लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 20 Jul, 2020
  • 15 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ब्रिटेन: गतिशील संबंधों का दौर

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत-ब्रिटेन संबंध व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

जनवरी 2020 में ब्रिटिश संसद और यूरोपीय यूनियन की संसद ने ब्रेक्ज़िट (Brexit) समझौते पर अपनी अनुमति दी थी। ब्रेक्ज़िट समझौते के बाद भारत-ब्रिटेन संबंधों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ना तय है। भारत, ब्रिटेन का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार भी है। वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान दोनों देशों के मध्य स्वास्थ्य को लेकर अभूतपूर्व सहयोग देखा जा रहा है। पूरे विश्व में COVID-19 की विभीषिका के बीच इसकी वैक्‍सीन को लेकर परीक्षण तेज हो गए हैं। ब्रिटेन की ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी व सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के द्वारा सम्मिलित रूप से COVID-19 की वैक्‍सीन से संबंधित सबसे बड़ा ट्रायल प्रारंभ हो चुका है।

उल्लेखनीय है कि ब्रेक्ज़िट के बाद भारत के साथ नई आर्थिक साझेदारी विकसित करने के उद्देश्य से ब्रिटेन सरकार द्वारा पुख्ता नींव रखने के साथ ही भारत के साथ उसके संबंध वर्ष 2017 में तब और मज़बूत हुए, जब इसे ब्रिटेन-भारत सांस्कृतिक वर्ष के रूप में मनाया गया।

पृष्ठभूमि 

  • स्वतंत्रता के बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता और गैर-उपनिवेशवादी अवधारणा की वकालत की, जबकि ब्रिटेन ने शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका के साथ गठबंधन किया। इस प्रकार प्रारंभ में भारत और ब्रिटेन राजनीतिक और वैचारिक रूप से एक-दूसरे के विपरीत सिरे पर थे।
  • वस्तुतः द्विपक्षीय रूप से भारत-ब्रिटेन संबंध वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध तक अच्छे रहे परंतु  युद्ध के बाद, पाकिस्तान के प्रति ब्रिटेन के सहानुभूति भरे रुख के कारण दोनों देशों के संबंधों में गिरावट आई। शीतयुद्ध की समाप्ति तक संबंधों में यह गिरावट जारी रही।
  • शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद दोनों देशों के संबंधों में सकारात्मक बदलाव आए और तब से द्विपक्षीय संबंधों में निरंतर वृद्धि देखी गई है।
  • वर्ष 2004 में दोनों देशों ने सामरिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर किया। वस्तुतः वर्ष 1995 के बाद से ही दोनों देशों के बीच रक्षा सलाहकार समूह का गठन किया जा चुका था।
  • नवंबर 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने तीन दिवसीय ब्रिटेन का दौरा किया। इस दौरान सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये रक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा संधि पर सहमति व्यक्त की गई। ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग हेतु एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जो जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करने और स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सहयोग सुनिश्चित करने पर केंद्रित था।
  • नवंबर 2016 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे (Theresa May) ने भारत का दौरा किया था। उस समय यह यात्रा बहुत महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के लिये प्रयासरत था, और उसे व्यक्तिगत तौर पर भारत से अपने संबंधों को पुनर्स्थापित करना था। 

ब्रेक्ज़िट

  • ब्रिटेन सबसे पहले वर्ष 1973 में यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी (European Economic Community-EEC) में शामिल हुआ था। उस दौर में यूरोपीय संघ को यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी के नाम से जाना जाता था। 
  • EU में शामिल होने के कुछ ही वर्षों में ब्रिटेन के कुछ नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया और यह मांग की कि जनमत संग्रह (Referendum) के माध्यम से तय किया जाए कि ब्रिटेन EU में रहेगा या नहीं। 
  • अगले 30 वर्षों तक इस क्षेत्र में कोई महत्त्वपूर्ण विकास नहीं हुआ, परंतु वर्ष 2010 में घटनाक्रम में कुछ ऐसे बदलाव हुए कि जनमत संग्रह की मांग तेज़ होने लगी।
  • ब्रिटेन की कंज़र्वेटिव पार्टी, जो कि वर्ष 2010 से 2015 के बीच सत्ता में रही, ने एक चुनावी वादा किया कि यदि कंज़र्वेटिव पार्टी पुनः सत्ता में आती है तो वह सर्वप्रथम जनमत संग्रह कराएगी कि ब्रिटेन को EU में रहना चाहिये या नहीं।
  • चुनाव जीतने के बाद डेविड कैमरून पर वादा पूरा करने का दबाव पड़ने लगा और जून 2016 में ब्रिटेन में जनमत संग्रह कराया गया जिसमें 52 प्रतिशत लोगों ने ब्रेक्ज़िट के पक्ष में मतदान किया, जबकि 48 प्रतिशत लोगों ने ब्रेक्ज़िट के विपक्ष में मतदान किया और कंज़र्वेटिव पार्टी के लिये ब्रेक्ज़िट का रास्ता साफ हो गया।

