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एडिटोरियल

  • 20 Dec, 2021
  • 12 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का सेमीकंडक्टर मिशन

यह एडिटोरियल 18/12/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “When the chips are down: On India’s Semiconductor Mission” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के भीतर सेमीकंडक्टर विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता और इससे जुड़ी विभिन्न चुनौतियों के बारे में बात की गई है।

संदर्भ 

वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे और कलपुर्जे एक नई अन्तः दहन इंजन या आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine) कार की लागत का 40% हिस्सा निर्मित करते हैं, यह हिस्सा दो दशक पहले 20% से भी कम था। इस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा सेमीकंडक्टर चिप्स (Semiconductor Chips) से संबंधित है।

ताइवान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, जापान और चीन सहित मुट्ठी भर देश थोक में सेमीकंडक्टर निर्माण तथा आपूर्ति क्षमता रखते हैं। जिससे विश्व के अन्य देशों ने महसूस किया है कि सेमीकंडक्टर चिपों का स्वदेशी स्तर पर निर्माण एक रणनीतिक अनिवार्यता के रूप में ​​राष्ट्रीय हित में है। 

हाल ही में भारत सेमीकंडक्टर चिप निर्माण को मान्यता देने वाले देशों में शामिल हुआ है अत: चिप और डिस्प्ले उद्योग के विकास को बढ़ावा देने के लिये एक सेमीकंडक्टर मिशन (Semiconductor Mission) शुरू किया गया है।

सेमीकंडक्टर चिप्स

  • सेमीकंडक्टर के बारे में: सेमीकंडक्टर ऐसी सामग्री होती है जिसमें कंडक्टर और इंसुलेटर के बीच चालकता होती है तथा इसमें सिलिकॉन या जर्मेनियम या गैलियम, आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड के यौगिको का प्रयोग होता है।
  • सेमीकंडक्टर चिप्स का महत्त्व: वे बुनियादी निर्माण खंड हैं जो सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना और संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों के केंद्र और मस्तिष्क के रूप में कार्य करते हैं।
    • वर्तमान में ये चिप्स समकालीन ऑटोमोबाइल, घरेलू गैजेट्स और ईसीजी मशीनों जैसे आवश्यक चिकित्सा उपकरणों के अभिन्न अंग हैं।
  • मांग में हालिया वृद्धि: दैनिक आर्थिक और आवश्यक गतिविधि के बड़े हिस्से को ऑनलाइन या कम से कम डिजिटल रूप से लाने के लिये कोविड -19 महामारी ने एक प्रेरक की तरह कार्य किया तथा लोगों के जीवन में चिप-संचालित कंप्यूटर और स्मार्टफोन की केंद्रीयता पर प्रकाश डाला है।
    • वैश्विक स्तर पर महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और अमेरिका सहित महत्त्वपूर्ण चिप निर्मित करने वाले देशों की इस सुविधा को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया ।
      • इसकी कमी ‘कैस्केडिंग प्रभाव’ (Cascading Effect) का कारण बनती है, यह देखते हुए कि पहले मांग में कमी आई है जो अनुवर्ती पूर्ति में कमी का कारण बन सकती है।
  • भारत की सेमीकंडक्टर मांग और संबंधित पहल: भारत वर्तमान में सभी चिप्स का आयात करता है और वर्ष 2025 तक भारतीय बाज़ार 24 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक 'सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र' के विकास का समर्थन करने हेतु 76,000 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
      • यद्यपि यह कदम काफी देरी से लिया गया है, किंतु यह आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिये एकीकृत सर्किट या चिप्स के रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए एक स्वागत योग्य कदम है।
    • भारत ने ‘इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और सेमीकंडक्टर्स’ (SPECS) के निर्माण को बढ़ावा देने के लिये योजना भी शुरू की है, जिसके तहत इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों और सेमीकंडक्टर के निर्माण के लिये आठ वर्ष की अवधि में 3,285 करोड़ रुपए का बजट परिव्यय किया गया है।

संबंधित चुनौतियाँ:

  • उच्च निवेश की आवश्यकता: अर्द्धचालक और डिस्प्ले निर्माण एक बहुत ही जटिल और प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी अवधि और भुगतान अवधि और प्रौद्योगिकी में तेज़ी से बदलाव शामिल हैं, जिसके लिये महत्वपूर्ण रूप से निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है।
  • सरकार से न्यूनतम वित्तीय सहायता: सेमीकंडक्टर उद्योग के विभिन्न उप क्षेत्रों में विनिर्माण क्षमता स्थापित करने के लिये आमतौर पर आवश्यक निवेश के पैमाने पर विचार करने के संदर्भ में वर्तमान में परिकल्पित राजकोषीय समर्थन बहुत कम है।
  • फैब क्षमताओं की कमी: भारत में चिप डिज़ाइन की एक अच्छी प्रतिभा है लेकिन इसने कभी भी चिप फैब क्षमता का निर्माण नहीं किया। इसरो और डीआरडीओ के पास अपने-अपने फैब फाउंड्री हैं लेकिन उन्होंने इनका निर्माण मुख्य रूप से अपनी आवश्यकताओं के लिये किया है लेकिन वे वर्तमान विश्व के अनुसार नवीनतम रूप में परिष्कृत भी नहीं हैं।
  • बेहद महंगा फैब सेटअप: एक सेमीकंडक्टर निर्माण सुविधा (या फैब) की लागत एक अरब डॉलर के गुणकों में हो सकती है, यह संभावना​​​​ अपेक्षाकृत छोटे पैमाने के उद्योगों के लिये है और यह इस उद्योग के पिछड़ने का प्रमुख कारण भी है।
  • PLI योजना के तहत अपर्याप्त अनुदान: भारत की उत्पादन संबंध प्रोत्साहन (PLI) योजना कम से कम दो ग्रीनफील्ड सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने की लागत की केवल 50% वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान करती है। डिस्प्ले फैब, पैकेजिंग और परीक्षण सुविधाओं और चिप डिज़ाइन केंद्रों सहित अन्य तत्वों का समर्थन करने के लिये वर्तमान योजना परिव्यय (लगभग $10 से ज़्यादा नहीं बिलियन) में भी अपर्याप्तता की संभावना है।
  • संसाधन अक्षम क्षेत्र: चिप फैब इकाइयों को भी संसाधनों की आवश्यकता है जिनके लिये लाखों लीटर स्वच्छ पानी, एक अत्यंत स्थिर बिजली आपूर्ति, बहुत सारी भूमि और अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है।

