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एडिटोरियल

  • 20 Feb, 2023
  • 15 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

संवहनीय वस्त्रों को बढ़ावा

यह एडिटोरियल 13/02/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “PM Modi’s push for sustainable clothing….” लेख पर आधारित है। इसमें संवहनीय वस्त्रों (Sustainable Clothing) पर बल देने में भारत के लिये निहित चुनौतियों और इस दिशा में आवश्यक कदमों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री पुनर्नवीनीकृत प्लास्टिक की बोतलों से बनी नीली सदरी (vest) पहन संसद पहुँचे थे। इसके माध्यम से उन्होंने संवहनीय वस्त्रों को एक जागरूक विकल्प बनाने का संदेश देने का प्रयास किया, जिसे पर्यावरण की रक्षा के लिये रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अपनाये जाने की ज़रूरत है।

  • संवहनीय वस्त्र या ‘सस्टेनेबल क्लोथिंग’ से तात्पर्य ऐसे परिधानों से है जिन्हें उनके डिज़ाइन एवं उत्पादन से लेकर वितरण एवं निपटान तक पूरे जीवनचक्र में पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार अभ्यासों का उपयोग कर निर्मित किया जाता है।
  • भारत में संवहनीय वस्त्र दिनानुदिन लोकप्रिय होते जा रहे हैं क्योंकि लोग ‘फास्ट फैशन’ के प्रभाव के बारे में लगातार जागरूक हो रहे हैं और ऐसे विकल्पों की तलाश कर रहे हैं जो पर्यावरणीय एवं सामाजिक दृष्टिकोण से उपयुक्त हों।
  • भारत में ई-कॉमर्स के तेज़ विकास और स्मार्टफोन कनेक्टिविटी की व्यापकता ने शहरीकरण एवं परिग्रहणशील उपभोग व्यवहार (Acquisitive Consumption Behaviour) की एक सांस्कृतिक परिघटना को बढ़ावा दिया है, जिससे ‘फास्ट फैशन’ और ‘डिस्पोजेबल क्लोथिंग’ की वृद्धि हुई है।
  • वस्त्र उद्योग में एक अधिक संवहनीय भविष्य की उम्मीद निहित है। भारत के उपभोक्ता जनसांख्यिकी के युवतर होने के साथ, फास्ट फैशन के पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना और संवहनीय वस्त्र विकल्पों को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।

भारत में संवहनीय वस्त्रों को बढ़ावा देने के क्या लाभ हैं?

  • पर्यावरणीय प्रभाव में कमी:
    • संवहनीय वस्त्र फैशन उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं।
      • वैश्विक स्तर पर, फैशन उद्योग कुल कार्बन उत्सर्जन में 10% का योगदान करता है और यह एक बड़ा प्रदूषक क्षेत्र है। अनुमान है कि इस क्षेत्र से हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन वर्ष 2030 तक 50% से अधिक बढ़ जाएगा।
  • जल-कुशल उत्पादन प्रक्रियाएँ:
    • सस्टेनेबल फैशन ब्रांड ऐसी उत्पादन प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं जिनमें जल की कम आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिये, कुछ ब्रांड जल की बड़ी मात्रा की आवश्यकता रखने वाले पारंपरिक डाइंग एवं प्रिंटिंग विधियों के बजाय लेजर कटिंग और डिजिटल प्रिंटिंग का उपयोग करते हैं।
      • यह उद्योग सालाना 93 बिलियन क्यूबिक मीटर जल का उपयोग करता है जो संवहनीय नहीं है।
      • उल्लेखनीय है कि एक जीन्स पैंट के उत्पादन एवं उपयोग चरण के दौरान 3,781 लीटर जल का उपयोग किया जाता है जबकि इसके पूरे जीवनकाल में 33.4 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का निर्माण होता है।
  • बेहतर गुणवत्ता और स्थायित्व:
    • संवहनीय वस्त्र प्रायः फास्ट फैशन की तुलना में अधिक समय तक उपयोग किये जा सकने के दृष्टिकोण से डिज़ाइन किये जाते हैं।
    • यह अंततः लैंडफिल में डंप होने वाले कपड़ों की मात्रा को कम करने में मदद कर सकता है और दीर्घावधि में उपभोक्ताओं के धन की बचत कर सकता है।
      • ‘नेशनल क्लाइमेट चेंज जर्नल’ (2018) के अनुसार, कपड़ा विनिर्माण अर्थव्यवस्था के सबसे प्रदूषणकारी क्षेत्रों में से एक है जो 1.2 बिलियन टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है।
  • उपभोक्ता शिक्षा:
    • संवहनीय वस्त्र को बढ़ावा देने से उपभोक्ताओं को पर्यावरण और समाज पर उनकी पसंद के प्रभाव के बारे में शिक्षित करने में मदद मिल सकती है।
    • यह जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकता है और अधिकाधिक लोगों को फैशन के बारे में जागरूक विकल्प चुनने हेतु प्रोत्साहित कर सकता है।
  • नवाचार और रचनात्मकता:
    • संवहनीय वस्त्रों में प्रायः नवोन्मेषी डिज़ाइन और सामग्रियों का रचनात्मक उपयोग करना शामिल होता है।
    • यह फैशन उद्योग में रचनात्मकता और नवाचार को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे अधिक संवहनीय एवं पर्यावरण के अनुकूल समाधान प्राप्त हो सकते हैं।
  • कामगारों के साथ नैतिक और उचित व्यवहार:
    • सस्टेनेबल क्लोथिंग ब्रांड प्रायः कामगारों के प्रति उचित और नैतिक व्यवहार को प्राथमिकता देते हैं, जिसमें उचित मजदूरी और सुरक्षित कार्य दशा प्रदान करना शामिल है।
      • यह फैशन उद्योग में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और शोषण को कम करने में मदद कर सकता है।