भारत-ब्रिटेन के मध्य सहयोग के क्षेत्र 

  • संस्थागत संवाद तंत्र: भारत और ब्रिटेन के बीच कई द्विपक्षीय संवाद तंत्र मौजूद हैं, जिनमें राजनीतिक, व्यापार, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा रक्षा आदि क्षेत्रों की एक विस्तृत रुपरेखा शामिल है।
  • व्यापार: ब्रिटेन, भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से है और वर्ष 2014-15 के दौरान ब्रिटेन भारत के शीर्ष 25 व्यापारिक भागीदारों की सूची में 18वें स्थान पर था। भारत, ब्रिटेन को वस्त्र, मशीनरी और उपकरण, पेट्रोलियम उत्पाद, और चमड़े जैसे उत्पादों का निर्यात करता है। पिछले तीन वर्षों (2015-2018) के दौरान ब्रिटेन और भारत के बीच कुल व्यापार में 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
  • निवेश: मॉरीशस व सिंगापुर के बाद ब्रिटेन, भारत में तीसरा सबसे बड़ा आवक निवेशक है।
  • शिक्षा: शिक्षा भारत-ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय संबंधों का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। पिछले 10 वर्षों में भारत-यूके एजुकेशन फोरम (India-UK Education Forum), यूके-इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव (UK-India Education and Research Initiative) जैसे द्विपक्षीय तंत्र की सहायता से दोनों देशों के संबंध काफी प्रगाढ़ हो गए हैं।
  • भारतीय छात्र: ब्रिटेन पारंपरिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिये एक पसंदीदा स्थान रहा है। वर्तमान में लगभग 20,000 भारतीय छात्र ब्रिटेन में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अध्ययन कर रहे हैं।
  • सांस्कृतिक संबंध: भारत और ब्रिटेन के बीच सांस्कृतिक संबंध गहरे और व्यापक हैं, जो दोनों देशों के बीच साझा सांस्कृतिक इतिहास से उत्पन्न हुए हैं। दोनों देशों की संस्कृति, व्यंजन, सिनेमा, भाषा, धर्म, दर्शन, प्रदर्शन कला आदि एक-दूसरे के पूरक बन गए हैं।
  • इंडियन डायस्पोरा: ब्रिटेन में इंडियन डायस्पोरा देश के सबसे बड़े जातीय अल्पसंख्यक समुदायों में से एक है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, ब्रिटेन में भारतीय मूल के लगभग 1.5 मिलियन लोगों की आबादी है जो ब्रिटेन की कुल आबादी की लगभग 1.8 प्रतिशत है। भारतीय डायस्पोरा ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत का योगदान करता है।
  • भू-राजनीतिक महत्व: हिंद महासागर की पहचान दोनों देशों के बीच निकट रक्षा और सुरक्षा सहयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में की जाती है। इसके अतिरिक्त भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह की पूर्ण सदस्यता के लिये  अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ब्रिटेन के समर्थन की आवश्यकता है।

क्यों ज़रूरी है ब्रिटेन के लिये भारत?

  • ब्रेक्ज़िट के निर्णय के बाद भारत-ब्रिटेन संबंधों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ना तय है। भारत ब्रिटेन का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है।
  • ब्रिटेन की कुल जीडीपी में प्रवासी भारतीयों का लगभग 6% योगदान है। इन सबके बावजूद भारत-ब्रिटेन का व्यापार काफी कम है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है। 
  • ब्रिटेन कारों पर आयात कर कम करने के साथ ही वित्तीय सेवाओं और कानूनी फर्मों के भारत में प्रवेश की मांग करता रहा है, लेकिन भारत को अपने हितों पर भी ध्यान देना होगा।
  • यूरोपीय संघ से बाहर होने के बाद ब्रिटेन का इससे व्यापार कम हो जाएगा और इसकी क्षतिपूर्ति हेतु ब्रिटेन भारत से व्यापार बढ़ाने को उत्सुक है। 

