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एडिटोरियल

  • 21 Apr, 2022
  • 14 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-UK संबंध

यह एडिटोरियल 19/04/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “A New Shine To Old Ties” लेख पर आधारित है। इसमें UK के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों में हाल की प्रगति और उनके संबंधों में मौजूद प्रमुख अड़चनों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

यूनाइटेड किंगडम के साथ भारत के संबंधों की वर्तमान स्थिति उनकी संभावनाओं के बारे में दोनों देशों में व्याप्त निराशा के विपरीत है।

उपनिवेशवाद की प्रतिकूल विरासतों ने अतीत में दोनों पक्षों के लिये एक विवेकपूर्ण संबंध को आगे बढ़ाना असंभव बना रखा था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत और UK ने भावना एवं असंतोष को पीछे रखते हुए एक आशाजनक और व्यावहारिक संलग्नता की शुरुआत की है।

दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की देखरेख में दोनों देशों की नौकरशाही वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय संबंधों को रूपांतरित कर सकने के लिये एक रोडमैप पर कार्य कर रही है।

UK के साथ भारत के संबंधों में हाल की प्रगति

  • यूक्रेन संकट से उत्पन्न चुनौती के बावजूद भारत-ब्रिटेन संबंध एक ऊर्ध्वगामी प्रक्षेपवक्र पर रहा है जिसकी पुष्टि वर्ष 2021 में संपन्न हुई व्यापक रणनीतिक साझेदारी (Comprehensive Strategic Partnership) से परिलक्षित होती है।
    • इस समझौते ने भारत-UK संबंधों के लिये वर्ष 2030 के रोडमैप का भी निर्माण किया जो मुख्य रूप से द्विपक्षीय संबंधों के लिये साझेदारी योजनाओं की एक रूपरेखा तैयार करता है।
  • ब्रिटेन की विदेश सचिव ने अपनी हाल की यात्रा में आक्रमक देशों पर नियंत्रण के लिये लोकतांत्रिक देशों के बीच सहयोग के महत्त्व को रेखांकित करते हुए रूसी आक्रमण का मुक़ाबला करने और रूस पर वैश्विक रणनीतिक निर्भरता को कम करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • उन्होंने दोनों देशों के बीच रक्षा-संबंधी व्यापार और साइबर सुरक्षा एवं रक्षा सहयोग को गहरा करने की दिशा में भी बातचीत को आगे बढ़ाया।
    • भारत और UK में ऑनलाइन अवसंरचना की सुरक्षा के लिये एक नए संयुक्त साइबर सुरक्षा कार्यक्रम की भी घोषणा की जानी है।
    • भारत और UK अपना पहला ‘स्ट्रैटेजिक टेक डायलॉग’ आयोजित करने की भी योजना बना रहे हैं जो उभरती प्रौद्योगिकियों पर एक मंत्रिस्तरीय शिखर सम्मेलन होगा।
  • इसके अतिरिक्त, UK और भारत समुद्री क्षेत्र में भी अपने सहयोग को मज़बूत करने पर सहमत हुए हैं जहाँ UK भारत के हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल (Indo-Pacific Oceans Initiative) में शामिल होगा और दक्षिण-पूर्व एशिया में समुद्री सुरक्षा विषयों पर एक प्रमुख भागीदार देश बनेगा।
  • जनवरी 2022 में भारत-UK मुक्त व्यापार समझौते के लिये पहले दौर की वार्ता भी संपन्न हुई।
    • इस वार्ता ने दुनिया की पाँचवीं (UK) और छठी (भारत) सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक व्यापक सौदे को संपन्न की साझा महत्त्वाकांक्षाओं को दर्शाया, जहाँ दोनों पक्षों के प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों ने 26 नीति क्षेत्रों को शामिल करते हुए 32 से अधिक सत्रों को कवर किया।