भारत में संवहनीय वस्त्रों से संबद्ध चुनौतियाँ

  • जागरूकता की कमी:
    • भारत में बहुत से लोग संवहनीय वस्त्रों से संबद्ध पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के साथ ही इससे जुड़े लाभों से अवगत नहीं हैं। जागरूकता की इस कमी के कारण संवहनीय वस्त्रों के लिये भारतीय बाज़ार में उपभोक्ताओं को आकर्षित कर सकना अभी तक कठिन रहा है।
  • उच्च लागत:
    • पर्यावरण-अनुकूल सामग्री और नैतिक श्रम अभ्यासों से संबद्ध लागत के कारण संवहनीय वस्त्र प्रायः पारंपरिक वस्त्रों की तुलना में अधिक महँगे होते हैं। यह उच्च लागत कई लोगों के लिये, विशेष रूप से निम्न आय वर्ग के लोगों के लिये बाधाकारी सिद्ध हो सकता है।
  • सीमित उपलब्धता:
    • भारत में संवहनीय वस्त्रों के विकल्प अभी भी सीमित हैं, जहाँ बहुत से लोग अवगत नहीं हैं कि पर्यावरण-अनुकूल और नैतिक ब्रांड उन्हें कहाँ मिलेंगे। उपलब्धता की इस कमी के कारण उपभोक्ताओं के लिये संवहनीय विकल्प चुनना कठिन हो जाता है।
  • सांस्कृतिक प्राथमिकताएँ:
    • भारतीय उपभोक्ता कुछ शैलियों और सामग्रियों के प्रति एक प्राथमिक पसंद भी रखते हैं जो आवश्यक नहीं कि पर्यावरण के अनुकूल या संवहनीय हों। उदाहरण के लिये, कपास और रेशम भारत में लोकप्रिय वस्त्र सामग्री हैं, लेकिन उन्हें संवहनीय बना सकना एक संसाधन-गहन उद्यम सिद्ध हो सकता है।
  • आपूर्ति शृंखला संबंधी चुनौतियाँ:
    • पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों को प्राप्त करने, नैतिक श्रम अभ्यासों को सुनिश्चित करने और गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने की चुनौतियों के साथ भारत में संवहनीय वस्त्रों के लिये आपूर्ति शृंखला क निर्माण जटिल साबित हो सकता है।
  • अवसंरचनागत चुनौतियाँ:
    • भारत को पहले से ही अपशिष्ट प्रबंधन और जल की कमी की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो संवहनीय वस्त्रों के उत्पादन एवं वितरण को और अधिक कठिन बना सकता है।
  • सीमित सरकारी सहायता:
    • जबकि भारत में संवहनीय वस्त्रों का समर्थन करने के लिये कुछ सरकारी पहलें की गई हैं, सरकार के स्तर से अभी भी सीमित समर्थन ही प्राप्त है, जो संवहनीय वस्त्र उद्योग के विकास में बाधक बन सकता है।

भारत संवहनीय वस्त्रों को कैसे बढ़ावा दे सकता है?

