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  • 18 Oct, 2019
  • 13 min read
भारत-विश्व

भारत-नेपाल संबंध और चीन की चुनौती

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत-नेपाल के बीच संबंधों और नेपाल में चीन के बढ़ रहे हस्तक्षेप पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारत में अनौपचारिक शिखर वार्त्ता के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नेपाल के दौरे पर गए। उल्लेखनीय है कि विगत 23 वर्षों में नेपाल की यात्रा करने वाले वे पहले चीनी राष्ट्रपति हैं। इससे पहले वर्ष 1996 में जियांग ज़मिन ने नेपाल का दौरा किया था। राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के मध्य 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए और साथ ही चीनी राष्ट्रपति ने नेपाल के विकास कार्यक्रमों के लिये 56 अरब नेपाली रुपए की सहायता देने की भी घोषणा की। इसके अलावा चीनी राष्ट्रपति ने काठमांडू को तातोपानी ट्रांजिट पॉइंट से जोड़ने वाले अर्निको राजमार्ग को दुरुस्त करने का भी वादा किया। ध्यातव्य है कि यह राजमार्ग वर्ष 2015 में आए भूकंप के बाद से बंद है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नेपाल यात्रा को नेपाल के विदेश मंत्री ने ‘ऐतिहासिक महत्त्व’ वाली यात्रा करार दिया है। उल्लेखनीय है कि शी जिनपिंग का यह दौरा भारत के लिये भी भू-राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि बीते कुछ वर्षों में भारत के प्रति नेपाल के रुख में काफी परिवर्तन आया है।

भारत-नेपाल ऐतिहासिक संबंध

  • नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण वह हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है।
  • भारत और नेपाल हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं, उल्लेखनीय है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है।
  • वर्ष 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है।

भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि

  • यह भारत और नेपाल के मध्य द्विपक्षीय संधि है जिसका उद्देश्य दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के बीच घनिष्ठ रणनीतिक संबंध स्थापित करना है।
  • यह संधि दोनों देशों के बीच लोगों और वस्तुओं की मुक्त आवाजाही और रक्षा एवं विदेशी मामलों के बीच घनिष्ठ संबंध तथा सहयोग की अनुमति देती है।
  • साथ ही यह नेपाल को भारत से हथियार खरीदने की सुविधा भी देती है।

भारत के लिये नेपाल का महत्त्व

  • नेपाल, भारत के पाँच राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम एवं बिहार के साथ सीमा साझा करता है और इसीलिये वह भारत के लिये सांस्कृतिक तथा आर्थिक विनिमय का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है।
  • नेपाल, भारत के साथ खुली सीमा साझा करता है और यदि दोनों देशों के मध्य संबंध अच्छे नहीं होंगे तो भारत के लिये अवैध प्रवासी, जाली मुद्रा, ड्रग और मानव तस्करी जैसे मुद्दे चिंता का विषय बन जाएंगे।
  • नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र के विरुद्ध भारत ने नेपाल में लोकतांत्रिक परिवर्तन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • कई नेपाली नागरिक भी भारतीय रक्षा बलों में तैनात हैं।
  • कई हिंदू और बौद्ध तीर्थस्थल नेपाल में मौजूद हैं जिसके कारण नेपाल भारत के लिये सांस्कृतिक दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • नेपाल का दक्षिण क्षेत्र भारत की उत्तरी सीमा से सटा है। भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता माना जाता है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ नेपाल के मधेसी समुदाय का सांस्कृतिक एवं नृजातीय संबंध रहा है।
  • दोनों देशों की सीमाओं पर यातायात को लेकर कभी कोई विशेष प्रतिबंध नहीं रहा। सामाजिक और आर्थिक विनिमय बिना किसी गतिरोध के चलता रहता है। भारत-नेपाल की सीमा खुली हुई है और आवागमन के लिये किसी पासपोर्ट या वीज़ा की ज़रूरत नहीं पड़ती है। यह उदाहरण कई मायनों में भारत-नेपाल की नज़दीकी को दर्शाता है।

भारत-नेपाल सहयोग क्षेत्र

व्यापार और अर्थव्यवस्था

  • भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार होने के साथ-साथ विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत भी है।
  • भारतीय उद्योग, नेपाली उद्योगों के साथ विनिर्माण, सेवाओं (बैंकिंग और बीमा), बिजली क्षेत्र और पर्यटन आदि में संलग्न हैं।

कनेक्टिविटी

  • नेपाल एक लैंडलॉक देश है जो तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है और एक तरफ तिब्बत से।
  • भारत-नेपाल ने अपने नागरिकों के मध्य संपर्क बढ़ाने और आर्थिक वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कनेक्टिविटी कार्यक्रम शुरू किये हैं।
  • हाल ही में भारत के रक्सौल को काठमांडू से जोड़ने के लिये इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक बिछाने हेतु दोनों सरकारों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।

