एडिटोरियल (19 Jun, 2019)



BT बैंगन: समस्या या समाधान

इस Editorial में 18 जून को The Hindu में प्रकाशित लेख Serious Concerns over BT Brinjal का विश्लेषण करते हुए इसके सभी पक्षों पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

कुछ समय पूर्व हरियाणा के फतेहाबाद में एक किसान द्वारा बैंगन की ट्रांसजेनिक फसल उगाने का पता चला। इसी तरह के मामले इससे पहले गुजरात एवं अन्य स्थानों से सामने आते रहे हैं। दो दशक पहले किसानों ने महाराष्ट्र में आंदोलन किया था, जो BT कपास को अनुमति देने की मांग कर रहे थे। किसानों का GM फसलों के प्रति बढ़ता हुआ रुझान कई प्रश्न खड़े करता है। आखिर क्यों किसानों को GM फसलें आकर्षित कर रही हैं, जबकि इन फसलों का लागत प्रभावी होना अथवा इससे होने वाले आर्थिक लाभों के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। हालाँकि हम BT कपास को मंज़ूरी दे चुके हैं, किंतु इसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर लगभग कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हमारा पडोसी बांग्लादेश वर्ष 2013 में BT बैंगन के उत्पादन को मंज़ूरी दे चुका है, लेकिन अभी भी इसके नकारात्मक प्रभावों का गहन अध्ययन किया जाना शेष है।

भारत में BT बैंगन की वर्तमान स्थिति

भारत में वर्ष 2009 में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने BT बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन को मंजूरी दे दी था, किंतु इसके व्यापक विरोध को देखते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में इसको प्रतिबंधित कर दिया तथा इसके प्रभावों पर अध्ययन प्रारंभ किया। यह प्रतिबंध मोनसेंटो के BT बैंगन पर लगाया गया था, जबकि मोनसेंटो BT बैंगन के सुरक्षित होने की वकालत करती रही है, लेकिन एक ऐसी तकनीक जिसका सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ने की आशंका हो, उसके लिये किसी कंपनी पर पूर्णतः विश्वास नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि इसके प्रभावों की जाँच स्वतंत्र रूप से पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों से करवाने की मांग की जाती रही है।

क्या होती हैं GM फसलें ?

इसके लिये टिश्यू कल्चर, म्युटेशन यानी उत्परिवर्तन और नए सूक्ष्मजीवों की मदद से पौधों में नए जींस का प्रवेश कराया जाता है। इस तरह की एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया में पौधे को एग्रोबेक्टेरियम ट्यूमेफेशियंस (Agrobacterium Tumefaciens) नामक सूक्ष्मजीव से संक्रमित कराया जाता है। इस सूक्ष्मजीव को टी-डीएनए (Transfer-DNA) नामक एक विशिष्ट जीन से सक्रंमित करके पौधे में डीएनए का प्रवेश कराया जाता है। इस एग्रोबेक्टेरियम ट्यूमेफेशियंस के टी-डीएनए को वांछित जीन से सावधानीपूर्वक प्रतिस्थापित किया जाता है, जो कीट प्रतिरोधक होता है। इस प्रकार पौधे के जीनोम में बदलाव लाकर मनचाहे गुणों की जीनांतरित फसल प्राप्त की जाती है।

BT क्या है?

बेसिलस थुरिनजेनेसिस (Bacillus Thuringiensis-BT) एक जीवाणु है, जो प्राकृतिक रूप से क्रिस्टल प्रोटीन उत्पन्न करता है। यह प्रोटीन कीटों के लिये हानिकारक होता है। इसके नाम पर ही BT फसलों का नाम रखा गया है। BT फसलें ऐसी फसलें होती हैं, जो बेसिलस थुरिनजेनेसिस नामक जीवाणु के समान ही विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करती हैं। ताकि फसल का कीटों से बचाव किया जा सके।

BT बैंगन के प्रभाव

BT बैंगन तकनीक के प्रभावों को लेकर इसकी खोज के समय से ही विवाद रहा है। इस पर पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के मत भिन्न-भिन्न रहे हैं, जिससे इसके प्रभावों को लेकर सर्वसम्मति नहीं बन सकी है। फिर भी इसके सकारात्मक प्रभावों अथवा लाभों पर दृष्टि डाली जा सकती है।

