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एडिटोरियल

  • 19 Dec, 2022
  • 12 min read
आंतरिक सुरक्षा

आतंकवाद विरोधी एजेंडा को पुनः बढ़ावा

यह एडिटोरियल 17/12/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Countering terror: On action against groups targeting civilians ” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में आतंकवाद और इसके उन्मूलन के लिये उठाए जा सकने वाले उपायों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

आतंकवाद (Terrorism) अपने सभी सभी रूपों में अस्वीकार्य है और इसे कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है। आज हर भूभाग के सभी राज्य आतंकवाद के प्रति संवेदनशील हैं और यह खतरा वैश्विक चिंता का विषय बन गया है। भारत अपनी स्वतंत्रता के बाद से ही देश के विभिन्न हिस्सों में उग्रवाद (Insurgency) और आतंकवाद की समस्या का सामना कर रहा है।

  • आतंकवादी समूह उन्नत और परिष्कृत तकनीकों को अपनाते हुए विभिन्न आतंकवादी गतिविधियों का सहारा लेते रहे हैं जो उनकी गतिविधियों को और अधिक नृशंस बना देते हैं। इस परिदृश्य में, भारत को वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति के अनुरूप सीमा-आतंकवाद का मुक़ाबला और प्रतिरोध करने के लिये समान रूप से बेहतर रणनीति विकसित करनी होगी।

भारत में आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिये वर्तमान ढाँचा

  • भारत ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद निरोधक समिति (CTC) की एक विशेष बैठक की मेजबानी की जो ‘आतंकवादी उद्देश्यों के लिये नई एवं उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग के निरोध' (Countering the use of new and emerging technologies for terrorist purpose) और ‘नो मनी फ़ॉर टेरर’ (No Money For Terror) के मुख्य विषय पर आयोजित थी।
  • गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act- UAPA), 1967 को अगस्त 2019 में संशोधित किया गया था ताकि व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में निर्दिष्ट किया जा सके।
  • वर्ष 2016 में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने आतंकवाद स्क्रीनिंग सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिये एक व्यवस्था पर हस्ताक्षर किये थे और इसके प्रवर्तन पर कार्य जारी है।
  • केंद्र सरकार के स्तर पर, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency- NIA) आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये प्रमुख कानून प्रवर्तन जाँच एजेंसी है।
    • भारतीय संसद ने NIA को विदेशों में आतंकवाद के मामलों की जाँच कर सकने की क्षमता प्रदान करने के लिये NIA अधिनियम, 2008 में संशोधन पारित किया।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) एकमात्र संघीय आकस्मिक बल के रूप में राष्ट्रव्यापी प्रतिक्रिया के लिये अधिदेश रखता है।
  • विधि-व्यवस्था राज्य सूची का विषय है और भारत की विभिन्न राज्य सरकारें कानून एवं व्यवस्था के लिये ज़िम्मेदार बनी हुई हैं। भारत की राज्य-स्तरीय कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ आतंकवादी कृत्यों का पता लगाने, उनके निवारण और रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • त्वरित प्रथम प्रतिक्रिया के लिये वर्ष 2008 के बाद राज्य आतंकवाद विरोधी दस्ते (State antiterrorism squads) बनाए गए थे।