आगे की राह:

  • सभी कारकों के लिये पर्याप्त वित्तीय सहायता: भारत की प्रतिभा और अनुभव को ध्यान में रखते हुए, यह सही विकल्प हो सकता है कि कम से कम वर्तमान के लिये यदि नया मिशन, डिज़ाइन केंद्रों, परीक्षण सुविधाओं, पैकेजिंग आदि सहित चिप बनाने वाली शृंखला के अन्य हिस्सों की वित्तीय सहायता पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना: भविष्य के चिप उत्पादन को एक ही प्रणाली पर निर्भर नहीं होना चाहिये और इसे डिज़ाइन से निर्माण तक, पैकिंग और परीक्षण के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना चाहिये।
    • भारत को इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में भी सुधार करना चाहिये क्योंकि वर्तमान में इसकी कमी है।
  • बाह्य-रणनीतिक डिज़ाइन और कार्य: तेज़ी से प्रौद्योगिकी परिवर्तनों को देखते हुए, भारत को डिज़ाइन और कार्यक्षमता पर रणनीति का निर्माण करना चाहिये क्योंकि उत्पादन का कार्य तीन-चार वर्ष बाद ही अंतिम रूप से शुरू होगा, इसके माध्यम से प्रचलित चिप की कमी का समाधान किया जाएगा, परंतु तब तकनीक को अद्यतित करने की आवश्यकता होगी।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSEs) की भूमिका: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड या हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड जैसे भारत के सार्वजनिक उपक्रमों का उपयोग एक वैश्विक प्रमुख की मदद से सेमीकंडक्टर फैब फाउंड्री स्थापित करने के लिये किया जा सकता है।
    • एक संयुक्त उद्यम में प्रबंधन को फ्री हैण्ड देना जहाँ वैश्विक प्रमुख ने तकनीकी विशेषज्ञता को प्राथमिकता देनी चाहिये इसके अलावा उन्हें उचित प्रोत्साहन के साथ दीर्घकालिक नीति स्थिरता प्रदान करने से सफलता मिल सकती है।
  • कनेक्टिविटी और क्षमता संबंधी उपाय: भारत को चिप बनाने और डिज़ाइन करने वाले उद्योग में अपनी पहचान बनाने हेतु कई कारकों को एक साथ आने की ज़रूरत है।
    • भारत सरकार को चिप निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये भारत में संबंधित उद्योगों को जोड़ने की तत्काल आवश्यकता है। इसके अलावा राष्ट्रीय क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • साथ ही, आने वाली फर्मों को सरकार द्वारा सब्सिडी वापस लेने पर स्वयं को बाज़ार में बनाए रखने में सक्षम होना चाहिये।
  • क्वाड जैसे समूहों का लाभ उठाना: ऐसी महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास हेतु, भारत के लिये बहुपक्षीय सहयोग एक विकल्प के बजाय आवश्यकता है। क्वाड सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन इनिशिएटिव एक अच्छा शुरुआती बिंदु है।
    • भारत को भू-राजनीतिक और भौगोलिक जोखिमों से आपूर्ति शृंखला को प्रतिरक्षित करने के लिये क्वाड सप्लाई चेन रेजिलिएशन फंड पर ज़ोर देने की आवश्यकता है

निष्कर्ष

भारत ने महसूस किया है कि सेमीकंडक्टर चिप्स जैसी महत्त्वपूर्ण उत्पाद के लिये पूरी तरह से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भर होना एक सही नीति नहीं है। चिप और डिस्प्ले उद्योग के सतत् विकास के लिये दीर्घकालिक रणनीतियों को चलाने हेतु 'वैश्विक उद्योग विशेषज्ञों' द्वारा संचालित भारत सेमीकंडक्टर मिशन को एक साथ स्थापित करने का कैबिनेट का निर्णय सही दिशा में एक कदम है।

अभ्यास प्रश्न: 

सेमीकंडक्टर चिप्स जैसे महत्त्वपूर्ण उत्पाद के लिये पूरी तरह से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भर होना, जो सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स का केंद्र और मस्तिष्क है, एक सही नीति नहीं है। भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है।" विश्लेषण कीजिये।


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