BT बैंगन के लाभ

  • BT बैंगन की सर्वाधिक उपयोगिता इस बात में है कि यह कीट प्रतिरोधी होता है। GM तकनीक के द्वारा इसके जीन में परिवर्तन कर दिया जाता है, जो कीटों के लिये विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करती है, जिससे इनका कीटों से बचाव होता है। ज्ञात हो कि परंपरागत बैंगन की फसलों में कीटों को एक बड़ी समस्या के रूप में देखा जा सकता है।
  • BT बैंगन खरपतवार नाशी प्रतिरोधक होती है, जो उत्पादन में 35 प्रतिशत तक वृद्धि कर सकती है। साथ ही इससे आर्थिक लागत में कमी आती है और किसानों को अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
  • गोल्डन राइस के अध्ययन से पता चलता है कि GM फसलें पोषण स्तर को सुधारने में सहायक होती हैं। जरूरत के अनुसार GM तकनीक द्वारा फसल में पोषक पदार्थों को शामिल किया जा सकता है। भारत जैसे देश में जहाँ कुपोषण एक बड़ी समस्या है, यह तकनीक बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

BT बैंगन का विरोध क्यों किया जा रहा हैं ?

भारत में BT बैंगन का व्यापक विरोध किया गया, जिसके परिणामस्वरुप वर्ष 2010 में सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। इस प्रतिबंध से पूर्व भी जैव तकनीक पर बने सरकार के अपने कार्यदल ने इसको लेकर चिंता व्यक्त की थी तथा सिफारिश की थी कि GM फसलों को जैव-विविधता संपन्न क्षेत्रों में उगाने की अनुमति न दी जाए। इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने भी इस पर प्रतिबंध की सिफारिश की। समिति का यह भी कहना था कि भारत जैसे देश में जहाँ फसलों और वनस्पतियों की इतनी विविधता है, वहाँ GM फसलों की आवश्यकता नहीं है। एम. एस. स्वामीनाथन, जिन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है, भी GM फसलों पर चिंता जता चुके हैं। उनका कहना है कि ऐसी फसलों को किसी भी प्रकार की अनुमति देने से पहले जरूरी है कि इनसे उत्पन्न दीर्घकालीन विषाक्तता का अध्ययन किया जाए, क्योंकि कुछ जीन ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव कुछ पीढ़ियों के बाद दिखाई देता है। इस मुद्दे के आलोक में वर्ष 2012 में कृषि पर संसदीय स्थायी समिति और वर्ष 2017 में विज्ञान प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं वन संबंधी समिति द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। दोनों समितियों ने GM फसलों की विनियामक प्रणाली को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की।

BT बैंगन के मूल्यांकन में अनियमितताओं के कारण कृषि संबंधी समिति प्रख्यात स्वतंत्र वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की एक टीम ने गहन जाँच की सिफारिश की थी, लेकिन इस प्रकार की जाँच कभी नहीं की गई। दोनों समितियों ने उपभोक्ता के जानने के अधिकार को सुरक्षित करने के लिये GM उत्पादों पर लेबल लगाने की सिफारिश की थी, परंतु असंगठित खुदरा बाज़ार जैसी व्यावहारिक समस्याओं के कारण इसको लागू नहीं किया जा सका। हालाँकि कुछ समय पूर्व FSSAI ने इसके लिये प्रयास करना आरंभ कर दिया है। जैव सुरक्षा के मुद्दे को लेकर चिंता जताई गई है तो पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन में BT बैंगन के संबंध में महत्त्वपूर्ण लक्षणों को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है। इसी प्रकार प्रसिद्ध पर्यावरणविद् माधव गाडगिल का कहना है कि इससे विविधतापूर्ण बैंगन की किस्मों के दूषित होने की संभावना है।

कृषक एवं बीटी बैंगन

BT बैंगन को बाजार में लाने वाली कंपनी मायको-मोनसेंटो का कहना था कि इससे बैंगन के उत्पादन में वृद्धि होगी तथा खुदरा कीमतों में भी गिरावट आएगी। परिणामस्वरूप किसानों एवं उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा, लेकिन कंपनियां BT बैंगन के बीजों की अधिक कीमत वसूलती हैं, जिससे किसानों का लाभ प्रभावित होता है। इसके व्यावहारिक पक्ष पर नजर डालें तो पता चलता है कि अब तक ऐसे कोई प्रमाण सामने नहीं आए हैं, जो यह साबित कर सकें कि किसानों को इससे लाभ पहुँचा है। विदर्भ में वर्ष 2017 में एक मामला सामने आया था, जिसमें BT कपास ने प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली थी जिसको दूर करने के लिये किसानों ने विषाक्त रसायनों का छिड़काव किया था, जिससे 50 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी

इसके बावजूद किसानों में GM फसलों एवं BT बैंगन को लेकर आकर्षण बना हुआ है। हाल ही में महाराष्ट्र के अकोला जिले में लगभग 1000 किसानों ने कपास की गैर-अनुमोदित बीजों की रोपाई की। ऐसी घटनाएँ गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब में सामने आती रहती हैं। ऐसे में GM फसलों के अध्ययन को बल देने तथा किसानों को इसके बारे में सही जानकारी उपलब्ध करने की आवश्यकता है।

सरकारी प्रयास एवं राज्यों का दृष्टिकोण

पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा विभिन्न समितियों की सिफारिशों के बावजूद इस क्षेत्र में सरकारी प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं। वर्ष 2010 BT बैंगन पर प्रतिबंध के बाद विशेषज्ञ समूह द्वारा इसकी जाँच करने की बात कही गई थी, लेकिन इस पर अब तक कोई पहल नहीं की गई है। BT बैंगन को भारत की राज्य सरकारें भी समर्थन देती हुई दिखाई नहीं देतीं केरल और उत्तराखंड ने इसको प्रतिबंध करने के लिये कहा है तो वहीं दूसरी ओर बैंगन का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य जैसे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार इसके परीक्षणों के लंबित होने का विरोध कर चुके हैं।

मोनसेंटो की भूमिका

BT बैंगन की जो तकनीक भारत में प्रतिबंधित है उसका विकास महिको नाम की कंपनी ने किया है, जिसमें अमेरिकी मल्टीनेशनल एग्रोकेमिकल कंपनी ‘मोनसेंटो’ का 26 प्रतिशत हिस्सा है, जो ‘जेनेटिकली इंजीनियर्ड बीज’ (GE Seed) एवं राउंड अप’ (‘ग्लायफोसेट’ आधारित शाकनाशक) के अग्रणी निर्माता के रूप में विख्यात है। यह कंपनी GM फसलों की पुरजोर समर्थक है तथा BT बैंगन के लाभों की वकालत करती है। BT कपास के अध्ययन से पता चलता है कि इस कंपनी ने बोल्गार्ड बीज के माध्यम से कपास के बीजों के बाजार में एकाधिकार स्थापित कर लिया है। वर्तमान भारत में उगाई जाने वाली 96 प्रतिशत कपास ट्रांसजेनिक अथवा GM किस्म की ही है। यह कंपनी नए पेटेंट के माध्यम से और अधिक कीमतों के द्वारा किसानों को आर्थिक नुकसान पहुँचा रही है, जिससे भारत सरकार को इसको विनियमित करना पड़ रहा है।

निष्कर्ष

GM तकनीक का एक विवादास्पद इतिहास रहा है। भारत में GM फसलों को लेकर लगातार आशंका व्यक्त की जाती रही है और केवल BT कपास के ही उत्पादन को मंज़ूरी दी गई है। किसानों का दृष्टिकोण इन फसलों के प्रति सकारात्मक है तो इसका कारण ऐसी कृषि तकनीकों का विकास नहीं हो पाना रहा है, जो लागत प्रभावी हों और जिनसे किसानों को अच्छा लाभ प्राप्त हो सके। इस स्थिति से निपटने के लिए जैविक खेती, शून्य बजट खेती आदि तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है। भारत सरकार को भी GM फसलों के प्रभावों पर अध्ययन में तेज़ी लाने की आवश्यकता है, जिससे एक सही निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके और GM फसलों अथवा BT बैंगन के भविष्य का निर्धारण किया जा सके।

प्रश्न: भारत में किसानों द्वारा यदा-कदा गैर-कानूनी रूप से GM फसलों को उगाने के मामले सामने आते रहे हैं। इस संदर्भ में BT बैंगन से संबंधित चिंताओं पर प्रकाश डालिये।