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एडिटोरियल

  • 21 Mar, 2023
  • 14 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व के महासागरों की रक्षा हेतु संधि

यह एडिटोरियल 12/03/2023 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “A treaty to protect world oceans will serve everyone well” लेख पर आधारित है। इसमें विश्व के महासागरों की रक्षा की आवश्यकता और इस संबंध में उठाए जा सकने वाले कदमों के बारे चर्चा की गई है।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) के सदस्यों ने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये एक मुक्त समुद्र संधि (High Seas Treaty) पर सहमति व्यक्त की।

राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैव विविधता (Marine Biodiversity of Areas Beyond National Jurisdiction- BBNJ) पर अमेरिका के न्यूयॉर्क में आयोजित अंतर-सरकारी सम्मेलन (IGC) के दौरान संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में आयोजित वार्ता के दौरान इस पर सहमति बनी।

संधि को औपचारिक रूप से अपनाया जाना अभी शेष है क्योंकि सदस्यों द्वारा अभी इसकी पुष्टि की जानी है। अंगीकरण के बाद यह संधि कानूनी रूप से बाध्यकारी होगी।

महासागर एक विशाल कार्बन सिंक है, लेकिन उसकी यह स्थिति तेज़ी से संकटग्रस्त होती जा रही है। एक स्वस्थ महासागर पारितंत्र कार्बन चक्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिये समय आ गया है कि महासागर को वह सुरक्षा प्रदान की जाए जिसका वह हक़दार है।

महासागरों की रक्षा करने की आवश्यकता क्यों?

  • आजीविका का समर्थन:
    • महासागर एक महत्त्वपूर्ण पारितंत्र है जो तीन बिलियन लोगों की आजीविका का समर्थन करता है और उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
    • 3 बिलियन लोग खाद्य और आर्थिक सुरक्षा के लिये इसके पारिस्थितिक तंत्र पर निर्भर हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का शमन:
    • यह जलवायु परिवर्तन को भी कम करता है; इसने अब तक ग्रीनहाउस गैसों द्वारा जब्त 93% ऊष्मा और जीवाश्म ईंधन दहन से उत्सर्जित CO2 के लगभग 30% का अवशोषण किया है।
  • कार्बन चक्र को बनाए रखना:
    • प्रचुर मात्रा में समुद्री जैव विविधता के साथ एक स्वस्थ महासागर पारिस्थितिकी तंत्र, कार्बन चक्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कार्बन प्रच्छादन (carbon sequestration) एवं ऑक्सीजन उत्पादन जैसे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखने में मदद करता है।
  • आर्थिक महत्त्व:
    • महासागर वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो खाद्य, ऊर्जा एवं अन्य संसाधन प्रदान करते हैं।
      • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वैश्विक मत्स्यग्रहण उद्योग 50 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार देता है और अरबों लोगों को खाद्य प्रदान करता है।
      • इसके अतिरिक्त, महासागर-आधारित उद्योग जैसे शिपिंग, पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा में तेज़ी से वृद्धि हो रही है।

महासागर संरक्षण से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • अवैध, गैर-सूचित और अनियमित (Illegal, Unreported and Unregular- IUU) मत्स्यग्रहण (Fishing):
    • ‘ओवरफिशिंग’ विश्व के महासागरों के स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक है। यह मत्स्य भंडार को कम कर सकता है और संपूर्ण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को बाधित कर सकता है।
      • खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, लगभग 33% वैश्विक मछली स्टॉक ओवरफिशिंग का शिकार है और अन्य 60% का पूर्ण दोहन किया जाता है। इसके अतिरिक्त, अवैध, गैर-सूचित और अनियमित (IUU) मत्स्यग्रहण से वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना 23.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक का नुकसान होने का अनुमान किया जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों का तापमान बढ़ रहा है और समुद्र की अम्लता में वृद्धि हो रही है, जो समुद्री जीवन एवं प्रवाल भित्तियों को हानि पहुँचा सकता है। इससे पर्यावासों की हानि और समुद्री धाराओं में परिवर्तन की स्थिति भी बन सकती है।
      • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की रिपोर्ट है कि महासागरों ने 1970 के दशक से ग्रीनहाउस गैसों द्वारा जब्त अतिरिक्त ऊष्मा के 90% से अधिक का अवशोषण किया है, जिससे महासागरों के तापमान में वृद्धि हुई है।
      • इसके अतिरिक्त, महासागरों ने वायुमंडल में उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड के लगभग 30% का अवशोषण किया है, जिससे महासागरों की अम्लता में वृद्धि हुई है।
  • प्रदूषण:
    • प्रदूषण विश्व के महासागरों के स्वास्थ्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा है। इसमें प्लास्टिक अपशिष्ट, तेल रिसाव, कृषि अपवाह और रसायन शामिल हो सकते हैं। प्रदूषित जल समुद्री जीवन को क्षति पहुँचा सकता है और ऐसे मृत क्षेत्रों (dead zones) का निर्माण कर सकता है जहाँ कुछ भी जीवित नहीं रह सकता।
  • असंवहनीय पर्यटन:
    • विश्व के महासागरों के स्वास्थ्य पर पर्यटन का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ स्नॉर्कलिंग (snorkeling), डाइविंग और समुद्र तट भ्रमण जैसी गतिविधियों की उच्च मांग है। यदि ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया तो पर्यटन पर्यावास विनाश, प्रदूषण और ओवरफिशिंग का कारण बन सकता है।
      • विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) के अनुसार, वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आगमन 1.4 बिलियन तक पहुँच गया, जिसमें तटीय और समुद्री पर्यटन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। लेकिन असंवहनीय पर्यटन अभ्यासों से पर्यावास विनाश, प्रदूषण और ओवरफिशिंग सहित पर्यावरणीय क्षति की स्थिति बन सकती है।
  • आक्रामक प्रजातियाँ:
    • आक्रामक प्रजातियाँ (Invasive Species) समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बाधित कर सकती हैं और देशी प्रजातियों को हानि पहुँचा सकती हैं। जहाज़ों के स्थिरक जल (ballast water) या जलीय कृषि या एक्वैरियम से जल के आकस्मिक निकास से ये प्रजातियाँ महासागर जल में पहुँच सकती हैं।
  • शासन का अभाव:
    • शासन का अभाव और देशों के बीच सहयोग की कमी के कारण विश्व महासागरों का प्रबंधन एवं संरक्षण चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है। महासागर के कई क्षेत्रों को अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र माना जाता है, जिससे विनियमों को लागू करना तथा समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करना कठिन हो जाता है।
      • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के केवल 16% महासागर समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPAs)  के दायरे में हैं और इनका एक मामूली भाग ही मत्स्यग्रहण एवं अन्य निष्कर्षण गतिविधियों से पूरी तरह सुरक्षित है।
      • इसके अतिरिक्त, मुक्त समुद्र (high seas: वे समुद्री क्षेत्र जो किसी भी राष्ट्र के नियंत्रण से स्वतंत्र हैं), जो महासागरीय क्षेत्र के 64% भाग का निर्मन करते हैं, के प्रबंधन और संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं समन्वय की कमी है।

