एडिटोरियल (21 Feb, 2019)



भारत-सऊदी अरब-पाकिस्तान त्रिकोण

संदर्भ

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान हाल ही में भारत यात्रा पर आए। उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के बीच सभी क्षेत्रों में संबंधों को और मज़बूती मिलने की राह प्रशस्त हुई है। लेकिन यह यात्रा ऐसे समय हुई, जब कश्मीर घाटी के पुलवामा में हुए फिदायीन आतंकी हमले के बाद सारा देश रंजो-गम और और गुस्से का इज़हार कर रहा है। गौरतलब यह है कि भारत यात्रा से पहले क्राउन प्रिंस पाकिस्तान की यात्रा पर थे और भारत दौरे के बाद उन्हें चीन जाना है। लेकिन हालात चाहे जैसे भी हों, क्राउन प्रिंस की इस यात्रा से दोनों देशों के संबंधों को और मज़बूत करने की उस प्रक्रिया को बल मिलेगा, जो 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रियाद यात्रा के साथ शुरू हुई थी।

भारत-सऊदी अरब संबंधों पर एक नज़र

  • अपनी भू-स्थानिक स्थिति के मद्देनज़र भारत के लिये सऊदी अरब एक महत्त्वपूर्ण देश है, जिसके साथ हमारे हज़ारों साल पुराने व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध हैं।
  • भारत में व्यापार और निवेश का विस्तार तथा ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के क्षेत्र में सऊदी अरब के हित बेहद तर्कसंगत वज़हों पर आधारित हैं।

सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको (Aramco) ने महाराष्ट्र में रत्नागिरि में एक एकीकृत रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स विकसित करने के लिये अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के साथ भागीदारी करने में रुचि दिखाई है। 44 बिलियन डॉलर की यह परियोजना भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रम (Joint Venture) के तौर पर लगाई जानी है। वैसे भी भारत को सबसे अधिक कच्चा तेल निर्यात करने वाले देशों में सऊदी अरब भी शामिल है।

  • बेशक रत्नागिरि रिफाइनरी और पेट्रो-केमिकल परियोजना इस बात का प्रमाण है कि दोनों देशों के संबंध पारंपरिक क्रेता-विक्रेता जैसे संबंधों से कहीं आगे निकल चुके हैं। लेकिन यह मान लेना एक अवास्तविक उम्मीद से ज़्यादा कुछ नहीं है कि सऊदी अरब का झुकाव भारत के प्रति हुआ है।

सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने इस्लामाबाद में कहा था कि भारत-पाकिस्तान के बीच उत्पन्न हुए हालिया तनाव को कम करने में सऊदी अरब सहयोग करने को तैयार है। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं लगाया जाना चाहिये कि वह कश्मीर मामले में भारत के रुख का समर्थन कर रहा है। सऊदी अरब इसके द्विपक्षीय स्वरूप को स्वीकारने के बजाय केवल विवाद को सुलझाने के लिये हस्तक्षेप कर रहा है।

  • खाड़ी देशों में बहुत बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीयों की मौज़ूदगी के मददेनज़र सऊदी अरब तथा अन्य पश्चिम एशियाई देशों के साथ अच्छे संबंध रखना भारत के हित में है।
  • हिंद महासागर के पश्चिमी हिस्से में आतंकवाद और समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से भी पश्चिम एशिया भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • सऊदी अरब में बसे प्रवासी भारतीय विदेश से धन प्रेषण के मामले में दूसरे स्थान पर हैं। साथ ही ये प्रवासी भारतीय इस क्षेत्र में भारत की सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी का एक महत्त्वपूर्ण घटक भी है।

पाकिस्तान-सऊदी अरब संबंध

यह एक कटु सत्य है कि सऊदी अरब और UAE वर्तमान परिस्थितियों में पाकिस्तान के खिलाफ भारत का पक्ष हर्गिज़ नहीं लेने वाले हैं। इसके पीछे केवल मज़हबी कारण एकमात्र वज़ह नहीं है, बल्कि इन दोनों देशों के उच्चवर्गीय, धनी और संभ्रांत परिवारों के पाकिस्तान में पारिवारिक और अन्य सामाजिक संबंध हैं।

