढाॅंचे और कनेक्टिविटी सहित बढ़ते आर्थिक अवसरों की दृष्टि से अफ्रीकी देशों के साथ अपने संपर्क को मज़बूत किया है।
    • जैसे-जैसे अफ्रीका मे वैश्विक हित बढ़ता है, भारत और अफ्रीका यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अफ्रीका एक बार फिर प्रतिद्वंद्वी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने वाले क्षेत्र में न बदल जाए।

निष्कर्ष 

अफ्रीका को प्रगति की राह पर चलने में मदद करने में भारत की आंतरिक रुचि है। हालाँकि यदि अफ्रीका में निवेश के मामले में भारत चीन का मुकाबला कर सकता तो आज परिस्थिति भारत के पक्ष में होती।

अभ्यास प्रश्न: यद्यपि अफ्रीका चीन के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है तथापि वह चाहता है कि भारत एक संतुलनकारी शक्ति एवं सुरक्षा प्रदाता के रूप में मौजूद रहे। टिप्पणी कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2