एडिटोरियल (20 Oct, 2021)



परमाणु ऊर्जा: दिशा और दशा

यह एडिटोरियल 17/10/2021 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “Nuclear Power: A Climate Response That Gets Short Shrift” लेख पर आधारित है। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबद्ध समस्याओं और जीवाश्म ईंधन के अधिक व्यवहार्य विकल्प के रूप में परमाणु ऊर्जा की संभावनाओं के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल में विश्व को बिजली और ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ा। यद्यपि विभिन्न देशों में इस आपात स्थिति के अलग-अलग कारण रहे, किंतु इसके परिणामस्वरूप जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने की मांग और तेज़ हो गई है।  

हालाँकि, इन नवीकरणीय संसाधनों की 24x7 उपलब्धता के संदर्भ में वर्तमान हरित ऊर्जा प्रतिमान के गंभीर मूल्यांकन की आवश्यकता है।  

यद्यपि परमाणु ऊर्जा वर्तमान में मनुष्य को ज्ञात ऊर्जा का सबसे सस्ता, हरित और सुरक्षित स्रोत हो सकता है, लेकिन जब भी ‘परमाणु’ शब्द सामने आता है तो इस पर तर्कपूर्ण तथ्य-आधारित प्रतिक्रिया के बजाय एक नकारात्मक और प्रायः उन्मादपूर्ण प्रतिक्रिया ही मिलती है।  

भारतीय संदर्भ में, परमाणु ऊर्जा स्वच्छ ईंधन होने के बावजूद ऊर्जा स्रोतों की प्राथमिकता सूची से बाहर ही रही है। भारत वैश्विक परमाणु स्थापित क्षमता में महज़ 1.72% की हिस्सेदारी रखता है।

परमाणु ऊर्जा

  • परमाणु ऊर्जा का निर्माण एक रिएक्टर में परमाणुओं को विखंडित कर किया जाता है, जिसका उपयोग जल को गर्म कर भाप बनाने, उससे टरबाइन चलाने और इस प्रकार बिजली उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। 
    • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अंदर, परमाणु रिएक्टर और उनके उपकरण शृंखला प्रतिक्रियाओं को संतुलित और नियंत्रित करते हैं, जहाँ विखंडन के माध्यम से ऊष्मा के उत्पादन के लिये प्रायः यूरेनियम-235 ईंधन का उपयोग किया जाता है।  
  • परमाणु ऊर्जा उत्पादन से उत्सर्जन: परमाणु ऊर्जा शून्य-उत्सर्जन करती है। इसमें कोई ग्रीनहाउस गैस या वायु प्रदूषक नहीं होते।   
  • भूमि उपयोग: अमेरिकी सरकार के आँकड़ों के अनुसार, 1,000 मेगावाट क्षमता के परमाणु संयंत्र को इतनी ही क्षमता के पवन ऊर्जा संयंत्र या ‘विंड फार्म’ की तुलना में 360 गुना कम और सौर संयंत्रों की तुलना में 75 गुना कम भूमि की आवश्यकता होती है।  
  • नवीकरणीय ऊर्जा बनाम परमाणु ऊर्जा:
    • नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत अस्थिर हैं: सौर और पवन ऊर्जा प्रायः अस्थिर स्रोत मानें जाते हैं। इन स्रोतों से बिजली तभी पैदा की जा सकती है, जब सूरज चमक रहा हो या पवन बह रही हो।    
      • सर्वाधिक अनुकूल परिदृश्य में भी, सौर और पवन संयंत्र 24X7 बिजली उत्पन्न नहीं करते या नहीं कर सकते, ऐसे में जीवाश्म-ईंधन के अतिरिक्त उपयोग की आवश्यकता होती है।  
      • वर्तमान में ब्रिटेन की 24% बिजली पवन ऊर्जा से प्राप्त होती है। लेकिन इस वर्ष उसे अप्रत्याशित ‘पवन-विहीन ग्रीष्म’ (Windless Summer) का सामना करना पड़ा, जो ब्रिटेन के बिजली संकट के प्रमुख कारणों में से एक है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा से पारिस्थितिक क्षति: पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाएँ जिन क्षेत्रों में स्थापित की जाती हैं, वहाँ पारिस्थितिक क्षति का कारण बन सकती हैं।   
      • मोटे तौर पर से यह अनुमान लगाया जाता है कि अमेरिका में पवन टरबाइनों से टकराकर प्रतिवर्ष 500,000 पक्षी मारे जा रहे हैं।  
    • एक विकल्प के रूप में परमाणु ऊर्जा: सौर और पवन जैसे नवीकरणीय स्रोतों की अस्थिर प्रकृति के विपरीत, परमाणु ऊर्जा का उपयोग इलेक्ट्रिक बेस लोड की पूर्ति और पीक लोड परिचालन—दोनों के लिये किया जा सकता है।
      • विदित है कि जर्मनी के घरेलू क्षेत्र में बिजली का मूल्य 0.37 डॉलर प्रति किलोवाट-घंटा (KwH) है, जो कि यूरोपीय संघ में सबसे अधिक है, जबकि फ्राँस में यह मात्र 0.19 डॉलर है।
      • फ्राँस में बिजली बहुत सस्ती और स्वच्छ है, क्योंकि फ्राँस मुख्य रूप से परमाणु ऊर्जा पर निर्भर है।  
      • वर्ष 2020 में, फ्राँस द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का 78% परमाणु ऊर्जा से प्राप्त हुआ और नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान 19% था। इसमें जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा की हिस्सेदारी केवल 3% थी।
  • परमाणु ऊर्जा और भारत: भारत ने डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते (Indo-US nuclear deal) पर हस्ताक्षर किये थे।  
    • हालाँकि, सामान्य विरोध और अल्पकालिक राजनीतिक सोच के कारण इस दिशा में अधिक गंभीर कार्रवाई नहीं की गई और भारत द्वारा उत्पन्न बिजली में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी मात्र 3% है। 
    • सितंबर 2021 में, भारत सरकार ने अगले 10 वर्षों में अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना कर लेने का लक्ष्य रखता है।  