  • लागत संरचना का युक्तिकरण:
    • विभिन्न ब्रांड अनुकूलित उत्पादन विधियों और अपशिष्ट शमन के माध्यम से लागत बचत को बढ़ावा देकर अपनी आपूर्ति शृंखला में संवहनीय अभ्यासों को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • बॉलीवुड और खेल हस्तियों का वैध समर्थन:
    • बॉलीवुड और खेल क्षेत्र के लोकप्रिय हस्तियों द्वारा संवहनीय वस्त्रों का समर्थन आम लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ाने और संवहनीय वस्त्रों को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है।
  • फैशन की चक्रीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखना:
    • विभिन्न ब्रांड वस्त्रों एवं परिधानों के पुनर्चक्रण, पुन: उपयोग और पुनरुत्पादन (recycling, reuse, and repurposing) को बढ़ावा देकर—जो अपशिष्ट को कम करते हैं और संवहनीयता को बढ़ावा देते हैं, फैशन उद्योग में चक्रीयता (circularity) को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • शून्य-कार्बन उत्पादन एवं आपूर्ति शृंखला की स्थापना करना:
    • विभिन्न ब्रांड नवीकरणीय ऊर्जा, निम्न-प्रभावकारी सामग्री और पर्यावरण के अनुकूल पैकेजिंग के उपयोग को बढ़ावा देकर शून्य-कार्बन उत्पादन एवं आपूर्ति शृंखला को प्रोत्साहित कर सकते हैं, जो फैशन उद्योग के कार्बन फुटप्रिंट को कम करेगा।
  • शिल्प/कारीगरी का संपोषण:
    • विभिन्न ब्रांड स्थानीय कारीगरों एवं शिल्पकारों का समर्थन कर, पारंपरिक शिल्प कौशल को बढ़ावा देकर और प्रशिक्षण एवं विकास कार्यक्रमों में निवेश कर शिल्प/कारीगरी के संपोषण को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • फैशन उद्योग में वित्तीय प्रोत्साहन:
    • बोनस, कमीशन और लाभ-साझाकरण योजनाओं जैसे वित्तीय प्रोत्साहन डिज़ाइनरों, निर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं को अपनी बिक्री बढ़ाने तथा अपनी लाभप्रदता में सुधार लाने के लिये प्रेरित कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, डिज़ाइनरों को उनके द्वारा डिज़ाइन किये गए वस्त्रों की बिक्री पर लाभ का एक अंश या विशिष्ट बिक्री लक्ष्यों की पूर्ति पर बोनस देकर प्रोत्साहित किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में संवहनीय वस्त्रों को बढ़ावा देने के मार्ग की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं? पर्यावरणीय दृष्टि से अधिक ज़िम्मेदार और सामाजिक रूप से जागरूक फैशन उद्योग का निर्माण करने के लिये इन चुनौतियों को कैसे संबोधित किया जा सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

 प्र. 'इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान' शब्द को कभी-कभी समाचारों में किसके संदर्भ में देखा जाता है? (वर्ष 2016)

 (A) युद्ध प्रभावित मध्य पूर्व से शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा की गई प्रतिज्ञा
 (B) जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये विश्व के देशों द्वारा उल्लिखित कार्य योजना
 (C) एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की स्थापना में सदस्य देशों द्वारा योगदान की गई पूंजी
 (D) सतत् विकास लक्ष्यों के संबंध में दुनिया के देशों द्वारा उल्लिखित कार्य योजना

 उत्तर: (B)

 व्याख्या:

  • इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान UNFCCC के तहत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।
  • COP 21 में दुनिया भर के देशों ने सार्वजनिक रूप से उन कार्रवाइयों को रेखांकित किया जो वे अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत करना चाहते थे। योगदान पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्य, "1.5 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने और इस शताब्दी के दूसरे छमाही में शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिये वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये", को प्राप्त करने की दिशा में हैं;। अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।

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