उन्नत भारत-UK संबंधों में अन्य देशों की भूमिका

  • अमेरिका: भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय संबंधों को रूपांतरित करने में अमेरिका की केंद्रीय भूमिका रही है। अमेरिका द्वारा भारत को एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में चिह्नित किये जाने ने ब्रिटेन का भी ध्यान भारत की ओर आकर्षित किया।
    • यह अमेरिका ही था जिसने अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में भारत के तेज़ी से बढ़ते सापेक्षिक महत्त्व को सबसे पहले पहचाना। 20वीं सदी के अंत तक अमेरिका ने भारत के उदय में सहायता करने की अपनी नीति का अनावरण इस दृष्टिकोण से कर लिया कि एक मज़बूत भारत एशिया और विश्व में अमेरिकी हितों की पूर्ति करेगा।
  • चीन: अमेरिका के लिये भारत के उदय में सहायता करने की रणनीतिक प्रतिबद्धता चीनी प्रभुत्त्व वाले एशिया के संभावित खतरों की पहचान में निहित थी।
    • पिछले दो दशकों में UK और चीन ने उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंध साझा किए; इनमें से पहले दशक को वर्ष 2015 में चीन के साथ संबंधों का ‘स्वर्णिम दशक’ घोषित किया गया था।
    • हालाँकि, चीन की विस्तारवादी नीतियों और चीनी शक्ति के साथ अमेरिका के टकराव के कारण ब्रिटेन ने भी एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में भारत के साथ अपने स्वयं के 'हिंद-प्रशांत झुकाव’ की तलाश कर ली।

भारत-UK साझेदारी क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • UK के लिये: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बाज़ार हिस्सेदारी और रक्षा दोनों ही विषयों में UK के लिये एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार है जो वर्ष 2015 में भारत और UK के बीच ‘रक्षा एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा साझेदारी’ (Defence and International Security Partnership) पर हस्ताक्षर द्वारा रेखांकित भी हुआ।
    • ब्रिटेन के लिये भारत के साथ सफलतापूर्वक FTA का संपन्न होना ‘ग्लोबल ब्रिटेन’ की उसकी महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देगा क्योंकि UK ‘ब्रेग्जिट’ (Brexit) के बाद से यूरोप से परे भी अपने बाज़ारों के विस्तार की आवश्यकता और इच्छा रखता है।
    • ब्रिटेन एक गंभीर वैश्विक अभिकर्ता के रूप में वैश्विक मंच पर अपनी जगह सुदृढ़ करने के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अवसरों का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है।
      • भारत के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंधों के साथ वह इस लक्ष्य को बेहतर ढंग से हासिल कर सकने में सक्षम होगा।
  • भारत के लिये: ओमान, सिंगापुर, बहरीन, केन्या और हिंद महासागर के ब्रिटिश क्षेत्रों में नौसैनिक सुविधाओं के साथ UK हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति है।
    • UK ने भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग का समर्थन करने के लिये 70 मिलियन पाउंड ब्रिटिश अंतर्राष्ट्रीय निवेश निधि की भी पुष्टि की है, जो इस क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना के निर्माण और सौर ऊर्जा के विकास में मदद करेगी।
    • भारत UK से भारतीय मत्स्य क्षेत्र, फार्मा और कृषि उत्पादों के लिये आसान बाज़ार पहुँच की मांग रखता है, साथ ही श्रम-गहन निर्यात के लिये शुल्क रियायत की भी अपेक्षा करता है।

भारत-UK संबंधों में प्रमुख अड़चनें क्या रही हैं?

