भारतीय अर्थव्यवस्था
एमएसएमई का डिजिटल सशक्तीकरण
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में एमएसएमई के डिजिटलीकरण की चुनौतियों और अवसरों तथा इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत के आर्थिक परिदृश्य को प्रायः देश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) के आधार पर परिभाषित किया जाता है। किंतु भारतीय अर्थव्यवस्था का यह महत्त्वपूर्ण क्षेत्र आज भी अप्रचलित और पुरानी प्रौद्योगिकी के आधार पर कार्य करता है, जो कि उसकी उत्पादन क्षमता में बाधा उत्पन्न करती है।
समावेशी विकास और संवर्द्धित आजीविका के भारत के लक्ष्य तथा ‘वोकल फॉर लोकल’ की धारणा के मद्देनज़र सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस काफी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
व्यवसायों में तेज़ी लाने की अपनी क्षमता के साथ ई-कॉमर्स, वैश्विक मूल्य शृंखलाओं का लाभ प्राप्त करने हेतु भारतीय एमएसएमई क्षेत्र के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साधन हो सकता है।
इसके अलावा अधिक-से-अधिक दक्षता के लिये उत्पादन प्रक्रिया को स्वचालित करना और बाज़ारों तक अधिक पहुँच प्राप्त करने के लिये एमएसएमई इकाइयों को ज़्यादा चैनल उपलब्ध कराना भी मौजूदा समय में काफी महत्त्वपूर्ण है।
एमएसएमई और ई-कॉमर्स
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम
- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के आँकड़ों की मानें तो देश की लगभग 51 प्रतिशत एमएसएमई इकाइयाँ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित है।
- इन्हें प्रायः अपनी क्षमताओं में बढ़ोतरी करने के लिये विशाल बाज़ारों और आवश्यक विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
- वर्तमान समय में एमएसएमई इकाइयों के समक्ष मौजूद चुनौतियों में कार्यशील पूंजी की कमी, आपूर्ति शृंखला संबंधी बाधा, तकनीकी चुनौतियाँ, जीएसटी अनुपालन ढाँचा, सीमित उपभोक्ता आधार आदि शामिल हैं।
- उपर्युक्त चुनौतियों में से कई का उपाय एमएसएमई इकाइयों के डिजिटलीकरण पर निर्भर करता है, अतः यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम जल्द-से-जल्द अपने व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं के प्रबंधन हेतु डिजिटल समाधानों को अपनाएँ।
ई-कॉमर्स
- ई-कॉमर्स संबंधी आँकड़ों के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर समग्र खुदरा व्यापार में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है, खासतौर पर चीन, अमेरिका और एशियाई-प्रशांत क्षेत्र के देशों में।
- आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 तक भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार का अनुमानित मूल्य तकरीबन 84 बिलियन डॉलर हो जाएगा, जो कि वर्ष 2017 में 24 बिलियन डॉलर पर था।
- इस तरह ई-कॉमर्स भारतीय एमएसएमई इकाइयों को भारतीय तथा विदेशी उपभोक्ताओं और संगठनों को आकर्षित करने का अवसर प्रदान करता है।
एमएसएमई के डिजिटलीकरण का महत्त्व
- एमएसएमई का संपूर्ण विश्व से जुड़ाव: यह छोटी कंपनियों और स्टार्टअप्स को सुविधा प्रदान करता है कि वे अपने उत्पादों को राष्ट्रीय बाज़ार के साथ-साथ वैश्विक बाज़ार में भी पहुँचा सकें, जिससे उनके ग्राहक आधार में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ उनकी आय में बढ़ोतरी होती है।