विकास सहायता

  • भारत सरकार नेपाल में ज़मीनी स्तर पर बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए समय-समय पर विकास सहायता प्रदान करती है।
  • इसमें बुनियादी ढाँचा, स्वास्थ्य, जल संसाधन, शिक्षा, ग्रामीण और सामुदायिक विकास आदि शामिल हैं।

रक्षा सहयोग

  • द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के तहत उपकरण और प्रशिक्षण के माध्यम से नेपाल की सेना का आधुनिकीकरण शामिल है।
  • भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट्स में नेपाल के पहाड़ी इलाकों से भी युवाओं की भर्ती की जाती है।
  • भारत वर्ष 2011 से नेपाल के साथ हर साल सूर्य किरण नाम से संयुक्त सैन्य अभ्यास करता है।

भारतीय समुदाय

  • नेपाल में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं, इनमें व्यापारी, उद्यमी, डॉक्टर, इंजीनियर और मज़दूर आदि शामिल हैं।

नेपाल में बढ़ रहा है चीनी प्रभाव

  • गौरतलब है कि चीन का प्रभाव दक्षिण एशिया में लगातार बढ़ रहा है। नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान या बांग्लादेश हर जगह चीन की मौजूदगी बढ़ी है। ये सभी देश चीन की बेल्ट रोड परियोजना में शामिल हो गए हैं। लेकिन भारत इस परियोजना के पक्ष में नहीं है।
  • नेपाल अपनी कई ज़रूरतों के लिये भारत पर निर्भर है, लेकिन वह लगातार भारत पर निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहा है।
  • नेपाल के कई स्कूलों में चीनी भाषा मंदारिन को पढ़ना भी अनिवार्य कर दिया गया है। नेपाल में इस भाषा को पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतन का खर्चा भी चीन की सरकार उठाने के लिये तैयार है।
  • काठमांडू में हस्ताक्षरित 20 दस्तावेज़ों में से 4 कानून प्रवर्तन से संबंधित हैं।
  1. सीमा प्रबंधन
  2. सीमा सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति
  3. पारस्परिक कानूनी सहायता और
  4. नेपाल के अटॉर्नी जनरल और चीन के ‘सुप्रीम पीपल्स प्रोक्यूरेटर’ के मध्य सहयोग।
  • साथ ही चीन ने नेपाल की कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमताओं को बढ़ाने और नेपाल ने ‘अपनी धरती पर चीन विरोधी गतिविधियों’ की अनुमति न देने का वादा किया।

भारत-नेपाल बिगड़ते रिश्ते

  • हाल के कुछ वर्षों में भारत-नेपाल के बीच में मतभेद देखा गया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 में जब नेपाल की तराई में बसे मधेसी समुदायों ने अपनी कुछ मांगों को न मानने के कारण भारत–नेपाल सीमा पर कई दिनों तक आवाजाही को अवरुद्ध किया था, तब नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने भारत पर नेपाल की सीमा के कुछ महत्त्वपूर्ण रास्तों की नाकाबंदी करने का आरोप लगाते हुए इसे आर्थिक नाकेबंदी कहा था।
  • ध्यातव्य है कि भारत-नेपाल के बीच में बढ़ते मतभेद का कारण एकतरफा नहीं है। दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट तब भी सामने आई जब सितंबर 2015 में नेपाली संविधान अस्तित्व में आया। क्योंकि, भारत द्वारा नेपाली संविधान का उस रूप में स्वागत नहीं किया गया जिस रूप में नेपाल को आशा थी।

भारत के लिये है चिंता का विषय?

  • उल्लेखनीय है कि नेपाल वर्ष 2017 में चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना में शामिल हुआ था, परंतु भारत अब तक चीन की इस परियोजना में शामिल नहीं हुआ है। विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल के इस कदम से चीन के साथ भारत के व्यापार संतुलन को काफी बड़ा झटका लगेगा।
  • चूँकि नेपाल भारत के लिये एक मध्यवर्ती क्षेत्र के रूप में कार्य करता है, इसलिये इसका चीन की झुकाव देखना भारत के रणनीतिक हित में नहीं होगा।

आगे की राह

  • यदि नेपाल की आंतरिक राजनीति की बात करें तो वह पिछले कुछ वर्षों में काफी अस्थिर रही है। ज़ाहिर है नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता उसकी विदेश नीति को संभलने नहीं दे रही। वहाँ एक सशक्त और मज़बूत नेता की सख्त ज़रूरत है जो पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को बेहतर कर सके।
  • इसी के साथ भारत को भी अपनी विदेश नीति की समीक्षा करने की ज़रूरत है। भारत को नेपाल के प्रति अपनी नीति दूरदर्शी बनानी होगी। जिस तरह से नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, उससे भारत को अपने पड़ोस में आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन करने से पहले रणनीतिक लाभ–हानि पर विचार करना होगा।

प्रश्न: “ऐतिहासिक काल से भारत और नेपाल के संबंध मधुर रहे हैं।” इस कथन के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिये कि नेपाल में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप से भारत किस प्रकार प्रभावित होगा?


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