  • अक्सर यह रिपोर्ट सामने आती रहती है कि सऊदी क्राउन प्रिंस इस बात में दिलचस्पी रखते हैं कि अपनी स्वयं की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता का विकास किया जाए। यदि ऐसा है तो तकनीकी विशेषज्ञता के लिये पाकिस्तान से बेहतर और तार्किक स्रोत दूसरा कोई नहीं है।
  • सऊदी अरब लंबे समय से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। वैसे भी यह किसी से छिपा नहीं है कि सऊदी अरब आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा की दृष्टि से पाकिस्तान के सबसे बड़े सहयोगियों में है।
  • पाकिस्तान और सऊदी अरब के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं और कूटनीतिक स्तर पर भी दोनों के बीच बेहद घनिष्ठता देखने को मिलती है।
  • पाकिस्तान में सऊदी अरब के रणनीतिक हित हैं और पाकिस्तान के साथ संबंधों की वज़ह से वह ईरान पर नज़र रख सकता है, जो इस क्षेत्र में उसका कट्टर प्रतिद्वंद्वी है।
  • आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान की वफादारी खरीदने के लिये सऊदी अरब सहायता पैकेज और निवेश के बड़े-बड़े वादे कर रहा है।
  • सऊदी अरब न केवल पाकिस्तान को बड़े आर्थिक संकटों से बचने में सहायता करता रहा है, बल्कि लॉजिस्टिक्स और वित्तीय सहायता देकर पाकिस्तान की रक्षा आवश्यकताओं में भी मदद करता है।

त्रिकोण के साथ ईरान

  • पश्चिम एशिया में ईरान को सऊदी अरब का सबसे बड़ा और कट्टर प्रतिद्वंद्वी माना जाता है।
  • इन दोनों देशों की यह प्रतिद्वंद्विता इस क्षेत्र से बाहर भी देखने को मिलती है, खासकर सीरिया से लेकर यमन तक।
  • पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ के सत्ता से हटने के बाद सऊदी अरब यह मानता है कि ईरान के प्रभाव को कम करने में पाकिस्तान उसका सबसे बड़ा मददगार हो सकता है। गौरतलब है कि नवाज़ शरीफ सरकार ने यमन के गृहयुद्ध में सऊदी अरब की अगुवाई वाले सैन्य गठबंधन में पाकिस्तान के सैनिक भेजने से इनकार कर दिया था।
  • वर्तमान में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को सऊदी अरब अपने हितों के प्रति अधिक संवेदनशील मानता है।
  • इसके अलावा, ईरान के साथ पाकिस्तान के संबंध कभी भी सहज नहीं रहे। ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स पर हुए हालिया आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के संबंध और खराब हुए हैं। ईरान ने इस हमले के लिये पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है।
  • ईरान के साथ पाकिस्तान के निरंतर बिगड़ रहे संबंधों के मद्देनज़र सऊदी अरब के लिये पाकिस्तान को अपने और नज़दीक लाने में आसानी हो रही है।
  • सुन्नी कट्टरपंथ में बढ़ोतरी और वहाबी विचारधारा की ओर झुकाव की वज़ह से भी पाकिस्तान का रुझान सऊदी अरब की ओर हुआ है। ऐसे में दोनों देश वैचारिक समानता की वज़ह से शिया बहुल देश ईरान के बड़े दुश्मन बन गए हैं।

आगे की राह

  • यह मानने के बहुत से कारण हैं कि भारत और सऊदी अरब के बीच मधुर संबंधों का होना ज़रूरी है, लेकिन भारत को यह सावधानी बरतनी होगी कि पाकिस्तान पर कड़ी नज़र रखी जाए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अफगानिस्तान होगा, जहाँ भारत का प्रभाव कम करने की पाकिस्तान हर संभव कोशिश कर रहा है।
  • इसके अलावा, अपने-अपने भौगोलिक क्षेत्रों में शक्ति केंद्र के रूप में भारत और सऊदी अरब की भूमिकाओं का अर्थ यह है कि वे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, गरीबी से लड़ने, शैक्षिक आदान-प्रदान और निवेश सहित कई अन्य हितों को साझा करते हैं।
  • भारत यह मानता है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस के विज़न-2030 के तहत हो रहे आर्थिक सुधार, भारत के 'मेक इन इंडिया', 'स्टार्ट-अप इंडिया' जैसे प्रमुख कार्यक्रमों  के पूरक हैं।
  • पश्चिम एशिया और खाड़ी देशों में शांति और स्थिरता सुनिचित करने में भारत और सऊदी अरब के साझा हित हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में तालमेल बैठाने और भागीदारी को तेजी से आगे बढ़ाने पर कम करना ज़रूरी है।

सऊदी अरब और पाकिस्तान के इस मजबूत रणनीतिक तथा आर्थिक गठजोड़ के मद्देनज़र भारत के लिये यह मानना नासमझी होगी कि वह सऊदी अरब को पाकिस्तान से दूर कर पाएगा। इसके बजाय भारत को सऊदी अरब के साथ आर्थिक संबंधों से होने वाले किसी भी अवसर का लाभ उठाने से चूकना नहीं चाहिये और राजनीतिक-रणनीतिक क्षेत्र में सऊदी अरब से बहुत उम्मीद नहीं करनी चाहिये।

स्रोत: 20 फरवरी को The Hindu में प्रकाशित The Saudi-India-Pakistan Triangle पर आधारित।