- यह टियर-2/3 शहरों के कारीगरों और छोटे विक्रेताओं को अपने स्थानीय ग्राहकों के साथ-साथ देश-विदेश के ग्राहकों को ऑनलाइन बिक्री करने का अवसर प्रदान करता है।
- निवेश और आय: ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस को वर्तमान में कम-से-कम लागत, नवाचार और निवेश में परिवर्तन का एक सर्वोत्तम संभव उपाय माना जा सकता है।
- आपूर्ति शृंखला में निवेश करके ई-कॉमर्स क्षेत्र एमएसएमई इकाइयों को आपूर्ति तथा वितरण नेटवर्क में भागीदार बनने का अवसर प्रदान करता है।
- यह आजीविका के अवसरों के माध्यम से अतिरिक्त आय सृजन में मदद करता है और आर्थिक समृद्धि एवं समावेशी विकास में योगदान देता है।
- लागत प्रभावी: ई-कॉमर्स, भारतीय एमएसएमई इकाइयों के लिये परिचालन लागत कम करने, राजस्व बढ़ाने, अधिक ग्राहक आधार बनाने और ग्राहक संतुष्टि के माध्यम से लाभ प्राप्त करने का उपयोगी साधन बन सकता है।
- ऑनलाइन माध्यम एमएसएमई इकाइयों को बहुत ही कम मूल्य पर बाज़ार पहुँच प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे वे अपनी क्षमता विकास पर अधिक निवेश कर सकते हैं।
संबंधित चुनौतियाँ
- जीएसटी छूट का अभाव: नियमों के मुताबिक, 40 लाख रुपए तक के वार्षिक कारोबार वाले व्यवसायों को जीएसटी से छूट दी गई है।
- हालाँकि ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस विक्रेताओं को इंट्रा-स्टेट आपूर्ति के लिये जीएसटी संबंधी यह छूट नहीं मिलती है, यह छूट केवल ऑफलाइन विक्रेताओं को मिलती है।
- चाहे उनका वार्षिक कारोबार 40 लाख रुपए से कम ही क्यों न हों, किंतु फिर भी उन्हें अनिवार्य तौर पर जीएसटी पंजीकरण कराना होता है।
- ‘व्यवसाय के मुख्य स्थान’ (PPoB) का सिद्धांत: ई-कॉमर्स में प्रायः सभी ऑनलाइन विक्रेताओं के लिये व्यवसाय हेतु भौतिक स्थान उपलब्ध होना संभव नहीं होता है।
- इसके परिणामस्वरूप एमएसएमई इकाइयों के लिये पंजीकरण कराना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।
- उचित अवसंरचना और प्रौद्योगिकी तक पहुँच का अभाव: नवीनतम स्मार्ट उपकरणों का प्रयोग, बेहतर इंटरनेट सेवाएँ, डिजिटल सिस्टम के प्रबंधन हेतु कुशल कर्मचारी और भौतिक एवं डिजिटल अवसंरचना के रखरखाव आदि से संबंधित कार्य छोटी एवं नवसृजित कंपनियों के लिये काफी महँगा होता है।
- जागरूकता का अभाव: अभी भी देश में कई छोटे एवं मध्यम उद्यम ऐसे हैं, जो डिजिटल परिवर्तन के प्रभावों से अनजान हैं, जिसके कारण नीति निर्माताओं के लिये उनमें परिवर्तन लाना काफी चुनौतीपूर्ण है।
- इसके अलावा एमएसएमई इकाइयाँ प्रायः डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने और उसे बढ़ावा देने की इच्छुक नहीं होती हैं, इसके अलावा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियाँ काफी तीव्रता से विकसित होती हैं और ये इकाइयाँ उन्नति के साथ तालमेल नहीं बिठा पाती हैं।
- डेटाबेस का रखरखाव: व्यावसायिक निर्णय लेने के लिये महत्त्वपूर्ण संरचित एवं असंरचित डेटा का भंडारण, विश्लेषण और प्रबंधन करना एमएसएमई इकाइयों के लिये चुनौतीपूर्ण होता है।
- डेटा, क्लाउड और सिस्टम प्रबंधन के साथ-साथ इनके रख-रखाव के लिये आवश्यक प्रशिक्षण जैसे विषय एमएसएमई इकाइयों के लिये परेशानी का सबब हो सकते हैं।
आगे की राह
