अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: भारत अस्थायी सदस्य
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की अस्थायी सदस्यता व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) वैश्विक सुरक्षा प्रबंधन का सबसे बड़ा मंच माना जाता है। सुरक्षा परिषद पर विश्व में शांति-व्यवस्था को बनाए रखने और सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत का अनुपालन सुनिश्चित कराने का उत्तरदायित्व रहता है। समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता में परिवर्तन होता रहता है। हाल ही में भारत 8वीं बार सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य (Non-Permanent Members) चुना गया है। भारत, वर्ष 2021-22 के बीच सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराएगा।
इस आलेख में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इतिहास, संगठन, उसकी भूमिका, अस्थायी सदस्यता तथा सुरक्षा परिषद की संरचना में सुधार की आवश्यकता और भारत की दावेदारी के संदर्भ में विभिन्न पहलूओं पर विमर्श करने का प्रयास किया जाएगा।
सुरक्षा परिषद: पृष्ठभूमि
- सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1945 में हुआ था। सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन हैं।
- मूल रूप से सुरक्षा परिषद में 11 सदस्य थे जिसे वर्ष 1965 में बढ़ाकर 15 कर दिया गया।
- गौरतलब है कि इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो वर्ष के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है।
- सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। इन देशों की सदस्यता दूसरे विश्व युद्ध के बाद के शक्ति संतुलन को प्रदर्शित करती है।
क्या है अस्थायी सदस्यता?
- अस्थायी सदस्यों का चुनाव दो वर्ष के लिये होता है। अस्थायी सदस्य देशों को चुनने का उद्देश्य सुरक्षा परिषद में क्षेत्रीय संतुलन कायम करना है।
- इस अस्थायी सदस्यता के लिये सदस्य देशों में चुनाव होता है। इसमें पाँच सदस्य एशियाई या अफ्रीकी देशों से, दो दक्षिण अमेरिकी देशों से, एक पूर्वी यूरोप से और दो पश्चिमी यूरोप या अन्य क्षेत्रों से चुने जाते हैं।
- अफ्रीका और एशिया महाद्वीप के लिये विनिर्धारित पाँच सीटों में से तीन सीट अफ्रीका के लिये और दो सीट एशिया के लिये निश्चित की गई हैं।
- अफ्रीका और एशिया महाद्वीप दोनों में परस्पर मतैक्यता के आधार पर अरब देशों के लिये 1 सीट आरक्षित करने का भी प्रावधान है। दोनों महाद्वीप के द्वारा प्रत्येक दो वर्ष में क्रमशः 1 अरब देश की सदस्यता का अनुमोदन करना होता है।
चुनाव की प्रक्रिया
- सम संख्या से प्रारंभ होने वाले वर्षों में अफ्रीका महाद्वीप से 2 सदस्य देश और पूर्वी यूरोप, एशिया-प्रशांत क्षेत्र, लैटिन अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र से एक-एक सदस्य देश चुने जाते हैं।
- वहीं विषम संख्या से प्रारंभ होने वाले वर्षों में पश्चिमी यूरोप और अन्य क्षेत्रों से दो सदस्य, एशिया-प्रशांत क्षेत्र, अफ्रीका महाद्वीप, लैटिन अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र से एक-एक सदस्य देश चुने जाते हैं।
- जून 2019 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र से 1 सदस्य के लिये सर्वसम्मति से भारत का अनुमोदन किया गया था। ध्यातव्य है कि इस अनुमोदन को चीन पाकिस्तान का पूर्ण समर्थन प्राप्त था।
- पश्चिमी यूरोप और अन्य क्षेत्रों से दो सदस्य के चयन हेतु कनाडा, आयरलैंड व नार्वे ने दावेदारी प्रस्तुत की थी।
- लैटिन अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र से एक सदस्य के लिये मैक्सिको का सर्वसम्मति से अनुमोदन किया गया था।
- अफ्रीका महाद्वीप से एक सदस्य के चयन के लिये केन्या और जिबूती ने दावेदारी प्रस्तुत की थी।
- यदि कोई देश सर्वसम्मति से उम्मीदवार बना है और उसके समूह द्वारा उसे पूर्ण समर्थन प्राप्त है तो भी उसे वर्तमान सत्र में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के वोट सुरक्षित करने की आवश्यकता है जो कि न्यूनतम 129 वोट हैं, यदि सभी 193 सदस्य राज्य भाग लेते हैं।
- भारत ने जनवरी 2021 से दिसंबर 2022 तक की समयावधि के लिये मतदान करने वाले 192 देशों के सापेक्ष 184 देशों का समर्थन प्राप्त किया।