परमाणु ऊर्जा से संबद्ध समस्याएँ

  • सार्वजनिक वित्तपोषण की कमी: परमाणु ऊर्जा को कभी भी उस स्तर की उदार सब्सिडी प्राप्त नहीं हुई, जैसे अतीत में जीवाश्म ईंधन को प्राप्त हुई थी या वर्तमान में नवीकरणीय स्रोतों को प्रदान की जा रही है।   
    • सार्वजनिक वित्तपोषण के अभाव में परमाणु ऊर्जा के लिये भविष्य में प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा से प्रतिस्पर्द्धा कर सकना कठिन हो जाएगा।  
  • परमाणु ऊर्जा को प्रतिस्पर्द्धा से बाहर रखने वाले कारक: दुनिया भर में परमाणु ऊर्जा संबंधी बदतर आर्थिक व्यवस्था, निर्माण लागत में तेज़ वृद्धि—जो कि फुकुशिमा दुर्घटना के बाद और भी बदतर हो गई है, और सरकारी सब्सिडी पर भारी निर्भरता परमाणु ऊर्जा को अप्रतिस्पर्द्धी बना रही है।       
  • निवेशकों की खराब वित्तीय स्थिति: तोशिबा-वेस्टिंगहाउस और अरेवा जैसी विदेशी कंपनियाँ, जो भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण पर विचार कर रही थीं, गंभीर आर्थिक संकट से गुज़र रही हैं। यह भी भारत के लिये प्राथमिक संसाधन के रूप में परमाणु ऊर्जा की विफलता का कारण बना है।
    • इन कंपनियों का अपना अस्तित्व ही आज दाँव पर है, क्योंकि या तो वे राज्य के भारी ऋण में दबी हैं या प्रतिस्पर्द्धा के कारण उनका अवमूल्यन हुआ है।    
  • ज़मीनी स्तर पर प्रतिरोध: भारत में नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के प्रति अनिच्छा या प्रतिरोध की भावना के कारण कुडनकुलम संयंत्र (Kudankulam plant) को चालू करने में पर्याप्त विलंब हुआ और वेस्टिंगहाउस को अपनी पहली नियोजित परियोजना को गुजरात से आंध्र प्रदेश में स्थानांतरित करने के लिये विवश होना पड़ा।   
  • भूमि अधिग्रहण: भूमि अधिग्रहण और परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिये स्थान का चयन भी देश में एक बड़ी समस्या है।  
    • तमिलनाडु में कुडनकुलम और आंध्र प्रदेश में कोव्वाडा (Kovvada) जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को भूमि अधिग्रहण संबंधी चुनौतियों के कारण पर्याप्त विलंब का सामना करना पड़ा है।