  • औपनिवेशिक दृष्टि: ब्रिटेन के साथ भारत की संलग्नता कई विरोधाभासों का शिकार रही है। भारत का उत्तर-औपनिवेशिक असंतोष और उपमहाद्वीप में एक विशेष भूमिका रखने के ब्रिटेन के अस्वीकार्य दावे ने दोनों देशों के बीच एक अंतहीन संघर्ष को जन्म दिया।
    • देश विभाजन के परिणामों और शीत युद्ध की स्थिति ने दोनों देशों के लिये एक सतत् साझेदारी का निर्माण करना कठिन बना दिया।
    • हालाँकि हाल में क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय उथल-पुथल ने पारस्परिक रूप से लाभकारी संलग्नता के लिये दोनों देशों को एक नया आधार प्रदान किया है।
  • पाकिस्तानी आयाम: पाकिस्तान भी ब्रिटेन के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों में एक बड़ी बाधा रहा है। ब्रिटेन द्वारा पाकिस्तान की हिमायत करना भारत के लिये हमेशा से चिंता का विषय रहा है।
    • अमेरिका और फ्राॅन्स—जो दक्षिण एशिया में ‘इंडिया फर्स्ट’ की रणनीति हेतु प्रतिबद्ध हैं, के विपरीत ब्रिटेन भारत के लिये अपने नए उत्साह और पाकिस्तान के प्रति अपने ऐतिहासिक झुकाव की जड़ता के बीच फँसा रहा है।
  • ब्रिटेन की घरेलू राजनीति: ब्रिटेन की घरेलू राजनीति ने भी भारत के साथ उसके संबंधों में एक रुकावट को अवसर दिया है।
    • दिल्ली में एक प्रचलित धारणा यह रही थी कि UK की लेबर पार्टी भारत के प्रति सहानुभूति रखती है जबकि कंजर्वेटिव पार्टी ऐसी भावना नहीं रखती। यद्यपि यह भ्रमित दृष्टिकोण ही साबित हुआ और भारत के प्रति वैमनस्य किसी न किसी रूप में हमेशा विद्यमान रहा।
      • लेबर पार्टी भी भारत के आंतरिक मामलों (कश्मीर सहित) में हस्तक्षेप से पीछे नहीं रही है।

भारत-ब्रिटेन संबंधों को कैसे मज़बूत किया जा सकता है?

  • पोस्ट-ब्रेग्जिट ब्रिटेन को अपने ऐतिहासिक संबंधों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने की ज़रूरत है; यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद उसे अधिकाधिक भागीदारों की आवश्यकता है और एक उभरता हुआ भारत उसके लिये स्वाभाविक रूप से शीर्ष राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं में से एक है।
    • भारत और UK दोनों ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में और साथ ही वैश्विक स्तर पर रणनीतिक एवं रक्षा-संबंधी मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिये विरासत की समस्याओं को नियंत्रित करने और ठोस संवाद में शामिल होने के प्रति गंभीर हैं।
    • इधर दूसरी ओर भारत UK के साथ संलग्नता में अब अत्यधिक आत्मविश्वास रखता है; अगले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था द्वारा ब्रिटेन को पीछे छोड़ देने के आकलन के साथ अब भारत रक्षात्मक रुख नहीं रखता।
  • ब्रिटेन विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का एक स्थायी सदस्य, एक वैश्विक वित्तीय केंद्र, तकनीकी नवाचार का केंद्र और एक प्रमुख साइबर शक्ति होने की क्षमता है। वह उल्लेखनीय अंतर्राष्ट्रीय सैन्य उपस्थिति और व्यापक राजनीतिक प्रभाव भी रखता है।
    • भारत को अपने रणनीतिक लाभ के लिये UK की इस स्थिति तथा शक्तियों का लाभ उठा सकने के लिये और अधिक प्रयास करना चाहिये।
    • ब्रिटिश प्रधानमंत्री की आगामी भारत यात्रा गत्यात्मक रूप से बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत की भूमिका के महत्त्व को दर्शाती है जहाँ भारत आने वाले समय में कई प्रमुख विदेशी नेताओं की मेजबानी के लिये और वर्ष 2023 में G20 की अध्यक्षता हेतु तैयार है।
    • ब्रिटिश प्रधानमंत्री की आगामी यात्रा के दौरान भारत-UK FTA पर वार्ता को आगे बढ़ाना प्राथमिक विषयों में से एक होना चाहिये।
    • फिनटेक, बाज़ार विनियमन, सतत् एवं हरित वित्त और साइबर सुरक्षा इस संलग्नता के नए मोर्चे के रूप में उभर सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘नई भू-राजनीतिक वास्तविकताएँ UK और भारत से एक नई रणनीतिक दृष्टि की मांग रखती हैं। यह अवसर का लाभ उठाने और एक ऐसी साझेदारी की नींव रखने का उपयुक्त समय है जो 21वीं सदी की चुनौतियों का सक्षमता से मुकाबला कर सके।’’ टिप्पणी कीजिये।


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