द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने वाले मुद्दे

  • प्रवासी भारतीयों पर प्रभाव: ब्रिटेन में बड़ी संख्या में भारतीय डायस्पोरा ने ब्रेक्ज़िट के खिलाफ मतदान किया था क्योंकि यह संभावना थी कि ब्रिटेन में भारतीय आईटी पेशेवरों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा जब ब्रिटेन अधिक संख्या में ब्रिटिश पेशेवरों की नियुक्ति करेगा। 
  • व्यापार पर प्रभाव:  यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते का पालन करना ब्रिटेन के लिये प्राथमिकता नहीं होगी। ब्रिटेन प्रारंभ में व्यापार के लिये मौजूदा बाधाओं से निपटने पर ध्यान केंद्रित करेगा। लेकिन भारत को ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन में व्यापार के अंतर को भरने का अवसर नहीं छोड़ना चाहिये।
  • भारत-यूरोपीय संघ संबंधों पर प्रभाव: भारत-यूरोपीय संघ के मध्य 72.5 बिलियन यूरो का व्यापार होता है, जिसमें 19.4 बिलियन यूरो का व्यापार अकेले ब्रिटेन के साथ होता था। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद व्यापार का एक बड़ा भाग प्रभावित हो जाएगा। ब्रेक्ज़िट भारत व  यूरोपीय संघ की रणनीतिक साझेदारी के लिये एक चुनौती है, लेकिन भारत को ब्रिटेन के बिना यूरोपीय संघ के साथ अपने संबंधों को प्रबंधित करने की आवश्यकता होगी।
  • वीजा और आव्रजन: ब्रिटेन का मानना है कि यहाँ पर 1 लाख से अधिक अवैध भारतीय प्रवासी हैं। ब्रिटेन ने भारत सरकार पर यह सुनिश्चित करने के लिये दबाव डालना प्रारंभ कर दिया है कि जिन भारतीयों को ब्रिटेन में रहने का कोई अधिकार नहीं है, उन्हें भारत वापस भेजा जाए।
  • पाकिस्तान के साथ ब्रिटेन के संबंध: पाकिस्तान के साथ ब्रिटेन के मौजूदा संबंध भारत के साथ रक्षा और सुरक्षा संबंध बनाने की प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं। कुछ भारतीय रक्षा विशेषज्ञ ब्रिटेन को पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति रखने वाले देश के रूप में देखते हैं।
  • चीन के साथ ब्रिटेन के घनिष्ठ संबंध: संसदीय जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत को चीन जैसे गैर-लोकतांत्रिक देश की तुलना में कठिन वीजा मानदंडों का सामना करना पड़ रहा है। ब्रिटेन को यह सुनिश्चित करने के लिये ध्यान रखना चाहिये कि चीन के साथ मजबूत संबंध भारत के साथ गहरी साझेदारी को हानि पहुँचाने की कीमत पर नहीं होने चाहिये।

निष्कर्ष 

दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में साझा मूल्यों, समान कानूनों और संस्थानों के आधार पर, अपनी रणनीतिक भागीदारी को मज़बूत करने की ब्रिटेन और भारत की स्वाभाविक महत्त्वाकांक्षा है। दोनों देश वैश्विक दृष्टिकोण और एक नियम-आधारित ऐसी अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के प्रति वचनबद्धता का हिस्सा हैं जो उन एक तरफा उठाए गए कदमों का ज़ोरदार विरोध करती हैं जो बल के माध्यम से इस प्रणाली को कमज़ोर करना चाहते हैं। दोनों देश अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी बनाने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जिसका विस्तार समूचे विश्व में हो। दोनों देश अपने व्यावसायिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक संबंधों को उन अनेकानेक गतिविधियों का पूरा लाभ उठाने के लिये प्रोत्साहित करते हैं जो भारत और ब्रिटेन को पारिवारिक स्तर से लेकर वित्तीय व्यवस्था तथा व्यवसाय से लेकर बॉलीवुड तक और खेल से लेकर विज्ञान तक परस्पर जोड़ते हैं।

प्रश्न- यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के बाद भारत व ब्रिटेन के द्विपक्षीय संबंधों का मूल्यांकन कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2