आतंकवाद का मुक़ाबला करने की राह की चुनौतियाँ

  • आतंकवाद का वित्तपोषण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार अपराधियों द्वारा प्रति वर्ष चार ट्रिलियन डॉलर तक की मनी-लॉन्डरिंग की जाती है। आतंकवादियों द्वारा धन के लेनदेन को दान और वैकल्पिक प्रेषण विधियों के माध्यम से छुपाया जाता है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को कलंकित करता है और प्रणाली की अखंडता में जनता के भरोसे को कम करता है।
    • कई राज्यों पर आतंकवादी संगठनों को प्रायोजित करने और आतंकवाद के वैश्विक खतरे में योगदान देने का भी आरोप है।
    • इसके अलावा, क्रिप्टोकरेंसी के विनियमन की कमी इसे आतंकवादियों के लिये अनुकूल ‘ब्रीडिंग ग्राउंड’ बना सकती है।
  • आतंकवाद निरोध का राजनीतिकरण: आतंकवादियों की पहचान के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों (P5) ने अलग-अलग स्तर की वीटो शक्ति का प्रयोग किया है।
    • इसके साथ ही, आतंकवाद के संघटन के संबंध में इसकी कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है, इसलिये किसी गतिविधि/कृत्य विशेष को आतंकवादी कृत्य के रूप में वर्गीकृत करना कठिन है, जो फिर आतंकवादियों को एक बढ़त प्रदान करती है और कुछ देशों को चुप रहने तथा वैश्विक संस्थाओं के पटल पर किसी भी कार्रवाई को वीटो करने का अवसर देती है।
  • आतंकवादियों द्वारा उभरती प्रौद्योगिकी का उपयोग: कंप्यूटिंग और दूरसंचार में व्यापक इंटरनेट पहुँच, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन और वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) जैसे नवाचारों ने दुनिया भर में बड़ी संख्या में कट्टरपंथी व्यक्तियों के लिये नई प्रकार की गतिविधियों को संभव बना दिया है, जो खतरे में योगदान दे रहा है।
  • आतंकवाद की सोशल नेटवर्किंग: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आतंकी नेटवर्क और उनके ‘वैचारिक सहयात्रियों’ के ‘टूलकिट’ में शक्तिशाली उपकरणों में बदल गए हैं।
    • इसके अलावा, ‘लोन वुल्फ’ हमलावरों ने नई तकनीकों तक पहुँच प्राप्त कर अपनी क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि कर ली है।
  • जैव-आतंकवाद: जैव प्रौद्योगिकी मानव जाति के लिये वरदान है, लेकिन यह एक बड़ा खतरा भी है क्योंकि जैविक एजेंटों की छोटी मात्रा को आसानी से छिपाया जा सकता है, इसका परिवहन किया जा सकता है और इसे कमज़ोर आबादी पर छोड़ा जा सकता है।
    • विश्व भर में खाद्य सुरक्षा को बाधित करने के लिये उष्णकटिबंधीय कृषि रोगजनकों या कीटों को भी एंटीक्रॉप एजेंटों के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

आगे की राह

  • आतंकवाद विरोधी एजेंडे को पुनः सक्रिय करना: एकजुटता की आवश्यकता पर बल देकर और आतंकवादियों की पहचान के संबंध में P5 की वीटो शक्ति को नियंत्रित करके आतंकवाद के वैश्विक एजेंडे को पुनः सक्रिय करना आवश्यक है।
  • आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा को अपनाना: आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा आवश्यक है ताकि संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के सभी सदस्य इसे अपने स्वयं के आपराधिक कानूनों में शामिल कर सकें, आतंकवादी समूहों पर प्रतिबंध लगा सकें, विशेष कानूनों के तहत आतंकवादियों पर मुकदमा चला सकें और सीमा-पार आतंकवाद को दुनिया भर में एक प्रत्यर्पणीय अपराध बना सकें।
    • भारत ने वर्ष 1986 में संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (CCIT) पर एक मसौदा दस्तावेज का प्रस्ताव रखा था। हालाँकि इसे अभी UNGA द्वारा स्वीकार किया जाना शेष है।
  • युवाओं को आतंकवाद के चंगुल से बचाना: शैक्षिक प्रतिष्ठान अहिंसा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सहिष्णुता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • इसके साथ ही, आर्थिक और सामाजिक असमानताओं से निपटने के लिये नीतियों के निर्माण से असंतुष्ट युवाओं को आतंकवाद की ओर आकर्षित होने से रोकने में मदद मिलेगी।
  • NIA की क्षमता का विस्तार: घुसपैठ को रोकने के लिये खुफिया एजेंसियों एवं सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने के साथ ही सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिये भारतीय सैन्य बल को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, स्पीडी ट्रायल के लिये भारत को अपनी राष्ट्रीय आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक सक्षम करने तथा आतंकवाद के विरुद्ध सख्त कानूनी प्रोटोकॉल लागू करने की भी आवश्यकता है।
  • आतंक वित्तपोषण पर अंकुश लगाना: कठोर कानूनों का निर्माण किया जाना चाहिये जहाँ बैंकों के लिये ग्राहकों के बारे में उचित रूप से विचार करने और संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट करने की आवश्यकता हो ताकि आतंक वित्तपोषण पर नियंत्रण स्थापित हो सके।
    • इसके साथ ही, भारत क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने की दिशा में भी आगे बढ़ सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिये मौजूदा ढाँचे की चर्चा कीजिये। इसके साथ ही, सुझाव दें कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (CCIT) आतंकवाद से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने में कैसे मदद कर सकता है।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रारंभिक परीक्षा:

प्र. 'हैंड-इन-हैंड 2007' एक संयुक्त आतंकवाद विरोधी सैन्य प्रशिक्षण भारतीय और निम्नलिखित में से किस देश की सेना के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया था? (वर्ष 2008)

(A) चीन
(B) जापान
(C) रूस
(D) यूएसए

उत्तर: (A)


मुख्य परीक्षा

प्र. आतंकवाद का अभिशाप राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है। इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिए आप क्या उपाय सुझाएंगे? आतंकवादी वित्तपोषण के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (वर्ष 2017)


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