- मौजूदा योजनाओं का प्रौद्योगिकी के साथ समन्वयन: एमएसएमई के लिये ऑफलाइन और भौतिक बाज़ार को ध्यान में रखकर तैयार की गई योजनाओं की पहचान करना और ऑनलाइन बिक्री माध्यमों के अनुरूप उनमें परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये एमएसएमई इकाइयों को बाज़ारों तक पहुँचने और डिजिटल मार्केटिंग में निवेश करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन दिया जा सकता है। इसका उद्देश्य उन लोगों को प्रोत्साहित करना है जो डिजिटल मोड में हस्तांतरण करना चाहते हैं।
- कौशल नीतियों और कार्यक्रमों में ई-कॉमर्स सेक्टर की आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तन किया जा सकता है।
- ई-कॉमर्स के माध्यम से निर्यात में वृद्धि: ई-कॉमर्स के माध्यम से देश के समग्र निर्यात को बढ़ाने हेतु विशिष्ट कदम उठाए जा सकते हैं। इनमें:
- उन उत्पादों की पहचान जिनका निर्यात करना संभव है।
- निर्यात उन्मुख विनिर्माण समूहों को ई-कॉमर्स से जोड़ना।
- सेक्टर-विशिष्ट निर्यात संवर्द्धन परिषदों के साथ संबंधों को प्रोत्साहित करना।
- ई-कॉमर्स निर्यात क्षेत्र बनाने के लिये मौजूदा विशेष आर्थिक क्षेत्रों का लाभ उठाना।
- ई-कॉमर्स और विदेश व्यापार नीति: देश की विदेश व्यापार नीति में ऑनलाइन विक्रेताओं के लिये ऐसे क्षेत्रों की पहचान की जानी आवश्यक है, जो वैश्विक बाज़ारों में सफलता प्राप्त करने हेतु आवश्यक हैं, इसके अलावा देश की विदेश व्यापार नीति में ई-कॉमर्स निर्यात विशिष्ट प्रावधान शामिल किये जा सकते हैं। इसमें शामिल हैं:
- ई-कॉमर्स निर्यात के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने वाले विशिष्ट नीतिगत प्रावधान।
- ई-कॉमर्स निर्यात का डिजिटलीकरण।
- बड़ी टेक कंपनियों की भूमिका: कई बड़ी टेक कंपनियाँ छोटे एवं मध्यम स्तर के उद्यमों की व्यावसायिक दक्षता और लाभप्रदता को बढ़ाकर उनका समर्थन कर रही हैं।
- ‘गूगल एडवांटेज’, गूगल की एक ऐसी पहल है जो एमएसएमई इकाइयों को बढ़ते ऑनलाइन ग्राहक आधार का उपयोग करने की सुविधा प्रदान करती है।
- ‘गूगल माय बिज़नेस’ को विशेष रूप से स्टार्टअप्स और एमएसएमई इकाइयों का समर्थन करने के लिये विकसित किया गया है।
- ‘व्यवसाय के मुख्य स्थान’ (PPoB) संबंधी सिद्धांत का सरलीकरण: सरकार ‘व्यवसाय के मुख्य स्थान’ (PPoB) संबंधी आवश्यकता को विशेष रूप से ऑनलाइन विक्रेताओं के लिये डिजिटल रूप प्रदान कर और सरल बना सकती है।
- ‘व्यवसाय के मुख्य स्थान’ संबंधी सिद्धांत को ‘संचार के स्थान’ के सिद्धांत के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
- राज्य विशिष्ट भौतिक PPoB की आवश्यकता को समाप्त करने से विक्रेताओं को राज्य-स्तरीय जीएसटी प्राप्त करने में सुविधा प्राप्त होगी।
निष्कर्ष
- भारत की विकास गाथा में छोटी इकाइयों, कुटीर इकाइयों और एमएसएमई इकाइयों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- ये छोटे क्षेत्र यदि प्रभावी रूप से डिजिटल रूप से सक्षम हो जाते हैं, तो आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन, आय स्तर को बढ़ाने में काफी महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
- एमएसएमई इकाइयों के लिये डिजिटल कुशलता के साथ ऑनलाइन बाज़ार में स्वयं को सफलतापूर्वक स्थापित करना महत्त्वपूर्ण होता है। इसके अभाव में एमएसएमई क्षेत्र भविष्य के लिये तैयार नहीं हो सकता है।
अभ्यास प्रश्न: एमएसएमई क्षेत्र के लिये डिजिटल सशक्तीकरण काफी महत्त्वपूर्ण है। भारत में MSME क्षेत्र के डिजिटलीकरण से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा कीजिये।