आगे की राह

  • उपलब्ध संसाधनों का उपयोग: भारत में यूरेनियम का अनुमानित प्राकृतिक भंडार लगभग 70, 000 टन और थोरियम का लगभग 3,60,000 टन है। 
    • इसलिये, भारत को अपने उपयोग के यूरेनियम के अधिकांश भाग का आयात करना पड़ता है। यह महँगा भी है और भू-राजनीतिक रूप से कठिन भी है।
    • यूरेनियम के आयात पर बड़ी मात्रा में व्यय के बजाय देश को उन परियोजनाओं में महत्त्वाकांक्षी निवेश की आवश्यकता है, जो थोरियम को विखंडनीय यूरेनियम में परिवर्तित करती हैं और उससे बिजली का उत्पादन करती हैं।  
  • प्री-प्रोजेक्ट समस्याओं को संबोधित करना: सरकार को नए स्थलों पर भूमि अधिग्रहण, विशेष रूप से पर्यावरण मंत्रालय सहित विभिन्न मंत्रालयों से मंज़ूरी और विदेशी सहयोगियों की समयबद्ध संलग्नता जैसे प्री-प्रोजेक्ट समस्याओं को संबोधित करने की आवश्यकता है।       
    • इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की पूँजीगत लागत को कम करने के लिये निरंतर प्रयास किये जाने चाहिये। 
  • सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करना: परमाणु ऊर्जा उत्पादन के संबंध में सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर संबोधित किया जाना चाहिये। 
    • परमाणु दुर्घटना के डर से परमाणु ऊर्जा उत्पादन को पूरी तरह से समाप्त किया जाना एक गलत कदम होगा।
      • यदि सुरक्षा के उच्चतम मानकों का पालन करते हुए परमाणु ऊर्जा उत्पन्न की जाती है, तो भयावह दुर्घटनाओं की संभावना कम होती है।
    • इस संबंध में, जल्द-से-जल्द एक ’परमाणु सुरक्षा नियामक प्राधिकरण’ (Nuclear Safety Regulatory Authority) की स्थापना देश में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों के लिये सहायक सिद्ध होगी।  
  • प्रौद्योगिकीय सहायता: भारत में पुनर्प्रसंस्करण और संवर्द्धन क्षमता को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके लिये भारत को प्रयुक्त ईंधन के पूर्ण उपयोग और अपनी संवर्द्धन क्षमता की वृद्धि के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है।   

निष्कर्ष

  • वैश्विक ऊर्जा संकट के मद्देनज़र ‘परमाणु’ शब्द से जुड़ी नकारात्मकता को दूर करते हुए इस स्वच्छ ऊर्जा स्रोत पर तर्कसंगत पुनर्विचार किया जाना चाहिये।
    • कुछ-न-कुछ सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव रखने वाली विभिन्न निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के बीच हमें एक उपयुक्त विकल्प का चयन करना होगा।
  • बढ़ती ऊर्जा मांगों की पूर्ति के लिये परमाणु ऊर्जा बेहतर समाधानों में से एक है। नवीकरणीय ऊर्जा के निम्न क्षमता उपयोग, जीवाश्म ईंधन की बढ़ती कीमतों और लगातार बढ़ती प्रदूषण की समस्याओं को देखते हुए परमाणु ऊर्जा की क्षमता का पूरी तरह से दोहन किया जाना आवश्यक है।

Nuclear-fuel

अभ्यास प्रश्न: ‘‘वैश्विक ऊर्जा संकट के मद्देनज़र परमाणु के रूप में एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत पर तर्कसंगत पुनर्विचार किया जाना आवश्यक है।’’ टिप्पणी कीजिये।