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एडिटोरियल

  • 19 Feb, 2021
  • 9 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

असंगठित क्षेत्र के लिये श्रम संहिता

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में सामाजिक सुरक्षा संहिता पर हाल ही में तैयार किये गए नियमों के मसौदे के लाभ व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

केंद्रीय वित्त मंत्री ने बजट 2021 के भाषण में घोषणा की थी कि सरकार द्वारा लाई गई चार श्रम संहिताओं को 1 अप्रैल, 2021 से देश में लागू किया जाएगा। ये श्रम संहिताएँ देश के पुरातन श्रम कानूनों को सरल बनाने के साथ श्रमिकों के हितों से समझौता किये बगैर आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करने की परिकल्पना करती हैं।  

हालाँकि सामाजिक सुरक्षा संहिता पर प्रस्तुत हालिया नियमों के मसौदे से यह संकेत मिलता है कि इसके तहत अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की चुनौतियों पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है।  

भारत में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को उनके मानव और श्रम अधिकारों के उल्लंघन के जोखिम के साथ आजीविका की गरिमा, असुरक्षित एवं अनियमित काम करने की स्थिति और कम मज़दूरी आदि जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

ऐसे में समाज में व्याप्त असमानता की इस खाई को समाप्त करने और एक समावेशी विकास मॉडल को अपनाने के लिये भारत में अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों की चुनौतियों को दूर करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिये। 

अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के हितों की रक्षा: 

  • भारत के अनौपचारिक क्षेत्र के कुल अनुमानित 450 मिलियन श्रमिकों की देश के कुल कार्यबल में लगभग 90% हिस्सेदारी है, साथ ही इसमें प्रतिवर्ष 5-10 मिलियन नए श्रमिक जुड़ जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त ऑक्सफैम की नवीनतम वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में नौकरी गँवाने वाले कुल 122 मिलियन श्रमिकों में से 75% अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित थे।
  • COVID-19 महामारी का अनुभव हमें बताता है कि सभी क्षेत्रों के श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा की पहुँच सुनिश्चित करना बहुत  आवश्यक है, क्योंकि COVID-19 महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने हेतु लागू किये गए लॉकडाउन के कारण अनौपचारिक क्षेत्र की सुभेद्यता की स्थिति और अधिक गंभीर हो गई थी।
  • इसके अतिरिक्त चालू वित्त वर्ष (2020-21) में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.7% तक की गिरावट देखे जाने का अनुमान है, अतः वर्तमान में रोज़गार के अवसरों के विकास के माध्यम से अर्थव्यवस्था को शीघ्र ही गति प्रदान करने की आवश्यकता है। 

ड्राफ्ट नियमों के साथ जुड़े प्रमुख मुद्दे:

  •  बहिष्करण की चिंता: श्रम संहिता पर प्रस्तुत नियमों के मसौदे के तहत सभी श्रमिकों को किसी भी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने हेतु सक्षम होने के लिये श्रम सुरक्षा पोर्टल पर अपना पंजीकरण (आधार कार्ड के साथ) करना अनिवार्य बनाया गया है।  
    • इससे जहाँ एक तरफ आधार-चालित बहिष्करण को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ अधिकांश श्रमिक आधार पंजीकरण प्रणाली के प्रति जागरूकता के अभाव में स्वयं ही पंजीकरण को पूरा नहीं कर सकेंगे। 
    • इसके साथ ही प्रवासी श्रमिकों द्वारा निरंतर अंतराल पर इस पोर्टल में अपनी जानकारी को अद्यतन करना एक और संभावित चुनौती हो सकती है। 
  • शहरी क्षेत्र पर केंद्रित: हालाँकि सरकार के अनुसार, सुधार की इस प्रक्रिया का उद्देश्य असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और गिग अर्थव्यवस्था के लिये वैधानिक संरक्षण (आवश्यकता आधारित न्यूनतम मज़दूरी, गैर-खतरनाक काम करने की स्थिति, सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा अधिकार आदि) कवरेज का विस्तार करना है।
    • परंतु यह संहिता अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित श्रमिकों की विशाल आबादी के लिये किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा को विस्तारित करने में विफल रही है। गौरतलब है कि असंगठित क्षेत्र के रोज़गार मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक फैले हुए हैं, साथ ही इसके तहत प्रवासी श्रमिक, स्व-नियोजित श्रमिक, होम-बेस्ड वर्कर और अन्य सुभेद्य समूहों के श्रमिक शामिल होते हैं।
  • अधिकार आधारित ढाँचे का अभाव: इस संहिता के तहत सामाजिक सुरक्षा को ‘अधिकार’ के रूप में महत्त्व नहीं दिया गया है और न ही इसके प्रावधानों (जैसा कि संविधान में निर्धारित है) का उल्लेख किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त संहिता में किसी भी उपयुक्त शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना की बात नहीं कही गई है जो लाखों श्रमिकों को सुरक्षा ढाँचे की अनुपस्थिति में असुरक्षित छोड़ देगा।

आगे की राह:     

  • प्रवासी श्रमिकों के हितों की रक्षा: मानव विकास संस्थान (Institute for Human Development- IHD) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में सुभेद्य प्रवासी श्रमिकों की कुल संख्या 115 मिलियन से लेकर 140 मिलियन तक हो सकती है। 
  • ऐसे में मसौदा नियमों में यह स्पष्ट किया जाना महत्त्वपूर्ण है कि प्रवासी अनौपचारिक श्रमिकों के हितों पर उनका किस प्रकार का प्रभाव पड़ेगा।   
  • इस संदर्भ में सरकार द्वारा शुरू की गई ‘एक देश एक राशन कार्ड’ पहल एक सकारात्मक कदम है। 
  • MSME को मज़बूत बनाना: वर्तमान में औपचारिक क्षेत्र के लगभग 40% श्रमिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) में कार्यरत हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि MSMEs के मज़बूत होने से आर्थिक सुधार, रोज़गार सृजन और अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण को बढ़ावा मिलेगा। 
  • सीएसआर व्यय के तहत प्रशिक्षण: बड़े कॉरपोरेट घरानों को भी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility-CSR) व्यय के तहत असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों को प्रशिक्षित करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये।
  • इसके साथ ही घरेलू श्रमिकों के अधिकारों को पहचानने और उनके लिये कार्य करने की बेहतर स्थितियों को बढ़ावा देने हेतु जल्द-से-जल्द घरेलू श्रमिकों पर एक राष्ट्रीय नीति लाने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष:   

सामाजिक सुरक्षा संहिता की परिकल्पना भारत में बड़ी संख्या में कार्यरत अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के हितों की रक्षा हेतु एक कानूनी सुरक्षात्मक उपाय के रूप में की गई थी परंतु जब तक अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए श्रम संहिता तैयार कर उसे लागू नहीं किया जाता, तब तक इस असमानता की खाई को समाप्त करना असंभव है।

अभ्यास प्रश्न:  कार्यबल की बढ़ती अनौपचारिक/असंगठित प्रकृति और इसमें राज्य की ज़वाबदेही का अभाव बढ़ती असमानता के लिये एक उपजाऊ भूमि प्रदान करता है। चर्चा कीजिये।


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