विश्व के महासागरों की रक्षा के लिये क्या किया जाना चाहिये?

  • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas- MPAs) की स्थापना एवं प्रवर्तन:
    • MPAs मत्स्यग्रहण और अन्य निष्कर्षण गतिविधियों को सीमित करके समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने में सहायता कर सकते हैं। वे लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये एक अभयारण्य भी प्रदान कर सकते हैं और जैव विविधता को बढ़ावा दे सकते हैं। सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को विशेष रूप से उच्च जैव विविधता एवं भेद्यता/संवेदनशीलता वाले क्षेत्रों में और अधिक MPAs  की स्थापना एवं प्रवर्तन के लिये मिलकर कार्य करना चाहिये।
      • वर्ष 2017 के एक अध्ययन से पता चला है कि राष्ट्रीय जल के समुद्री भंडार में निकटस्थ गैर-संरक्षित क्षेत्रों की तुलना में औसतन 670% अधिक मछलियाँ हैं (बायोमास द्वारा मापन के आधार पर)।
  • प्लास्टिक प्रदूषण कम करना:
    • सरकारें ऐसी नीतियों को लागू कर सकती हैं जो पुन: प्रयोज्य या जैव-अपघट्य/बायोडिग्रेडेबल विकल्पों के उपयोग को प्रोत्साहित करती हैं और निजी क्षेत्र एकल-उपयोग प्लास्टिक के प्रयोग को कम करने के लिये गंभीर कदम उठा सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबला:
    • सरकारें ऐसी नीतियों को लागू कर सकती हैं जो नवीकरणीय ऊर्जा और निम्न-कार्बन परिवहन को प्रोत्साहित करें। निजी क्षेत्र भी हरित प्रौद्योगिकियों और अभ्यासों में निवेश कर सकता है। आम लोग ऊर्जा-कुशल उपकरणों के उपयोग और जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करने के माध्यम से अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम कर सकते हैं।
  • मत्स्यग्रहण को विनियमित करना:
    • ओवरफिशिंग से निपटने के लिये सरकारों को ऐसी नीतियाँ लागू करनी चाहिये जो मत्स्यग्रहण कोटा को सीमित करें और संवहनीय मत्स्यग्रहण अभ्यासों को स्थापित करें। निजी क्षेत्र भी मत्स्यग्रहण के संवहनीय तरीकों को बढ़ावा देने के लिये भी कदम उठा सकता है, जैसे चयनात्मक फिशिंग गियर का उपयोग करना और बायकैच (bycatch) से परहेज करना।
  • अवैध मत्स्यग्रहण से निपटना:
    • सरकारों को अवैध, गैर-सूचित और अनियमित मत्स्यग्रहण से निपटने के उपायों को लागू करना चाहिये, जैसे कि मत्स्यग्रहण गतिविधियों की निगरानी एवं निरीक्षण और उल्लंघन के लिये कठोर दंड आरोपित करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना:
    • विश्व के महासागरों की रक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समन्वय की आवश्यकता है। सरकारों को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और विनियमों को स्थापित करने एवं कार्यान्वित करने के लिये मिलकर कार्य करना चाहिये।
    • निजी क्षेत्र और नागरिक समाज भी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने तथा मज़बूत सुरक्षा उपायों की पैरोकारी करने में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: विश्व के महासागरों के संरक्षण में व्याप्त प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और इस महत्त्वपूर्ण वैश्विक संसाधन के सतत् उपयोग एवं सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये उन्हें प्रभावी ढंग से कैसे संबोधित किया जा सकता है?


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