पूर्व में भी भारत अस्थायी सदस्य रहा
- इससे पूर्व भी भारत वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रहा है।
- वर्ष 2011-12 में कजाख़स्तान द्वारा अपनी दावेदारी से पीछे हटने के बाद भारत ने मतदान करने वाले 190 देशों के सापेक्ष 187 देशों का समर्थन प्राप्त कर किया था।
- जहाँ अफ्रीका महाद्वीप ने तीन सीटों की दावेदारी को लेकर रोटेशन की पद्धति को अपनाया है, वहीं एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इस तरह के समन्वय का अभाव दिखता है। सुरक्षा परिषद में दावेदारी को लेकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में अक्सर प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है।
- वर्ष 2018 में अस्थायी सदस्यता की दावेदारी को लेकर मालदीव और इंडोनेशिया के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा देखने को मिली थी।
- अमूमन, आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण अस्थायी सदस्यता की दावेदारी को लेकर चुनाव कई दौर तक चल सकते हैं।
- वर्ष 1975 में अस्थायी सदस्यता की दावेदारी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच प्रतिस्पर्धा देखने को मिली और चुनाव आठ राउंड तक चला, जिसमें अंततः पाकिस्तान को सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता प्राप्त हुई।
सुरक्षा परिषद की भूमिका तथा शक्तियाँ
- सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली निकाय है जिसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम रखना है।
- इसकी शक्तियों में शांति अभियानों का योगदान, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को लागू करना तथा सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के माध्यम से सैन्य कार्रवाई करना शामिल है।
- यह सदस्य देशों पर बाध्यकारी प्रस्ताव जारी करने का अधिकार वाला संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र निकाय है।
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत सभी सदस्य देश सुरक्षा परिषद के निर्णयों का पालन करने के लिये बाध्य हैं।
- मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों के पास वीटो पॉवर है। वीटो पॉवर का अर्थ होता है ‘निषेधाधिकार’।
- स्थायी सदस्यों के निर्णय से अगर कोई भी एक स्थायी सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पाॅवर का इस्तेमाल करके उस निर्णय को रोक सकता है।
सुरक्षा परिषद में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?
- सुरक्षा परिषद की स्थापना वर्ष 1945 की भू-राजनीति के हिसाब से की गई थी। मौजूदा भू-राजनीति द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि से अब काफी अलग हो चुकी है।
- शीत युद्ध समाप्त के बाद से ही इसमें सुधार की ज़रूरत महसूस की जा रही है। इसमें कई तरह के सुधार की आवश्यकता है जिसमें संगठनात्मक बनावट और प्रक्रिया सबसे अहम है।
- मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी देशों में यूरोप का सबसे ज़्यादा प्रतिनिधित्व है। जबकि यहाँ विश्व की कुल आबादी का मात्र 5 प्रतिशत ही निवास करती है।
- अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई भी देश सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है। जबकि संयुक्त राष्ट्र का 50 प्रतिशत से अधिक कार्य अकेले अफ्रीकी देशों से संबंधित है।
- शांति स्थापित करने वाले अभियानों में अहम भूमिका निभाने के बावज़ूद भारत जैसे अन्य देशों के पक्ष को मौजूदा सदस्यों द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र संघ के ढाँचे में सुधार की आवश्यकता इसलिये भी है क्योंकि इसमें अमेरिका का वर्चस्व है। अमेरिका अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति के बल पर संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अंतराष्ट्रीय संगठनों की भी अनदेखी करता रहा है।
सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी दावेदारी के पक्ष में तर्क
- 1.3 बिलियन आबादी के साथ भारत, दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। यहाँ विश्व की कुल जनसंख्या का करीब 1/5वाँ हिस्सा निवास करता है।
- भारत विश्व की उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है। वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते आर्थिक कद ने भारत के दावों को और मज़बूत किया है। मौजूदा समय में भारत विश्व की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसके अलावा पीपीपी पर आधारित जीडीपी की दृष्टि से भारत विश्व की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।
- भारत को अब विश्व व्यापार संगठन, ब्रिक्स और जी-20 जैसे आर्थिक संगठनों में सबसे प्रभावशाली देशों में गिना जाता है।
- भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक रूप से विश्व शांति को बढ़ावा देने वाली रही है।
- भारत संयुक्त राष्ट्र की सेना में सबसे ज़्यादा सैनिक भेजने वाला देश है।
सुरक्षा परिषद में अन्य समूहों की दावेदारी
- जी-4 समूह: भारत, जर्मनी, ब्राज़ील और जापान ने मिलकर जी-4 नामक समूह बनाया है। ये देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। जी-4 समूह का मानना है कि सुरक्षा परिषद को और अधिक प्रतिनिधित्त्वपूर्ण, न्यायसंगत व प्रभावी बनाने की ज़रूरत है।
- L-69 समूह: ये समूह भारत, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के क़रीब 42 विकासशील देशों के एक समूह की अगुवाई कर रहा है। L-69 समूह ने UNSC सुधार मोर्चा पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है।
- अफ्रीकी समूह: अफ्रीकी समूह में 54 देश शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की वकालत करने वाला दूसरा महत्त्वपूर्ण समूह है। इस समूह की मांग है कि अफ्रीका के कम से कम दो राष्ट्रों को वीटो की शक्तियों के साथ सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाए।
चुनौतियाँ
- स्थायी सदस्य देश अपने वीटो पाॅवर को छोड़ने के लिये सहमत नहीं हैं और न ही वे इस अधिकार को किसी अन्य देश को देने पर सहमत हैं।
- भारत की सदस्यता के लिये चार्टर में संशोधन करना पड़ेगा। इसके लिये स्थायी सदस्यों के साथ-साथ दो-तिहाई देशों द्वारा पुष्टि करना आवश्यक है।
- अमेरिका जहाँ बहुपक्षवाद के खिलाफ है। तो वहीं रूस भी किसी तरह के सुधार के पक्ष में नहीं है। सुरक्षा परिषद में एशिया का एकमात्र प्रतिनिधि होने की मंशा रखने वाला चीन भी संयुक्त राष्ट्र में किसी तरह का सुधार नहीं चाहता। चीन नहीं चाहता कि भारत सुरक्षा परिषद का सदस्य बने।
- G-4 समूह में शामिल देशों के साथ भी विभिन्न मानकों पर भारत को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। जैसे- मानव विकास सूचकांक, लैंगिक अंतराल सूचकांक इत्यादि में भारत की रैंकिंग जर्मनी और जापान जैसे देशों से खराब है।
स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लाभ
- सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख निर्णय लेने वाली संस्था है। प्रतिबंध लगाने या अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को लागू करने के लिये सुरक्षा परिषद के समर्थन की आवश्यकता होती है।
- स्थायी सीट भारत को वैश्विक भू-राजनीति में अधिक मज़बूती से अपनी बात कहने में सक्षम बनाएगी।
- सुरक्षा परिषद स्थायी सदस्यता भारत को वीटो पॉवर प्रदान करेगी।
- सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता वाह्य सुरक्षा खतरों और भारत के खिलाफ राज्य प्रायोजित आतंकवाद के समाधान के लिये तंत्र को मज़बूत करने में सहायक सिद्ध होगी।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की अस्थायी सदस्यता निश्चित तौर पर स्थायी सदस्यता की दिशा में अग्रसर होने के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा। स्थायी सदस्यता भारत को वैश्विक राजनीति के स्तर पर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन और रूस के समकक्ष लाकर खड़ा कर देगा। अतः संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये भारत को भी और अधिक गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है।
प्रश्न- ‘भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता प्राप्त कर ली है’। सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के संदर्भ में अपनाई जाने वाली चुनाव प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी दावेदारी के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिये।